Kahanikacarvan

हमनवां – 39

‘अपराधी कितना भी चोंगा बदल ले पर जैसे सच कितनी ही तहों के नीचे हो पर सामने आकर रहता है उसी तरह अपराधी भी बहुत दिन तक खुदको सफ़ेदपोशी के अन्दर नहीं छुपाए रह सकता| नाम छुपाते हुए ये उस डॉक्टर का बयान है कि आज से बारह साल पहले किस तरह उन्ही के हॉस्पिटल में रात के अँधेरे में अपनी घायल अवस्था में शरण लेने वाला अपराधी कैसे उन्हीं के हॉस्पिटल की एक नर्स का अपहरण कर लेता है और फिर उसका सालों तक कुछ पता नहीं चलता…और कुछ समय बाद वही शख्स राजनीति का एक उभरता हुआ चेहरा बनकर हमारे समाज में स्वछंद घूमता है आखिर कैसे माफ़ करेंगे ऐसे अत्याचारी….व्यभिचारी…|’

खबर को यही पढ़ने तक अश्विन कुमार की आँखों में खून उतर आया और वे चिंघाड़ते हुए उस अख़बार के पुलिंदे को हवा में उछाल देते है| चीखते हुए गौतम को आवाज लगाते है वह सर झुकाए वही खड़ा उनकी देह को आक्रोश में कांपते हुए देख रहा था|

“ये बहुत बुरा किया उस दिवंगत आत्मा तक को नही छोड़ा – गौतम शैली कहाँ है…??” वे अपनी लाल ऑंखें उसपर गड़ा देते है|

गौतम धीरे से कहना शुरू करता है – “मैंने सब तरफ अपने आदमी दौड़ाए पर उसका कुछ पता नही चल पाया शायद उसने खुद को अंडरग्राउंड कर लिया है – वह बहुत शातिर है अबकि वह किसी और के कंधे पर बन्दूक रखकर चला रही है पर मैं उसे भी बहुत जल्दी आपके सामने ले आऊंगा बस कुछ समय की मौहलत चाहिए – अभी सभी तरफ इलेक्शन के कारण मुस्तैदी होने से मैं खुलकर खोजबीन नही करा पा रहा|”

अश्विन कुमार क्रोध में गहरी गहरी सांसे भर रहे थे तो वह कहता रहा –

“आपने मुंबई का स्टैला मर्डर केस सुना होगा जिसमें बिजनेस टाईकून अरुण कुमार* फंसे है उस समय इसी ने अपनी ख़बरों से सबसे ज्यादा वहां सनसनी फैलाई थी जिससे उस परिवार की प्रतिष्ठा की बहुत क्षति हुई हालाँकि ये केस अभी तक कोर्ट में लंबित है पर रईस लोगों को अपनी सनसनी ख़बरों के लपेटे में लेकर अपना मतलब सारथ करना इसका पुराना पेशा है |”

“पर इस बार इसने गलत व्यक्ति पर हाथ डाला है – सारी ताकत झोंक दो पर उसका पाताल से भी पता लाकर दो – इसने एक सोते शेर को जगाया है जिससे अब कुछ नही बल्कि बहुत कुछ बुरा होने वाला है..|”

गौतम उनकी दहकती आँखों की ओर देखता हुआ चुपचाप वहां से निकल जाता है|

***

देर रात नींद लगने से सुबह तक शैफाली सोती रह गई फिर कुछ आवाज के शोर से उसकी आंख खुली तो उठकर एक भरपूर अंगड़ाई लेती वह देखती है कि पूजा वहां नहीं थी फिर वापसी की सांसों में खुशबू से उसे अपने तलवे में लगे पाउडर से फिर सारी घटना याद आते उसको मन में हँसी आ जाती है| वह अपने बेतरतीबी से फैले बालों का सर के बीचों बीच जुड़ा बनाकर बाहर की ओर चल देती है|

बाहर आते आवाजे और स्पष्ट होती उसे गलियारे से उस ओर ले जाती है जहाँ परजाई जी हाथों में छड़ी लिए अपने सामने खड़े हैपी को हड़का रही थी और वह कान पकड़े उनके सामने खड़ा था|

