Kahanikacarvan

हमनवां – 53

अब तक मानसी की वापसी की खबर सब तक पहुँच चुकी थी सब उससे मिलना चाहते थे पर मानसी किसी से भी मिलने से इंकार कर देती है| मंगनी की रस्म तीनों जोड़ों की अधूरी रह गई पर वक़्त और हालात को देखते हुए न नजमा आपा न नूर के अम्मी अब्बू और न बुआ जी कोई भी इस बाबत कुछ न कह सका| सभी के अरमान वक़्त के झंझावात में उलझ कर रह गए थे| शैफाली पवन के साथ वहां आने को बड़ी मुश्किल से राज़ी ही हुई थी कि ये खबर आ गई और फिर से उसने जैसे खुद को कमरे तक सीमित कर लिया|

वक़्त सबके दिलों में एक सा भारी गुज़र रहा था, किसी को कुछ कहते और न करते बन रहा था| जय घर वापस न जाकर अपनी ड्रेस मंगवा लेता है फिर वहां से निकलकर सीधे पार्लर के सीसीटीवी से उस कार का पता कर उस आदमी को उठाता है जो उस रात कार लेकर वहां आया था|

जय बिना किसी सरकारी रिपोर्ट के उसे उठाकर जेल में लाकर बंद कर बुरी तरह से मार रहा था, मारते मारते उसका शरीर घायल और जय पसीने पसीने हो गया पर हर बार गिडगिडाते हुए बस एक ही बात बोलता रहा कि उसे नही पता कि गाड़ी के पीछे कौन था, उसे बस वहां तक कार ले जानी थी और उसने उनके बताए किसी सुनसान रास्ते पर कार रोक दी| उसका बयान रिकॉर्ड कर अब उस आदमी की खोज में निकल जाता है जिसने मानसी का किडनेप किया था|

***

अश्विन कुमार के लिए एक एक क्षण किसी पाषाण सा गुज़र रहा था| उन्हें इस बात का मलाल तो था कि जय ने भलेहि अपनी ख़ुशी में उन्हें शामिल नही लिया लेकिन उनकी वजह से ही आज ये रिश्ता सवालियां नज़रों में आ गया ये उन्हें कतई गवारा नही हो रहा था| उन्हें पहले पहल इंतजार था कि शायद अब इसके बाद खुद पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आएगी पर कहीं कुछ हरकत न देख वे और परेशान हो उठे लेकिन उनकी इतनी भी हिम्मत नही थी कि जय के सामने जाकर अपनी कोई सफाई पेश कर सके| आखिर वे खुद कमिश्नर के ऑफिस आ जाते है|

कमिश्नर साहब अश्विन कुमार को अपने सामने हाथ जोड़े खड़े देख सपाट लहजे में उन्हें बैठने का संकेत करते है|

“एक मुजरिम होने के नाते मैं आपके सामने कैसे बैठ सकता हूँ |” कहते हुए उनके चेहरे में ग्लानी का भाव उभर आया|

कमिश्नर उनकी ओर देखते रहे|

“अपने पद के मद में चूर मैंने जो किया वो अपराध ही था वो मानसी नही कोई और भी होती तब भी वो गलत ही होता इसलिए वक़्त ने मेरा मद चूर चूर करने मुझे ऐसे हालातों में लाकर खड़ा कर दिया कि अपने ही छोटे भाई की नज़रों में मुझे गुनाहगार बना दिया इसलिए मैं आपके समक्ष एक अपराधी की तरह खड़ा अपने लिए सजा की गुहार लगा रहा हूँ मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ अब आप जो चाहे सजा दे पर मेरे कारण जय की ओर से अपना मन मलिन न करे |” वे अभी भी हाथ जोड़े आद्र मन से कह रहे थे|

कमिश्नर साहब अपनी कुर्सी से उठकर घूमकर उनके सामने खड़े होते हुए कहने लगे –

“जय से होने वाले रिश्ते और कानून दोनों मेरे लिए अलग अलग है और रही बात सजा देने की तो सजा देना मेरे अधिकार क्षेत्र में नहीं – कानून की नज़र में सब समान है – मैं तो कानून का रक्षक हूँ और मेरे अधिकार क्षेत्र में यही है कि कुछ भी कानून की सीमा के बाहर न हो ताकि अपराधी कानून के शिकंजे से न बच सके लेकिन साथ ही मुझे ये भी देखना होता है कि बेक़सूर भी कानून के लपेटे में न आ जाए –पर जो कुछ भी हुआ उसके पीछे तक जाकर मुझे अभी सारे सच का पता लगाना है और जो अपराधी होगा सजा उसे मिलकर रहेगी|”

