
हमनवां – 46
ऐसा दिन कभी उसकी जिंदगी में आएगा उसने सोचा ही नही था बिन मांगे मुराद पूरी होने जैसी बात थी| वह ऋतु के घर परिचित सा समा जाएगा और उसका स्वागत बुआ जी बांछे बिछाकर करेंगी| एक पल ये सब सच नही कोई ख्वाब सरीखा लगा पर ये सच था वह दवाई देते उसके हाथ को अपनेपन से थामे ऋतु के हाथों से बांध कर गद्गद् हुई जा रही थी| उनके प्यारभरे शब्द उसके कानों में अमृत बन प्रवेश कर रहे थे|
“मेरी भूल थी जो तुमसा अच्छा वर ऋतु के लिए होते मैं देख न पाई – तबभी तुमने मेरे लिए इतना सब किया |” कहते कहते उनकी ऑंखें कुछ शर्म से भर आई|
“ये तो मेरा फर्ज था – आपकी जगह कोई और भी होता तो क्या मैं अपने फर्ज से पीछे हट जाता !!” समर की ऑंखें विश्वास से और दीप्त हो उठी|
“यही तो मैं अज्ञानी नही जान पाई कि हर धर्म जाति की दीवार से ऊँचा इंसानियत का धर्म होता है जिसे बखूबी तुमने निभाया – अब ऋतु को तुम्हें सौंप मुझे अपने जीवन को लेकर कोई डर नही रह जाएगा|”
“बुआ जी ..|” ऋतु झट से उनके गले लग गई – “आप ऐसी बात क्यों कर रही है – मैं आपकी आज्ञा के बिना अपने लिए कुछ कल्पना ही नही कर सकती|”
वे तीन जोड़ी ऑंखें आपस में मिलकर विश्वास और नेह से और दीप्त हो उठी| वर्षा भी वहां आती ख़ुशी से फूली नही समा रही थी, उसे भी अपनी दीदी के लिए समर के अलावा कभी कोई नही जँचा, वह तो आने वाली ख़ुशी की कल्पना मात्र से झूम उठी|
“अब जल्दी से बेटा अपने पिता जी को बुला लो आगे की बातें जरा बड़ों के बीच हो जाए|” बुआ जी पूरे हर्ष से कह रही थी और वे दो जोड़ी प्रेमी ऑंखें सबसे बेखबर अदृश्य ही एक दूसरें के गले लग खिल उठी थी|
***
जैसे ही जय और इरशाद ने समर और ऋतु के होने वाले सम्बन्ध की सुनी मारे ख़ुशी के दोनों ने समर को लगभग हवा में उठा ही लिया| ऋतु जैसी भाभी उनके लिए अकल्पनीय थी|
तभी थोड़ा उदास होता जय बोल पड़ा – “लेकिन एक समस्या है !!”
जय की बुझी आवाज पर दोनों अब हैरत से उसकी तरफ देखने लगते है|
“अब सुबह सुबह यार खौली हुई चाय कैसे मिलेगी !!!”
ये सुनते जय और इरशाद के ठहाके से समर भी खुद को हंसने से न रोक पाया|
“यार इरशाद के साथ अब समर तेरी भी सेटिंग हो गई – हे ऊपर वाले अब मुझपर भी कुछ रहम कर दे – कहीं मैं ही कुंवारा न रह जाऊं -|” जय दोनों हाथ ऊपर उठा ऐसे दुआ करता है कि समर और इरशाद एक साथ – “तथास्तु बच्चा…|” कह हंस पड़ते है|
तीनों के ठहाके समवेत स्वर में एक साथ गूंज उठे, उसी के बीच जय समर से कहता है – “अब ज्यादा नाटक मत करना और तुरंत अंकल को ईमेल कर जल्दी से बुला – ये खबर सुन वे जहाँ कहीं होंगे तुरंत चले आएँगे |”
समर कुछ खलिश मिश्रित हंसी से बस मुस्करा कर रह जाता है|
***
कमिश्नर साहब आते मानसी को आवाज़ लगाते हुए अपने कमरे में उसे बुलाते है| मानसी जो हमेशा की तरह मानव से उलझी पड़ी थी पर अपने पिता की पुकार सुन मानव को घूरती आँखों से देखती उनके पास चल देती है|
वे आते ड्रेस में ही अपनी कुर्सी में बैठे अख़बार देखने लगे थे|
“जी पापा – आपने बुलाया !!” मानसी हाथ बांधें उनके सामने खड़ी हो जाती है|
मानसी की आवाज़ सुन अख़बार पर आँख गड़ाए गड़ाए ही वे कहने लगे – “दो अच्छी वाली कॉफ़ी बनवा लो और थोड़ा अच्छा वाला डिनर के लिए सुनीता को बोल दो |”
मानसी औचक उनकी तरफ देखती हुई पूछती है – “कोई खास आने वाला है पापा !!”
