Kahanikacarvan

हमनवां – 36

हल्दी की रस्म ने जैसे सारे माहौल को ही अपने रंग में रंग लिया था, गुड्डी को चारों ओर से घेरे घर की सारी स्त्रियाँ उससे हँसी ठिठोली कर रही थी, पूजा भी शैफाली संग वही आकर बैठ गई| गुड्डी के होने वाले पति बिजली विभाग में अभियंता थे तो सभी इसी बात को लेकर तरह तरह से उसे चिढ़ाते ढोलक की थापों संग गा रहे थे….

“काला शाह काला, मेरा काला ई सरदार…..

गोरेआं नु दफा करो, मैं आप तिल्ले दी तार….

काला शाह काला….

“नाम दस |”

गाते गाते सखी नाम लेकर चिढ़ाने पूछा तो गुड्डी झट से बोल पड़ी – “बलवीर जी |”

इसपर सखियों के हँसते अपनी बेखुदी का ख्याल आते वह फिर शरमा कर छुईमुई सी सिमट गई|

इसी हँसी ठिठोली के बीच उसकी सखियों को किनारे कर परजाई हल्दी तेल लगाती लगाती उसकी नाक पकड़ कर हौले से हिलाती हुई बोली – “नाम नहीं लेते अपने उनका |” गुड्डी शरमा गई| शैफाली हैरत से सारा नजारा देखे जा रही थी| अब सखियाँ मिलकर उसे हल्दी लगा रही थी, पूजा संग शैफाली के हाथों में भी हल्दी का लेप देकर परजाई दोनों को उस ओर भेजती है| पूजा शैफाली को दिखाती हुई उसकी हथेली में भी हल्दी तेल का लेप देती उसे भी अपनी तरह लगाने का इशारा करती गुड्डी को लगाने लगती है| शैफाली लेप सँभालने अपने दोनों हथेलियों में लेप समेट लेती हुई उठती है तो खुद को संभालती उसकी ओर झुकी जिससे उसके खुले बाल सारे चेहरे पर पसर जाते है, उन्हें समेटने वह अपनी हथेली का लेप भूलकर झट से आँखों के पास के बाल हटाती है जिससे अगले ही पल उसकी आंखे कडुआ जाती है| पूजा उसी पल बढ़कर उसे संभालती है| उसके हाथों का लेप पोछती वह उसके बाल पीछे कर देती है तो परजाई जी अपने आंचल से उसके चेहरे पर लगी हल्दी पोछने लगती है लेकिन हल्दी का अंश आँखों में जाने से वह अपनी आँखों मलने को बेचैन हो जाती है तिसपर वे उसे अपनी आंख को धोने को कहकर पूजा को साथ जाने को कहती है, शैफाली उस रंग में भंग नही डालना चाहती थी तो पूजा को साथ चलने से मना  कर अकेले खुद चले जाने को कहती स्त्रियों की भीड़ से निकलने लगती है तो परजाई जी अपनी छोटी सी बेटी गुरमीत को शैफाली के पीछे भेज देती है|

शैफाली जिस पल उस कमरे से अपनी एक आंख दबाए निकल रही थी उसी पल उसके पीछे वह तीनों बहनें खनकती हुई वहां आ पहुँची और गुड्डी से हंसीं करती हल्दी तेल उसे लगाकर उनमें से मीतू बची हल्दी और अच्छे से अपनी हथेली में फैला कर परजाई की ओर देखती हुई बाहर की ओर भागी और कमरे के बाहर के गलियारे पर बिजली ली लड़ियाँ लगवाते मोहित के पीछे जाकर चुपके से उसकी पीठ पर कसकर थापे मार खिलखिलती हुई दूसरी ओर भागी|

मोहित जब तक कुछ समझता वह दूर खड़ी हँस रही थी तो कमरे से झांकती लगभग निगाहें उसकी इस खा जाने वाली निगाह पर कस कर हँस पड़ी थी|

मोहित फिर लड़ियाँ ठीक करवाने लगता है तो फिर किसी अन्यत्र धक्के से उसे पता चल जाता है कि अबकि उन तीनों में से किसी अन्य ने उसके पीछे हल्दी लगा दी है जिससे वह फिर उन स्त्रियों के झुण्ड की ओर घूर कर देखता है|

