
हमनवां – 58
मोहित को होश आ चुका था, पुलिस उसका बयान लेकर जा चुकी थी|
“मोहित साहब तो अब कैसा लग रहा है ?” डॉक्टर मुस्करा कर उससे पूछता है तो मोहित आंख झपका कर धीरे से मुस्करा देता है|
“वैसे लगता है आपको आपके दोस्तों की दुआ लग गई – नहीं तो आप बड़ी बुरी हालत में यहाँ आए थे|”
अब समर डॉक्टर से मोहित की हालत की रिपोर्ट लेता उनके साथ बाहर को चल देता है|
मानसी के लिए जय की उपस्थिति में खड़े रहना जब मुश्किल हो गया तो वह वहां से चली गई, ऋतु की उसको रोकने की कोशिश भी बेकार रह गई| अश्विन कुमार भी मिलकर जा चुके थे| अब वार्ड में जय, इरशाद, नूर और ऋतु मौजूद थे जिन्हें आँख खोले मोहित देख रहा था|
वे सब पूर्ण खामोशी से वही बैठे उसे देख रहे थे, ये देख मोहित उन्हें पुकारता हुआ कहता है –
“ए दोस्तों – तुम लोगों के चेहरे पर ऐसी मुर्दनी क्यों छाई है – जिन्दा हूँ यारों मैं|” कहता जैसे खुद पर ही हंस पड़ा|
सबके खामोश चेहरों पर दर्द की लहर दौड़ गई|
“अरे यार सब इतने खामोश क्यों हो ??” उनके कुछ भी न कहने पर मोहित उनके चेहरों को गौर से देखता हुआ कहता है – “पता है – क्यों नाराज़ हो शैफाली के कारण न !!!”
वे सब अवाक् मोहित का चेहरा देखते रहे|
“शैफाली का कोई कसूर नहीं तुम्हारा यार ही नालायक निकला – वक़्त रहते नहीं रोक पाया उसे पर एक बार ठीक होने दो – दौड़कर जाऊंगा उसे लिवाने – देखना इतना बेचैन कर दूंगा कि चली आएगी मेरे पास – वो मुझसे नही छुप सकती….|”
मोहित अपनी ही धुन में कहता रहा और सभी पूर्ण ख़ामोशी से सुनते रहे पर ऋतु के लिए किसी तरह से जब अपने आँसू रोकना मुश्किल हो गया तो वह तेजी से बाहर को निकल जाती है|
***
सबके दिल का वो आलम था कि वे न शैफाली के जाने का गम ठीक से मना पा रहे थे और न मोहित के बचने की ख़ुशी| समर अपने सामने मौजूद जय, ऋतु, नूर और इरशाद को मोहित के हालात बता रहा था –
“एक फ्रेक्चर के अलावा अब उसकी हालत काफी ठीक है पर शैफाली वाली बात उसे कोई नही बताएगा |”
“कब तक !!” ऋतु की भीगी आंखे पूछ बैठी जैसे सब होने की शिकायत उसे मोहित से भी हो|
“कम से कम जब तक वह पूरी तरह से ठीक नही हो जाता |”
“पता नही उसकी जिंदगी में ही ऐसे हादसे क्यों होते है – तुम में से किसी को लगता है कि कभी भी वह ये खबर सुन पाएगा ?”
जय जैसे वक़्त से प्रश्न कर खुद खामोश हो जाता है, अब आगे क्या होने वाला है ये कोई दिल नही सोच पा रहा था|
***
थाने पहुंचकर जय को अपनी मेज पर कोई अज्ञात पार्सल मिलता है इसे चौंककर वह देख ही रहा होता है ये देख उसके पीछे से कांस्टेबल आता हुआ कहता है – “आज सुबह बाहर मिला सर – आपका नाम लिखा था तो आपकी मेज पर रख दिया|”
जय उसे आगे पीछे पलटकर देखने के बाद उसे खोलता है, उसे खोलकर देखते उसके सामने कई पन्ने और तस्वीरे बिखर जाती है, वह हैरान देखता रहा| कांस्टेबल भी वहां आता वो सब देखता हुआ कहता है – “साहब ये क्या है !!!”