उन्हें कमिश्नर के मुंह से इस तरह की बात की कतई उम्मीद नही थी वे आश्चर्य से उनकी ओर देखते रहे|

“अभी जो भी राजनीतिक उठा पटक चल रही है अब मैं उसके पीछे के सच तक जाऊंगा और मुझे उम्मीद है आप इसमें कानून भी पूरी सहायता करेंगे|”

“आप क्या कहना चाह रहे है मैं पूरी तरह से नही समझ पा रहा फिर भी मैं आपको अपनी ओर से आश्वस्त करता हूँ कि जो भी आपको मुझसे सहायता चाहिए होगी जरुर मिलेगी |”

कमिश्नर आँखों से स्वीकृत कर अपने स्थान पर आकर बैठ जाते है तो अश्विन कुमार पुनः हाथ जोड़ उनसे इज़ाज़त लेते वापस चले जाते है| कमिश्नर कुछ पल तक उनके जाने वाले रास्ते को सोचते हुए देर तक एकटक देखते रहते है|

***

दुखी मन का सहारा सिर्फ प्रेम का आंचल ही होता है जो कुछ पल तक उसे अपने अंक में समेटे वक़्त की मार से बचा लेता है| इरशाद दुखी मन से समर, ऋतु के सामने बैठा था और नूर उसकी हथेली अपने हाथों के बीच लिए उसकी आँखों में लगातार देख रही थी जो आज दुःख से डबडबा आई थी|

“बार बार ऐसा लगता है जैसे मानसी की सवालियां नज़रे मुझे हर ओर से घूर रही है – आखिर उसने  मुझसे जिस विश्वास की उम्मीद की मैंने वो तोड़ दिया – मानसी ने हर पल मेरा साथ दिया और मैंने क्या किया – विश्वासघात – वो मुझे कभी माफ़ नही करेगी और ये मेरे लिए बर्दाश्त के बाहर है |”

“इरशाद ..|” समर उसके कंधे पर हाथ रखता हुआ कह रहा था – “मानसी तुमसे क्या वो किसी से भी ज्यादा देर नाराज़ नही रह सकती – सब ठीक हो जाएगा|”

इरशाद समर की ओर देखता है तो ऋतु भी उसे समझाती हुई कहती है – “हाँ इरशाद – तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो आखिर हम इतने दिन से मानसी को जानते है – मानसी को जैसे गुस्सा आता है वैसे उड़ भी जाता है – वो बहुत देर तुमसे नाराज नही रहने वाली|”

“पता नही पर उस दिन उसकी मेरी ओर उठी निगाह मुझे चैन से बैठने नही देती – पता नही जय ने क्यों नही बताया था उसे अब उससे भी मुंह मोड़े बैठी है – पता नही अब क्या होगा ?” इरशाद का दुखी मन कह उठा|

“कुछ बुरा नही होगा – देखना सब ठीक हो जाएगा – जो एक दूसरें से मिले बिना एक दिन न रहते हो वो बहुत देर एक दूसरें से नाराज़ नही रहने वाले |” ऋतु कहती रही –

“ये सोचो जो होता है वो अच्छे के लिए ही होता है शायद ईश्वर चाहते हो कि हम आठों एक साथ अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करे – |”

“आमीन ..|” ऋतु के कहते नूर हवा में हाथ उठाकर आंख बंद कर लेती है ये देख सभी के चेहरों पर नई उम्मीद की चमक दौड़ जाती है|

“ये वक़्त अभी हम चारों साथ है तो आने वाले वक़्त में हम आठों एक साथ होंगे और तब तक हम उनका इंतजार करेंगे…ये प्रेम की परीक्षा की घडी है जिसमें न हम फेल हुए और न उन्हें होने देंगे |” समर विश्वास से ऋतु का हाथ पकड़े मुस्करा रहा था|

“हाँ सही कहते हो – मैं जय को देखता हूँ तब से घर वापस नहीं आया – आज इसे पकड़कर लाता हूँ |”

इरशाद के कहते समर भी झट से बोलता है –

“मैं भी इस मोहित को देखता हूँ – |”

कहते हुए इरशाद उठता हुआ नूर से कहता है – “चलो घर छोड़ देता हूँ |”

नूर को उठते देख समर तिरछी मुस्कान से इरशाद को देखता हुआ कहता है – “तुम छोड़ने जाओगे तो जरुर देर लग जाएगी – मैं छोड़ आता हूँ !!”

