Kahanikacarvan

हमनवां – 48

रास्ता कितना लम्बा था पर आज चुटकियों में कटा जा रहा था| वे लगभग आधे रस्ते आ चुके थे| वे  किसी जगह रुके अब वापस जाने को तैयार थे तभी मोहित देखता है कि शैफाली ड्राइविंग सीट पर बैठी कह रही थी – “मैं चलाऊं !!”

“हाँ |”

मोहित जिस सहजता से स्वीकृति दे देता है शैफाली उससे चौंक उठती है उसे लगा था मोहित इसे उसका मजाक समझेगा – “देख लो कही टकरा दी तो !!”

“तो क्या साथ में चलेंगे ऊपर |” कहकर मोहित हँसते हुए कहता है – “पर राईट लेफ्ट का देखना क्योंकि यहाँ ड्राइविंग सीट राईट की तरफ होती है |”

“हम्म – तो बांध लो सीट बेल्ट |”

और सच में शैफाली ने ड्राइविंग सीट संभाल ली मोहित भी बेख़ौफ़ साथ में बैठा अब जानकर उसकी ओर बार बार मुड़कर देख लेता, कभी कुछ कहने कुछ समझाने वह भी मुस्करा देती|

“देखना बस रास्ता नही भटकना |”

“मैं तो आगरा ले जाउंगी|”

मोहित चौंकता है – “आगरा !!!”

“हाँ मुझे ताजमहल देखना है|”  वह बड़ी मासूमियत से मन की कहती है|

“ओह |” मोहित मुस्कराते हुए कहता है – “ठीक है वो भी घुमा देंगे – पर स्कूल ज्वाइन करने के कुछ दिन बाद अभी तो मेरी छुट्टियों से सब खार खाए बैठे होंगे|” अपना आखिरी वाक्य वह धीरे से कहकर खुद ही मुस्करा देता है|

“अच्छा एक बात पूछूँ – बड़े दिन से मन में थी !!”

वह अपनी सहमति से अपनी नज़र अब उसी पर धर देता है|

वह अपनी आशंका जाहिर करती जानना चाह रही कि उसके घर में भाई जी, ताया जी, दार जी यहाँ तक की हैपी भी पगड़ी पहनता है तो वह क्यों नही पहनता|

ये प्रश्न जैसे उसे फिर अतीत के गलियारे में खींच ले जाते है| वह उसी बस की दुर्घटना को न चाहते हुए भी याद नही करना चाहता था जिसने उसके माता पिता के साथ उससे इसका भी अधिकार उससे छीन लिया कि तभी सामने से आते ट्रक से मोहित एकदम से भयकूल होता शैफाली के हाथ पकड़ता स्टेरिंग को तुरंत अपनी ओर घुमा लेता है शैफाली चौंककर उसकी ओर देखती रह गई, ट्रक निकलकर जा चुका था, पर मोहित अभी भी भयभीत सड़क के मुहाने को देख रहा था| हर बार हादसा उससे कुछ चीन लेता|

***

इरशाद का फोन आते मोहित उसकी बेसब्र आवाज़ सुनकर अपनी हंसी दबाते हुए कहता है – “यार एक हफ्ते बाद आता हूँ |”

“नही मेरी इंगेजमेंट है – आ जाओ यार नही तो डेट आगे बढ़ानी पड़ेगी |” बच्चों सा रुठते कहता है तो मोहित अपनी हँसी नही रोक पाता, पीछे से शैफाली को भी ये सुनकर हँसी आ रही थी|

“तो तुम मुझे बना रहे हो न – तुम रस्ते में हो !!”