“लाला जी रस्म होन्दी है|”

मोहित देखता है कि सभी उसको देख देख कर हँस रही थी तो दूर खड़ी उन तीनों में से मीतू अपने अंदाज में मटकती हुई बोल रही थी – “मरजावां – असी सुनिया सी शहर वाले किसी का बकाया नई रगदे|”

अब तो उसका गुस्सा सर पर चढ़ जाता है वह खार खाया एक दम से परजाई को दूर से ही देखता हुआ चीखा – “परजाई जी वेखना अब जो होगा उसके लिए ये ही जिम्मेदार होंगी|”

कहता हुआ झट से अंदर आता हल्दी का एक कटोरा अपने हाथ में लेता हुआ उस कमरे से तेजी से बाहर निकलने लगता है तो कुछ नज़रे उस तमाशे को देखने उसके पीछे पीछे हो लेती है|

जब तक मोहित बाहर आता है तो मीतू उसकी नज़रों से नदारत हो चुकी थी वह उसी दिशा में कटोरा हाथ में लिए बढ़ता है| उसका चेहरा गुस्से में तना था तो उसके पीछे पीछे चलती दर्शकों की नज़रे खिलखिलाती हुई उसका पीछा कर रही थी|

मोहित गुस्से में कटोरा लिए इधर उधर देख रहा था कि तभी पीली चुन्नी से सर ढके उसे कोई साया नजर आती है और झट से वह उसके सर से चुन्नी हटा कर कटोरे की सारी हल्दी उसके सर पर उड़ेल  देता है, एक दम से दम साधो नज़ारा हो जाता है| मोहित अपनी गुस्से से भरी आँखों से सर से टपककर चेहरे पर फैले हल्दी के पीछे के चेहरे को गौर से देखा तो अगले ही पल उसका गुस्सा कपूर की तरह उड़ जाता है|

उस पल आस पास खड़े सभी उस दृश्य को देख कसकर हँस पड़े थे, उसके बगल में खड़ी छोटी गुरमीत अपनी हथेली से मुंह दाबे हँस रही थी| मोहित के हाथ में कटोरा जैसे चिपककर उसे स्तब्ध कर गया था| मोहित को बिलकुल अंदाजा नही था कि वो शैफाली होगी, शैफाली तो मूर्ति बनी रह गई अभी अभी वह अपने चेहरे की हल्दी धोकर निकली थी और गुरमीत द्वारा दी चुन्नी से चेहरा पोछ रही थी|

सबकी हँसी के बीच दूर खड़ी मीतू हाथ मलती रह गई क्योंकि वह तो चाहती ही थी कि मोहित उसे खोज ले पर उसकी जगह अब शैफाली थी और ये देख उसका चेहरा लटक गया था|

***

ज्यों ज्यों साँझ ढलने लगी सभी अब वहां आने लगे जहाँ पंगत में बैठ कर भोजन कराया जा रहा था| शैफाली के दुबारा नहाकर आने के बाद पूजा उसको उस पंगत में बैठाकर अभी गई ही थी कि मीतू शैफाली को देख उसके पास आ कर बैठ गई और बात करने लगी|

“बड़ा बुरा हुआ तुम्हारे साथ – मोहित जी ने अच्छा नही किया – मैं होती न कभी उनकी तरफ अब मुड़कर भी न देखती|”

शैफाली अब उसकी ओर देखती हुई फीकी सी हँसी हंसती फिर सामने देखने लगती है|

“पता है मेरे बाल भी तुम्हारे जैसे थे पर वो क्या है न जी यहाँ इंडिया में धूप बड़ी तेज होती है – उसी से थोड़े गहरे हो गए – नहीं तो बचपन में मुझे सब अंग्रेजन  ही बुलाते थे|” गर्व से कहती वह अपनी आंखे झपकाती हुई कहती है|

“मेरी मॉम तो कहती है कि एनआरआई से शादी होगी तुम्हारी|” कहती कहती अपने में ही शर्माती हुई वह शैफाली की ओर देखती है जो उसकी बातों की ओर कोई ख़ास दिलचस्पी नही ले रही थी|

तभी बाकि की दोनों बहनें भी उसके पास आकर बैठती बारी बारी से कुछ न कुछ शैफाली से पूछने लगती है|

“लन्दन ब्रिज देखा है !!”