“हाँ जिससे तुम्हारे रिश्ते की बात की है |” वे सहजता से कह गए पर सामने खड़ी मानसी के पैरों तले जैसे जमीं ही सरक गई, आश्चर्य से उसका मुंह खुला का खुला ही रह गया|
कुछ पल तक खामोश उसे सामने खड़ा देख वे अख़बार हटाकर उसका चेहरा देखते हुए कहते है – “मैंने पहले ही कहा था – तुम नहीं बताओगी तो मुझे तो तुम्हारी शादी तय करनी ही है – लड़का अच्छा है – तुम्हारी मौसी को भी बहुत पसंद है |”
इतना सुनते मानसी की बस रुलाई की फूटने वाली थी, उस पल उसका जी चाह रहा था कि बुक्का फाड़कर रो दे पर हालत यूँ थे जो न उगले जा रहे थे और न निगले|
वे पूरी तरह से अख़बार समेटते उसकी तरफ समझाती नज़रों से देखते हुए कहने लगे – “देखो मानसी मेरे रिटायमेंट में बस दो साल शेष है फिर मुझे कही भेजते है या मैं यहीं रुकता हूँ कह नहीं सकता तब तुम्हारी ओर से अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लूँ ताकि मानव का तुम ख्याल रख सको – अगले साल उसे भी कॉलेज के लिए कहीं कहीं निकलना ही है – समझो बेटा |”
“पर पापा ….!!!!” वह बस यही कह पाई कि दरवाज़े की घंटी बजी तो सबका ध्यान बाहर की ओर गया| मानसी का तो गला ही सूख़ गया|
“जाओ दरवाज़ा खोलो |”
अपने पिता की आज्ञा को मानने के सिवा उसके पास अभी कोई चारा नहीं था, आगे क्या होगा या वह क्या प्रतिक्रिया करेगी कुछ नहीं सोच पा रही थी, वह बस यंत्रवत दरवाज़े की ओर बढ़ गई| उसके कदम यूँ उठ रहे थे मानों वह अपने जीवन के आखिरी सफ़र की ओर अपने कदम बढ़ा रही हो|
दरवाज़ा खोलते उसकी आहट की तेज़ी ही बता रही थी कि मानसी के मन के गुस्से का कितना गुबार उठ रहा है| वह बस किसी तरह से खुद को जब्त करती दरवाज़ा खोल किनारे खड़ी हो जाती है|
पर अचानक वह चेहरा देख वह जैसे खुद पर काबू नही रख पाती, सामने खड़ा जय ड्रेस में था और अपने सामने मानसी को देख अपनी कैप उतार अपने बगल में दबी फाइल के साथ दबा लेता है|
“क्यों आए हो – इतनी जल्दी आने की क्या जरुरत थी – रिसेप्शन में आना था न – सब तुम्हारी वज़ह से हो रहा है |” वह दांत पीसती अपनी गुस्से से भरी ऑंखें उसपर गड़ा देती है|
इससे जय के कदम जैसे वही बर्फ़ हो जाते है|
“तुमको पता है यहाँ क्या हो रहा है – मैं मैं न तुम्हें …|” गुस्से में आधे शब्द जैसे उसके होठों पर आते आते गुम हो जाते है| जय बस औचक अनजान भाव से उसकी ओर देखता रह जाता है|
तभी पीछे से आवाज़ लगाते कमिश्नर साहब दूर से उन्हें देखते हुए कहते है – “क्या हुआ मानसी – आने दो – |”
मानसी चुपचाप किनारे होती अब जय की तरफ देखती भी नहीं, वह बस हिचकिचाता अन्दर आते उन्हें सैलूट कर फाइल उनकी ओर बढ़ा देता है|
वे एक नज़र जय की ओर तो दूसरी नज़र मानसी की ओर देखते हुए फिर उसे पुकारते हुए कहते है – “मानसी क्या हुआ !!! वहां क्यों खड़ी हो !!!”
