
हमनवां – 33
शैफाली किसी छोटे बच्चे सी नींद में सोई थी कि कब ताई जी आई और उसके सिरहाने बैठकर उसका माथा सहलाने लगी उसे पता ही नहीं चला| सूरज सर पर चढ़ आया था और शैफाली अभी तक सो रही थी इसलिए वे उसे देखने आई पर उसे इतने चैन से सोता देख उनका उसे जगाने का मन ही नही हुआ पर उनके स्नेहपूर्ण स्पर्श से आखिर उसकी ऑंख खुल गई| वे अभी भी उसका सर प्यार से सहला रही थी तो उनके हाथ पर अपना हाथ रखती एकटक उन्हें देखती रही|
“सबेरा हो गया है – तुम उठी नही तो देखने चली आई –|”
शैफाली धीरे से उठकर बैठती हुई एक पल उन्हें तो दूसरे पल उस स्थान को देख डालती है जहाँ वह सोई थी| कल वो इतनी थकी थी कि वह उन्हीं कपड़ों में सो गई थी, उसे तो ये भी पता नहीं चला कि उसके सोते कब उसके चारों ओर मच्छरदानी का घेरा बांध दिया गया तभी वह इतने चैन से सो गई|
“तबियत ठीक है न पुत्तर जी !”
शैफाली अवाक् उस अनजान चेहरे को देख रही थी जो इतना अनजान होते हुए भी उसे सबसे स्नेहपूर्ण लग रहा था, वह बस धीरे से मुस्करा देती है|
तभी एक लड़की हाथ में चाय का कप लिए वहां आते ही शैफाली के पास आकर खड़ी हो कर चाय उसकी ओर बढ़ाती है तो शैफाली अपनी भौं उचकाकर पूछती है तब वह कहती है – “चाय है – आप सुबह चाय नहीं पीती !!”
शैफाली न में सर हिलाती है तो वे दो जोड़ी ऑंखें उसकी ओर देखती रहती है|
“तो क्या पीती है सुबह सुबह !!” वह हतप्रभ देखती हुई पूछती है|
शैफाली उन आँखों का आश्चर्य पढ़ती मुस्कराती हुई धीरे से कहती है – “पानी|” कहती हुई बेड से नीचे पैर लटकाकर बैठ जाती है|
“वो तो यही है|” कहती वह बगल की मेज पर रखा पानी का गिलास उसकी तरफ बढ़ा कर खिलखिला कर हँस पड़ती है|
ताई जी उसका हाथ पकड़कर शैफाली के साथ बैठाती हुई खुद खड़ी होती हुई कहती है – “एह मेरे भाई की बेटी है पूजा – चंडीगढ़ के कॉलेज में पढ़ती है – हुण तु शैफाली पुत्तर के साथ रह कर उसका ध्यान रखना ये त्वाडी जिम्मेदारी हन – मैं त्वाडे वास्ते अभी नास्ता भिजवाती हूँ|”
उनके जाते पूजा झट से शैफाली की तरफ मुडती हुई चहकती हुई बोली – “वीर जी सच्ची कहते है आप विदेश से आई हो !!” कहती हुई वह उसके खुले सुनहरे बालों को सहलाने लगती है|
“लन्दन से |” शैफाली उसकी आँखों की उत्सुकता पढ़ती हुई कहती है|
“वाह |” वह किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो जाती है|
“क्या मुझे और जल्दी उठना था !!” शैफाली कुछ परेशान सी उसकी ओर देखती हुई पूछती है|
“ऐसा कुछ नही फुआ आपकी फ़िक्र कर रही थी बस – ये गाँव है न – सबको आपकी चिंता है|” वह खिलखिलाती हुई शैफाली का कन्धा पकड़ती हुई बोली – “आप फ़िक्र न करो अब फुआ ने आपकी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है तो मैं आपको कभी अकेला नही होने दूंगी|”
ये सुन एक सुकून भरी मुस्कान शैफाली के चेहरे पर तैर जाती है|
तभी उन सबका ध्यान कमरे से बाहर के शोर पर जाता है तो शैफाली भौं उचका कर उससे पूछती है इसपर पूजा खिड़की से बाहर झांकती हुई हँसते हुए कहती है –
“ये बच्चों की धमाचौकड़ी है – वो देखो उन सबका लीडर वो लड़का हैप्पी है – जोगिन्दर वीर जी का बेटा है – नाम तो उसका हैप्पी है पर सबकी नाक में दम करके रखता है|”
शैफाली भी अब उत्सुकता से बाहर खिड़की के बाहर देखती है|
गाँव की सुबह चिड़ियों की चहचहाहट के साथ बच्चों के शोर के साथ हुई, आँगन से लेकर कमरों तक दौड़ लगाते बच्चे नज़र आ रहे थे, सुबह सुबह घर की औरते बच्चों की धमाचौकड़ी से परेशान बच्चों को डांटती नजर आ रही थी तो इरशाद को देख सारे बच्चे उसके पीछे हो लिए|
“ओह शैतानो इधर आओ सब |”
