
हमनवां – 44
अश्विन कुमार के तेवर बुरी तरह से उखड़े हुए थे, वे पार्टी सदस्यों की भीड़ से उठकर बाहर की ओर चल देते है जिससे जिला अध्यक्ष उनके पीछे पीछे आते हुए उन्हें बरामदे में ही रोक लेते है|
“क्या कर रहे है जरा तेवर कम करे और आँख खोलकर सच को स्वीकारे – आपको पार्टी से इस तरह नही आना चाहिए ये आलाकमान का अपमान है|”
ये सुन वे एकदम से पलटते हुए कहते है – “और मेरा मान – उसका क्या !!”
“तो आप पार्टी से अलग थोड़े ही किए गए है – समझते काहे नहीं वक़्त की नजाकत को|” वे खीजते हुए बोले|
“नहीं समझा तो आप खुल के समझा दीजिए कि जब मुझे पार्टी के साथ की जरुरत है तो पार्टी ने क्यों अपना हाथ खीच लेने में अपनी सहूलियत महसूस की|”
“देखिए बस एक टिकट की ही तो बात है इस बार नहीं तो अगली बार तो आपको ही मिलेगा बाकि ये कम है कि आप पार्टी में बने हुए है|” अबकि एक कुटिल मुस्कान उनके चेहरे पर घिर आती है जिससे अश्विन कुमार के चेहरे पर नागवारी के आसार दिखने लगते है|
“पार्टी में हरदम आपके मनमुताबिक तो नहीं हो सकेगा न – |”
“मैं फेकी हुई चीज कभी नहीं लेता – जब कुछ भी नहीं था मेरे पास तब भी मैंने वही लिया जिसे मैंने खुद अपने बल से कमाया इसलिए ये अहसान भी आप अपने पास रखिए|” कहते कहते उनके जबड़ों में कसाव आने लगता है|
“तो क्या करियेगा !!” वे अपनी संग्दिध नज़र अश्विन कुमार के चेहरे पर टिका देते है|
अबकि कुछ पल तक अश्विन कुमार उनका चेहरा देखते रहे फिर एकाएक अपने चेहरे का भाव बदलते हुए चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुए बोले – “तो आप तैयारी करे |”
वे आश्चर्य से अभी भी उनका चेहरा ताक रहे थे|
“विपक्ष में बैठने की|” अश्विन कुमार भी चेहरे पर कुलित मुस्कान लाते हुए कहते है|
“दिमाग चकरा गया है आपका – पार्टी से निकाले थोड़े गए है|”
“मैं उस पल का इंतजार भी नही करने वाला|” कहकर वे पलट कर चलने लगे तो जिला अध्यक्ष थोड़ी तेज़ आवाज में बोलने लगे – “दिमाग दुरुस्त करले कही ऐसा न हो कि न घर के रहे न घाट के |”
ये सुन वे तुरंत पलटते हुए उसी तेजी से जवाब देते है – “अब ये तो वक़्त ही बताएगा आखिर मैं भी तो अपने कामों का हिसाब जनता से मांगूं |”
“अश्विन कुमार कुछ कार्यकर्ताओं के बल पर ज्यादा मत उडो नहीं तो उतनी ही तेजी से नीचे गिरोगे|”
“अब सारा हिसाब जनता करेगी – नमस्कार |” उनकी तरफ हाथ जोड़ वे तेजी से बड़े बड़े डग भरते बाहर की ओर चल देते है|
***
वे तीनों लड़के डरकर उस सरकारी हॉस्पिटल के एक ही बेड पर चुपचाप बैठे थे, समर उनके सामने इंजेक्शन फिल करता हुआ बीच बीच में उनकी तरफ तरस खाने वाली मुस्कान से मुस्करा देता जिससे वे और सहम जाते|
फिर तीनों समर की ओर देखकर धीरे से पूछते है – “क्या हम लोग अब जा सकते है|”
“नही |” कड़क आवाज के साथ समर कहता है तो तीनों की घिग्गी बंध जाती है|
“क्यों !!”
