
हमनवां – 42
शादी होते सभी मेहमानों के साथ पूजा भी चली गई, वह जाने से पहले कुछ पल रुकी और शैफाली को चंडीगढ़ आने का निमंत्रण भी दिया पर दोनों को नहीं पता कि अब अगली बार वे कब मिलेंगी !! कम समय में भी एक जुड़ाव सा हो गया था उनमें, पूजा के जाते शैफाली बहुत अकेली हो गई| उसकी उदासी मोहित की नज़रों से छुपी न रह सकी जिससे वह खुद को उसके पास जाने से न रोक सका| मोहित की मौजूदगी में वह उसी उदासी में उससे कह बैठी – “तुम सही थे शायद मुझे यहाँ नही आना चाहिए था – कभी कभी कुछ न जानना ही ज्यादा बेहतर होता है – मैं किसी के लिए बिलकुल महत्वपूर्ण नही थी वही स्थिति मेरे लिए सही थी…..|” एक उदास नज़र के पीछे ढेर समंदर की लहरें थी जिन्हें मोहित छेड़ना नही चाहता था| वह बस उसे अपने साथ बाहर टहलने चलने के लिए कहता है|
अब वे साथ साथ चलते निकुंज भवन के सामने रुकते है| निर्माणाधीन भवन के आस पास झाड़ियों को पार करते दोनों अन्दर की ओर चलते है| शैफाली देखती है मोहित की नज़र उसी ओर थी, इससे पहले कि वह कुछ पूछती वह अन्दर की ओर कदम बढ़ाते बढ़ाते कहता रहा और उसके पीछे पीछे शैफाली चलती रही|
“ये मेरी माँ के नाम की याद पर भाई जी ने बनवाया है – यहाँ आते मुझे लगता है जैसे माँ के आंचल की छांव में आ गया हूँ मैं – माँ चाहे जिस देश की हो अपने बच्चों को जाने के बाद भी अपने प्रेम की ऊष्मा ने सिंचित करती रहती है – बस सब महसूसने की बात है |”
मुख्य गेट से प्रवेश कर वे आंगन के चौबारे पर बने एक पेड़ के चबूतरे पर रुक जाते है|
शैफाली दूसरी ओर नज़रे घुमाए देख रही थी इससे वह नही देख पाई कि मोहित उस पेड़ से कुछ फूल तोड़ कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए उसे पुकारता है – “शैफाली |”
वह मुड़कर उसकी हथेली के फूलों को देखती रही जिसे वह उसकी हथेलियों के सुपूर्त करते कह रहा था – “ये तुम हो – |” वह शैफाली के चेहरे के आश्चर्य पर धीरे से मुस्कराया|
“पता है ये पारिजात के फूल है और बंगला में इन्हें शैफालिका कहते है – यानीं तुम – विदेश में भी रहते हुए जब तुम्हारे पिता ने तुम्हे ये नाम दिया होगा तो यकीनन इन फूलों का ख्याल उनके जेहन में होगा – बहुत ख़ास फूल है ये – ये जहाँ होते है अपनी खुशबू से अपनी मौजूदगी का अहसास करा देते है -|”
कुछ किरचे शैफाली की आँखों ने महसूस की जिससे डबडबाई आँखों को वह मोहित से छुपाती अन्यत्र देखने लगी|
“कभी कभी कुछ बाते कही नहीं जाती बस उनका होना महसूस कर लिया जाता है – तुम उनके लिए ख़ास थी तभी तो देखो उन्होंने तुम्हे यहाँ भेजा सोचो अगर तुम यहाँ नहीं आती तो कैसे जिंदगी को इतने करीब से देखती !!”
“क्या तुम इस सबके लिए उन्हें माफ़ नही कर सकती !!!”