मानसी अपनी रुंधी आखों से उनकी तरफ देखने लगी तो वे कह उठे – “जाओ मैंने कहा था न कि कॉफ़ी तैयार करो – अभी डिनर भी तैयार कराना है न जय के लिए|” कहते कहते वे धीरे से मुस्कराए|
मानसी का दिल को बल्लियों उछाल मार गया, वह ऑंखें फाड़े अपने पिता की ओर देखती रह गई|
“देर से ही पर अपने बच्चों की खबर मिली ही गई मुझे – मानव को थैंक्स कह सकती हो |”
मानसी अपने चेहरे पर बरबस ही आई ख़ुशी रोक नही पाई और सारा नज़ारा दूर से देखते मानव की ओर फिर मुस्कराते जय की ओर देखती दौड़कर अपने पापा के गले लग गई|
“तुम खुद भी कह सकती थी मुझसे – खैर अब तो कॉफ़ी पिलाओगी !!”
मानसी का तो ख़ुशी के मारे स्वर ही नही फूट रहा था वह बस हाँ में सर हिलाती देखती है कि पापा आगे आगे और जय उनके पीछे पीछे उनकी स्टडी रूम की तरफ जा रहे थे| जय छुपकर एक आंख दबा कर मानसी को देखता है तो बस मानसी धीरे से जानकर मुंह बनाती दूसरी ओर बढ़ जाती है|
मानव किनारे खड़ा भौं जोड़े सब देख रहा था| मानसी उसके पास आती – “थैंक्स मेरे प्यारे दुश्मन |” कहती उसके सर पर एक टीप मारती निकल जाती है| वह वही खड़ा रह जाता है|
***
शैफाली तालाब के पास कुछ ऊँचे स्थान पर खड़ी दूर तक देख रही थी, शुरुआती सर्द मौसम से उसने खुदको सिर्फ एक शाल से ढांप रखा था वहां खड़ी वह जाने किस शुन्य को निहारती इतनी अपने में गुम थी कि मोहित का आना वह नही देख पाई जब तक उसने उसे कसकर पुकारा नही|
वह उसकी तरफ अपना मोबाईल बढ़ाते हुए कह रहा था – “तुम्हारा लन्दन से फोन है – शायद भावना ने नंबर दिया होगा|”
वह आगे बढ़कर मोबाईल लेकर कान से सटा लेती है| मोहित संकोच से कुछ दूर खड़ा रहता है| वह उनकी बात नही सुनना चाहता था फिर भी कुछ आवाज़े सहसा उसके कानों से टकराती रही जिससे उसे अंदाजा हुआ कि फोन के दूसरी तरफ शायद उसका वकील था, फिर दो नाम क्रमशः उसके कानों से टकराते है केनी और एडवर्ड, ये उसके रूम पार्टनर थे वह जानता था पर और कुछ न सुनने की चाह से वह जानकर उससे कुछ और कदम दूर हो जाता है|
वह पास के पेड़ की ऊंचाई को गर्दन उठाकर देखने लगता है वह ढेरों चिड़ियों की चहचहाहट पर अपना सारा ध्यान लगा देता है, तभी उसे पुकारती आवाज पर अब वह वही से खड़ा शैफाली को देख रहा था| जो उसकी ओर मुस्कराते हुए देख रही थी कि मोबाईल बज उठा, अबकी वह मोहित की ओर बढ़ाती हुई कहती है – “जय का है |”
मोहित तेज कदमों से आगे आता मोबाईल लेता कान से लगाया ही था कि बरबस ही उसके चेहरे पर भरपूर मुस्कान तैर गई, वे सारे स्पीकर से मोहित से बात कर खुशखबरी दे रहे थे, जिसकी ख़ुशी उसके चेहरे पर भी अपना आसन जमा चुकी थी|
“अरे वाह…हाँ हाँ जल्दी आता हूँ….हाँ शैफाली भी साथ है..|” वह अपना आखिरी शब्द थोड़ा धीरे से कहता शैफाली के मुस्कराते चेहरे की ओर देखता है|
“जल्दी आओ मोहित हमे भी खुशखबरी सुननी है..|” बीच में मानसी आती जल्दी से कहती कसकर मुस्करा देती है|
शैफाली औचक अब उसकी तरफ देखने लगी|
मोबाईल अपनी पॉकेट के हवाले करते हुए वह बताता है – “अब हमे जल्दी वापस पहुंचना है – जय, समर और इरशाद की शादी फिक्स हो गई|” कहते कहते एक हलकी हया न चाहते हुए भी मोहित के चेहरे पर नज़र आने लगी|
“वाओ – दैट्स गुड…|”
फिर अगले पल तक उनके बीच ख़ामोशी छा गई, जिसे जानकार तोड़ते मोहित कहता है – “तुम्हें यहाँ हर शाम तालाब के पास अच्छा लगता है !!”
