
हमनवां – 56
जय अश्विन कुमार के बंगले के बाहर एक कांस्टेबल के साथ खड़ा था| गेट में खड़ा चौकीदार उसे वही इंतजार करने की गुज़ारिश कर रहा था|
“साहब जी की कल रात बहुत तबियत खराब हो गई थी इसलिए अभी डॉक्टर साहब आए है तो आप थोड़ा इंतजार कर लीजिए |”
ये सुन जय की रगों में कोई अनजाना डर तेजी से दौड़ जाता है, वह अपनी हडबडाहट छुपाने की भरसक कोशिश करता चौकीदार से उनका हाल लेता है, तभी वहां से गुजरते गौतम की नज़र उनपर पड़ते वह जल्दी से वहां दौड़ते हुए आता जय को अन्दर जाने देने का हुक्म देता चौकीदार से कहता है –
“इन्हें क्यों रोका – जान लो ये कभी भी आए – इन्हें आने देना |”
अन्दर की ओर बढ़ते हुए जय के कान ये सुन कर भी अनसुना करते चलते रहे|
गौतम उन्हें मुख्य कमरे से अन्दर के एक कमरे की ओर लेजाने की राह दिखाता आगे आगे चलता रहता है| उस कमरे में जाते जय देखता है कि एक सोफे पर अधलेटे अश्विन कुमार के बगल में बैठा डॉक्टर कोई इनजेंशन उनकी बांह में उतार रहा था जिससे उनके चेहरे पर कुछ तनाव आने लगा पर उसी वक़्त जय से नज़र मिलते वे सहज हो जाते है और डॉक्टर का काम आसान हो जाता है| उनकी सहजता पर डॉक्टर मुस्करा देता है|
“बस हो गया आपका काम – मुझे कुछ नही हुआ – एक छीक पर ही गौतम आपको बुला भेजता है|” वे जय की ओर देखते हुए कहते दूसरे हाथ से डॉक्टर को जाने का इशारा कर जय को बैठने का इशारा करते है| पर जय बैठने के बजाय वही खड़ा रहता है, जिससे कांस्टेबल अधर की स्थिति में फंस जाता है| अश्विन कुमार उन्हें देख रहे थे, जय स्थिति भांपता हारकर बैठते कांस्टेबल भी बैठ जाता है|
“आपकी तबियत ठीक नही है तो हम बाद में आते है|” जय सपाट लहजे में कहता है|
“जब तक जिन्दा हूँ तब तक चंगा हूँ – कहिए मेरे लिए क्या सरकारी फरमान है ?” हलकी हंसी के साथ वे कहते है|
जय के अन्दर जैसे कुछ टूट कर बिखरने लगता है पर किसी तरह से अपने जज्बातों पर नियंत्रण करता हुआ साथ लाई किसी फाइल के बीच से चार तस्वीरे निकालकर उनके सामने फैलता हुआ पूछता है – “ आप इनको जानते है ?”
अश्विन कुमार अब उन तस्वीरों को देखते है तो उनके चेहरे के भाव बदलने लगते है, फिर उसके अगले क्षण वे सहजता से कहते है – “नही जानता|”
जय चढ़ी त्यौरियों से उनकी ओर देखता है फिर बिन कुछ कहे वहां से चला जाता है|
***
रात के दस बजे मौसम में हलकी नमी उतर आई थी, लेकिन लोगों की मौजूदगी से दिन और रात का फर्क करना मुश्किल हो रहा था| जब तक मोहित आया काफी कार पार्क हो चुकी थी इससे बाहर की ओर अपनी कार पार्क कर अब वहीँ वह गाइड का इंतजार कर रहा था, इसी इंतजार में वे अपने चारोंओर देख रहे थे, आने वाले आगंतुकों में हर उम्र के लोग थे, पर मोहित की नज़र बरबस ही किसी न किसी जोड़े पर ठहर जाती, कोई हाथों में हाथ डाले अपने में खोए चला जा रहा था, तो कोई एक ही आइसक्रीम खाते खाते अपना प्रेम का इजहार कर रहा था, ये देख मोहित जाने क्या सोच एक आइसक्रीम वाले की ओर दौड़ गया…