“किसी की करनी का पूरा हिसाब किताब |” जय धीरे से मुस्करा कर उन सब को समेटने लगता है|
***
मोहित के पैर में प्लास्टर बंधा होने से तीनों दोस्त उसे उठाकर घर तक लाते है, अब उसकी देख रेख के लिए तीनों में से कोई न कोई उसके पास मौजूद रहता था|
अभी वह किसी तरह टेक लगाए लेटा था लेकिन जय के आने के आभास से उसकी आंख खुल जाती है| जय उसके पास बैठा उससे कह रहा था – “तुमने अपना मोबाईल माँगा था पर वो तो खराब हो चुका है – अभी के लिए तुम मेरा वाला रख लो मेरे पास दूसरा ऑफिसल वाला भी है |” कहते हुए जय एक मोबाईल उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहता है तो मोहित हर्ष के साथ उसे लेता हुआ पूछता है – “और कार !!”
जय जैसे सब सोचते सोचते धीरे से कहता है – “अभी सर्विस सेंटर में है – वैसे छोड़ न कार दूसरी आ जाएगी – तू तो सेफ है न |” जय कार की हुई बुरी हालत पर और कुछ नही कहना चाहता था|
“लगता है ज्यादा ही डेमेज हो गई है – ठीक करने को बोल देना यार – बड़ी लकी कार है मेरे लिए – बहुत यादों का हिस्सा जुड़ा है उससे मेरा |” कहते कहते वह खुद ही मुस्करा दिया|
कुछ पल की ख़ामोशी के बाद जय अपनी पॉकेट की गिरफ्त से कोई तस्वीर निकालकर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहता है – “ये कार से मिली |”
मोहित तस्वीर देखते झट से उसे उसके हाथ से लेता बस चूम ही लेता है – “इसे कुछ नही हुआ – शुक्रिया भगवान|”
जय हतप्रभ देखता रह गया मोहित को तस्वीर लिए लिए इतना खुश देख उसकी आंख नम हो आई, फिर चुपचाप उसके पास से उठकर वह चला गया|
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कमिश्नर साहब घर पहुँचते है तो सामने से इरशाद को अपने लटके मुंह के साथ वापस जाता देख समझ जाते है कि मानसी ने जरुर मिलने से मना कर दिया होगा| वे कुछ नही कहते और अन्दर आ जाते है|
मानसी अभी भी खुद को अपने कमरे में कैद किए बैठी थी, ये देख वे वही चाय मंगा कर उसके पास बैठते उसका हाथ अपनी हथेलियों के बीच रखे सहलाने लगते है – “अब कैसा है दर्द !!”
मानसी मौन ही हामी भर चुप हो जाती है|
वे उसका हाथ धीरे से नीचे रखते उसके सर पर हाथ फिराते फिराते कहते है – “घर में कब तक बैठी रहोगी – मुझे लगता है अब तुम्हें अपना ऑफिस ज्वाइन कर लेना चाहिए इससे तुम्हारी बोरियत भी दूर होगी और…|”
उनके खिंचते और पर मानसी अब उसके चेहरे की ओर देखने लगती है|
“और तुम्हें बेकार के ख्यालात भी नही आएँगे |”
मानसी कुछ नही कहती बस कही किसी गहरी सोच की खाई में समाती चली जाती है|
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मोहित के लिए एक एक दिन बिस्तर पर पड़े पड़े काटना मुश्किल हो रहा था, कच्चे प्लास्टर के बाद पक्का प्लास्टर लगते उसमे और बेचैनी भर गई|
“ऐ डॉक्टर साहब ये टांग वांग का मामला कब ठीक होगा – कुछ बताओगे – जल्दी ठीक करो यार नही तो मैं ऐसे ही उठकर चल दूंगा – जाना भी तो है मुझे |” मोहित जैसे बहकते हुए कहता है|
पर इसके विपरीत समर उतनी ही तेजी से नाराज़ हो गया – “कहाँ जाना है तुम्हें –?”