“हाँ…|” कहकर मोहित कसकर हंस पड़ा जिससे झेंपते इरशाद उसे देख लेने की धमकी देता फोन रख देता है|

“बस ये आखिरी पड़ाव है अब हम दिल्ली में जल्दी ही प्रवेश कर जाएँगे|” मोहित स्टेरिंग दोनों हाथों में सँभालते एक भरपूर नज़र से शैफाली की ओर देखने लगा कि अब वह कुछ कहेगी.., पर वह मौन हौले से मुस्करा कर बस उसकी आँखों में देखती रही….कुछ पल वह भी नीले समन्दर में डूबता उतराता रहा फिर हौले से किनारे आते रास्ते पर आगे बढ़ गया|

जब वक़्त को थामना चाहो तभी वक़्त तेजी से रेत सा हाथों से फिसल जाता है| काफी देर की उनके बीच की ख़ामोशी में वे अगले जाने किस अनजान पल में वह शैफाली के अपार्टमेंट की बिल्डिंग के नीचे खड़ा था| वहां पहुंचकर जैसे उनके चेहरे का रंग ही फीका पड़ गया था, वे दो जोड़ी ऑंखें बार बार एक दूसरें का हाथ थाम लेना चाहती पर संकोच की सीमा रेखा किसी से पार नहीं हुई|

वे बेहद खमोशी से लिफ्ट से ऊपर आ गए| मोहित शैफाली का ट्रोली बैग थामे था और शैफाली के हाथों के बीच उसी का एक छोटा बैग था| उनके बीच की नीरव ख़ामोशी में उनकी धड़कनों की आवाज़ वे साफ़ साफ़ सुन पा रहे थे, पर न उनके हाथ सामानों से हटे न उनके कदम ही कहीं रुके अब वे फ्लैट के ठीक सामने थे| वे ऑंखें तेजी से एक दूसरें की ओर उठी, होंठों के मौन गर्म सांसों के रूप में उनके ह्रदय का स्पंदन तेज करने लगे, बैग उनके हाथों से छिटक गया, कोई मदहोशी सी उनपर सवार हुई जा रही थी कि अब नही तो कभी नहीं, दिल को भी कितना हौसला देना पड़ता है, शैफाली अपना हाथ मोहित की ओर बढ़ा देती है मोहित भी अपना हाथ उसकी ओर बढ़ा देता है| बिन शब्दों के आँखों में अशेष निवेदन बूंदों के रूप में झलक आए| शैफाली का हाथ तेजी से पकड़ उसे अपनी बाँहों के घेरे में खींचकर एक चुम्बन उसके सुर्ख गालों में अंकित कर कह उठता है – “आई मिस यू शेफी |”  

वह अवाक् उस चेहरे को देखती है तो देखती रह जाती है, मानों धड़कन वही थम गई, वह चेहरा मोहित का चेहरा नहीं था| ये देख उसका चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है|

***

शैफाली अवाक् देखती रह गई, उसके मुंह से – “एडवर्ड….तुम यहाँ !!!” बस निकलकर रह गया|

वह अभी भी शैफाली का हाथ पकड़े कह रहा था – “मैं तुम्हेँ ढूंढते हुए पूरे पांच दिन से भारत में पड़ा हूँ – तुम कहाँ थी – कब से कोई खबर नही तुम्हारी – बड़ी मुश्किल से मैंने यहाँ का पता किया – मैं रोजाना तुम्हारे इंतजार में यहाँ चक्कर काट रहा हूँ – कुछ तो बताती |” वह एक साँस में कह गया|

शैफाली झट से खुद को उससे अलग करती अब मोहित की ओर देखती है, अब वहां कोई नही था, वह जा चुका था, ये देख उसका मन रो पड़ा|

“शेफी |” वह उसे पुकार रहा था|

शैफाली फिर उसकी ओर देखती है|

“तुम्हें पता है अब केनी भी साथ में नही रहती इससे वहां का अकेले रेंट देना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है – |”

शैफाली अब कुछ संभलती हुई उसकी ओर देखती हुई कहती है – “बस ये कहना था तुम्हें !! रुको मैं आती हूँ |”

एडवर्ड वही खड़ा देखता है कि शैफाली किसी फ्लैट पर दस्तक देती अब उसके अन्दर समा गई|