“स्टैचू आफ लिबर्टी  !!”

अबकि शैफाली की हँसी छूट गई जबतक वह उन तीनों को बताती कि स्टैचू आफ लिबर्टी न्यूयॉर्क में है तब तक ननकू हाथ में बाल्टी लिए आता सबके पत्तल में सब्जी डालने लगता है| अब शैफाली उनकी तरफ से पूरी तरह ध्यान हटा कर पूजा को देखने सामने देखती है तो उसके कानों में फिर उनकी आवाज गूंजती है वे ननकू पर चिल्लाती हुई इतरा इतराकर बता रही थी कि सब्जी बहुत ऑयली है| शैफाली सच में उनका नाटक देखकर त्रस्त हो उठी थी तभी जोगिन्दर भाई जी वहां आते है| वे उनके सामने और इतराने लगी तो वे जाते हुए ननकू को आवाज लगाते हुए कहते है –

“ओए ननकू – कुड़ी नू सब्जी धो कर लाना |” जोगिन्दर भाई जी के ऐसा कहते पंगत में बैठे आस पास के सभी लोग हँस पड़ते है, ये देख दोनों मुंह बिचकाकर पत्तल की ओर झुक जाती है|

पूजा देर से आई तब तक शैफाली खाना खाकर उठ गई| शैफाली अब तक सीख चुकी थी कि पंगत से उठते उसे अपना पत्तल खुद उठाना है, ये देख जोगिन्दर भाई जी मुस्करा रहे थे पर कहा कुछ नहीं|

शैफाली आंगन के कोने वाले उस हिस्से की तरफ गई जहाँ पत्तल डाल वह हाथ धोकर मुड़ी ही थी कि किसी आवाज ने उसके कदम रोक लिए| वह आवाज की दिशा की ओर बढ़ती आँगन के नीम के पेड़ के नीचे की छाया को गौर से देखने लगी|

“सॉरी कहना था मुझे|” उस अँधेरे से निकलकर मोहित अब उसके सामने था|

शैफाली हैरत से उसे देख रही थी| वह अब समझी कि हल्दी के बाद से आखिर तब से मोहित क्यों उसके सामने नही पड़ा, वह उसकी हालात देख धीरे से मुस्करा दी| मोहित फिर माफ़ी दोहराता उसकी तरफ देखता है तो शैफाली होठों को तिरछा कर कह रही थी|

“मेरी बहुत प्यारी ड्रेस खराब कर दी – कैसे माफ़ कर दूँ|”

“अब जो हो गया वो वापस तो नही कर सकता पर..|” मोहित कुछ सोचता उसकी तरफ देख जैसे सोचने लगा|

शैफाली भी उसके पर के आगे को सुनने उसकी तरफ देखती रही|

“पर मैं तुम्हारे लिए ड्रेस ला दूंगा|”

शैफाली कुछ पल मौन उसकी आँखों की ओर देखती रही मोहित भी खामोश खड़ा जैसे उसकी हाँ सुनने के बाद ही जाना चाहता था|

“माफ़ी तो नहीं सजा दे सकती हूँ|”

मोहित चौंक जाता है|

“ड्रेस लेने मुझे भी साथ ले जाना पड़ेगा|”

मोहित उस पल समझ नही पाया क्यों वह झट से हाँ कह बैठा और कल शाम तक जाने की बात कह तुरंत वहां से चला गया| शैफाली भी अब किसी की आहट पाकर वहां से चली गई|

***

पूरा दिन मोहित कोशिश करता रहा कि किसी तरह से कोई बाजार जाने का काम उसे सौंप दे और शैफाली की बात वो पूरी कर सके पर सभी उसके बाजार न जाने की मंशा को समझते हुए घर के अन्दर के काम बता रहे थे| वह बातों बातों में जय और इरशाद से भी गुज़ारिश कर चुका था क्योंकि सीधा वह कह नहीं सकता था और वे सभी उसे अनसुना कर बाहर निकल गए|