“शैफाली के पास |”
जिस सहजता से मोहित ये कह गया समर के लिए उस पल खुद को जब्त किए रहना मुश्किल हो गया|
“तुम्हें पता भी है वो कहाँ है ?” समर आद्र स्वर से उसकी ओर देखता रहा|
“हाँ |” मोहित चहकता हुआ कहता रहा – “मुझे पता है वो हर शाम हैम्पटन ब्रिज पर खड़ी थेम्स को निहारती हुई मेरा ही इंतजार करती होगी |”
समर उस पल मोहित का चेहरा देखता रह गया फिर किसी तरह खुद को सँभालते हुए कहता है –
“बेकार की बात मत करो – टीबिया फ्रैक्चर है – समय लगेगा समझे तुम और ज्यादा हिलोगे डिलोगे तो बैठे रहना तीन महीने तक |”
“हाँ समझ गया पर अपने दिल को क्या समझाऊ – यही मुझे उकसाता रहता है|” मोहित कहकर खुद ही हंस पड़ा|
समर उठकर जाने लगा तो मोहित फिर उसे पुकारता है – “यार समर ये ऋतु कहाँ है – दस दिन हो गए दिखी ही नही |”
“ठीक है बुलाता हूँ|” समर इतना कह चल दिया, वह जानता था कि ऋतु जैसी कोमल ह्रदय की लड़की के लिए मोहित के सामने आना ही दर्दनाक था पर अब उसे बुलाने के सिवा वह कुछ नही कर सकता था|
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समर ऋतु को मोहित के पास जाने को मनाता उसे अपने सीने से लगाए उसके बालों में उंगली फेर रहा था पर ऋतु के लिए खुद को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था |
“सुन तो लो आखिर क्या कहना चाहता है |”
“पता नही पर मोहित को देखते शैफाली का चेहरा और स्पष्ट हो जाता है तब सब चीजो से जैसे यकीन ही उठने लगता है – मैं शैफाली का चेहरा भूल ही नही पा रही इसलिए डरती हूँ कि कहीं जुबान से कुछ निकल गया तो…!!”
ऋतु को किसी तरह से सँभालते हुए कहता है –
“चलो मैं भी चलता हूँ साथ में |” समर उसका हाथ पकडे पकडे उसे मोहित के पास ले जाने लगता है|
वे दोनों कमरे की देहरी पर साथ में खड़े देखते है कि मोहित उस तस्वीर को अभी भी एकटक देखे जा रहा था, एक पल को लगा जैसे वह तस्वीर से बातें भी कर रहा है, ये देख ऋतु का मन और भर आया, पर समर उसका हाथ पकडे उसे अन्दर तक लाता मोहित को पुकारता है|
पुकार पर मोहित एक दम से चौंककर उनकी तरफ देखता है| मोहित अपनी भरपूर मुस्कान से मुस्करा रहा था पर इसके विपरीत वे दोनों बड़ी मुश्किल से खुद को सहज रखे हुए थे|
“ऋतु बहुत दिन से तुम्हारे हाथों का बना कुछ नही खाया तो प्लीज़ आज तुम कुछ ऐसा बना दोगी जो बहुत बहुत तीखा हो कि आंख से पानी आ जाए – पता नही क्यों आजकल मेरा मन बड़ा खुश रह रहा है जबकि दिल जी भर के रोना चाहता है पर रो नही पा रहा – पता नही क्यों हो रहा ऐसा |” वह कहते कहते जैसे खुद पर हंस दिया|
पर ऋतु के पैर लडखडा गए, समर कसकर उसकी बांह थामे उसे संभाल लेता है|
***
फीचर विभाग में बैठा इरशाद अपने काम में इतना संलग्न था कि पवन का आना देख भी नही पाया, ये देख पवन ही उसके पास आता उसे चेताने उसके कंधे पर हाथ रखता है|
“अरे कब आए ?” वह घूमती कुर्सी उसके सामने करता हुआ पूछता है|
“आज सुबह वापस आया – तुम मेरे और मानसी के बिना कैसे मेनेज कर रहे होगे यही सोच चला आया|”
“अरे वो सब छोड़ो – मैं सब देख लूँगा पर इस वक़्त तुम्हे भावना को अकेला नही छोड़ना चाहिए था|” रूककर उसके गहन भावों में झांकता हुआ पूछता है – “वैसे भावना कैसी है ?”