“ये इंजेक्शन तुम्ही लोगों के लिए तैयार कर रहा हूँ |” समर उनकी ओर धीरे से मुस्कराते हुए देखता हुआ कहता है – “चिंता मत करो इसको लगने में ज्यादा दर्द नही होगा – बस थोड़ी देर कुछ अजीब सा लगेगा फिर बाद में तुम्ही लोगों को कुछ याद नही रहेगा |”
ये सुनते तीनों की जैसे जान ही सूख जाती है|
“फिर तुमलोग बच्चों की तरह व्यवहार करोगे तब तुम्हे हम सरकारी मेंटल एसाइलम में डाल देंगे पर चिंता मत करों सारे सरकारी हॉस्पिटल की हालात खराब नही होती – वहां तुम लोगो को बहुत अच्छा लगेगा|”
“नही हमे कहीं नही जाना |” वे तीनों घबरा कर उठकर खड़े हो जाते है|
“अरे अरे रुको – वहां तुम्हें ज्यादा नही मारेंगे – मैं थोड़ी रिक्वेस्ट कर दूंगा आखिर मानव के दोस्त हो तुम |” कहते हुए समर अपनी ऑंखें उनपर गड़ा देता है|
“नही हम उसके दोस्त नही है – हमे माफ़ कर दीजिए – प्लीज़ हमे जाने दीजिए |” वे तीनों घबराते हुए धीरे धीरे दरवाजे से बाहर की ओर बढ़ने लगता है जिससे समर उन्हें रोकने का अभिनय करता उनकी तरफ बढ़ता है तो तीनो जल्दी से बाहर की ओर भागने लगते है|
उनके बाहर जाते समर बस तेजी से यही कहता रह जाता है – “मैं अभी तुम लोगों को पकड़ने वार्ड बॉय को बुलाता हूँ |”
तब तक तीनों दरवाजे से तेजी से बाहर निकले ही थे कि जय और इरशाद की पुष्ट काठी से टकरा कर अब उनकी पकड़ में आ जाते है|
उन तीनों को दोनों अपनी पकड़ में लिए ऊपर से नीचे देखते हुए एक दूसरे से कहने लगते है – “अरे इरशाद यही तीनों लड़के तो है – बिना लाइसेंस के बाइक चला रहे थे न |”
“हाँ बाइक तो जमा होगी ही इनपर कौन कौन सी दफा लगेगी यार जय|”
उन तीनों का डर के बुरा हाल था वे अब जय को डर कर देखते है जो अपनी वर्दी में था|
“कोई भी दफा लगा लेंगे यार – तुम अख़बार में इनकी तस्वीरे निकलवा दो पहले |”
“क्यों !!!” तीनों की एकसाथ उनके हलक से आवाज निकली|
“मानव उपाध्याय को तुम लोग तंग करते हो न |” जय अपनी कठोर निगाहे उनपर गड़ा देता है|
“नही नही सर हमे माफ़ कर दीजिए |” वे तीनो गिडगिडाते हुए लगभग जय के चरणों पर गिर पड़ते है|
“बच्चे अभी तो तुम्हारी कहानी शुरू हुई है न – आगे आगे देखो क्या होगा तुम्हारे साथ |”
“प्लीज़ सर हमे माफ़ कर दीजिए – हम तीनो अब कभी भी मानव को परेशान नही करेंगे – हमसे गलती हो गई – प्लीज़ एक आखिरी बार हमे माफ़ कर दीजिए|” तीनो की जैसे जान ही हलक से बाहर आई जा रही थी|
जय और इरशाद आपस में इशारा कर अपनी पकड जान कर ढीली करते है जिससे वे तीनो छूटते सर पर पैर रखकर भागते है|
फिर बिना रुके तीनो सरपट भीड़ से निकलकर भागे जा रहे थे| जय और इरशाद उन्हें देखकर सीने पर हाथ बांधें हँस रहे थे अब तक समर भी वही आकर उनकी तरफ देख समवेत स्वर में हँसते हुए कहता है – “बच्चे है – उनके लिए इतना सबक काफ़ी है |”
“हाँ – चलो मैं मानव को छोड़ते हुए निकलता हूँ |”
जय की बात सुन इरशाद भी बाहर की ओर चल देता है|
***
मानव देखता है जय उसके घर पर अपनी बुलेट रोककर परिचित सा उस घर की तरफ बढ़ रहा था जबकि मानव सहमा सा उसके पीछे पीछे चल रहा था आखिर घर का दरवाजा खुलते उसका डर अब उसके सामने था| मानसी पहले जय को फिर पीछे मानव को सर पर बैंडेज लगाए देख बस कुछ बोलने ही वाली थी कि जय जल्दी से आगे बढ़कर उसकी कलाई पकड़कर उसे चुप रहने का आँखों से इशारा करते हुए कहता है – “ मानव को कुछ नही हुआ वो ठीक है पर तुम कुछ नही कहना -|”
“पर !!”