लौटा तो उसके हाथ में एक आइसक्रीम थी जिसे वह शैफाली की तरफ बढ़ा रहा था|
शैफाली आइसक्रीम लेती आँखों से उसकी आइसक्रीम का पूछती है|
“वो….|” उसकी लड़खड़ाती जुबान से दिल में कोई जुम्बिश सी हुई और हाथों से दिल फिसलने लगा…कि तभी…
“सर….|”
एक आवाज़ कौंधी और उन दोनों का ध्यान उस ओर चला गया जहाँ से अब गाइड लगभग दौड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा था|
मोहित की बात अधूरी रह गई अब वे अपने सामने खड़े गाइड की बात सुन रहे थे|
“अपनी गाड़ी यही छोड़ दीजिए – मेरी गाड़ी को परमिट मिला है तो उसी से मैं आपको काफी अन्दर तक ले चलता हूँ – चलिए |”
आगे आगे गाइड तो पीछे पीछे साथ में वे चलते उसकी बातोंसे बेखबर एक दूसरें की मौजूदगी में खोए रहे| वे यंत्रवत कार के पिछले हिस्से में बैठ गए, एकदम नजदीक साथ साथ कि एक दूसरें की देह की गंध उन्हें अपने में घेरने लगी जिससे उनकी धड़कने तेज हो उठी…
गाइड द्वारा कार स्टार्ट करते रेडियो भी बज उठता है…रेडियो में उस वक़्त चल रहे गीत में उनका दिल डूबने लगता है….इसके बीच गाइड अपना बोलता रहता है….
“आपने अच्छा किया सर जो देर रात के ग्यारह बजे का बैच लिया – इस समय चाँद ठीक आसमान के बीच में रहता है और तब ताज का व्यूह देखने लायक होता है|”
वक़्त की नजाकत मौसम की तन्हाई में लिपटी गीत के रूप में उनके दिलों में नशे सी समाने लगी.
लग जा गले……हंसी रात हो न हो……लग जा गले….फिर ये हंसी रात हो न हो शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो……लग जा गले…
हमको मिली है आज ये घड़ियाँ नसीब से…..जी भर के देख लीजिए हमको करीब से….फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो….शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो….लग जा गले…
पास आइए की हम नही आएगे बार बार….बाँहे गले में डाल के हम रो ले ज़ार ज़ार आँखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो….शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो….लग जा गले..
वे सबसे बेखबर कब कार से उतरकर ताज के पथ पर साथ साथ चलने लगे…उन्हें अपनी बेखुदी में पता ही नही चला…
“ये सर आप देख रहे है – खूबसूरत ताज पत्थरों की नगरी में दिल सा धड़कता है इसे आज सबसे ज्यादा मुहब्बत की याद के स्मारक के रूप में लोग याद रखते है – हर साल लाखों लोग जाने कहाँ कहाँ से आते है सिर्फ इसे एक नज़र भर देखने के लिए और महीने के ये चार दिन इस रात के नज़ारे के लिए बस चार सौ लोगों को ही पास मिल पाता है |”
हवाएं अपना रुख और मिज़ाज बदलने लगी…मोहित एक बारगी शैफाली की ओर देखता है…उसके चेहरे पर बार बार उड़ती जुल्फ़े उसके चेहरे पर लिपट जा रही थी…उसे लगा जैसे इन्ही जुल्फों ने शायद मौसम का मिजाज़ बदल दिया…हवा और ठंडी हो उठी…जिससे शैफाली खुदको और शाल में समेट लेती है…
“आज पता नही इस मौसम को क्या हो गया – सुबह कितना खुला मौसम था अभी जाने कहाँ से ये बादल आ गए ?”