ये सुन शैफाली सच में एक गहरा उच्छवास हवा में छोड़ती हुई अपनी बांह हवा में फैलाती ऑंखें बंद करती हुई कहती है – “हाँ – यहाँ आती हूँ तो आंख बंद करते लगता है जैसे हैम्पटन ब्रिज पर खड़ी थेम्स को निहार रही हूँ – वही सुकून वही एकांत मिलता है यहाँ मुझे…|”
मोहित उस पल शैफाली को नज़र भर देखता रह गया, वह आंखे बंद किए अभी भी खड़ी थी, उसका जी चाह रहा था कि उसकी ओर अपना कदम बढ़ा ले पर किसी अनजान डर से उसके कदम वही जमे रह गए वह बस दूर से ही उसे नयन भर देखता रह गया|
***
जय अभी भी समर पर नाराज़ हो रहा था क्योंकि उसके कहने पर भी उसने अभी तक अपने पिता को कोई सूचना नही दी थी| वहां मौजूद मानसी भी उसके इस व्यवहार पर उसे ही समझा रही थी, पर समर जैसे मौन की सीमा पार ही नहीं कर रहा था|
तभी घर पर अवास्तविक दस्तक से सबका ध्यान बाहर की ओर जाता है|
“अब इस घर में कौन खटखटा कर आने लगा|” कहता हुआ वह दरवाज़े की ओर बढ़ा ही था कि सामने उसने जिसे देखा उससे उसका चेहरा अगले कुछ क्षण तक अवाक् ही रह गया|
“अंकल आप – सच में आपकी बड़ी लम्बी उम्र है – बस समर आपको ईमेल करने ही वाला था|”
सामने दुबली लम्बी देह वाले समर के पिता मिस्टर विल्सन अपनी गहन मुस्कान के साथ खड़े थे| जय बढ़कर उनका अभिवादन करता है तो वह उसे गले लगा लेते है| उनकी आवाज़ सुनकर मानसी, समर और इरशाद भी वही आते उन्हें देख चौंक जाते है| बारी बारी से सभी से मिलकर वे समर के सामने खड़े थे जो अपना हाथ आगे कर अपनी नज़रे उनकी तरफ से घुमाए था| वे समर की उदासी पर भी मुस्करा कर उसे खींचकर अपने गले से लगा लेते है, समर भी किसी बुत सा इंकार नही कर पाता|
उनके बीच की निशब्दता को जल्दी से तोड़ता हुआ जय कहता है – “आप बिलकुल सही समय आए है – क्यों समर खुशखबरी तू सुनेगा या हम सुनाए..|”
इस पर समर को छोड़ सभी एक साथ हंस पड़े|
वह लगभग उछलते हुए उन्हें ऋतु के बारे में उसकी ढेरों तारीफ के साथ बता रहा था और समर उतना ही उनकी ओर से उदासीन था| मानसी को ये सब बहुत अटपटा लग रहा था पर पहली बार उनसे मिलने से जय अब उनके बारे में मानसी को बता रहा था कि समर के पिता मरीन साइंटिस्ट है जिसके कारण हमेशा ही उन्हें दूर दराज़ के इलाकों में रहना पड़ता है| समर के पिता जब ये बताते है कि वे अभी गैलापागोस आइलैंड जो पैसिफिक महासागर में है वहां से आ रहे है इसपर मानसी लगभग उछल ही पड़ती है, एक पल को उसे उनसे मिलने का विश्वास ही नहीं हुआ जिससे वह अपना जोश जाहिर करती उनसे कह उठी –
“अंकल मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि मैं आपसे मिल रही हूँ आपका नाम को मैंने टी वी में भी सुना है – ग्रेट – समर तुमने मुझे बताया क्यों नही !!” मानसी के लिए अपनी ख़ुशी छुपाना मुश्किल हो रहा था – “अंकल आप कितना बड़ा काम करते है जो हम शहर में रहने वाले सोच भी नही सकते – ऐसे मुश्किल इलाकों में रहना फिर विलुप्त हो रहे जीवों का संरक्षण करना – आप तो ग्रेट है |”
इसपर वे सहजता से बस धीरे से मुस्करा देते है |
“आपका तो मैं इन्टरव्यू लुंगी ताकि लोग जाने तो जीवों की हत्या भी क्राइम है – क्राइम कवरेज पेज में निकालूंगी मैं|” मानसी पूरे जोश में बोल पड़ी|
पर उसकी सुन जय उसकी तरफ संशय से देखता हुआ कहता है – “तुम कब से क्राइम रिपोटिंग करने लगी ?”
जय की सुन मानसी अवाक् उसकी ओर देखती रह गई पर उसके मुंह से कुछ बोल न निकले|
“अंकल चाय या कॉफ़ी !!” किचेन से झांकते इरशाद पर अब सबकी नज़र टिक गई थी|
…… क्रमशः……