शैफाली माजरा समझने उसने ज्यों पूछती भर है वह सारी राम कहानी एक साँस में कहती हुई बताती है कि हैपी ने अपनी शैतानी से उनकी नाक में दम कर रखा है….वह अपने हाथ में लिए पाउडर में डिब्बे को दिखाती हुई बोले जा रही थी कि उन्हें उसकी सारी शैतानी का अता पता है..|

शैफाली एक नज़र उस डिब्बे को तो दूसरे पल हैपी के चेहरे पर छाई मासूमियत देखती हुई झट से बोली – “इसमें इसकी कोई गलती नही है – ये मैंने ही मंगवाया था |”

वे एकदम से चुप होकर शैफाली का चेहरा देखती हुई फिर बोली – “रेहन दे शेफाली इसके भोले चेहरे पर तरस खाने की जरुरत नई है – मैं सब जानतिया – इसका पढ़ने लिखने के अलावा हर चीज में मन लगदा है – होर तुझे पता है घार में शादी के नाम पर एक महीने से सकूल से छुट्टी लेकर बैठा है किताबना नु हाथ भी न लगाया तब से – सारा दिन बस घार में धमाचौकड़ी कर शैतानी ही करनी फिरनी है|”

माँ को शैफाली की तरफ देखता देख धीरे धीरे कान से उसकी उंगलिया फिसलने लगती है तो वे फिर कसकर उसे घूरती है जिससे फिर से वह अपने कान कसकर पकड़ता हुआ अपने चेहरे पर आई भरपूर मासूमियत से शैफाली की ओर देखता है|

“इस बार इसे माफ़ कर दीजिए क्योंकि इस बार पूरी गलती इसकी नहीं है पाउडर सच में मैंने मंगवाया था|”

“शैफाली तू न पुत्तर इसकी भोली भाली मटर सी आँखों में मत आ |”

तभी उधर से कोई उन्हें कुछ पूछने आवाज लगाती है तो वे बीच में ही रूकती एक पल उसकी ओर तो दूसरे पल अपने सामने खड़े हैपी को देखती हुई कहती है – “अबकि तू न शैफाली के कारन बच गया अगली बार कुछ किया न फिर वेखना |”

आवाज की पुकार फिर उनकी तरफ आती है तो वे हडबडाती हुई उस ओर चल देती है|

उनके जाते हैपी झट से कान छोड़ शैफाली की ओर देखते हुए कहता है – “थैंक्यू जी – अब तो मैं आपको अपनी गैंग में शामिल कर सगदा हूँ |”

ये सुन शैफाली हंसती हुई हैपी की ओर देखती है जो हाथ मिलाने को अपना हाथ उसके आगे बढ़ाता हुआ कह रहा था – “माई सेल्फ हैपी सिंह जी और मेरी गैंग है हसदे रहो अते हसानदे रहो|”

उसका बढ़ा हाथ थाम शैफाली को बड़ी तेज हँसी आ गई|

फिर चलती हुई वही गरियारे में आती हलकी धूप के बीच मोहड़े पर बैठती हुई बोली – “शैतानी में तो खूब दिमाग चलता है फिर पढ़ते क्यों नहीं हो !!”

“मुझे पढ़ाई में सब आन्दा है पर वो मास्टर है न – वो साडा दिमाग खाता है|”

“अच्छा वो कैसे !!”

“होर क्या बिना समझाए कहंदे है रटो तो मैं नई कर सगदा – |”

“हाँ ये तो ठीक है |” फिर उसे समझाती हुई कहती है – “वैसे कोई भी चीज याद करनी हो तो बहुत आसान है उसे अपने माइंड में इमेज के साथ क्रम में रखते हुए याद करो फिर कभी कोई चीज नही भूलोगे और पढ़ने में मज़ा भी आएगा|”

“अच्छा अबकि मैं त्वाडे नाल पढूंगा फिर तुसी मैनू बताना|”

“ऐ हैपी सिंह जी कि गल है – त्वाडे दोस्त नू तुझे खोजते फिर रहा है |” वहां आती पूजा उसे आवाज लगाती हुई कह रही थी तो वह झट से अपने सर पर हाथ मारता वहां से चुटकियों में गायब हो जाता है ये देख दोनों कस कर हँस पड़ती है|