परजाई इरशाद को आवाज लगाकर उन्हें इकट्ठा करती सुनती है तो कहती है – “इरशाद वेखिया नियाने साडी गल ही नही सुन रहे|”
“आप चिंता न करो परजाई अब इन सारे शैतानों को मैं देखता हूँ|”
ये सुन वहां इकट्ठा पांच छह छोटे बड़े बच्चे एक दूसरे को तनी आँखों से देखते है फिर धीरे से मुस्कराते हुए इरशाद के पास सारे के सारे दौड़ते हुए आते है|
“चाचू असी बहुत अच्छे बच्चे है |” कहते हुए आंगन में फैले पानी के पाईप पर चुपके से पैर रखकर खड़ा होकर किसी दूसरे बच्चे को कुछ इशारा करता है हैप्पी|
इरशाद उसकी तरफ आ रहा था तभी अचानक पीछे से मोहित आते उसका कन्धा पकड़ता हुआ कहता है – “बच्चू तुम लोगों ने क्या खिचड़ी पकाई है|”
इसपर इरशाद पकड़े गए चोर की तरह दयनीय मुंह बनाते उसकी ओर देखता है तो मोहित को देख हैप्पी झट से वहां से भाग जाता है जिससे पानी के पाईप से उसका पैर हटते पानी का तेज फौवारा उनके ऊपर छूट जाता है| दोनों सकपकाते जबतक अपनी हालत समझते वे पानी से काफी भीग चुके थे|
इधर खिड़की से झांकती दोनों ये दृश्य देख खिलखिला कर हँस पड़ती है फिर पूजा शैफाली का हाथ पकड़े बाहर आंगन की ओर आती है|
दोनों भीगे एक दूसरे को देखते तो कभी अपने आसपास जमा बच्चों को ताली पीटते हुए देखते|
“हैप्पी अब वीर जी से तु न बचेगा|”
पूजा की आवाज सुन मोहित का ध्यान उसकी ओर जाता है जहाँ शैफाली खड़ी मुंह पर हाथ रखे अभी भी उसकी हालात पर कसकर हँस रही थी, मोहित बस फंसी सी हँसी हँसता देखता रह गया|
***
दार जी आंगन के बीच में पड़ी चारपाई पर बैठे थे वही बैठे बैठे वे सभी को निर्देश देते जा रहे थे| दार जी आवाज लगाकर जोगिन्दर भाई को स्टेशन जाने को कह रहे थे| तभी उनका ध्यान ट्रैक्टर की आवाज सुन आंगन की दीवार के खुले गेट के पार जाता है तो उनकी सफ़ेद मूंछे हँसते हँसते हिलने लगती है, सामने इरशाद सर पर अंगोछे को पगड़ी की तरह बांधें ड्राइविंग सीट पर बैठा आवाज लगा कर बता रहा था कि वह स्टेशन जा रहा है मेहमानों और सामान को लाने तो वे दाढ़ी पर हाथ फिराते एक बार फिर इस दृश्य पर मुस्करा पड़ते है| ट्रैक्टर की आवाज सुन घर के बड़े दो चार बच्चे भी भागते भागते वही आ कर साथ ले जाने की जिद्द करने लगते है तिस पर दार जी उन्हें जब तक रोकते है वे झट से इरशाद के इशारे पर दौड़कर ट्रैक्टर पर चढ़ जाते है| आवाज सुन आंगन के उस पार खड़ा जय ये देखता हुआ इरशाद को आवाज़ लगाकर इशारे में पूछता है जिस पर वह तेज़ आवाज में बोलता है –
“दो दिनों से ट्रैक्टर चलाने की प्रैक्टिस कर रहा हूँ – आजा बैठ कर देख क्या गजब चलाता हूँ|” अच्छे से हैंडल पर तनता हुआ इरशाद बोला तो जय ऊपर हवा में हाथ जोड़ता हुआ बोला –
“तू सही सलामत सबको वापस ले आ यही बहुत है – मुझे माफ़ कर मेरे बाप|”
“ओए तू चिंता न कर मैं चालंगा तेरे साथ|” दोनों देखते है कि जोगिन्दर भाई झट से ट्रैक्टर में उसके साथ वाली सीट पर आकर बैठ जाते है इससे इरशाद खुश होकर ट्रैक्टर आगे बढ़ा देता है जिससे बच्चे शोर करते ताली बजाने लगते है|
ट्रैक्टर आगे बढ़ जाता है तो जय वही खड़ा देखता रहा पर जैसे ही पूरा ट्रैक्टर वहां से हटता है तो सामने उस पार उसे मोहित दिखता है, जिसे जबतक जय देखता उलटे कदम से गेट के अन्दर जाने ही वाला था कि वह दौड़ता हुआ उसके पास आता उसको पकड़ कर उसके पेट में घूंसा जमा देता है, वे दीवार के पार थे जिससे किसी की नजर उन पर नहीं पड़ी थी| मोहित का घूंसा पड़ते ही वह पीछे होता हुआ बोलता है – “अबे पुलिस वाले पर हाथ उठाया तो देखना|”
“ऐसी तैसी बहुत छुप लिया बेटा आज तेरे को नहीं छोडूंगा – बहुत खिचड़ी पकाई तूने|”
मोहित दूसरा घूंसा तानता है तो जय उचककर उसके पीछे देखता हुआ जल्दी से कहता है – “अरे शैफाली तुम्हें क्या हुआ !!”