शैफाली कुछ नही कहती बस उसकी गहरी गहरी सांसो के भीतर जैसे हथेली के फूलों का इत्र उसके अंतरस उतरता जा रहा था|
“यादें इन्सान के जीने का सहारा बनती है शैफाली – बस तुम महसूस नहीं करती – तुम्हे यहाँ भेजने का मकसद ही यही रहा होगा कि जिंदगी को तुम करीब से देखो और महसूस करो जो वे शायद अपनी व्यस्तताओं के कारण कभी शब्दों से नही कह पाए |”
शैफाली एक नज़र फूलों से लदे घने पेड़ की छांव की ओर नज़र घुमा कर देखती है|
“पता है इस पेड़ की खासियत है कि इसके फूल हमेशा अपनी जड़ों से दूर गिरते है |”
शैफाली देखती है कि सच में पारिजात के फूल पेड़ की जड़ों से हटकर चारों ओर बिखरे थे तो क्या मैं भी अपने स्थान से दूर खिलूंगी !!! ये अनजाना प्रश्न उसके मन में कौंध गया वह देखती है मोहित अब नयन भरकर उस स्थान को देख रहा था, वह एक गहरी साँस से फिर उन फूलों की महक अपने अंतरस रूह में उतार लेती है|
मोहित घूमती नज़र से अब उसकी तरफ देखता है – “लक्ली तुम इस मौसम में आई क्योंकि पूरे साल के इन्ही जाड़ों के शुरूआती मौसम में ये फूल खिलते है सोचों अगर इस वक़्त तुम यहाँ नही आती तो कैसे मिलती !!!”
“किससे !!!” प्रश्न पूछते उसकी ऑंखें और चमक उठी|
मोहित जानकर एक भरपूर नज़र से उसकी आँखों को देखता है, यही पल था जब दोनों की ऑंखें जैसे किसी अनजाने पुल का निर्माण कर रही थी जिनसे भावों की अनजानी नदी की हिलोरे उनके मन में उठने लगी जिससे उनके चेहरे पर हलकी मुस्कान आ गई|
वह मोहित की ओर देखती फिर प्रश्न पूछती है – “बताया नही किससे !!”
“इस परिवार से …|”
“और…?” वह जान कर अपनी नीली आँखों का समन्दर उसके आँखों में उतारती हुई पूछती है|
“और….इन शैफालिका से..|” उसके कहते मानिंद कोई हवा का झोंका आता है और पारिजात के फूल उनके ऊपर नौछावर हो उठते है जिससे बरबस ही वे मुस्काने एक सार हो उठती है|
***
शाम का धुंधलका होने लगा तो मोहित वहां से बाहर निकला ही था कि जल्दी में नही देख पाया कि सामने से आते व तीनों अब उसे अपनी नज़रो से कसकर घूर रहे थे|
मोहित उसी पल ठिठक गया|
“तो अभी तुमको कहाँ होना था ??”
उनके कन्धों में टंगी तौलिया देख वह एक दम से सकपका गया|
“अबे हम घंटे भर से वहां इंतजार कर रहे है और हुजुर यहाँ आराम फरमा रहे है..|”
तीनों अपनी अपनी तौलिया लेकर लगभग उस पर जुट ही पड़े उनसे बचने मोहित हँसता हुआ तालाब की ओर भागता है तो उसके पीछे पीछे तीनों भी दौड़ लगा देते है|
***
तीनों समर की हालत पर कस कर ठहाका लगाते हुए वापस आ रहे थे|
“कहा था न धक्का नही देगे….इस बार उठाकर फेकेंगे |”
तीनों के ठहाके पर समर चेहरे पर गुस्सा लाता अपने सिर से पानी की बूंदे झाड़ता हुआ उन्हें घूरता हुआ कहता है –
“कमीनों इस बार तुमसे से कोई बीमार पड़ा न तो देखना तुम लोगों को घोड़े वाला इंजेक्शन लगाऊंगा |” समर अपनी मरमरी हालत पर आगे बढ़ने लगता है तो बाकी उसे मनाने उसके पीछे चल देते है|
लेकिन मोहित की नज़र ज्योंहि अपनी ओर आती परेशान सी परजाई पर जाती है वह उनकी तरफ चल देता है|
वे मोहित से पूछ रही थी कि शैफाली उसके साथ गई थी तो अभी तक वापस क्यों नही आई| ये सुनते मोहित के पैरों तले जमीं ही सरक जाती है| चारों ओर घिरते अँधेरे से उसकी चिंता और बढ़ जाती है| वह आनन फानन वापसी की ओर भागता है|
