
हमनवां – 43
“चलो कोई वक़्त तो ऐसा आया जब बिन बुलाए आए |”
इरशाद को सामने देख अप्पी धीरे से मुस्कराई तो इरशाद झेंप गया| अन्दर आते उसकी नज़रे नूर के परिवार को बैठा देख अन्यत्र इधर उधर भटकने लगी तो अप्पी धीरे से उसकी तरफ झुकती हुई उसके कानों के नजदीक फुसफुसाई – “जिसे ढूंढ रहे हो वो नही आई है |”
ये सुन इरशाद शरम से उनकी तरफ नही देख पाता, वे इरशाद के साथ अन्दर आती मुख्य बैठक तक उसे ले आती है| इरशाद एक सरसरी निगाह से देख डालता है कि वहां नूर के अम्मी अब्बू के साथ उसके जीजा भाई भी मौजूद थे, जिससे उनसे कुछ वाले सोफे पर वह सबको सलाम कर चुपचाप बैठ जाता है|
अब सबकी मुस्कराती निगाह के साथ बातों का तारुख भी इरशाद की तरफ घूम गया था| वे सभी निकाह की योजना पर बात करते करते जब इरशाद की वापसी पर अपनी बात खत्म करते है तो एकाएक वह चौंक कर हैरत से उनकी तरफ देखते हुए पूछता है –
“आप किस तरह की वापसी की बात कर रहे है !!”
इरशाद की बात सुन अब सभी की प्रश्नात्मक निगाहे उसी पर जम जाती है|
“मैं इस घर से अलग नही पर वो घर मेरा भी है तो जो मेरा है उसपर नूर का भी उतना ही अधिकार है|”
“तो क्या नूर उस घर में रहेगी ?” नूर की अम्मी अपनी चिंतित निगाहे अब इरशाद की अप्पी की ओर मोड़ देती है|
“तो हर्ज क्या है इसमें !!”
इरशाद की बात पर दो पल तक वहां जैसे ख़ामोशी सी छा जाती है जिसे इरशाद ही तोड़ता हुआ कहता है – “मुझे लगता है आपको नूर से खुद ये बात पूछ लेनी चाहिए – मेरी तो फिलहाल यही मर्जी है |”
“बरखुरदार अब आप अकेले नही होंगे कि मनमर्जी कर ली |”
जीजू भाई के कहते नजमा आपा को मामला बिगड़ता दिखा तो झट से मुस्कराती हुई सबका ध्यान नाश्ते की ओर दिलाती हुई इरशाद से कहती है –
“ये सब बातें तो होती रहेगी – इरशाद आप इतने लम्बे सफ़र से वापिस आए है जरा आराम कर ले – चलिए |” अप्पी वक़्त की नजाकत इशारे से समझाती इरशाद को अपने साथ अन्दर ले जाती है, वह भी बिना विरोध के उनके साथ चल देता है|
नजमा आपा के वापिस आने तक माहौल वैसा ही खामोश बना रहा तो उसमें अपनी हँसी की फुहार से कुछ हल्का करने वे आती हुई कहती है – “अब नूर पर हमारा अधिकार छोड़कर आप बेफिक्र हो जाइए |”
“वो तो है ही पर क्या सच में इरशाद यहाँ वापिस नहीं आएँगे |” नूर की अम्मी की चिंता फिर शब्दों से मुखर हो उठी|
“आप इस तरह से सोचिए न कि जवान बच्चों पर की गई सख्तियाँ उन्हें बागी बना देती है |” अबकि वे अपनी बात कहते कहते अपनी छुपी नज़रों से अहमद मियां की ओर देखती है|
“नूर भी तो अपनी तरह से जिंदगी जीती है – किताब लिखती है – नौकरी करती है – अब सख्तियाँ करके क्या हासिल होगा – समझिये ये इनका अधिकार है और अगर हमने इन्हें रोका टोका तो ये हमी से दूर चले जाएँगे – क्या ये हमे मंजूर होगा !!”
