
हमनवां – 51
समर के डैड के जाते जय अपनी नाईट ड्यूटी से वापिस आया ही था कि मोहित को निकलते देख उसे टोकते हुए बोलता है – “इतनी जल्दी कहाँ जा रहे हो ?”
“स्कूल और कहाँ |”
वह सपाट उत्तर देता अपनी कार की तरफ बढ़ जाता है तो उसे रोकते जय तेजी से उसके पास आता उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कहने लगा –
“मोहित बात क्या है – जब से वापिस आए हो हमसे कटे कटे रह रहे हो – बात क्या है ?”
“बात क्या होगी !!”
“हाँ वही तो पूछ रहा हूँ – हमे लगा कि शैफाली और तुम्हारे बीच कुछ बात बढ़ेगी पर लग रहा है बात वही की वही है – आखिर बात क्या है ?”
“कोई बात क्यों होगी – वो कुछ पल बिताने गई थी बस और क्या और अब वो अपने रस्ते और मैं अपने बस – |” कंधे से हाथ हटाते वह कार की ओर बढ़ जाता है तभी दूर से आती मानसी उन्हें आवाज़ देकर रोकती है|
मोहित अब रूककर मानसी की ओर देखता है जो उन्हीं की ओर चली आ रही थी, इससे पहले वह कुछ कहती मोहित उसकी ओर देखता हुआ कहने लगा – “मानसी मानव को भेज देना – रोज दो टीन घंटे समय देकर उसकी पढाई भी कवर करनी है|”
मोहित ने बड़ी गंभीरता से कहाँ मानसी उतने ही हलके लहजे में चहकती हुई बोली – “मानव आजकल वापिस कोचिंग जाने लगा है पर हाँ तुमसे पढ़ने को बड़ा उत्साहित रहता है – सुनेगा तो भागा चला आएगा |”
“ठीक है |” सपाट भाव से कहता मोहित झट से कार में बैठकर निकल जाता है और दोनों अवाक् देखते रह जाते है|
“इसे क्या हुआ !!” मोहित की ओर इशारा कर मानसी अवाक् जय की ओर देखने लगी|
“पता नही परसों से यही लटका मुंह देख रहा हूँ – कुछ बताता ही नहीं कि शैफाली और इसके बीच क्या हुआ ?”
“अरे कुछ नही – मैं जानती हूँ कि हुआ क्या होगा |”
मानसी की बात सुन जय अब हैरानगी से उसकी आँखों में देखने लगा|
“अब प्रपोज नही करोगे और मन ही मन कुढ़ते रहोगे तो यही होगा न पर मोहित को ये कौन समझाए कि लड़की देशी हो या विदेशी खुद तो आगे आकर नही कहेगी न कि मुझसे शादी करो – ये मोहित भी न प्यार के मामले में बिलकुल बुद्दू ही निकला – लगता है अब शैफाली से मिलकर उसे ही समझाना पड़ेगा |” एक ठंडी आह छोडती हुई मानसी जय की ओर देखती है जो अब उसकी ओर देखता मन मंद मुस्करा रहा था|
“कोई हम सा कहाँ – हम तो आपके पीछे दीवाने हुए घूमते है|” कहते कहते जय एक दम से बढ़कर उसका गाल चूम लेता है जिससे वह एकदम से उछल ही पड़ती है|
“ये क्या था !!”
“जो भी था अब उसे वापिस करो |” अपनी दिलचस्प नज़रे उसके चेहरे पर गड़ा देता है |
“बिलकुल नही |” वह खिलखिला कर उससे पीछे हटती हुई चहकी|
“देखो ये गलत है मैं उधारी पसंद नही करता |”
“उधारी तो सगाई वाले दिन चुकाउंगी वो भी सूद समेत |” कहती हुई वह वापिस जाने लगी तो जय सीने पर हाथ बांधें अपनी भरपूर नज़र से मुस्कराते हुए उसकी ओर देखने लगा|
***
अचानक समर ऋतु को हॉस्पिटल में देख चौंक जाता है, वह इस समय अपने केबिन में अकेला था और वहां आती ऋतु एक टिफिन उसके सामने रखती हुई कह रही थी – “ये लीजिए लंच |”
“इसकी क्या जरुरत थी ऋतु – मैं हॉस्पिटल में भी कर लेता हूँ न |” वह अभी भी हैरानगी से उसकी मुस्कराती आँखों को देख रहा था|
“जी नही – अब इस टिफिन की आदत डाल लीजिए डॉक्टर साहब – रोज रोज हॉस्पिटल का खाना नही चलेगा|”
“तो क्या रोज आओगी तुम !!”