वह अपनी धुन में कहता जा रहा था पर उन्हें कहाँ खबर थी वे तो अपने बीच की खत्म हो रही मोहलत की एक एक घडी गिन रहे थे और लम्हा लम्हा उनके हाथों से निकलता जा रहा था….ताज की ओर बढ़ते कदम साथ साथ उठ रहे थे, साथ साथ चलते वे हाथ एक दूसरे से टकराकर एक दूसरें को छू लेते पर न मोहित दाएं हटता न शैफाली अपने बाएँ हटती…
गाइड थोडा परेशान सा होता खुले आकाश में बादलों का जमावड़ ताकता हुआ कहता रहा – “आज पता नही क्यों ये बादल छा गए सुबह का मौसम तो बहुत साफ़ था |”
कि तभी अचानक बादल बरस पड़े…किसी को दिसंबर के महीने में ऐसी उम्मीद नही थी…वे काफ़ी आगे तक खुले स्थान में थे…अकस्मात की बारिश से हैरान सभी अब पार्किंग की ओर अपने कदम तेज कर देते है….मोहित शैफाली को देखता है जो खुद को शाल में लपेटे उनके साथ साथ चाहकर भी अपने कदम तेज नही कर पा रही…तो मोहित झट से उसकी बांह थाम लेता है अब मोहित की बांह का सहारा लिए वह अपने पैरों के बीच फंसती भीगी साड़ी सहेजती किसी तरह से कदम बढ़ाती बढ़ाती पार्किंग की ओर बढ़ने लगी|
जब तक वे कार तक आते है…वे साथ में चलने से पूरी तरह से भीग चुके थे…गाइड जल्दी से उन्हें अपनी कार में बैठाकर उनकी ओर देखता है –
“पता नही सर्दियों के मौसम में बारीश कैसे हो गई – अभी तक तो दिल्ली में बेमौसम बारिश सुनी थी आज आगरा में भी बेमौसम बादल बरस गए|” वह अब शैफाली की ओर देखकर जो बारिश से पूरी तरह से भीगी हलके हलके से कांप रही थी मोहित की ओर देखता हुआ कहता है – “सर क्या बताए ऐसा होता तो नहीं पर मौसम पर किसका जोर चला है !”
मोहित शैफाली की कांपती देह के ऊपर से अपना जैकेट ओढ़ाते हुए गाइड की ओर देखता है|
“सर मैम की हालत तो ज्यादा ही खराब हो रही है |”
मोहित के चेहरे पर भी अब परेशानी उभर आई| वह शैफाली को अपनी बाँहों के बीच अभी भी कांपता हुआ महसूस कर रहा था, वह हैरान सा गाइड की ओर देखता हुआ पूछता है – “ऐसी स्थिति में हमारा अभी लौटना तो मुश्किल है – क्या कही रात के लिए कोई रूम की व्यवस्था हो पाएगी?” कहते हुए वह गाइड की ओर ताकता रहा|
“हाँ सर क्यों नहीं – अभी ले चलता हूँ |” कहता हुआ गाइड स्टेरिंग की तरफ पलटकर कार स्टार्ट कर देता है|
अगले ही पल वे किसी फाइव स्टार होटल में थे….गाइड झट से उसकी एंट्री की व्यवस्था खुद कर चाभी लेकर लगभग दौड़ता हुआ उन्हें एक रूम की तरफ ले जाता हुआ कहता है – “सर चिंता मत करिए – पूरा आरामदायक रूम है – आप लोग वहां चेंज कर लीजिए फिर सुबह आराम से चेक आउट कर लीजिएगा|”
मोहित एकदम से सख्त नज़र से शैफाली को थामे थामे बढ़ता हुआ उसकी ओर देखता हुआ कहता है – “चेंज कहाँ से करेंगे – हम रुकने थोड़े ही आए थे |”
ये सुन गाइड अचकचा जाता है उस पल उसे सब उसी की भूल की तरह लगता है इसलिए वह स्थिति सँभालते हुए कहता है – “माफ़ कीजिएगा सर – क्या पता था सुबह का खुला मौसम रात तक ऐसा हो जाएगा – पर सर आप चिंता न करे – मैं साफ़ चादर भिजवाता हूँ आप उसमें कुछ देर रह लीजिए तब तक एक घंटे के अन्दर ही मैं सारे कपडे ड्रायक्लीन करवाता हूँ – |”
ये सुन मोहित कुछ परेशान सा होता अब शैफाली की बुरी हो रही हालत देखता है|
“सर बस एक घंटे की बात है – मैम की हालत ठीक नही लग रही|”
तब तक वे रूम के सामने आ जाते है, अचानक मोहित चौंक जाता है – “एक रूम !!”
“हाँ सर आप पति पत्नी है न !!”
