
हमनवां – 57
बारिश के बाद मौसम में हलकी खुमारी सी थी…..कुछ ठंडी कोल्डड्रिंक में तैरती वनिला आइसक्रीम सी ये सोच कर ही मोहित जैसे सपने में भी मुस्करा दिया…आंख खुलते अपनी कलाई की घडी पर उसकी नज़र ठहर जाती है….सुबह के नौ बज रहे थे…और वह गर्म लिहाफ में लिपटा बिस्तर की सिलवटों को देख मुस्करा कर अब नज़रों से शैफाली को खोजता है….वह एक बार पुकारता भी है फिर बंद वाशरूम तक जाती नज़र खुद ब खुद में मुस्करा उठती है…कोई नशा कोई खुमारी सी उसमे तारी थी…वह उठकर वाशरूम का दरवाज़ा नॉक कर दीवार के सहारे टिका अपनी आंख बंद कर लेता है…मानों वह फिर किसी ख्वाब को जीने लगता है….’शैफाली बाहर आओ…इस खूबसूरत सुबह में मैं तुम्हें अपनी पनाह में लेकर अपने दिल की बात कहना चाहता हूँ…वो हर बात जो हर बार मेरा दिल मुझसे दगा कर तुमसे जता देता पर मैं शब्दों से कभी नही कह पाया…वो आज मैं तुमसे तुम्हारे सामने कहना चाहता हूँ…कि इस पल से लेकर मेरे हर एक पल में अब तुम हो सिर्फ तुम…और है मेरा बेपनाह प्यार सिर्फ तुम्हारे लिए….अब से मैं तुम्हें कभी खुद से जुदा नही होने दूंगा….जान मेरी सजा की मियाद कम करों और सामने तो आओ…शैफाली….’वह बहकती आवाज प्रणय से लबरेज थी….कि दरवाजे की दस्तक से उसका ध्यान टूटता है…और वह रूम के दरवाजे को खोल कर सामने देखता है…
“गुड मोर्निंग सर..|” गाइड उसके सामने खड़ा था, उसके हाथों के बीच करीने से तय किए हुए कपडे थे|
मोहित मुस्करा कर कपड़े लेता हुआ देखता है…कुछ कमी सी थी…वह संशय में उसकी ओर देखता हुआ पूछता है – “बाकी के कपड़े..!!”
गाइड चौंक जाता है|
“सर वो तो सुबह चार बजे ही मैंने पहुंचवा दिए थे|”
मोहित हतप्रभ सुनता रहा जो गाइड कहे जा रहा था – “मैम का फोन आया था – उनके कहने पर बस उन्हीं के कपड़े भिजवाए फिर उन्होंने दिल्ली तक जाने के लिए टैक्सी का बोला – मैंने ही सारा इंतजाम कराया सर – अब तो वो पहुँच भी गई होगी –|” वह जैसे शाबाशी पाने को उसकी ओर देखता रहा|
एक पल को मोहित को विश्वास नही हुआ….पर सच उसकी खुली ऑंखें ही देख रही थी…..उस पल मोहित के लिए अपने को जब्त करना ही भारी गुजर गया…..किसी तरह एक थूक की गटकन के साथ वह उस लम्हे को गले के नीचे उतारता धीरे से कहता है – “ठीक है – मैं पेमेंट करने आता हूँ अभी |”
“वो तो हो गई – मैम मेरा, इस होटल का और सभी कुछ का पेमेंट करके गई है -|” कुछ पल रूककर वह मोहित का चेहरा देखता रहा जहाँ के भाव उसकी समझ से परे थे फिर रूककर पूछता है – “सर कोई और सेवा !!”