भावना अचानक शैफाली को देख ख़ुशी से फूली नही समाई पर शैफाली उसके पास रुकने के बजाय तेज  क़दमों से अपने रूम में जाकर अगले क्षण हाथ में कोई कागज के साथ वापस आती सीधे बाहर निकल जाती है, इससे भावना भी देहरी तक आती अब उनकी प्रतिक्रिया पर अपनी नजर जमा देती है|

शैफाली उसकी तरफ वो कागज बढ़ाती हुई कह रही थी – “ये लो एडवर्ड – मुझे उम्मीद है इस रकम से वहां का छह महीने का रेंट देकर इतना बच जाएगा कि अगली व्यवस्था तक का तुम्हरा अरेजमेंट हो जाए |”

वह चेक लेता हुआ प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी ओर देखता है – “और तुम !!”

“मैं वापस नही आ रही और तुम भी कभी वापस अपनी शक्ल मत दिखाना |” वह लगभग गुस्से में दांत पीसती हुई कहती उसकी ओर से मुंह मोड़ लेती है|

“ये क्या कह रही हो – तुमने अपना इरादा बदल लिया क्या – |” वह अब थोड़ा उसकी ओर बढ़ता हुआ कहता है – “तुमने तो कहा था – तुम बहुत सारी मनी के साथ वापस आओगी – हम दिन रात पार्टी करेंगे – तुम्हारी वजह से मैंने केनी को भी जाने दिया|”

वह झटके से उसकी तरफ देखती हुई कहती है – “अब मेरे पास कुछ नही है – कोई दौलत नही मेरे पास – जो था मैंने दे दिया तुम्हें |” कहती हुई वह अपनी ऑंखें अब उसके चेहरे के बदले हुए भाव की ओर टिका देती है|

“ओह माय गॉड – तुमने पहले क्यों नही बताया – |” वह जैसे खुद पर ही झुंझला उठा था|

शैफाली उसकी ओर अपनी तिरछी मुस्कान से देख रही थी और वह अपने में ही बौखलाया कह रहा था –

“मैं वापस जा रहा हूँ केनी के पास|”

कहकर वह तेजी से सीढ़ियों की ओर बढ़ गया| उसके जाते शैफाली अपने सामान की ओर बढ़ जाती है, ये देख भावना जैसे अपने ख्याल से वापस आती सामान अन्दर लाने में उसकी मदद करती है|

अन्दर आते वह शैफाली की ओर देखती हुई कहती है – “ये हिप्पी वही एडवर्ड था जिससे तुम बात करती थी – अच्छा हुआ उससे जो तुम्हारा पिंड छूटा – बल्कि और रकम देदेती – देखा सिर्फ पैसे के लिए तुम्हारे इर्दगिर्द चक्कर काटता था – बला टली – और क्या सच में अब तुम मेरे पास रहोगी !!” अपनी धाराप्रवाह बातों में वह अपनी ख़ुशी का इज़हार करती शैफाली के पीछे पीछे चल रही थी जो सामान रखकर अब अपने कमरे की ओर चुपचाप बढ़ रही थी|

“पर मोहित कहाँ गया – वही छोड़ने आया था तो रुका क्यों नही – शैफाली… |” जब वह उसकी किसी बात का जवाब दिए बिना ही कमरे की ओर बढ़ने लगी तो भावना उसे रोकने पुकार उठी|

“हाँ मोहित ने छोड़ दिया मुझे |” वह बिना उसकी ओर पलटे एक एक शब्द जैसे किसी तरह से शब्दों में कह पाई|

“मैं बहुत थकी हूँ – कुछ देर आराम करुँगी प्लीज़ |” कहती हुई शैफाली खुद को कमरे में जाते बंद कर लेती है|