“नहीं मैं जाऊंगा |” इरशाद को हटी बच्चे सा तुनकता देख सबके चेहरे पर हंसी दौड़ जाती है|

***

सबूत को ढूंढने में रात दिन एक कर जय ने अपनी पूरी जान लगा कर काफी सबूत जुटा लिए जिन्हें संग्रहित किए वह कमिश्नर के पास उनके केबिन में खड़ा था| जय के सैलूट करते उनका ध्यान उसपर जाता है|

जय कोई फाइल टेबल में उनके सामने रखता हुआ कह रहा था – “मानसी उपाध्याय के अपहरण में पूरी तरह से विधायक अश्विन कुमार के पीए गौतम का हाथ होने के पुख्ता सबूत मिले है – सीसीटीवी की फुटेज, ड्राईवर का इकबालिया बयान सब मैंने जुटा लिया है अब अगर आप वारंट जारी कर दे तो उनकी गिरफ़्तारी से मैं बाकी भी साबित कर दूंगा |”

कमिश्नर नज़र उठाकर जय के चेहरे पर छाए सख्त भाव को देखते हुए सहजता से कहते है – “हूँ तो तुम अश्विन कुमार को गिरफ्तार करना चाहते हो ?”

“सबूत उनके खिलाफ मिले है |” जय उतने ही सपाट भाव से कहता है|

वे कुर्सी से पीठ सटाते हुए उसके चेहरे को गौर से देखते हुए कहते है – “मैं जानता हूँ सब – बल्कि अश्विन कुमार आज खुद यहाँ आए थे |”

ये सुन जय अवाक् उनकी तरफ देखता रहा|

“जो तुम कह रहे हो वो करना चाहता तो मैं कबका कर लेता लेकिन होम करने में खुद के हाथ भी जल जाते है|”

जय के चेहरे पर अनजाने से भाव आने लगते है जैसे वह उनकी बात बिलकुल नही समझ पाया हो|

कमिश्नर कुछ पल खामोश होकर अपनी ड्रावर से कोई पेपर निकालकर उसके सामने रखते हुए कहते है –  “ये देखो – मानसी के मोबाईल की कॉल डिटेल और साथ में सीडी – कोई उसके कंधे पर बन्दूक रख कर उसे गाइड कर रहा था – अब अगर पूरा मामला सामने आएगा तो मानसी का नाम आने से भी कोई नही रोक पाएगा – उससे भी गलती हुई है|”

जय हैरान उनकी बात सुनता रहा|

“पूरी सीडी सुनना – जो बात पुलिस महकमे में होती थी वो भी इसमें उनतक पहुंचाई गई है – बेवकूफ लड़की |” कहते कहते तनाव उनके चेहरे पर आने लगता है – “कानून की नज़र में किसी भावना की कोई जगह नही है – इसलिए जब तक सारा सच सामने नही आ जाता कोई भी काम तुम मुझे बताए बिना नही करोगे समझे |”

“एस सर |”

फिर एक गहरा शंवास खींचते हुए कहते है – “जाओ और इसकी तहकीकात पूरी करो – और अब से तुम सीधे मुझे रिपोर्ट करोगे |”

“ओके सर |” फाइल और पेपर समेटता जय सैलूट कर वापस मुड़ लेता है|

***

बेचैनियाँ जैसे दिल से उतरकर अब देह में समा गई थी, उसकी शक्ल देखकर लगता जैसे सदियों से उस चेहरे को धोया न गया हो, बढ़ी दाढ़ी, बिखरे बाल, बोझिल ऑंखें जैसे मोहित के लिए दिन और रात का फर्क खत्म हो गया हो, वह कब घर से जाता कब आता किसी को पता नही चलता, कभी कही उदास बैठा वह घंटो अपना समय काट देता ओर बेनतीजा फिर मन के धुंध में घिरा वापस आ जाता| वह बुरी तरह से उलझा था किसी अनजान प्रश्न को सुलझाने में पर हर बार वह और उसमे उलझ जाता|