“हटो हटो..|” तभी आवाज लगाता मोहित फूलों से भरी बड़ी सी टोकरी थामे पूजा के पीछे से आता हुआ पूजा के सामने बैठी हुई शैफाली को देख एक पल सकपका जाता है फिर आंख बचाते हुए गलियारे की ओर बढ़ जाता है जहाँ गलियारे के छोर पर घुड़की पर चढ़ा इरशाद फूलों की लड़ियाँ लगा रहा था और घुड़की पकड़े जय बीच में थोड़ा हिला देता तो इरशाद चिल्ला पड़ता|

***

“मैं नीचे उतर रहा हूँ – |” घुड़की पर अपनी दुबली पतली देह सँभालते हुए इरशाद फिर कहता है|

“अरे अरे रुक जा क्यों जान ले रहा है पता नहीं है कि इसकी एक हड्डी टूटते किसी के दो दिल टूट जाएँगे|” वहां आते हुए मोहित कहता है तो जय को हँसी आ जाती है|

“हाँ इनकी महबूबा ट्विन इन वन जो है|”

टोकरी रख मोहित और जय एक दूसरे से हाथ मार कस कर हँस पड़ते है जिससे इरशाद फिर बच्चों सा तुनकता हुआ बोलता है –

“मैं अब पक्का नीचे आ रहा हूँ |”

“अरे चढ़ा रहे मेरे फूल |”

“फूल !!!”

“हिंदी वाला फूल बोला |” जय अपनी हँसी किसी तरह से रोकता हुआ कहता है|

“तो ठीक है |” बच्चों सा मुस्कराता वह फिर लड़ियाँ लगाने लगता है जिससे जय और मोहित कस कर ठहाका लगा पड़ते है|

उनकी आवाजों से बेखबर उनसे कुछ दूर इसी गलियारे में अभी भी मौजूद शैफाली संग खड़ी पूजा के सामने अब तीनों बहने खड़ी अपनी अपनी मेहँदी दिखा दिखा कर शैफाली की मेहँदी देख उस पर हँस रही थी|

वह तीनों अपनी कोहनी भर तक की मेहँदी पर इतराती शैफाली की आँखों के सामने हाथ नचाती नचाती शैफाली की हथेली की आधी बिगड़ी मेहँदी पर हँस रही थी| पास खड़ी पूजा उन्हें आँखों से घूर रही थी पर शैफाली उनपर ध्यान न देती हुई दूसरी तरफ देखने लगी  थी|

प्रसादा प्रसादा…..की आवाज से अब वे देखती है कि जोगिन्दर भाई जी हाथ में बड़ा सा थाल लिए उसमें से प्रसादा निकाल निकाल कर सबको देते जा रहे थे| वे भी हाथ बढ़ाकर प्रसाद लेती है|

अब वे मोहित के पास खड़े उसके बढ़े हाथ पर प्रसाद रखते हुए एकदम से कह उठे – “ए कि मोहिते किसकी छूटी मेहंदी पा के बैठा है |” कहकर कसकर हँसते हुए वे आगे बढ़ जाते है|

जय और इरशाद उससे कुछ दूर अपने काम में मग्न थे पर मीतू के कान इस सनसनी से शांत न रह सके, वह तुरंत दौड़ती हुई मोहित के पास आकर झट से उसकी हथेली पकड़कर देखती हुई दूसरे पल शैफाली की ओर देखती है, जो अब पूजा के साथ दूसरी ओर जा रही थी|

“क्या है – |” अपनी हथेली खीँच कर खीजता हुआ मोहित अब जय की तरफ बढ़ जाता है जो इशारे से उसे और लड़ियाँ लाने का इशारा कर रहे थे|

मीतू होंठ सिकोड़ती अब अपनी बहनों की तरफ बढ़ जाती है|

***

सीसफूल तेरा सवा लाख का, बिंदियाँ ये अमर सुहाग रहे…

पल्लू में कामण चार बंधे, बिंदियाँ पर अमर सुहाग रहे….