“मैं कह रहा हूँ बस कुछ नहीं कहना इसे|” मानव धीरे से सर उठाकर मानसी का अवाक् चेहरा तो जय के चेहरे की अपने प्रति दिलासापूर्ण मुस्कान देख चुपचाप अन्दर जाने लगता है|
तभी एक गाड़ी रुकने की आवाज के साथ सबका ध्यान बाहर की ओर जाता है जहाँ से कमिश्मर साहब अन्दर की ओर आते आते उन तीनों को देख एकदम से सकपका जाते है|
जय झट से मानसी का हाथ छोड़ उन्हें सैलूट कर किनारे हो जाता है| वे आँखों से मानसी से फिर जय से कुछ पूछना चाहते थे फिर उनकी अनदेखी से वे अन्दर चले जाते है| उनके जाते पीछे से मानव और मानसी के अन्दर जाते जय भी वापस बाहर की ओर चल देता है|
***
मानव और मानसी दोनों ही कमिश्नर साहब के सामने किसी मुजरिम की तरह सर झुकाए खड़े थे, बीच बीच में वे सर उठाकर उनकी ओर देखने का प्रयास करते पर उनकी लगातार उनपर गड़ी नज़र से वे फिर सर झुका लेते|
“गिर गया था इसी से चोट आई|” झूठ बोलने से वह सर झुकाए ही खड़ा रहा|
“पढ़ाई का क्या हाल है – कितने पर्सन्टेज की उम्मीद है !!”
“अच्छे आएँगे |” वह सकपका जाता है|
“फिर भी अवेब 60 या 70 या….!!”
“अवेब 90 आएँगे |”
ये सुन मानव की ओर अबकि मानसी भी देखने लगी, इससे पहले पढ़ाई को लेकर इतना विश्वास उसने मानव में कभी नही देखा था|
“गुड – लगता है पढ़ाई अच्छी जा रही है – |”
“जी मोहित भईया से पढ़ता हूँ |” वह जानकार बात छेड़ता है ताकि आगे का जवाब मानसी दे|
पर मानव की बात को न समझ पाने से वे अब दोनों की ओर संशय से देखते है तो मानसी झट से बोलती है – “मोहित घर पर मानव को पढ़ाते है और पूरा टाइम देते है|”
मानसी के चेहरे के भाव देख मानव मन ही मन धीरे से मुस्कराता है|
“ठीक है कही भी पढ़े बस पढ़ाई समझ आनी चाहिए – उसे फीस जरुर दे देना |”
तभी खाने के लिए घर सँभालने वाली मौसी वहां दस्तक देती है तो मानसी उनके साथ बाहर चली जाती है, उसके जाते बात खत्म न हो तो मानव झट से बात को पूरा करता है|
“वे फीस नही लेंगे|”
मानव की बात सुन अबकि कमिश्नर साहब अनजान भाव से उसकी ओर देखते है जो कह रहा था –
“मोहित भईया इन्ही जय भईया के दोस्त है और – और जय भईया मानसी दीदी के भी अच्छे वाले दोस्त है इसलिए |” अपने पिता की आँखों में सीधा न देखते हुए धीरे से वह अपनी बहन की चुगली कर चुप होकर अगली प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगता है|
कुछ पल की ख़ामोशी के बाद वे मानव को पढ़ाई की हिदायत दे बाहर भेजकर मेज पर रखा अख़बार उठा लेते है|
ये देख मानव बिलकुल नही समझ पाता कि उसकी कही बात का कितना असर हुआ आखिर वह चुपचाप बाहर की ओर चल देता है|
***
नूर अपने कमरे में टहलते हुए मोबाईल का स्क्रीन देख देखकर मुस्करा रही थी|
इरशाद उसे लगातार मेसेज कर रहा था और वह सब्र से अपने एक मेसेज से जवाब देती हुई मन ही मन मुस्करा उठती|