समर की गहरी होती मुस्कान पर ऋतु शरमा कर टिफिन खोलकर उसके सामने सजाने लगती है – “आना ही पड़ेगा |”
समर वही बैठा अब उसकी ओर अपनी नज़रे जमाए था जिसे जानकर अनदेखा करती वह खाना उसके सामने परोस रही थी, यही वक़्त था जब दिव्या उस केबिन में प्रवेश करती करती एकदम से थम जाती है अब दोनों की निगाह उसपर जाती है जिससे मामला समझती वह सकपकाती हुई कह उठी –
“तो इस खाने में मेरा हिस्सा तो होगा न !!”
“हाँ हाँ क्यों नही डॉक्टर दिव्या – आईए न -|” ऋतु झट से आगे आती उसका हाथ थामती उसे अन्दर लाती कह रही थी – “आपके लिए तो मैं कुछ भी कर लू तब भी आपका अहसान नही उतार सकती |”
दिव्या हैरान ऋतु का सहज चेहरा देख रही थी|
“आपने बुआ जी का जीवन बचाकर मुझे आपका सदा का ऋणी बना लिया |”
“वो तो मेरा फर्ज था ऋतु जी |”
“आप बहुत अच्छी है दिव्या जी – आपने जो उनकी सेवा की कोई अपना ही कर सकता है|”
दिव्या ऋतु के चेहरे की सौम्यता तो समर के चेहरे की मुस्कान देखती हुई धीरे से कहती है – “आप भी बहुत अच्छी है आखिर डॉक्टर समर की ख़ास पसंद जो है आप |”
ये कहती दिव्या देखती है कि ऋतु और समर की निगाह आपस में मिलकर खिल उठी थी, ये देख वह भी धीरे से मुस्करा देती है|
***
सभी घरों में मंगनी की तैयारियां जोर शोर से हो रही थी मानसी भी घर आकर देखती है कि उसके घर पहुँचने से पहले ही उसके मौसा जी आकर उसका अपनी बांह फैलाकर स्वागत कर रहे थे, वह भी बच्चों सी उन्ही बांह में समा जाती है|
“अरे मेरी प्यारी बच्ची इतनी बड़ी हो गई कि हमे छोड़कर चली जाएगी |” वे उसका चेहरा अपनी हथेली के बीच लेते हुए कह उठे|
“आप लोग ही तो निकाल रहे है – मैं कहाँ जा रही |”
“अच्छा तो ठीक है – मंगनी कैंसिल |”
ये कहते वे मानसी का अवाक् चेहरा देख कसकर हंस पड़े फिर अपनी पॉकेट से कोई दो डिब्बी निकलकर उसकी आँखों के सामने दिखाते हुए कहते है – “ये देखों दोनों अंगूठी कैसी है – तुम्हारी मौसी ने जाने कितनी दुकानों के चक्कर कटवाए तब जाकर ये पसंद किया |”
दोनों अंगूठी देख मानसी अपने चेहरे की खुशी किसी तरह से छुपाती हुई बोली – “ठीक है पर मौसी जी क्यों नही आई |”
“उन्होंने कहाँ है हम सब शादी में आकर धूम मचाएँगे अभी उनकी तबियत थोड़ी ठीक नही थी इसलिए नही आ पाई पर देखो मौसा जी तो आ गए और हाँ ये दोनों अंगूठी दिखा देना जय को – कहीं न पसंद हो तो भी बदलवा देंगे|”
एकदम से अपने चेहरे के भाव कड़क करती वह कहती है – “उसकी वाली भी आप क्यों ले आए – वह अपने हिस्से की अंगूठी खुद लाता|”
“अरे उसके माता पिता होते तो वो करते – अब हमी को दोनों ओर से सारे फर्ज करने होंगे न – |”
ये सुन मानसी ख़ुशी से उनके कंधे पर झूलती हुई कह उठी – “थैंकयू मौसा जी – आप सच में बहुत अच्छे है – तो मैं दिखा दूँ अंगूठी !!”
