
हमनवां – 49
जय खुद इरशाद के कमरे में शिफ्ट होकर अपना कमरा समर के पिता को दे दिया था क्योंकि समर उनकी ओर से उदासीन ही बना रहा| समर के पिता की अपनी दिनचर्या थी, वे जल्दी सो कर अलसुबह उठकर योग करते फिर चाय बनाने रसोई में आ जाते| पहले दिन ही उन्हें वहां देख समर के पैर वही जमे रह गए और जय और इरशाद की हंसी छूट गई क्योंकि समर के पिता सुबह की चाय और रसोई की खिड़की का भेद नही जानते थे|
आज छुट्टी का दिन था तो वे सबके लिए चाय बना रहे थे| वे रसोई से ही आवाज़ लगाते जय से कहते है – “मैं आज तुम लोगों को स्पेशल वाली अपनी चाय पिलाऊंगा |”
“स्पेशल कैसे अंकल !!” उत्सुकता से जय और इरशाद उनकी तरफ देखने लगे तो समर वही बैठा जानकर अख़बार में आंख गड़ाए उनकी ओर से बेखबर बना रहा|
“इसमें कुछ ख़ास जंगल की जड़ें और पत्ते है |”
“अंकल इसे पीकर हम जिन्दा तो रहेंगे न!!” अपनी मसखरी से जय माहौल को हल्का बनाने का प्रयास करता है|
“बदमाश |” वे मुस्करा देते है – “अब पहले तुम ही पियोगे – हा हा |”
वे पांच कप लेकर वही आ जाते है|
“ये मोहित नही उठा अभी ?” वे कमरे में एक नज़र दौड़ाते हुए पूछते है|
“नही अभी नही उठा – रात बारह के बाद आया था |”
“ओह बहुत समय लग गया आने में |”
“नहीं अंकल दिल्ली तो समय से आ गया था पर बाद में कहीं काम से रुका होगा – उठेगा तो पूछेंगे |”
“वाह अंकल – ये तो लाजवाब है |” तब तक इरशाद एक कप उठाकर उसे सुड़कते हुए बोल उठा तो सबका ध्यान उसकी ओर गया|
“ये ठीक है तूने पी लिया अब मैं पी सकता हूँ |” उसे कोहनी मार हँसता हुआ जय बोला तो वे भी हंस पड़े पर समर की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही हुई|
“ले समर तू भी पी न |” जय अब समर का अख़बार हटाकर एक कप उसके हाथों में जबरन पकड़ा देता है|
अब सभी चाय के घूंट भरते लगते है|
“तो बॉयज मैंने वो सारी फोटोस एक साथ एक फोल्डर में करके रख ली जो तुम लोग देखना चाहते थे – रात में तुम्हें ईमेल भी कर दिया – आराम से बैठना तो देखना – बहुत अच्छा लगेगा – गैलापागोस आइलैंड की शार्क और पेंगुइन भी है|”
“ओह थैंक्स अंकल – हम जरुर देखेंगे – पर आपने किया कैसे ?”
“मेरे बैग में कपड़ों से ज्यादा तो इलेक्ट्रिकल गैजेट है – आखिर यही तो आइलैंड में हमारा सहारा होते है – सारी जानकारी इनमें फीड होती है – और हाँ मानसी के लिए भी बहुत सारा मेटेरिअल रखा है – बाकी उसके अलावा वो जो पूछना चाहेगी – कभी भी ईमेल कर पूछ सकती है |”
उनके इस तरह कहते कहते समर की नज़र अब उनकी तरफ चली ही जाती है, जय और इरशाद भी उनकी तरफ देखने लगते है जैसे वे जो कहना चाह रहे थे वे भांप चुके थे|
“आप कहीं जा रहे है ?” इरशाद पूछ बैठा|
वे अबकी समर की ओर देखते है जिससे उनकी आपस में नज़र मिलते अब वह उनके विपरीत देखने लगता है, उन्हें पता था कि वे जो कहने की भूमिका बांध रहे है समर पहले ही जान चुका है|
“मेरा जाना जरुरी है – मेरे द्वारा संरक्षित एक पक्षी अपने अंतिम समय में है इसलिए कल ही मैं निकल जाऊंगा….|”
वे अपनी बात पूरी भी नही कह पाए और समर तेजी से वहां से उठ कर अन्दर की ओर जाने लगा|
“समर ..|” वे उसे पुकार कर रोकना चाहते थे पर समर उन्हें अनसुना कर चला गया| वे दोनों उनकी ओर अपना हाथ बढ़ाकर कह रहे थे –