ये सुनते मोहित संभलते हुए झटके से अपने पीछे देखता है जहाँ कोई नहीं था बस एक आवाज गूंजती है – “अबे अपनी शक्ल देख – बोलता है हमने खिचड़ी पकाई|” ये जय की आवाज थी|
मोहित सामने देखता है जय अब तक जा चुका था वह अपने सर पर हाथ मारता खुद में ही हँस पड़ता है|
घर की सभी स्त्रियाँ बाज़ार जाने को तैयार थी जय भी उन्हें लेजाने को तैयार था, ये सुन सभी लड़कियां भी भागी भागी आ गई अपनी अपनी लिस्ट लेकर पर जब संख्या बढ़ती गई तो वह समर को साथ चलने के लिए तैयार करने लगता है पर बाज़ार के नाम पर मोहित और समर की एक ही हालात होती थी तब उसे तैयार करने जय धीरे से उसके कान के पास जाकर उसे कहता हुआ सुझाता है कि कुछ ऋतु के लिए यहाँ से ले लेना शायद यही वो वजह रही कि वह दुबारा चलने से मना नही कर पाया|
परजाई जी पूजा को साथ चलने के लिए आवाज लगाती है, पूजा शैफाली को बुलाने जाती है तो वह देखती है कि शैफाली रसोई में ताई जी के बगल में बैठी उन्हें काम करती हुई उन्हें देख सुन रही थी, उनके सामने कितनी तरह की सब्जियां रखी थी जिन्हें वह हैरत से देख रही थी, उसके लिए ये सब भी कम रोमांचित नहीं लग रहा था जिसे छोड़कर जाने का उसका मन नही हुआ तो उसने बाहर जाने से मना कर दिया कि अगली बार वह जाएगी| पूजा चली गई, शैफाली फिर सामने चूल्हे में चढ़ी हांड़ी में खदकते दूध की धप धप सुनने लगी, तो बगल में बैठी ताई जी लस्सी बनाने मथानी पर अपनी हथेलियाँ चलाने लगी|
कुछ ही पल में घर में जैसे शांति सी छा गई, आधे बाज़ार चले गए तो आधे स्टेशन अब गिने चुने लोगों की उपस्थिति में घर की हर आहट साफ़ सुनाई दे रही थी|
मोहित बाहर का काम निपटाकर रसोई में खाने के लिए आया तो उसकी आंखे वहां का दृश्य देख फैली रह गई, इस समय जिद्द कर शैफाली मथानी चलाती हर घुड घुड की आवाज पर खिलखिला रही थी| ताई जी प्यार से मक्खन का एक अदना टुकड़ा उसकी जुबान पर रख कर मुस्करा देती है|
नमकीन मक्खन का टुकड़ा जुबान में घुलता ज्योंही गले से उतरता वह ऑंखें बंद कर उसे महसूस कर जुबान से चटाक की आवाज निकालती है फिर आँख खुलते उसकी आँखों के सामने मोहित नजर आता है तो वह धीरे से मुस्करा देती है पर उसकी नज़र शैफाली पर टिक सी गई थी|
“अरे पुत्तर आ न अन्दर|” ताई जी की आवाज से उसकी तन्द्रा टूटती है और वह उनके पास आकर बैठ जाता है| अब वे दोनों आमने सामने थे| उसके बैठते वे उठती हुई कहती है – “मैं गुड्डी को खाने के लिए बुला कर लाती हूँ|”
उनको घुटनों पर हाथ रखते उठते देख मोहित कहता है – “मैं लाता हूँ उसे|”
“मैं बुला लाऊं !!” अचानक शैफाली मोहित के चेहरे की ओर देखती हुई पूछती है तो वे खामोश बस देखते रह जाते है और वह बिना हाँ सुने झट से उठकर बाहर चल देती है|
“देख न हमारे रंग में रंग गई|” उसे जाता देख वे तिरछी नज़र से मोहित को देखती हुई बोली तो मोहित बस हलके से मुस्करा देता है|
फिर ताई जी तीनों को खाना खिलाती खिलाती साथ साथ ये भी बताती जा रही थी कि साग को कलछी से शैफाली ने चलाया तो तरी में उसी ने नमक डाला, कितना सही डाला गुड्डी चहकती हुई बोली पर मोहित ख़ामोशी से बस सुनता रहा और उससे नजर मिलने पर बस हौले से मुस्करा देता|
खाना खिलाकर उन्होंने गुड्डी को आराम करने भेज दिया कि शाम से मेहमानों से घर भर जाएगा तो उसे आराम करने का मौका ही नहीं मिलेगा तो मोहित से शैफाली को खेत खलियान दिखाने को कह डाला कि एक बार रस्मे शुरू हो गई तो सब व्यस्त हो जाएँगे, शैफाली भी जाने को उत्सुकता दिखाती है|
क्रमशः…..