मोहित के गले से कोई स्वर नही फूटता वह बस न में सर हिलाकर दरवाजा बंद कर अपनी ऑंखें कसकर भींच उस लम्हें को किसी तरह से अपनी आँखों में समा पाता है|
‘क्यों किया तुमने ऐसा – मेरा प्यार इतना कमजोर रहा कि तुम्हें रोक भी नहीं पाया???’ अपनी मुठियाँ भींचे दर्द की इन्तहां को अपने दिल से गुजर जाने देता है|
***
दर्द मोहित के लिए हद से गुजर गया था…तनाव से उसके चेहरे की मांसपेशियां तन गई थी….अब न कहने और न सुनने के लिए उसके पास कुछ था…वह पार्किंग से कार लेता सीधा दिल्ली की राह पकड़ लेता है| एक्सीलेटर पर जमे उसके पैर बार बार कार को भीड़ में से भी सौ की स्पीड में ले जाते तब लोग एक बार पलटकर जरुर देखते…पर टूटे दिल को किसी की कहाँ अब कोई परवाह थी…एक्सप्रेसवे आते उसके पांव एक्सीलेटर पर अपना दवाब और बढ़ा देते है….कितनी शिकायत थी उसे खुद से ही…उससे कही ज्यादा खफ़ा था वह उस लम्हें से….उसके पैर का दवाब बढ़ता जाता है…कार अब हवा में मानों बही जा रही थी…उसका दिल तय नही कर पा रहा कि शैफाली का उसको इस तरह छोड़कर जाना उसे ज्यादा बुरा लगा या उससे कुछ न कह पाना…..शैफाली के ख्याल भर से जैसे उसका सारा जिस्म पारिजात की खुशबू से भर उठता है…उसकी नज़रे डैशबोर्ड पर बिखरे पारिजात के फूलों पर ठहर जाती है…उस पल जाने क्या बदल गया उसके जेहन में कि साथ की सीट पर उसे मुस्कराती हुई शैफाली नज़र आई जो उसे अपने में समेट लेने को अपनी बांह उसकी ओर पसारे थी…वह मुड़कर उसी की ओर निहारने लगा….उसका चेहरा मुस्करा दिया…फिर न कुछ उसे याद रहा….न ख्याल…एक तेज आवाज के साथ उसका शरीर निस्तेज पड़ा रह गया..
***
अश्विन कुमार के लिए ये दर्द का वो हिस्सा था जिसे न वे किसी से बाँट सकते थे न समझा सकते थे, बस अंतरस हद बर्दाश्त कर सकते थे| जय अपनी तीखी नज़रों के साथ उनके ठीक सामने खड़ा था और अश्विन कुमार चाह कर भी अपनी स्थिति बयाँ नही कर पा रहे थे|
“तो आखिर आपने मान लिया कि आप उन चारों को जानते है तो कल किसलिए इनकार किया अपनी विधायकी के दिखावे के लिए !”
“जय तुम हर बार मुझे गलत ही क्यों समझते हो – मैंने ये तो नहीं कहा कि उनसे मेरा कोई सम्बन्ध था हाँ तुम्हारी मदद कर सकता हूँ|”
“बहुत मदद की आपने |” वह तेजी से उनकी आँखों में देखता हुआ कहता है जिससे अश्विन कुमार को मानसी का ख्याल आते उनका मन कांप उठता है|
“आपको अपने स्वार्थ से ऊपर कुछ नही दिखता जिसके लिए आप अपनों की भी बलि दे देते है –|”
“वो मेरी मृत्यु थी जिसे प्रेरणा ने आगे बढ़कर खुद में वरण कर लिया इसके लिए मैं उम्र भर खुद की नज़रों में उसका गुनाहगार रहूँगा |” दर्द उनके जेहन में भी उमड़ पड़ा|
“बातें घुमाना छोडिए – याद रखिए जिस दिन आपके खिलाफ मुझे कुछ भी सबूत मिला मैं खुद आपका वारंट लेकर आऊंगा|” कहते कहते जय की ऑंखें किसी जलजले ली भांति जल उठी थी|
वे हताश जय की ओर देख रहे थे, जय बाहर की ओर जाने लगा तभी उसका फोन बजा|
“हेलो – हाँ – क्या……!!!!” उसके हलक से मानों कोई चीख निकल गई, वह हडबडाते हुए अब तेजी से बाहर की ओर भागने लगा, पीछे से अश्विन कुमार उसे आवाज लगाकर पूछते है तब जय बस ‘मोहित का एक्सीडेंट हो गया’ कहता हुआ निकल जाता है|
***
यमुना एक्सप्रेसवे पर हुए एक्सीडेंट की खबर से पुलिस पूरी चौकसी से तुरंत घायल को हॉस्पिटल पंहुचवाती है| खबर पाकर जय, समर और ऋतु साथ में हॉस्पिटल पहुँचते है, मोहित ओपरेशन थियेटर में था| खून बहुत ज्यादा बह चुका था और उसकी हालत गंभीर बनी हुई थी| डॉक्टर अपना प्रयास कर रहे थे| वेटिंग रूम में ऋतु के सामने भागता हुआ इरशाद नूर के साथ अभी अभी आया मोहित का हाल पूछ रहा था पर जवाब में आँखों से टपकी एक बूंद के सिवा ऋतु के पास कोई उत्तर नही था|
“पता नही – अभी ओपरेशन थियेटर में ही है – जय और समर ब्लड देने गए है|”
ऋतु के इतना कहते इरशाद भी तेज क़दमों से उनके पास चल देता है| नूर वही उसके पास बैठी हौसले के लिए ऋतु का हाथ थाम लेती है| अब उन दोनों का मन भर आता है|
“ये सब हुआ कैसे ?” नूर ऋतु की ओर देखती पूछती है|
“मोहित और शैफाली साथ में आगरा गए थे तो वही से लौटते हुए हुआ ये हादसा |”
“तो शैफाली…!!” वह घबरा कर पूछती है|
इसपर ऋतु जल्दी से कहती है – “नही शैफाली लौटते वक़्त साथ नही थी – वो तो आज सुबह ही लन्दन वापस लौट गई |”
“ओह – मैं तो शैफाली से मिल भी नही पाई |” नूर के चेहरे पर अफ़सोस तैर जाता है पर ऋतु कुछ और सोचती कही खो गई थी|
यही वो वक़्त था जब वेटिंग रूम में चल रहे टी वी में एक अहम् खबर रिपोटर अपने तेज तेज स्वर में बता रहा था, दोनों झटके से सर उठाकर साथ में वो खबर सुनती है..