अब तक सब यही सोच रहे थे कि शैफाली भी मोहित के साथ होगी पर उन चारों की वापसी पर सब परेशान हो उठे जिससे सभी उसे ढूंढने हर तरफ चल दिए| पर मोहित को अंदाजा भी नही था कि शैफाली अभी भी उसी भवन में होगी| वह उसे आवाज लगाता भवन की ओर बढ़ा तो बाकि सभी भी उसी के पीछे हो लिए| वहां जलते जीरो वाल्ट के बल्ब की मध्यम रौशनी में उसकी देह को निस्तेज पड़ा देख वह दूर से बेचैन होता तेजी से उन झाड़ियों की परवाह किए बिना उसकी तरफ बढ़ने लगता है| सभी की नज़रे इस दृश्य को देखती अवाक् थी कि मोहित अब उसे अपनी बाँहों में उठाए उतनी ही तेजी से वापस आ रहा था ऐसा करते शैफाली की हथेलियों के बीच फसे कुछ पारिजात के फूल झड़कर वही गिर जाते है|
घबराहट सबके चेहरे पर आवंटित थी| उसे कमरे में लेटाकर मोहित उसे झंझोड़ने लगता है| उसकी बेचैनी लगभग उसके रुंधे गले में बदल गई जिसकी कंपकपाती आवाज से सिर्फ उसका नाम मुश्किल निकल पा रहा था पर उसे संभालते जल्दी से अपना फर्स्ट एड बॉक्स के साथ समर शैफाली की जाँच कर सुकून से कहता है – “कोई चिंता की बात नहीं है – लगता है फिसल कर गिरने से बेहोश हो गई – बस माथे में ऊपरी चोट है|” कहता हुआ वह बैंडेज लगाकर अब मोहित की ओर देखता है, जिसे खबर ही नहीं थी कि बेतहाशा झाड़ियों से गुजरने से उसकी बांह से भी कई जगह से खून रिस रहा था|
समर जैसे उसे पकड़ कर झंझोड़ता हुआ उसका ध्यान उसकी बांह की ओर दिलाता है तो सभी अब उसकी ओर देखने लगते है|
समर उसके घाव पोछते पोछते उसकी आँखों को पढ़ने लगता है जहाँ बेचैनी की ढेर उफनती नदियाँ जैसे शैफाली की ओर मुडती दिख रही थी| वह उसे अब और न टोक सका बस चुपचाप उसकी मरहमपट्टी करने लगा|
शैफाली के सर के पास बैठी ताई जी अपने आंचल से उसका सर सहला रही थी तो परजाई जी उसके तलवे अपनी हथेलियों से मलती बार बार उसके चेहरे को देखने लगती| अगले कुछ ही क्षण में शैफाली को होश आ जाता है, वह धीरे से आंख खोलती सबसे पहले ताई जी की गोद को महसूस करती उनकी ओर देखती है फिर मौजूद सभी के चेहरे की परेशानी को सिलसिलेवार देखती हुई मोहित की आँखों तक पहुँचती जैसे ठहर सी जाती है|
“मुझे माफ़ कर दो मुझे पता नही था नही तो तुम्हें छोड़कर नही जाता |”
बेहद ग्लानी भरी आवाज धीरे से उसके गले से फूटती है जिसपर वह सहारा लेकर उठकर बैठती हलके से मुस्करा कर देखती हुई कहती है –
“देखा मुझे अकेला छोड़ दोगे तो मैं वापस ही नहीं आउंगी..|”
“शैफाली……|” मोहित की आवाज कांप गई|
“आई एम जस्ट किडिंग |” सबके चेहरे पर उग आए तनाव पर शैफाली अपनी हलकी हँसी की फुहार छोड़ती हुई कहती रही – “असल में मुझे वहां बहुत अच्छा लग रहा था तो समय का पता ही नहीं चला कि कब अँधेरा हो गया फिर अँधेरे में शायद मैं रास्ते चलते लडखडा कर गिर गई -|”
“ये तेरी गलती है – जब लेकर गया था तो क्यों छोड़कर आया !!” भाई जी बुरी तरह से उखड़ते हुए बोले तो मोहित धीरे से सर झुका लेता है|
“माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए – मेरी वजह से सब परेशान हो गए|” वह एक सरसरी निगाह से सभी के चेहरे देख डालती है|
“कोई बात नही शैफाली – वैसे तुम्हें कही कोई दर्द तो नही|”
समर की बात सुन शैफाली मुस्करा कर धीरे से न में सर हिलाती है|
इस पर सबका मूड हल्का करने जय तुरंत बोल पड़ा – “अब देखना शैफाली कभी मोहित कुछ न सुने तो सीधे ताई जी बताना वो ही इसको ठीक करेंगी – हमारी तो कुछ सुनता ही नहीं है|”
इससे एक हलकी हँसी की फुहार कमरे में गूंज उठी|