अबकि नजमा आपा बारी बारी से तीनों के चेहरे देख डालती है जो बुरी तरह से हैरत में डूबे थे|
“हमे तो पता ही नहीं कि नूर लिखती भी है !!” जैसे खुद से ही दोहराते हुए नूर के अब्बू अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहते है|
“मुझे भी कुछ समय पहले पता चला |” वे धीरे से जवाब देती अपने शौहर की ओर देखती है|
इसपर अहमद मियां को कुछ न कहते देख नजमा आपा अपनी बात रखती है – “देखिए आप अभी इरशाद के दोस्तों से मिले नही है नहीं तो इतनी तल्खी न होती आपको पर आप मुझपर विश्वास करिए नूर एक परिवार से निकल कर दूसरे परिवार में जाने वाली है – अब बस जल्द से जल्द इनकी शादी करा दीजिए इसी में हम सबकी ख़ुशी होगी|” बेहद मुस्कान से अपनी बात खत्म करती वे देखती है कि नूर के अम्मी अब्बू के चेहरे का तनाव कुछ कम होता है पर अहमद मियां यूँही तने चेहरे के साथ वही बैठे रहते है|
***
इतने दिन की दूरी ने मन का लालित्य जैसे और बढ़ा दिया था वे नज़रे दूर से जी भर के एक दूसरे से गले लग रही थी| समर की मुस्कान ऋतु के चेहरे की मुस्कान से मिल कर और गहरी हुई जा रही थी| फिर बुआ जी की पुकार पर ऋतु के जाते एक गहरी साँस छोड़ते समर रसोई से बाहर आता है तो मुख्य कमरे में जय और मानसी को एक दूसरे के गलबहियाँ डाले देख गले से खंगालता है जिससे वे एक दूसरे से अलग होते मुस्करा देते है|
“मैंने कुछ नही देखा भई मैं चला हॉस्पिटल |” समर एक मुस्कान उनकी तरफ छोड़ता अपने कमरे की तरफ बढ़ जाता है|
उसके जाते जय फिर मानसी को अपने बाँहों में घेरने लगता है तो मानसी उसे हौले से पीछे धकेलती हुई कहती है – “बाय मुझे भी जाना है |”
“जाना तो मुझे भी है पर पांच मिनट देर सही |”
प्रेम की गहरी नदी फलांगती मानसी कसकर मुस्करा दी|
“दूरी ने नजदीकी की चाह और बढ़ा दी है|” कहते हुए जय मानसी की हथेली पर अपनी उंगलियाँ फेरते कुछ लिखने लगा था और मानसी बेतहाशा मुस्कराए जा रही थी| तभी तेज हॉर्न की आवाज से उनका ध्यान जबरन बाहर की ओर जाता है|
***
बार बार बजते हॉर्न की आवाज से वे साथ में बाहर की ओर जाते है| वे सीढ़ियों तक पहुंचे कि सामने से मानव को आते देख मानसी एक दम से चौंक कर वही थमी रह गई| फिर उसकी निगाह सीढ़ियों से नीचे इरशाद की ओर जाती है जो शायद मानसी की स्कूटी देखकर ही मानव के आने की खबर इस तरह से दे रहा था|
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो – बोला तो था तुम्हारे मोहित सर अगले हफ्ते आएँगे |” जल्दी से आगे आती वह कहती है|
“तो आप भी यहाँ क्या कर रही हो – इरशाद भईया तो यहाँ है |” वह भी उतनी ही रुखाई से कहता है|
इससे मानसी बुरी तरह से चिढ़ती हुई बोली – “अपनी पढ़ाई लिखाई छोड़ मैं क्या कर रही हूँ यही जानने बस मेरा पीछा करते रहना|” मानसी को गुस्से में देख इरशाद झट से सीढ़ियों से ऊपर आने लगता है|
“मैंने तुमसे कोचिंग जाने को कहा था न – तुम वहां क्यों नही गए – ?” मानसी को गुस्से में आगे बढ़ते देख जय उसे रोकने हाथ बढ़ाता है पर मानसी उसका हाथ झटककर मानव के सामने आती हुई बोली – “आज मैं खुद तुम्हें कोचिंग छोड़कर आउंगी – अपनी पढाई की फ़िक्र नहीं है|”
“मैं नही जा रहा कही|” कहता हुआ मानव नीचे उतरने लगा तो एक पल ऐसा आया कि वह इरशाद और मानसी के बीच ठहर जाता है|
मानसी तेजी से मानव की कलाई कसकर थामती हुई भरपूर गुस्से में उसे घूर रही थी तो सामने खड़ा इरशाद कहता है – “नही जाना है तो छोड़ दो न |”
“क्यों नही जाएगा |” जिद्द में मानसी मानव को लगभग अपने साथ खींचती हुई नीचे ले जारही थी, यही वक़्त था जब शोर सुन वर्षा भी वहां आ गई अब मानव और वर्षा की ऑंखें मिली तो मानव ने धीरे से अपनी ऑंखें झुका ली और चुपचाप मानसी के साथ चलने लगा| वर्षा भी मूक खड़ी मानसी को मानव को साथ जाता देखती रही|
“उनके जाते इरशाद, जय और अभी अभी वहां आए समर की निगाहे आपस में मिली तो सबकी निगाह में इस पल को नासमझ पाने की असमर्थता दिखाई देने लगी|
“ये मानसी भी अजब जिद्दी है – जब नहीं जाना चाहता था तो पता नहीं क्यों जबरन ले गई उसे |”
“जानते तो हो उसके गुस्से के बीच में पड़ने का मतलब उल्टा हमी पर बरस पड़ती|” जय की बात सुन इरशाद कहता है|
अब तीनो एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे तो वर्षा तुरंत बोल पड़ी – “तो आप लोग देख क्यों नही आते !!”