आखिर ढलती दुपहरी को उसे मौका मिला जब एक कमरे से उसे परजाई जी अकेली दिखी तो झट से उनसे कह सुनाया कि गलती से शैफाली की ड्रेस खराब होने से अब उसका फर्ज है कि वह उसे ड्रेस खरीद कर दे तो वह बाजार जाना चाहता है, ये सुन कुछ पल तक तो वे उसका चेहरा देखती रही फिर दुपट्टे का कोना दबा कर भी अपनी हँसी न रोक पाई|

“अच्छा तभी सुबह से बाजार का काम पूछा जा रहा था – शैफाली को जो ले जाना है – लाला जी बड़े छुपे रुस्तम निकले|”

“परजाई जी आप तो मेरी परेशानी समझो – मैं कौन सा जाना चाहता हूँ पर जो गलती हुई है उसका भुगतान तो भुगतना पड़ेगा न – अब शैफाली खुद खरीदने जाना चाहती है तो क्या करूँ मैं !”

“बड़ी खूबसूरत सजा मिली है|” कहकर वे हँसी तो मोहित झेंपता उनकी तरह सर उठाकर न देख पाया|

“आपको कुछ मंगाना हो तो बता दीजिए मैं निहाल सिंह जी तहसील जा रहा हूँ लेकर उसे|”

“ये लो वहां न मिलेगा शैफाली लायक कुछ – ऐसा करो कुड़ी को लेकर लुधियाना चले जाओ – कल सवेरे सवेरे निकल जाओ एक घंटे की दूरी पर तो है शाम तक वापस आ जाओगे – |”

यही वो पल था जब पीछे से आती पूजा और गुड्डी अपनी अपनी कमर पर हाथ रखे मोहित को घूरती हुई कह रही थी|

“कौन जा रहा है लुधियाना !!”

फिर जैसे ही मालूम पड़ा कि मोहित शैफाली को ले जा रहा है तो दोनों शिकायत कर बैठी –

“अच्छा हमे तो न ले गए बाजार कभी वीर जी |”

“होर क्या – मैनू तो कभी वीर जी मोगा तक न ले गए कुछ खरीदवाने|”

सभी की शिकायत के पोटली खुलते देख मोहित थोड़ा स्थिति सँभालते हुए बोला –

“अरे तो चलो न साथ – जो जो लेना है लेलेना – मैंने कब मना किया|”

“वाह वीर जी आपके तो स्वर ही बदल गए – पर तुसी फ़िक्र न करो हम न जाएंगी साथ|” कहकर सभी एक साथ हँस पड़ी जो मोहित को उस पल लगा कि कहाँ भाग जाए यहाँ से|

बात और बिगड़ गई जब वे तीनों बहने भी हँसी फुहार के बीच झट से टपक पड़ी|

“हमे भी जाना है बाज़ार – आप जा रहे है तब तो हम भी चलेंगे साथ|”

तीनो का समवेत स्वर जैसे एक साथ सबके होश उड़ा ले गया| अब मोहित को कुछ कहते न बना तो परजाई जी तुरंत बात संभालती हुई बोली – “कल तो मेहँदी का सगना है – मेहँदी वाली तो शाम तक चली जाएगी – ओह फिर तुम लोग आपस में लगवा लेना मेहँदी|”

ये सुन तीनों एक दूसरे का चेहरा देखने लगी और मन ही मन सारा गुणाभाग लगाने लगी कि वे आपस में मेहँदी एक दूसरे को लगाएँगी तो कोई किसी को अच्छी मेहँदी नहीं लगाएगी और मेहँदी वाली चली गई तो शादी में खूब भर भर कर मेहँदी लगाने का ख्वाब उनका चूर चूर हो जाएगा और रही बात मोहित के संग जाने की तो और किसी दिन मनवा लेगी अपनी बात अभी कल मेहँदी तो लगवा ले ताकि शादी में उनकी मेहँदी सबसे खूबसूरत लगे|

उनकी चुप्पी देख परजाई जी समझ गई कि तीर निशाने पर लगा है तो वह फिर मोहित को कहती है – “तो ठीक है ले जाना इनको साथ|”

“न जी कल न जा सकेंगे पर अगली बार हमे जरुर ले चलिएगा|”

उनके ये कहते मोहित को ही नही बाकि के दिल को भी सुकून आ गया था|

*** क्रमशः

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!