Kahanikacarvan

हमनवां – 52

सुबह होने को थी और शहर में प्रवेश करने वाले आखिरी टोल में काफी भीड़ थी पर अश्विन कुमार की सफ़ेद सरकारी गाड़ी आसानी से वहां से निकल कर अब शहर में प्रवेश कर गई थी| आगे क्रोसिंग पर कार के रुकते सड़क पर दौड़ता एक लड़का अख़बार उनकी तरफ लहराता है तो वे मुस्कराते हुए अख़बार लेते हुए एक बड़ा नोट पकड़ा कर आराम से अख़बार का मुख्य पृष्ठ देखने लगते है|

उन्हें मुख्य पृष्ठ पर आने वाली खबर का पहले से अंदाजा था जिससे खबर के चित्र को वे घूर कर बस देखे जा रहे थे कि सहसा मानसी की तस्वीर के साथ जय की तस्वीर थी जिसे देखते उस पल उन्हें लगा मानों उन्हीं धड़कन ही रुक गई हो| ये सच था पर उनकी ऑंखें इस सच को स्वीकार नही कर पा रही थी| वे कई बार खबर को पढ़ डालते है, वही नाम वही तस्वीर कुछ भी नही बदलता, इससे घबराहट से पसीना उनके चेहरे को तर बतर कर देता है|

वे ड्राईवर को जितना तेज चला सकने को कहते है उससे भी तेज चलाकर घर पहुँचने का हुक्म देते है|

***

अश्विन कुमार तूफान की तरह अपने घर में दाखिल होते है| गौतम उनके सामने दौड़ कर आता उन्हें मानसी के बारे में खबर देता है, अगले ही पल एक तेज तमाचा उसके गाल पर पड़ते पूरे कमरे को जैसे हिला देता है| वे अख़बार का मुख्य पृष्ठ उसकी आँखों के सामने पटककर उससे पीठ करके अपने गुस्से  को जब्त करते खड़े हो जाते है|

गौतम एक सरसरी नजर में सब खबर देख, समझ भी लेता है, उसे अपनी भूल का अहसास होते वह उनके पैरों की तरफ गिरता हुआ हाथ जोड़ लेता है|

“मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई..|”

“गलती |” वे गुस्से में जबड़ा दबाते हुए चीखे – “गुनाह करा दिया तुमने मुझसे |”

वे उसकी तरफ से हटते अब दूसरी तरफ खड़े अपने हाथ मलते हुए खड़े कहने लगते है – “आखिर तुमसे कैसे इतनी बड़ी भूल हो गई – क्यों नही पता किया उसके बारे में सब – कहाँ है मानसी – कैसी है ?”

“रात भर बेहोश थी – अभी होश में आई है – वह अभी भी कमरे में बंद है|” वह सर झुकाए कह रहा था|

“तुरंत उसे बाइज्जत घर भेजो – तुरंत |” वे अपने भींचे हुए दांतों से बस यही कह पाए|

“जी..|” गौतम तुरंत वहां से उठता घर के उस गुप्त कमरे की ओर चल देता है जहाँ मानसी कैद पड़ी थी|

***

होश में आते मानसी उस अँधेरे कमरे में टटोलकर पहले अपनी हालत फिर उस कमरे का जायजा लेने लगती है, जब तक वह वहां से वाकिफ होती एक तेज आवाज़ के साथ उस कमरे का दरवाजा खुल जाता है| मानसी की ऑंखें एक दम से अँधेरे से रौशनी में आने से चमत्कृत हो उठती है| दरवाज़ा खोलकर  एक आदमी किनारे खड़ा हो जाता है, मानसी कुछ समझ नही पाती| दरवाजे के पार गौतम सर झुकाए खड़ा था| मानसी धीरे धीरे दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी|

“कौन हो तुम लोग और इस तरह से क्यों बंद कर रखा है मुझे – देखो अभी तुम लोग जानते नही हो कि मैं कौन हूँ – मुझे जाने दो |” मानसी अहिस्ते अहिस्ते दरवाजे की ओर बढ़ रही थी, उसे लग रहा था कि वे उसे रोकेंगे पर किसी ने जब उसकी ओर नहीं देखा तो वो दरवाजे से बाहर निकल गई|

वह सकपकाई धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, वह देखती है कि दरवाजे के  बाहर खड़ा आदमी अब उसके आगे आगे चलता जैसे उसका मार्ग प्रशस्त कर रहा था, इससे बाहर की ओर निकलती वह एकदम से चिहुक कर कह उठी –

“तुम लोग मुझे कहीं और ले जा रहे हो -!!” वह चौंक कर अपने  आस पास उस कमरे की दीवारों और आगे के रास्ते को देखती रही|

वह डर कर वही थम गई तो गौतम उसकी तरफ मुड़ता हुआ सर झुकाए कह रहा था – “आपको आपके घर ले जा रहे है – चलिए|”

“अगर ऐसा है तो क्यों लाए यहाँ मुझे -|” वह डरकर वही थमी रहती है – “मुझे तुम लोगों पर कतई विश्वास नही –|” मानसी वहां से जाने से इंकार करती वही खड़ी रहती है|