“पूरा दिन मैं तुम्हारा इंतजार करता रहा न ऑफिस में मिली और न तुमने मेसेज किया – कितना बिजी रहती हो – एक बार मिल लो न – मुझे तुमसे अभी इसी वक़्त मिलना है |”
सारे मेसेज एक साँस में पढ़ते उसके गाल गुलाबी हो आते है वह टाइप करने लगती है –
“आज नही कल |”
“नही आज ही |” जैसे टाइप पर हाथ रखे ही बैठा था इरशाद|
“कल न |” उसने प्यारभरा इसरार किया|
“मैं घर आ रहा हूँ तुम्हारे अभी |”
उसकी धड़कने तेज हो गई, सुर्ख गुलाबी गाल और गुलाबी हो उठे|
“अभी तो रात हो रही है – कल न..|” वह मेसेज कर जवाब का इंतजार करने लगी पर अगले क्षण तक कोई जवाब न आने से नूर की धड़कने सांसो के क्रम में तेज हो कर दरवाजे के बाहर अपना सारा ध्यान लगा देती है|
पर उसके ख्याल में दूर दूर तक भी जो ख्याल न था वह हुआ और वह चौंककर अपने कमरे से लगी बालकनी की ओर बढ़ी और जो नज़ारा उसकी आँखों ने देखा खुद को जूलियट और इरशाद को रोमियो कहने का जी हो आया|
इरशाद ये भी कर सकता है ये उसकी हैरत में डूबी ऑंखें देखती रही और वह उसकी पहली मंजिल की बालकनी से लटका उससे हाथ बढ़ाने का इशारा कर रहा था| उसका हाथ छूते मानों किसी बेल सा वह उसकी बालकनी तक आ गया अब उसके कमरे में खड़ा अभी तक उसने उसका हाथ नहीं छोड़ा था|
नूर होंठ काटती नज़र भरकर भी उसकी तरफ नही देख पाई|
“कहा था न – आज ही मिलना है – कुछ लाया हूँ तुम्हारे लिए |”
वह उसका हाथ छोड़ अपनी शर्ट के अन्दर हाथ डाल अगले पल ही एक चुन्नी बाहर निकालकर झट से उसे नूर को ओढ़ा देता है और गौर से उसकी ओर देखता हुआ कहता है – “कैसा है !!”
नूर उस चुन्नी की किनारी थामे इरशाद की आँखों में अपना अक्स देखती हुई कह उठी – “बहुत खुबसूरत|”
“यही देना था |”
“बस …!!” वह अपनी नशीली ऑंखें उसकी मासूमियत से भरी आँखों में डालती हुई कहती है|
“हाँ |” वह सहज ही मुस्कराया और झट से बालकनी की ओर बढ़ गया| वह देखती रही तब तक जब तक इरशाद उसकी आँखों से ओझल नही हो गया|
तभी नूर को पुकारती उसकी अम्मी की आवाज आते ही वह तुरंत उनके पास पहुँचती है| नूर को होश ही नही था कि वह अभी भी वैसे ही चुन्नी ओढ़े थी, वे हैरत से उसे देखती हुई पूछती है – “नूर दो दो चुन्नी क्यों ओढ़े हो !!”
ये सुन नूर एकदम से सकपका गई और झट से चुन्नी अपने हाथों के बीच समेट लेती है|
“नई लाई हो – बहुत सुन्दर है – चलो अब खाना लगाते है|”
अम्मी के साथ नूर अपने दिल की सारी हलचल समेटती उनके साथ अब रसोई में सहायता कर रही थी| उनके पास भी यही मौका था जब वे नूर का मन टटोलती दिन की बात कह सकती थी|
“आज दिन में जब नजमा के यहाँ गए थे – इरशाद मिले थे – बड़े अज़ब है इरशाद – उन्हें अपनी दोस्ती पर बड़ा ऐतबार है पर वहां कैसे रहोगी और पता नही कैसे है उनके दोस्त !!”
“सब बहुत ही अच्छे है |” नूर अपने में ही खोई एक साँस में कह गई| अम्मी गौर से उसका चेहरा देखती रही, उन गहरी गहरी आँखों में बहुत कुछ था, जिसे समझने कुछ पल तक वे उन्हें निहारती रह गई|
क्रमशः………………………………….