समर काफी देर से उसे अख़बार के एक ही पेज को घूरते देख रहा था|

“कुछ खबरे अख़बार में नही छपती |”

समर की आवाज सुन मोहित जैसे चौंकता है|

“आज से तीन दिन बाद शैफाली हमेशा के लिए लन्दन वापस जा रही है|”

मोहित के हाथ से अख़बार सरक कर फर्श पर गिर जाता है|

“मोहित मुझे नही पता कि तुम लोगों के बीच क्या हुआ पर यार चुप्पी हर रास्ते को बंद कर देती है – एक बार मेरे कहने पर खुद के लिए तुम खुद को एक मौका तो दो – जाने वाले को वापस लाना मुश्किल होता है पर उसे जाने से रोका जरुर जा सकता है |”

समर अख़बार उठाकर उसके हाथों के बीच रखता हुआ अपनी विश्वस्त आँखों से मोहित के हैरान चेहरे को देखता हुआ कहता है|

मोहित के चेहरे पर कुछ बदल रहा था|

***

कमिश्नर साहब देर रात घर वापस आते है, दिन भर की खबरों हलचलों ने उनके शरीर के साथ साथ मन को भी बोझिल कर दिया था|

वे सीधे मानसी के कमरे में आते है| कमरे में पूरा अँधेरा था, उन्हें लगा वह सो गई होगी तो हाथों से स्विच टटोलकर वे नाईट बल्व जाकर ज्योंही मुड़ते है उन्हें मानसी बिस्तर का टेक लगाए बैठी दिखती है, वे हैरान उसके पास आते है|

“मानसी..|” वे उसके सामने बैठते उसके सर पर हाथ फिराते हुए कहते है – “तुम सोई नही !!”

मानसी उनकी आँखों में नही देखती बस थोडा पीछे सरकती अपने हाथ पीछे कर लेती है| इससे वे उसके चेहरे को पढ़ते उसके पीछे किए हाथ को अपनी ओर खींचते हुए लाते है| हाथ में उसकी हथेली को लेते अब हैरान उसका चेहरा देखते रह गए, वह अभी भी ऑंखें नीचे किए एक आंसू आँखों से लुढ़का देती है| वे धीरे से उसका हाथ सहलाते हुए देखते है कि उसने अपने दाएं हाथ को बुरी तरह से चोटिल किया हुआ था, उनके द्वारा हाथ सहलाने भर से उसके मन से एक आह निकल जाती है|

वे कुछ पल तक उसका चेहरा देखते हुए फिर दरवाजे की तरफ मुंह कर मानव को आवाज लगाते है, अगले ही पल मानव उनके सामने खड़ा था|

“मानव बेटा – जाओ अपनी दीदी के हाथ की सिकाई के लिए बर्फ ले आओ|”

“जी पापा|” बिना किसी प्रश्न के वह तुरंत चला जाता है|

उसके जाते वे धीरे धीरे उसका हाथ सहलाते हुए कहते है – “हर क्रिया की प्रतिक्रिया जरुर होती है ये तो प्रकृति का नियम है इसलिए हमेशा सोच समझ कर व्यवहार करना चाहिए – शायद इसमें मेरी ही भूल रही होगी – तुम्हारी माँ होती तो यकीनन तुम्हें ये शिक्षा देती |”

मानव बर्फ लेकर आ गया| वे उठ गए तो मानव मानसी का हाथ अपने हाथ में लेता बर्फ से सिकाई करने लगता है|

मानव धीरे धीरे बेहद नरमी से उसकी हथेली पर बर्फ रखता और उसे चुभने से पहले हटा लेता, और फिर अपनी गर्म गर्म फूंक मार उसे सहलाने लगता,इससे मानसी की आँखों से धाराप्रवाह आंसुओं की झड़ी बह निकलती है ये देख मानव उसकी ओर देखता हुआ पूछता है –

“क्या बहुत दर्द हो रहा है दीदी !!!”

मानसी नज़र उठाकर खामोश उसकी निश्छल आँखों को देखती रहती है|

क्रमशः……………..

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