“प्लीज़ चलिए आप – आपको आपके घर ही ले जाने वाले है |” गौतम लगभग गिडगिडाते हुए बोला|

पर मानसी न में सर हिलाती वही खड़ी रहती है, बार बार गौतम के कहने पर भी जब मानसी वहां से नही हिलती तो खीजते हुए एकदम से अश्विन कुमार वहां आते हुए कहते है – “सुनती क्यों नही किसी की – जाओ – तुम्हें तुम्हारे घर ही छोड़ने वाला है |”

वहां पर एकदम से अश्विन कुमार के आते मानसी हतप्रभ उन्हें देखती रह जाती है|

“तुम – तुम अश्विन कुमार हो – ओह तो ये सब तुम्हारे इशारे पर हो रहा है – तो अब क्या डर गए – समझ गए न कि मैं कौन हूँ |”

“तुम..!!” वे बुरी तरह से झल्ला उठे – “भगवान् के लिए अभी जाओ अपने घर|” कहकर वे तेज तेज डग भरते हुए बाहर की ओर चल देते है|

मानसी हतप्रभ खड़ी अगले क्षण कार के इंजन की आवाज सुनती है|

“चलिए आप |”

अब मानसी उसके कहने पर उसके पीछे पीछे चल देती है|

***

गौतम खुद कार ड्राइव कर मानसी को ठीक उसके घर के सामने छोड़कर तुरंत वापास चला जाता है, वहां मौजूद पुलिस जब तक कुछ समझती कार जा चुकी थी और मानसी उनके सामने खड़ी थी| घर वापस आते वह लगभग दौड़ती हुई अन्दर आती है, अन्दर मुख्य कमरे में कमिश्नर साहब और मौसा जी सर पर हाथ धरे बैठे थे|

“पापा..|”

मानसी की पुकार पर कुछ पल तो उन्हें विश्वास नही आया फिर मारे ख़ुशी के वे अपनी बांह फैला देते है जिसमें बच्चों सी मानसी समा जाती है|

“पापा…|”

“कहाँ थी बेटा तुम !!”

“पापा मेरा किडनेप हुआ था |”

मानसी के ये कहते वे दोनों हैरान उसकी तरफ देखने लगे|

“किडनेप किसने और क्यों ?” वे हैरान अभी भी मानसी को थामे पूछ रहे थे|

अब तक मानसी के घर आने की खबर जय तक पहुँच चुकी थी, वह तेजी से कमिश्नर के बंगले तक आता झट से अन्दर प्रवेश करता है| इस वक़्त न उसे किसी प्रोटोकॉल का ख्याल रहता है न अपनी बिखरी हालत का| अभी तक वह उसी हालत में वह था, शेरवानी के सीने तक बटन खुले थे, बाल यत्र त्रत बिखरे हुए थे, वह तेजी से अन्दर आता मानसी की ओर बढ़ता उसके कंधे थाम उसे अपनी ओर करता हुआ पूछ बैठता है – “कहाँ थी तुम ??” उसकी बेचैनी उसके शब्दों में उतर आई|

“मेरा किडनेप किया गया था – |”

“किसकी इतनी हिम्मत |” कहते हुए जय की ऑंखें जल उठी|

“अश्विन कुमार |” मानसी बताती है तो जय के हाथों का कसाव ढीला पड़ जाता है, उस पल उसे लगता है जैसे उसके कानों में बारूद का धमाका कर दिया गया हो|

अब मानसी अपने पिता की तरफ मुड़ गई थी|

“पापा वो अश्विन कुमार ही थे – विधायक अश्विन कुमार |”

“पर उसे तुमसे क्या लेना देना !” कमिश्नर साहब के साथ औचक मौसा जी की भी आँखों में यही प्रश्न उमड़ने लगा इससे मानसी के शब्द थोड़े लचर हो उठे|

“वो पापा मैंने क्राइम रिपोर्टिंग में उनके नाम से बहुत कुछ निकाला था – उसी से नाराज़ होकर…|” मानसी अपने शब्द अधूरे छोड़ती आगे तेजी से कहती है – “पर लगता है पहले पता नही होगा कि मैं कौन हूँ देखिए तभी सुबह होते तुरंत मुझे घर वापस भिजवा दिया – न कुछ मुझे बोला – न धमकाया – डर गया होगा जरुर |”

मानसी अपनी बात कहते कहते पीछे जय की ओर नहीं देख पाई थी जिसके चेहरे के भाव अब बहुत तेजी से बदल रहे थे| जय के पीछे अभी अभी आया इरशाद वही देहरी पर खड़ा सब ख़ामोशी से सुन रहा था|

“पर उसने ऐसा क्यों किया ?” मौसा जी अभी भी परेशान से मानसी को देख रहे थे|

“क्योंकि वे मेरे बड़े भाई है |” जय धीरे से ऑंखें नीचे किए कहता है|

उसके कहते सभी की नज़रे अब उसी पर ठहर कर रह जाती है|

***

“क्या !!!” मानसी जय की ओर पलटती अब उसके चेहरे पर अपनी नजर गड़ा देती है| 

“क्या कहा – तुम्हारे भाई – तुम्हारे बड़े भाई विधायक अश्विन कुमार है !!”

