Kahanikacarvan

हमनवां – 59

पार्टी में टिकट बांटे जाने की पूरी परम्परा लगभग पूरी कर दी गई थी और अश्विन कुमार को कोई टिकट नही मिला पर हर बार बात बात पर उखड़ जाने वाले अश्विन कुमार आज पार्टी को अपना इस्तीफा भिजवा रहे थे, गौतम अनजान भाव से उन्हें देख रहा था|

“ये लेकर तुम अवस्थी जी के पास चले जाओ – जिन्होंने मुझे रास्ता दिखलाया अब वक़्त आ गया है उन्ही से रास्ता बदलने का |” वे लिफाफा उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहते है|

“क्या आपको लगता है आप ठीक कर रहे है ?”

“गौतम तुमने मेरा बहुत साथ दिया लेकिन अब मेरा रास्ता बिलकुल अलग होने जा रहा है – किसी को मेरी कोई जरुरत नही इसलिए मैं अंश के साथ ये शहर ही छोड़ रहा हूँ तो फिर किससे और किस बात की शिकायत ?” वे सुकून की मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहते है|

पर गौतम जैसे घबरा जाता है|

“इसे सब आपकी हार मान लेंगे और वे यही तो चाहते थे – मेरा निवेदन है क्या एक बार और आप इस बारे में नही सोच सकते ?”

वे गहरा श्वांस खींचते हुए उठकर टहलते हुए अपने हाथ पीठ की ओर बांध लेते है| उनकी ख़ामोशी ही गौतम के लिए हुक्म थी, वह कुछ पल उनकी ओर ताकने के बाद अंश को लिवाने की बात कहता हुआ चला जाता है|

***

नजमा आपा तब से परेशान दालान से कभी घर में आती कभी बाहर जाती ये देखते अहमद मियां से नही रहा गया, वे उनकी तरफ आते हुए आखिर पूछ ही लेते है –

“किसी का इंतजार है आपको ?”

आवाज पर वे चौंकती हुई रुककर उन्हें देखती रही|

“इतनी परेशान क्यों है – सब खैरियत तो !!” वे चलते चलते अब उनके समीप तक आ गए थे|

“सब खैरियत रहे यही तो दुआ है पर लगता है जैसे हमारी खुशियों को हमारी ही नज़र लग गई – पहले मानसी अब मोहित ही हालत सुन कलेजा हलक को आ जाता है|”

अहमद मियां उनके करीब पहुंचकर उन्हें आराम से बैठाते हुए उनकी ओर देखते रहे|

“आप ही कहिए कैसे यकीन हो आने वाले वक़्त पर – मेरा तो हौसला भी नही बनता कि सबीहा खाला के सामने भी जाऊं – खुदा जाने क्या होगा अब आगे ?” एक खलिश सी उनकी आँखों में समा गई|

“आपको तो बढ़कर हौसला देना है और आप ही हौसला खो रही है – हर वक़्त एक सा नही होता – ये वक़्त भी बीत जाएगा – वैसे आप मिलने गई मोहित से ?”

उन्होंने अपने भरे मन से कोई शब्द न बोलते हुए बस न में सर हिला दिया|

“तो चलिए ले चलते है आपको वहां |”

ये सुन सन्न भाव से वे उनका चेहरा देखती रह गई…मानों खुद को वे विश्वास न दिला पा रही हो कि ये शब्द वाकई उन्होंने ही कहे है|

“अगर आप नही चाहती तो सिर्फ वहां तक छोड़ देते है आपको|” वे गौर से उनका चेहरा ताकते हुए कहने लगे तो नजमा झट से बढकर उनका हाथ थामती हुई बस नम आँखों से उन्हें देखती रही पर कुछ कह न सकी|

***

“हेलो मानसी – क्या अभी इसी वक़्त तुम मुझसे दो पल के लिए मिल सकती हो – बेदह जरुरी है |”