गाइड औचक मोहित का चेहरा देखता रहा तो मोहित की नज़रे घबरा गई|
“सर मुझे पता नही था – इस होटल में अभी बस एक ही रूम खाली है – दूसरे में जाने में थोडा समय लगेगा पर आप चिंता मत करिए – आप मैम को यहाँ कम्फटेबल कर दीजिए और ये मेरा कार्ड रखिए जब जिस समय भी आप फोन करेंगे मैं हाज़िर हो जाऊंगा – तब तक मैं दूसरा होटल देखता हूँ |”
मोहित आखिर आश्वस्त होता उसकी ओर देखता अब शैफाली को थामे रूम के अन्दर आता उसका कार्ड बेतरतीबी से सेंटर टेबल में रखता उसे आराम से बैठा देता है| अगले ही पल रूम अटेंडेंट द्वारा चादर देने पर वह शैफाली की ओर चादर बढ़ाकर कुछ देर उसी भीगी हालत में रूम से बाहर चला जाता है|
कुछ देर बाद जब वह वापस आता है तो देखता है कम्बल ओढ़े शैफाली सो चुकी थी और उसके सभी कपड़े वही पड़े थे, ये देख मोहित भी खुद को गीले कपड़े से अलग कर सभी कपड़े अटेंडेंट के हवाले कर चादर में लिपटा कोच में लेट जाता है|
रूम की गर्माहट और सर्द मौसम की तल्खी से मोहित की आंख लग गई| अभी कुछ पल बीता ही था कि किसी आवाज की सरगोशी से उसकी नींद उचट जाती है, वह झटके से उठकर शैफाली की ओर देखता है, उसमें कुछ हलचल देख वह दौड़ता हुआ उसके पास आता है|
कम्बल से बाहर निकली उसकी हथेली को वह ज्योंही थामता है उसके रगों में झुरझुरी दौड़ जाती है, वह बुरी तरह से ठण्ड से कांप रही थी, ये देख कोई डर उसके मस्तिष्क को घेरने लगता है कि लगता है डॉक्टर को बुलाना पड़ेगा, ये सोच वह उसे झंझोड़ता है, शैफाली अपनी आंख खोल कर अब उसे देखती है|
वह घबरा कर पूछ रहा था – “तुम्हें भीगने से एलर्जी है क्या – तुमने बताया क्यों नही ?”
“तो क्या करते ?” इस अजीब प्रश्न का और भला क्या उत्तर देती, वह मोहित की बांह कसकर थाम लेती है|
मोहित उसकी आँखों में देखता रह जाता है….उन आँखों में आए प्रणय के आग्रह उसे अवश करते उसकी ओर खींचते ले जाते है…..न वह रोकती है न वह रुक पाता है….तन बदन में जैसे कोई उन्माद सा हावी होता उनकी नसों में फड़क उठता है….उस पल में जैसे हजारों शिफालिका की खुशबू उनके जेहन में समा जाती है…..मोहित बढ़कर शैफाली की मांग चूम लेता है…..शैफाली अपनी ऑंखें बंद कर लेती है जिससे दर्द की कोई बूंद उसकी आँखों की कोरों से लुढ़क जाती है……मोहित उसे भी अपने लबों से पोछ देता है….मोहित के हाथ उसके बालों को सहलाते उसकी पीठ पर फिसल रहे थे…..शैफाली मोहित की बाहें थामे उसे अपनी ओर कसकर भींच लेती है…..लबो से होता प्रेम देह से होता हुआ ह्रदय की गहराईयों तक उतरा जा रहा था….जिस्मों में मानों कोई जलतरंग लहु सा दौड़ जाता है….रूहानी प्रेम जिस्म से होता रूह तक उतरता गया…मोहित आंख खोले शैफाली की बंद पलकों को चूमता हुआ उसके होंठो को चूमने लगा मानो आज खुद को उन नीले समंदर में डुबो देना चाहता था….उस पल उसके होठ अतिरेक प्रेम से कांप उठते है….वह मोहित के चौड़े सीने में समां गई थी…ये पूर्णिमा की खुली रात थी जिसमें समंदर बेचैन होता मानों चाँद को पूरी तरह से अपने अन्दर समेट लेना चाहता था….आज गुस्ताख हवाओं को भी उनके बीच से गुजरने की इजाजत नही थी…….
क्रमशः……..