“नही बुलाओ उसे अब तो सामने उसे देखेगे हम तब तय करेगे की अंगूठी दिखानी की नही |” कहकर वे कसकर हंस पड़ते है जिससे मानसी के चेहरे कर ह्या की लाली छा जाती है|
***
एक वो दिन भी आ गया जिसका उन बेचैन दिलों को इंतजार था| गेस्टहाउस में सारे मेहमान जुटने लगे, सगाई में घर के अलावा खास लोगों को ही आमंत्रित किया गया था पर गाँव में दार जी की तबियत खराब होने से वहां से कोई नहीं आ सका था|
चारों ओर सजावट का वो आलम था कि देखने वाला एक बार उसे नज़र भर कर जरुर देखता, सभी के एकत्रित होते अब सबकी निगाहों को ऋतु, नूर और मानसी का बस बेसब्री से इंतजार था| वे साथ में पार्लर में मौजूद थी| उसके साथ भावना भी थी|
नूर ने गुलाबी शरारा तो ऋतु ने प्यासी रंग का लहंगा पहन रखा था, मानसी ने श्यामा तुलसी के रंग जैसा गहरे हरे व बैगनी के मिश्रित रंग का लॉन्ग स्कर्ट हलके दुपट्टे से लेकर खुद को सजा रखा था| वे तीनों साथ में तैयार एक दूसरें का हाथ थामे आईने में खुद को ही देख शरमा गई थी, वे नहीं जान पाई आज के खास दिन उनके चेहरों पर खिलकर आया है या पार्लर ने ही उन्हें कुछ ज्यादा खूबसूरत बना दिया है|
एक साथ मौजूद होते हुए भी कोई कमी सी उनके चेहरे पर तारी थी, भावना के कंधे को अपने दोनों हाथों से थामे मानसी कह रही थी – “आज देखना उन दोनों को पकड़ कर न कैसे मिलाती हूँ मैं –|”
“वो वापस जा रही है मानसी |” भावना अपने चेहरे की उदासी बहुत देर छुपाए न रखे रह सकी|
“काश शैफाली भी हमारे साथ होती|” ऋतु एक ठंडी आह के साथ कह गई|
“ऐसे कैसे – हम जाने देंगे तब न |”
तभी मानसी के मोबाईल की मेसेज टोन जो कुछ कुछ पल बाद बार बार बज उठती जिसे वह देखती धीरे से मुस्करा देती|
“ओहो जरा कह दो बेक़रार दिल से अभी कुछ वक़्त है |” ये सुनती मानसी के चेहरे पर हया की लाली और गहरी हो उठती है|
पार्लर वाली अभी बस उनके बाल संवार रही थी, मानसी अपने बालों को बस हलके से किनारे समेटती हुई कहती है – “अब और ज्यादा तैयार किया न तो पक्का मैं चल भी न पाऊँगी|” ऋतु के लम्बे बालों को गूंथते गूंथते पार्लर वाली मुस्कराती हुई मानसी को देखने लगी थी|
कहती हुई मानसी चुपचाप उन सबकी नज़रों से बचती उनका इंतजार करने रिसेप्शन की ओर चल देती है|
कार के आते ऋतु, नूर और भावना पार्लर से बाहर आकर देखती है कि मानसी वहां मौजूद नही थी, रिसेप्शनिस्ट से पता चला कि वह पहले आने वाली कार से जा चुकी है, वे एक दूसरें को मुस्करा कर देखती हुई बोल पड़ी – “लगता है ये जय का काम है|”
आखिर वे सारी गेस्टहाउस पहुँचती है, सबकी इंतजार में बिछी ऑंखें उन्हें देख खिल उठती है| पर ये क्या जय को देख सभी मानसी की नामौजूदगी के बारे में पूछने लगते है| अगले ही पल ख़ुशी के माहौल में जैसे गाज़ आ गिरती है, मानसी कहाँ है किसी को पता नहीं था, वहां से वह किसके साथ गई अब इसमें प्रश्न उठने लगा था| वे सभी घबरा कर एक दूसरें का चेहरा देखने लगे|
हँसते, खिलखिलाते चेहरों को जैसे खुद की ही नज़र लग गई, वे सभी उदास हो उठे, जय को कुछ समझ नही आया वह बस आनन् फानन मानसी को खोजने तुरंत वहां से निकल पड़ा| अब बीतते पल के साथ सबके चेहरों पर दहशत दिखलाई पड़ने लगी, कमिश्नर साहब ने भी अपनी बेटी की गुमशुदी पर पुलीस की पुलिस दौड़ा दी| एक ही पल में खुशियाँ हताशा में बदल गई|
***
पूरी रात सभी की आँखों की नींद उड़ गई, जिसे जहाँ समझ आता वहां मानसी को खोजने चला जाता| जय पार्लर जाकर हंगामा मचा चुका पर सफ़ेद फियट से उसके जाने के अलावा किसी को कुछ पता नही चला| हर नाका, चौकी में खबर कर दी गई| सब जगह हर सफ़ेद फियट को संदिग्ध करार कर दिया गया|
सुबह होने को थी और जय पूरी रात मानसी की तलाश में यहाँ तहां भटकता रहा था| ऐसे माहौल से बाकी की मंगनी भी रस्म भी धरी की धरी रह गई थी, कुछ समय पहले जो घर खुशियों में झूम रहे थे, अब वहां दुःख की परछाई छा गई थी, सभी को बस मानसी की वापसी की चिंता थी कि वह जाने कहाँ और कैसे हालात में होगी ??
क्रमशः……..