‘ब्रिटेन से अभी एक अत्यंत दुःख भरी खबर आ रही है – आज सुबह भारत से लन्दन के लिए अपनी सीधी उड़ान भरे हवाई जहाज का किसी तकनीकी कारण से आसमान में ही वह प्लेन दुर्घटना ग्रस्त हो गया – हवा में हुआ धमाका इतना भयावह था कि ब्रिटेन सरकार ने किसी भी यात्री के जिन्दा न बचे रहने की अभी अभी पुष्टि की है…..|’
ये सुनते टी वी स्क्रीन में दिख रहे जहाज के नंबर और समय को देख ऋतु के हलक से एक दबी हुई चीख निकल गई जिससे नूर के चेहरे की हवाइयां उड़ गई|
***
ये खबर जो सुन रहा था उसके लिए रुके रहना असंभव हो रहा था| मानसी भी भागी भागी हॉस्पिटल आती है| वार्ड के बाहर अभी भी हैरान परेशान जय, समर,ऋतु और नूर मौजूद थे| मानसी के आते अब सबकी निगाह उसी पर ठहर जाती है| जय जो सीने पर हाँथ बांधे दीवार का टेक लगाए झुका खड़ा था मानसी के आते उसका सारा ध्यान उसी पर चला जाता है| मानसी जानकर जय को अनदेखा करती ऋतु के पास आती हुई मोहित का हाल पूछती है, जिसका उसके पास अभी कोई समुचित जवाब नहीं था| सभी डॉक्टर के बाहर आने का इंतजार कर रहे थे| मानसी भी वही खड़ी इंतजार की मुद्रा में ऋतु के पास जाकर बैठ जाती है, उसे पता था कि जय की निगाह लगातार उसी पर टिकी हुई थी, इरशाद भी चुपचाप उनकी ओर देख रहा था पर हालत यूँ थे कि कोई कुछ नही बोल पा रहा था|
“ये क्या हुआ..?” ऋतु की आवाज पर अब सबका ध्यान उसकी ओर जाता है जो मानसी की बेंडेज बंधी हथेली अपने हाथ में लिए अब प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी ओर देख रही थी|
ये देख जय के लिए खुदको रोके रहना असंभव हो गया, वह लगभग दौड़ता हुआ मानसी के पास आता उसकी हथेली अपने हाथों में थामता उसकी ओर देखता रहा| आपस में आंख मिलते दर्द की कुछ बूंद उनकी आँखों में झलक आई जिससे बचने मानसी तेजी से अपना हाथ उससे खींचती वहां से उठ जाती है|
“ये क्या किया तुमने !!!” जय के हलक से दर्द फूट पड़ा पर जवाब देने के बजाय मानसी अपने चेहरे के भाव और कठोर करती उसकी ओर पीठ कर लेती है, जिससे अब उसकी नज़र सामने कुछ दूर खड़े अश्विन कुमार पर चली जाती है जो लगातार उनकी तरफ देख रहे थे|
“आपका पेशेंट अब खतरे से बाहर है – आप लोग चाहे तो बारी बारी से उससे मिल सकते है|” सबका ध्यान अब वार्ड से बाहर निकलते डॉक्टर पर जाता है|
ये देख जय तुरंत वार्ड के अन्दर चल देता है|
क्रमशः…..