एक गहरा उच्छवास छोड़ता वह जैसे किसी अनंत शून्य में ताकता हुआ कहता रहा – “बड़ा अजीब वाक्या हो गया – क्या सोचा था और क्या हो गया – ऐसा लगता है जैसे सब कोई झूठ हो – यकीन ही नही आता|”
“सही कह रहे हो – शैफाली का जाना यकीन ही नही कर पा रहा मन|” इरशाद पवन की डूबती आँखों को देखता हुआ कहता है|
“यही हालात तो भावना के भी है – वहां किसी भी पेसेंजर की साबुत लाश नही मिली – तब से बस भावना इसी बात पर यकीन किए बैठी है कि शैफाली को कुछ हुआ ही नहीं पर कागजों पर लिखा सच कौन बदल पाएगा इसलिए हम वापस भारत आ गए अब तो ब्रिटिश एम्बेसी की रिपोर्ट आने के बाद सब पुख्ता होगा |”
“काश शैफाली रुक जाती |”
“इसी एक बात पर तो भावना मोहित से बहुत नाराज़ है – उस दिन भी जब सुबह सुबह शैफाली वापस आई थी – कुछ नही बोली बस सामान लिया और एअरपोर्ट जाने लगी – भावना ने कितना रोकने का प्रयास किया पर बस जाना बहुत जरुरी है कहकर चल दी – इवेन हमे तो एअरपोर्ट भी नही संग आने दिया – भावना का तो तभी से रो रो कर बुरा हाल है – बार बार मुझसे यही कहती है कि शैफाली इस तरह गई मानों अंतिम बार जा रही हो |” पवन आगे कुछ नही कह पाया|
कुछ पल तक की उनके मध्य की ख़ामोशी में वे अपने अपने प्रश्न मन में टटोलते रहे पर हर बार की तरह मन पूरी तरह से निरुत्तर रह गया फिर थक हार कर वे अपनी अपनी डेस्क की ओर मुड़ जाते है| तभी वहां मानसी आती है जो उन दोनों को ही अनदेखा करती सीधी आते अपनी डेस्क के सामने जम जाती है| अब दोनों हैरान इशारे से एक दूसरे से पूछते है तो इशारे से ही इरशाद बता देता है कि मानसी अभी भी नाराज़ है और उससे बिलकुल बात नहीं कर रही इसपर पवन उसको पुकारता हुआ उसके पास जाता है|
“अच्छा किया मानसी जो तुम आ गई – तुम्हारे बिना तो इरशाद से कोई काम होता ही नहीं|” वह जानकर जो कहता है उसपर भी वह इरशाद पर अपनी दृष्टि नही डालती बल्कि बेहद सपाट स्वर में उसकी तरफ देखती हुई पूछती है – “भावना कैसी है ?”
पवन एक पल उसका संजीदा चेहरा देखता फिर उसके अगले पल कहता – “तुम खुद घर आ कर देख लो |” उसके चेहरे पर आए गंभीर अंदाज को देखता रह जाता है पर मानसी कुछ नही कहती और दुबारा अपनी डेस्क की ओर मुड़ जाती है|
“इरशाद भैया – संपादक सर आपको बुलाए है अभी |”
देहरी में खड़े चपरासी की आवाज पर अब सबका ध्यान चला जाता है|
क्रमशः……….