बाबुल दी दुआ लेंदी जा, जा तुझको सुखी संसार मिले…

मैके दी याद न आए, ससुराल में इत्ता प्यार मिले….

शैफाली आंख भरकर अपने सामने के दृश्य को देखती हुई धीरे धीरे गुनगनाती औरतों की स्वर लहरी सुन रही थी अभी अभी सभी उठकर चूड़े को अपना अपना हाथ लगाकर आशीष दे रहे थे, गुड्डी की आंखे ताई जी ने अपनी हथेलियों से ढक रखी थी पर शैफाली उनकी भरी ऑंखें देख रही थी| सामने पूजा के माता पिता किसी सफ़ेद चीज में डूबी चीज निकाल रहे थे, उसी के बीच पूजा उसे बताती जा रही थी –

“आज चूड़ा की रस्म है – कच्ची लस्सी में डुबो कर अरदास करके मामा अपने हाथ से लाया चूड़ा पहनाते है – ये 21 चूड़ियों का लाल सफ़ेद चूड़ा भी न अपने अन्दर जाने कितने रंग समाए है – आज ये पहनते दुल्हन को अपने इस घर से पराए होने का अहसास होने लगता है – जहाँ वह बचपन में खेली सखियों संग अठखेलियाँ किया – वही घर अब से उसके लिए पराया हो जाएगा – जाने क्या विधि है विधाता की..|” कहते कहते पूजा का गला भी भर आता है इसपर शैफाली धीरे से अपना हाथ उसके हाथ पर रखती हुई उसकी भीली पलकों की ओर देखने लगती है इससे पूजा खुद को संभलती हुई हौले से मुस्करा देती है|

“पता है गुड्डी मुझसे बस एक साल दो महीना बड़ी है पर बचपन से हमारा ऐसा साथ है कि हम एक दूसरे के बिना रहती ही नहीं है – कभी मैं यहाँ आकर महीनों रह जाती कभी गुड्डी मेरे यहाँ आ जाती और फिर जाने कितनी दिन रातें हम बस बातें कर कर काट देती पर हमारी बातें खत्म नहीं होती – आज तो मेरा मन भी भरा आ रहा है अब गुड्डी चली जाएगी तो मेरा तो यहाँ मन ही नहीं लगेगा|” पूजा नजर भरकर सामने गुड्डी की ओर देखती हुई अपना चेहरा झुका लेती है|

शैफाली पूजा का झुका चेहरा ठोड़ी से पकडती हुयी अपनी तरफ करती है तो पूजा एकदम से भीगी आँखों को सँभालती हुई कहती है – “इसीलिए तुमभी अपनी बहन को मिलने आई होगी न |”

शैफाली ने जाने कैसे न में सर हिला दिया तो पूजा उसका हाथ अपनी हथेलियों के बीच लेती हुई पूछती बैठी – “ क्यों !!! आखिर विदेश से लोग दो कारण से ही तो आते है या तो अपने रिश्तेदारों से मिलने या घूमने – फिर तुम क्यों आई ?”

शैफाली खामोश रह कर मौन उसका चेहरा देखती रह गई|

“अच्छा दिल्ली घूमा तो आगरा का ताजमहल तो देखा होगा न !!”

शैफाली धीरे से मुस्कराती हुई न में सर हिला देती है तो वह फिर चौंक उठती है|

“ताजमहल नही देखा – सारी दुनिया जाने कहाँ कहाँ से देखने आती है तुमने इतने पास होकर भी न देखा तो मैं कहती हूँ एक बार ताजमहल जरुर देखना – कसम से दिल आ जाएगा उस पर – मैं तो पता है कॉलेज की तरफ से टूर पर गई थी वहां – बहुत मजा आया – ऐसी नायाब खूबसूरती कही नहीं देखी – मैं तो कहती हूँ कि जरुर देखना उसे…..|”

अब वे देख रही थी कि चूड़ा पहना देने के बाद उसपर मामी सफ़ेद कपडा बांध रही थी और माँ के कन्धों पर झुकी गुड्डी को सँभालने वे कोई न कोई बात कर उसे हँसा दे रही थी|