“हम आपका काम समझते है अंकल पर इंगेजमेंट तक अगर आप रुक जाते तो बहुत अच्छा लगता – समर कहता नही पर वह आपका इंतजार करता है हमेशा|”
उस वक़्त उनका मन भी भर आया था, वे उनके हाथों पर अपना हाथ रखते हुए कहने लगे – “बहुत जरुरी है – इस रिपोर्ट पर विज्ञान की जरुरत टिकी है पर बच्चों मैं वादा करता हूँ कि मैं शादी में जरुर आऊंगा बस तुम तीनों तारीखे आस पास ही रखना |” वे एक गहरी मुस्कान से अपने अन्दर का दर्द छुपा ले जाते है|
“बिलकुल अंकल – आप आराम से जाइए – आपका काम भी जरुरी है हम समर को समझाते है |”
वे गहरा उच्छवास छोड़ते हुए समर के जाने वाले रास्ते की ओर देखते हुए कहते है – “शायद मुझे खुद जाना चाहिए उससे बात करने|”
वे दोनों भी अपनी आँखों से उनकी बात पर अपनी स्वीकृति देते है तो वे उठकर समर के कमरे की ओर चल देते है|
***
सुबह से अश्विन कुमार का मूड बुरी तरह से उखड़ा हुआ था, वे पीठ की ओर बांधें टहलते हुए गौतम की सुन रहे थे|
“आप करने क्या वाले है – सब तरफ खबर है आपने पार्टी छोड़ दी फिर अब क्या सोचा है आपने ?”
“मैं क्या करने वाला हूँ ये अभी तो मैं भी नहीं जानता – तुम बस ये बताओ कि ये किया धरा किसका है – शैली है कहाँ ?”
“शैली यहाँ है ही नहीं – मैंने सब पता करवा लिया – वह अपनी पुरानी जगह मुंबई भागकर वही छुपी है – असल में सारा किया धरा गिरधारी दुबे जी का है |”
इसपर रुककर वे अपनी तीक्ष्ण नज़र उसपर गड़ा देते है|
“आपकी जगह जिन्हें टिकट मिला है – लगता है पार्टी में बढ़ती आपकी साख़ उनसे हजम नही हुई इसी कारण ये सब सोची समझी साजिश के तहत किया गया और इसमें मदद ली गई है एक लोकल जर्नलिस्ट की – मानसी उपाद्ध्याय की |”
“अब ये कौन है ?”
“अभी तक यही पता चला है कि कमिश्नर की लड़की है – |”
“कमिश्नर की लड़की और जर्नलिस्ट !!”
“जी अब आप इसी बात से समझ लीजिए कि कमिश्नर की लड़की होते हुए भी एक अख़बार में काम करती है – सुना है बहुत जिद्दी टाइप की है – आसानी से बात नही सुनेगी|”
“पर मुझे भी अपनी बात मनवानी आती है – अब मैं सबसे छोटे मोहरे से अपनी चाल चलूँगा – |” कहते कहते उनके चेहरे पर नागवारी के आसार साफ़ नज़र आने लगे|
***
सुबह की रौशनी अभी तक उस कमरे में नही उतरी थी| शैफाली सब तरफ से कमरे को परदों की परतों से ढांपे अभी भी बिस्तर पर ऑंखें खोले पड़ी थी| अतिरेक सूनापन उसकी खुली आँखों में उतर आया था, जैसे बांध ने उफनती नदी को रोक रखा था आँखों के पीछे| फिर एक दम से कुछ ख्याल आते वह कमरे में कुछ खोजने उठ जाती है| कमरे में खोजते खोजते वह हर सामान उसकी अपनी जगह से हटा देती है, इससे अगले ही पल कमरे में इधर उधर कपड़े इत्यादि फ़ैल जाते है, आखिर काफ़ी खोजने के बाद उसके हाथों के बीच जिन की बोतल थी, जिसे अपनी हथेली के बीच संभाले कुछ पल तक वह उसे ताकती रही मानों खुद से किए वादे की वादाखिलाफी करने जा रही हो| वह बोतल लिए धप से बिस्तर पर बैठ जाती है| खुद को सही से बैठने में वह बिस्तर पर फैले कपड़े एक हाथ से हटाने लगती है तो एकाएक उसके हाथ किसी चीज से टकरा जाते है जिससे उस पल वह अपनी आंख उससे नही हटा पाती| वह परजाई जी का दिया वही फुलकारी वाला लांचा था| सहसा उसके चेहरे के भाव में बदलाव आते उसकी पलकें भिगो देते है| अगले पल वह उठकर बोतल को खोल सारा वाशबेसिन की नाली में बहा कर सिसककर रो पड़ती है फिर कब तक रोई और कब उसकी आंख लग गई उसे अहसास भी न रहा|