जय के मुंह से बोल नही फूटते बस वह उनकी तरफ बिना देखे हांमी में सर हिला देता है|

ये सुन मानसी की जैसे चेतना गुम होने लगती है, उसे उस पल लगता है जैसे वह किसी मकड़ जाल में उलझ सी गई है जहां से निकलने का कहीं कोई रास्ता नही, उसे लगने लगा जैसे अपने सामने खड़े शख्स को अब वह बिलकुल भी नही जानती|

“तुमने ये बात मुझे आज तक नही बताई |”

“मानसी सुनो मेरी बात – मेरा उनसे अब कोई नाता नही – उनके मेरे रास्ते बिलकुल अलग अलग है –  तो.. |”

“तो !!!” मानसी चिल्ला पड़ी| उसकी आँखों में विश्वास जलकर राख में तब्दील हो चुका था|

सब मौन उसका तमतमाया चेहरा देखते रहे|

जय कुछ समझाने अपना हाथ फिर उसकी तरफ बढ़ाता ही है तो….मानसी खुद पर से काबू खोती जय के गाल में थप्पड़ मार बैठती है…सब सन्न रह जाते है…वक़्त की किरचे उनके चारों ओर बिखरकर रह जाती है| जय को लगा जैसे हजारों कांच एक साथ उसके अगल बगल टूट गए हो और उनकी किरचे उसकी आँखों में चुभ रही हो| उस पल के बाद मानसी अपने उफनते आंसू नहीं रोक पाती और अन्दर की ओर भागती हुई जाने लगी कि रास्ते में इरशाद से उसकी ऑंखें मिलते वह उसकी ओर अपनी घूरती हुई आँखों से देखती हुई बस इतना कहती है – “तुम्हें भी पता था !!!”

इरशाद आंख नीची कर लेता है, मानसी सिसकती हुई चली जाती है|

जय के लिए इस वक़्त वहां खड़े रहना ही बहुत भारी गुजर रहा था, किसी तरह से उस वक्त को जब्त करते वह कमिश्नर की तरफ देखता हुआ कहता है – “सर आप वारेंट जारी कर दीजिए मैं खुद एम्एलए अश्विन कुमार को गिरफ्तार करने जाऊंगा |”

कमिश्नर सपाट भाव से जय की ओर देखते हुए कहते है – “वो सब मैं देख लूँगा कि क्या करना है एंड यू कैन गो नाउ |”

एक पल सन्न चेहरे से जय उनकी तरफ देखता फिर सैलूट कर तेज तेज डग भरता वहां से निकल जाता है उसके जाते पीछे पीछे इरशाद भी चला जाता है|

उन्हें जाता देख अब कमिश्नर और मौसा जी एक दूसरें को देखते उच्छ्वास भरते वही बैठ जाते है|

“ये सब क्या हो गया ?” उनके स्वर में हताशा झलक आई|

ये सुनकर कमिश्नर साहब उनके कंधे पर हाथ धरते हुए कहते है – “आप परेशान मत होइए – मेरे हिसाब से जीजी की तबियत ठीक नही है तो आप वापस चले जाइए बाकि यहाँ की जो खबर होगी वो मैं आपको देता रहूँगा |”

“कहीं जय हमारी भूल तो नहीं !!”

“ये जानकर तो मैं भी हैरान रह गया आखिर जय ने इतनी बड़ी बात बताई क्यों नही – पर एक मन कहता है कि इसके पीछे उसका धोखा देना तो मंशा नही होगी और बात का सच क्या है वो तो मुझे अब पता करना ही होगा और रही बात जय की तो उसका प्रोफेशनल पोर्टफोलियो तो बहुत अच्छा है – बल्कि डीआईजी साहब तो उसका स्पेशल पुलिस में प्रोमोशन करने वाले है |”

“पर मुझे तो मानसी की चिंता हो रही है -|”

कमिश्नर साहब परेशान बैठे मौसा जी को दिलासा देते हुए कहते है – “भाई साहब चिंता तो मुझे भी है पर कहीं न कहीं कुछ गलत मानसी से भी हुआ है क्योंकि जहनी तौर पर तो नही पर जितना मैं अश्विन कुमार को जानता हूँ उसका मेरी जानकारी में कोई आपराधिक रिकोर्ड नही है – राजनीति में बड़ी उजली छवि रही है पर आजकल वे बड़े राजनीतिक उतार चढ़ाव से गुजर रहे है और ऐसे में अगर ये इतना बड़ा कदम उठाते है तो ये कोई साधारण बात नही हो सकती इसलिए अब इसके पीछे तक की सच्चाई जाने बिना मैं कोई कारवाही नहीं करूँगा |”

ये सुनते मौसा जी गहरा शवांस खींचते ऑंखें मूंदे सोफे की पुश्त से पीठ सटा लेते है|

क्रमशः……..

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