“और कुड़ियों कलीरे बांधिया – जरा कस के बंधियां हुण वेखिया किसपर खनक़ कर गिरती है कलीरे|” मामी की आवाज जैसे वहां बैठी सभी लड़कियों में जोश सा भर देती है|

***

अभी कलीरे संग लड़कियां चहक ही रही थी कि ढोल की तेज आवाज सबके कानों से टकराई तो किसी का अब वहां बैठा रहना मुश्किल हो गया| पूजा भी शैफाली का हाथ पकड़े बाहर आती गलियारे में खड़ी सामने आंगन की ओर देख रही थी|

लाल पीली पगड़ीधारी गले में ढोल बांधें जोर शोर से बजा रहे थे, ऐसी थाप पर बच्चों का रुक पाना नामुमकिन हो गया, सारे बच्चे आंगन में ढोल की धुन में उछल रहे थे, नगाड़े की धुन हो और पंजाबी के पैर न थिरके ऐसा संभव ही कहा था, जोगिन्दर भाई जी अब आंगन के बीच खड़े भांगड़ा करते बीच बीच में उंगली होठों के बीच रख आवाज निकालकर कसकर उछल पड़ते, ऐसे जोश में उनको नाचते देख वो तीनों बहने भी आंगन में कूद आई| फिर वो रंग जमा कि हर धुन पर बोल फूट पड़े…..

“लट्ठे दी चादर उत्ते सलेटी रंग माहिया…

आवो साम सामने कोलों दी रूस के न लंग माहिया..

नाचते नाचते अपने जोगिन्दर जीजा को घेर कर वे नाचने लगी, नाचते नाचते वे तीनो में से कोई आके अचानक से उनके ठुमका लगाती कि वे समझ भी नही पाते और हडबडा जाते, जिससे वे खिलखिला कर और उनके चारों ओर कस कर नाचने लगती| आस पास खड़ी भीड़ बढ़ने लगी, तभी उनको घिरा देख वे चारों जय, मोहित, इरशाद और समर भी वहां कूद पड़े| अब तो नजारा देखने वाला था, उन पाँचों के बीच अब वे तीनों घिर गई थी, ये देख शैफाली और पूजा कस कर खिलखिला पड़ी| अब वे पंच न उन्हें वहां से निकलने का मौका दे रहे और न नाचने का, वे अपना सा मुंह लिए धीरे धीरे किनारे सरकने की कोशिश कर रही थी| अभी तक जो सारी स्त्रियाँ गलियारे में इकट्ठी हो चुकी थी, वे एक साथ हाथ पकड़े उन्हें चारों ओर से घेरती हुई गिद्दा पाने लगती है|

चिट्टा कुक्कड़ बनेरे ते बोल…

चिट्टा कुकर बनरे ते..

कासनी दुप्पटा वालिए..

मुंडा सदाके तेरे ते..

कासनी दुपट्टा वालिये…

मुंडा सदाके तेरे ते………

“कि चल रेहा है !!”

अचानक सख्त आवाज पर चारों ओर एक ही पल में सन्नाटा छा गया, दार जी आंगन में खड़े अपनी सफ़ेद मूंछों के कोने मोड़ते हुए सबकी ओर देख रहे थे तो सबकी नज़र उनपर जमती जैसे जड़ हो गई थी, घर की स्त्रियों के गिद्दा करते पैर अपनी उसी स्थिति में थमे रह गए थे| ढोल वाला ढोल टांगे अपने खुले मुंह के साथ अब सामने दार की तरफ देख रहा था|

“सब नु बुड्डे पाई हो जो लोक गीता नु नाचते फिर रहे हो – ओए जोगिया कोई मुंडे लायक नगाड़ा नगाड़ा गाना लगाईया – फिर वेखिया इन हड्डियों का जोर |”

शैफाली ऐसा नजारा ऑंखें फाड़े देखती रह गई| अगले ही पल नगाड़ा नगाड़ा के गीत की धुन उन ढोल से निकलने लगी तो अब पूजा के लिए भी खड़ा रहना मुश्किल हो गया और वह शैफाली को अपने साथ खींचती हुई आंगन तक ले आई| अब एक साथ सारे पैर खिलखिलाते हुए झूम उठे|

क्रमशः……

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