भावना बहुत देर तक शैफाली के खुद बाहर आने का इंतजार करने लगी, आज छुट्टी का दिन था पर पवन किसी काम से बाहर थे इससे उसका वक़्त और काटे नही कट रहा था, पहले उसे लगा कि शैफाली सफ़र की थकी है तो उसे सोने देते है पर दोपहर होते उससे नही रहा गया और वह शैफाली के रूम के बाहर खड़ी दस्तक देने लगती है|
बहुत देर की दस्तक के बाद शैफाली दरवाजा खोलती है| भावना अन्दर आते एक सरसरी निगाह से कमरे के अँधेरे में उस कमरे की उथल पुथल देख सन्न रह जाती है| शैफाली निढाल सी बिस्तर के कोने में घुटनों में मुंह ढांपे बैठी थी| ये देख भावना झट से उसके पास आती उसका चेहरा अपने हाथों से उठाती हुई पूछती है – “क्या हुआ ?” भावना उन नीली शुष्क आँखों को देख घबरा जाती है – “हुआ क्या शैफाली – तुम्हारी ऑंखें इतनी लाल क्यों है – रात भर सोई नही क्या – हुआ क्या है कुछ बताओ तो !!!”
शैफाली अपनी पलकें झुका लेती है|
“तुम तो खुश थी न वहां – कोई बात हुई है मोहित के साथ – या कुछ और – मुझे बताओगी तभी तो मैं समझूंगी |” भावना परेशान हो उठी थी|
शैफाली आंखे उठाकर भावना के चेहरे को देखती है जहाँ ढेर अपनापन था, चिंता थी उसके लिए, वह बेचैन होती एकदम से उसके गले लग कर उसके कन्धों के सुकून में कुछ अश्क बहा लेती है| कुछ पल तक भावना उसे अपनी पनाह में ऐसे ही रहने देती है फिर धीरे से उसका चेहरा अपने हाथों में समेटती उसकी रुआंसी आँखों को पोछती हुई गौर से देखती है जहाँ बहुत कुछ अनकहा ही उसे समझ आ रहा था और बहुत कुछ अनबूझा सा लग रहा था|
भावना उसकी आँखों में झांकती हुई आखिर पूछ लेती है – “तुम मोहित को पसंद करती हो ?” पूछने तक वह उन आँखों में भी उसका जवाब तलाशती रहती है पर शैफाली ख़ामोशी से बस देखती रही तो भावना फिर अपना प्रश्न करती है – “बोलो करती हो पसंद ?”
“करती तो मैं खुद को भी नही पसंद थी पर करने लगी न |” वह जैसे खुद पर ही हंसती हुई कहती रही – “खुद को खत्म कर रही थी धीरे धीरे – न जाने क्यों मुझे जीने की चाह दे दी और फिर….|” वह कहते कहते खामोश हो गई|
“मैं बात करुँगी मोहित से |”
“नही |” जैसे करंट सा दौड़ गया उसकी नसों में – “शैफाली ने कभी किसी से न मिन्नतें की न किसी का अहसान लिया – |”वह उठकर खड़ी होती अपनी हथेली से आंसू पोछती हुई कहती रही – “जब किसी को कुछ पूछना नहीं तो मुझे भी कुछ कहना नहीं इसलिए अब इस शहर में मुझसे नही रहा जाएगा |”
भावना उठकर उसके कंधे पकड़ जैसे झंझोड़ती हुई बोली – “क्या कह रही हो मुझे समझाओ तो !”
शैफाली भावना के हाथ अपने कन्धों से हटाती हुई कहती है – “अब अगर और मैं यहाँ रुक गई तो पुरानी शैफाली होने से खुद को बहुत देर नही रोक पाऊँगी -|”
“पर जाओगी कहाँ ?”
“कहाँ !!” जैसे खुद कहकर अब सोचने लगी, फिर कुछ पल सोचकर कहती है – “लन्दन वापस चली जाउंगी |”
“तुम एडवर्ड के पास जाना चाहती हो !!”
“जिस राह से मैं गुजर जाती हूँ दुबारा वहां नही लौटती और रही बात लन्दन की तो बहुत बड़ा है वो शहर वो मुझे अपने अन्दर समा भी लेगा और छुपा भी लेगा |” कहकर वह धीरे से हंस दी|
भावना उसका चेहरा देखती रह गई|
क्रमशः………