वर्षा ने कह तो दिया पर उस पल उसे ऐसा लगा शायद उसे नही बोलना चाहिए था तो चुपचाप वहां से चली गई लेकिन इसके विपरीत समर एकदम से बोला – “बात तो सही कह रही है |”
“फिर !!”
“चलो चलते है |” फिर तीनों ही एक साथ बाहर की ओर निकल पड़ते है|
***
कोचिंग में मानसी उसे लगभग अन्दर तक छोड़कर जा चुकी थी| गेट के मुहाने में खड़े मानव को तीन जोड़ी ऑंखें देखकर मजाक उड़ाने के अंदाज में हँस रही थी जिससे न मानव अन्दर जा पा रहा था और न बाहर, वह बस मुट्ठियाँ भींचे वही तना खड़ा था| वे होठ गोल कर एक सीटी मार उसे अन्दर की ओर बुला रहे थे पर मानव तबसे वही खड़ा था| वे स्टैंड पर खड़ी दो बाइक में टिके तीन लड़के थे जो लगातार आपस में इशारा कर उसपर हँस रहे थे| आखिर मानव अन्दर न जाकर पीछे की ओर अपने कदम बढ़ा देता है, धीरे धीरे पीछे की ओर कदम बढ़ाते मानव एकदम से तेजी से पीछे सड़क की ओर भागता है, ये देख उन लड़कों के तेवर बदल जाते है और वे तुरंत बाइक स्टार्ट कर उसके पीछे हो लेते है ये देख मानव सड़क पर दाएं बाएँ भागता है जिससे बाइक से पीछा करते लड़के बुरी तरह से उसपर खीजते भरी सड़क में बाइक लहराते हुए उसके पीछे चल रहे थे| सड़क में लोगों की भीड़ और ट्रैफिक की वजह से अब चारों सड़क के बीचों बीच आ जाते है अब मानव उनसे घिर गया था| वे तीनों मानव को पकड़ने ही वाले थे कि कई प्रतिक्रिया एक साथ होती है, मानव का उनसे छूट कर गिरना और उन तीनों का चलती बाइक से लडखडा कर गिरना इससे चारों ही चोटिल हो जाते है| सड़क के बीचों बीच हुए हादसे से सभी तमाशबीन हुए वही भीड़ लगा लेते है, यही वक़्त था जब जय, समर और इरशाद वहां पहुँचते है और झट से उनके पास आते हुए सब मामला संभाल लेते है| समर उन चारों को तुरंत अपने हॉस्पिटल ले जाता है|
चारों को ज्यादा कुछ चोट नहीं आई थी बस वे हॉस्पिटल आने से घबरा गए थे| अब अपने केबिन में बैठा कर समर मानव के बैंडेज लगा रहा था वही जय और इरशाद बैठे उससे उन लड़कों के बारे में जानना चाह रहे थे, पहले वह डर कर कुछ नहीं कहता पर उसे मानसी से बचा लेने की बात पर वह सब बताना शुरू करता है|
“वे मेरे साथ ही मेरे स्कूल और कोचिंग में साथ में ही पढ़ते है – एक एग्जाम में मैंने नक़ल नही करवाई तबसे वे मुझे परेशन करते है इसीलिए मैंने कोचिंग छोड़ दी – मैं उनसे फालतू में भिड़ना नही चाहता था – वे हमेशा ही मुझे छोटा बच्चा कहकर चिढ़ाते है – पर दीदी कुछ सुनती ही नहीं |” कहते कहते मानव उन तीनों का चेहरा बारी बारी से देखता है|
मानव की बात सुन जय धीरे से इरशाद की तरफ झुकते हुए फुसफुसाता है – ‘सुनती तो वो मेरी भी नही |’
मानव अब जय की ओर देख रहा था|
“बस यही बात है न तो तुम परेशान मत हो हम इन तीनों का अच्छा वाला सबक सीखा देंगे ताकि फिर तुम्हें दूर से ही देखकर वे भाग लेंगे |” कहते हुए जय की मुस्कान उन दोनों की मुस्कान से मिल जाती है|
“तुम यही बैठो – हम आते है|” अब समर उठता हुआ कहता है|
तीनों एक साथ बाहर की ओर निकल जाते है|
………क्रमशः ……….