“हाँ तुम तो अब मोहित के संग ही वापस आओगी न – हम तीनों तो कल वापस लौट रहे है |”
इरशाद की बात सुन फिर घूमती नजर से शैफाली मोहित की ओर देखती है जो अभी भी नीचे सर झुकाए देख रहा था|
“हाँ पुत्तर हमारे संग कुछ दिन रहोगी तो हमे भी बहुत अच्छा लगेगा|”
ताई जी अभी भी शैफाली का सर प्यार से सहला रही थी तो गुरमीत धीरे से उसके पास आकर बैठती उसके गालों को अपने नन्हे नन्हे हाथों से सहलाने लगी जिससे एक प्यारी मुस्कान उसके चेहरे पर खिल आई|
***
वापस आते जय के कदम तेजी से उसे वहां ले आए जहाँ इससे पहले वह कभी नहीं गया| गेट पर खड़ा पूरी कोठी को सरसरी निगाह से देख वह उस पल वह वापस लौट जाना चाहता था फिर अंश का चेहरा याद कर वह तने चेहरे के साथ अन्दर चल दिया| उसे पुलिस की वर्दी में देख दरबान ने उसे अन्दर जाने दिया| पर ज्योंहि गौतम से अश्विन कुमार को जय का आना पता चला वे अपने को रोक न सके वे लगभग दौड़ते हुए उसके पास पहुंचे पर एक हाथ की दूरी पर खड़ा जय उनकी तरफ अपनी कठोर निगाहों से देख रहा था| एक पल उनका जी आया कि अपने भाई को भींचकर अपने सीने से लगा ले पर उसके तन की वर्दी उनके बीच अदृश्य दीवार बन उनको पृथक् कर गई जिससे वे बस उससे कुछ दूर वही थामे रह गए|
“अंश को लेने आया हूँ – कहाँ है ?”
वे धीरे से मुस्कराए – “झूठ ही कह देता कि मुझसे मिलने आया है |”
जय उनकी तरफ नही देखता, उसे लग रहा था अगर एक पल भी उसने उनकी तरफ देख लिया तो आँखों की कठोरता नदी सी उफन आएगी तब खुद को संभालना मुश्किल हो जाएगा, इसलिए वह उनकी तरफ बिना देखे फिर कहता है – “क्या जबरन मुझे उसे ढूंढना पड़ेगा इस घर में !!”
“ऐसा दिन कभी नहीं आएगा – मुझसे कही ज्यादा अधिकार है उसपर तुम्हारा -|” वे लगातार उसके चेहरे पर अपनी नज़रे जमाए थे – “अगर वो यहाँ होता तो खुद ही दौड़ता हुआ तुम्हारे पास चला आता|”
जय अब झटके से उनकी तरफ देखता है|
“मजबूरी थी तो उसे भेजना पड़ा पर मेरा विश्वास करो इस वक़्त उसका वहां होना उसके लिए ज्यादा सुरक्षित है |”
“क्यों !!! मैं उसका ध्यान रख सकता हूँ |” अबकि वह अपनी नज़रे उनके चेहरे पर गड़ा देता है|
“बिलकुल इसमें कोई शक नही मुझे पर वक़्त की नजाकत है इसलिए यही उसके लिए मुझे ठीक लगा –|”
दोनों कुछ पल तक एक दूसरे का चेहरा देखते रह गए, न जय को कुछ कहते बना न अश्विन कुमार और कुछ समझा पाए|
“जय !!” वे उसकी ओर देख रहे थे – “मुझे विश्वास है अंश तुम्हारे पास ज्यादा सुरक्षित रहेगा पर अभी हालात यूँ हो गए है कि……..|” जय उनकी तरफ देख रहा था पर वे कहते कहते रुक गए और बात बदलते हुए फिर कहने लगे – “अभी वो जा चुका है अगर एक बार भी तुम उससे मिलने गए तो उसका फिर तुमसे अलग रहना मुश्किल हो जाएगा – अगर चुनाव तक अंश वही रहे तो उसके लिए ज्यादा ठीक होगा मेरे भाई..|”
जय चुपचाप सुनता रहा| वे भी अपनी बात कह खामोश होकर उसकी आँखों की स्वीकृति का इंतजार करने लगे| उस पल जैसे समय थम कर धीरे से उन्हें समय से थोड़ा पीछे खीँच ले गया|
जय एक गहरा उच्छवास छोड़ता हुआ कहता है – “इस वक़्त मैं आपकी बात मान रहा हूँ पर इसे मेरी मंशा मत मान बैठिएगा – मैं अंश को कुछ भी नहीं होने दूंगा क्योंकि उसे अब मैं आपकी मर्जी का शिकार नहीं होने दूंगा – देखिएगा आप -|” कहकर जय तेजी से वहां से चला गया और वे स्तब्ध खड़े उसे दूर तक जाता हुआ देखते रहे|
*** क्रमशः……………………………