भावना वही खड़ी आधा समझती आधी अनबुझी सी अब उसका सामान सहेजने लगती है|

***

सभी को पता था कि मोहित और शैफाली वापस आने वाले है पर धीरे धीरे साँझ घिरते वे सब परेशान हो उठे पर अब न मोहित का फोन उठ रहा था, न ही उसकी ओर से कोई फोन आया| इरशाद चिंता में बार बार टी वी का चैनल बदल रहा था तो जय सोचता बालकनी तक चक्कर काट आता, समर भी गहन मुद्रा में वही बैठा था|

“ये मोहित भी कभी न हद ही करता है – सुबह से चला तो अभी तक पहुँच जाना चाहिए था न – कुछ बताया भी नही – इरशाद जब तुम्हारी उससे बात हुई थी तो क्या कहा उसने ?”

जय की बात सुन अब इरशाद उसकी ओर देखता हुआ कह रहा था – “हाँ कहा तो था कि चार बजे तक आ जाएगा शैफाली को उसके घर छोड़कर – क्यों न भावना के पास कॉल कर ले – कहीं वही तो नही रुक गया !!”

“राईट -|” चुटकी बजाते अब तीनों टेलीफोन को घेर कर बैठ जाते है|

“हाँ शैफाली तो कबकी आ गई – क्या मोहित नही पहुंचा घर – मुझे तो पता नही क्योंकि वह मुझसे मिला भी नही – अच्छा क्या शैफाली से पूंछू !!” भावना फोन पकड़े पकड़े अब शैफाली के कमरे की ओर देखने लगी|

“वैसे वह थकी है और कमरे में आराम करने गई है|”

“नही छोड़ दो – दिल्ली आ गया न तो हो सकता है कहीं यही जाम में फंसा होगा – उसके पहुँचते हम तुम्हें भी बता देंगे |”

दोनों ओर से फोन कट चुका था अब वे एक दूसरें की ओर प्रश्नात्मक मुद्रा में देख रहे थे|

तभी उसके मोबाईल की स्क्रीन में कोई सन्देश आता है, जिसे लपककर वे साथ में पढ़ रहे थे|

“मोहित का मेसेज – फोन क्यों नही किया इसने और न फोन ही उठा रहा है – बस इतना लिख दिया कि कुछ काम है रात हो जाएगी लौटने में – मेरा खाने पर इंतजार मत करना |” वे तीनों हैरान एक दूसरें का चेहरा देख रहे थे|

“पता नही क्यों मेरा सिक्स सेन्स कह रहा है कि कुछ तो बात हुई है उन दोनों के बीच|” वे दोनों चौंककर समर की ओर देखने लगे|

“पर दिन में जब बात हुई थी तो उसका मूड बहुत अच्छा था|” इरशाद कहता है|

वे तीनों इसपर आगे कुछ चर्चा करते उससे पहले टी वी जिस चैनल पर रुका था अब उसमें कोई तस्वीर के साथ न्यूज़ रिपोटर कोई खबर सुना रहा जिसपर अनयास ही उन सबका ध्यान केन्द्रित हो जाता है|

टी वी के परिदृश्य में अश्विन कुमार की तस्वीर के साथ उनके डूबते राजनैतिक गिरावट की खबर को उनके निजी जीवन के साथ जोड़कर बताया जा रहा था| ये देख जय की त्योरियां चढ़ जाती है|

“जय |” इरशाद जय के कंधे पर हाथ रखते हुए कह रहा था – “तुमने मानसी को बताया अश्विन भईया के बारे में ?”

“जिनसे मेरा कोई नाता नही उनके बारे में क्या कहना |” अनचाहा दर्द उसके चेहरे पर उभर आया|

“फिर भी बता दे यार – जरुरी है मानसी के लिए ये जानना भी |”

जय चुपचाप टी वी के परिदृश्य पर अपनी नज़र टिकाए रहता है मानों बरसों बाद वह उनका चेहरा अपनी भरपूर नज़र से देख पा रहा हो|

क्रमशः……..

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