नूर के इसरार पर मानसी नूर की बताई जगह किसी पार्क के लिए तुरंत निकल लेती है|

वह मन ही मन कुछ सोचती हुई उस पार्क में प्रवेश करती हुई नूर की बताए स्थान पर पहुँचते नूर को देखती उसके पास आई| वह उसकी ओर देख ही रही थी कि नूर उसकी नज़रों के सामने के परिदृश्य से जरा सा सरक जाती है जिससे अब उसके सामने इरशाद दिखता है|

ये देखते अगले क्षण उसके चेहरे के भाव बदल जाते है|

“तुम भी नूर – सब मुझसे झूठ बोलते है बात छुपाते है – तुमने भी किया ऐसा मेरे साथ…!!” कहते कहते मानसी का स्वर भीग गया था|

नूर बढ़कर उसका हाथ थामती हुई उसे रोकती है – “सुनो तो मानसी |”

इरशाद बेचारा सा चेहरा लेकर उसके सामने आ जाता है पर मानसी उसकी ओर से अपना चेहरा घुमा लेती है|

“नूर उसका हाथ पकडे हुए उससे कहने लगी – “दोस्तों से जब गलती हो जाती है तोएक दोस्त दूसरे दोस्त को माफ़ नही करता क्या !!”

मानसी अब भी उनकी तरफ नही देखती|

“एक बार मेरे कहने पर आखिरी मौका दे दो – देखो अबकी कोई गलती करी न तो देखना मैं तुम्हारा ही साथ दूंगी और हमेशा के लिए इन महाशय से मैं भी कट्टी हो जाउंगी|” कहकर नूर हंस दी और कुछ हलकी हंसी मानसी के होंठो पर भी थिरक आई|

नूर एक हाथ से मानसी का हाथ थामे दूसरे हाथ से इरशाद का हाथ थामती उनका हाथ मिलाती हुई कहती है – “अब कर भी लो दोस्ती जैसे अपने स्कूल टाइम में तुम दोनों लड़ कर फिर दोस्ती कर लेते थे|”

मानसी अब अपने होंठ भींचे उनकी ओर देखती है तो इरशाद जल्दी से अपने कान पकड़ता एक बार उठक बैठक करता हुआ अपनी आँखों से याचना करता है|

“हाँ हाँ ठीक है पर नूर के खातिर लेकिन इससे ये मत समझ लेना कि इससे मैं तुम्हारे उस सो कॉल दोस्त से भी मान जाउंगी – बोल देना उसे अब चाहे मेरे पीछे आए, मुझे मनाए तब भी नही |” कहती हुई मानसी फिर गुस्से भरी आँखों से उनकी ओर देखती हुई अपना पैर पटकती तुरंत वहां से चली जाती है|

उसे तुरंत जाता देख नूर हैरान उसे रोकती ही रह गई फिर इरशाद की ओर देखने लगी जो अब मंद मंद मुस्करा रहा था|

“अब जय का क्या होगा !!”

“बोला न पीछे जाएगा, मनाएगा तो मान जाएगी|” इत्मीनान से इरशाद कहता है पर इसके विपरीत नूर के चेहरे पर हैरानगी के भाव बने रहते है|

“लेकिन उसने तो कहा वो ऐसे नही मानेगी !!”

“यही तो तुम नहीं समझ पाई पर इतने दिन से मैं जानता हूँ न मानसी को कि उसके ये कहने का क्या असल मतलब है !” कहते हुए इरशाद मुस्करा रहा था|

“लेकिन वो बहुत नाराज तो है आखिर जय ने उसका विश्वास जो तोडा है – ये रिश्ते आखिर विश्वास की नींव पर ही तो खड़े होते है|”

“लेकिन नूर मैं जय को जानता हूँ भलेहि कुछ सालों से ही क्यों न पर वह अपने काम के साथ साथ अपने रिश्तों के साथ भी बहुत ईमानदार है – उससे भूल हुई या मानसी ही उसका विश्वास नही जीत पाई कि जय ये बात उसे बता पाता |”

नूर हैरान सी अभी भी इरशाद की ओर देख रही थी जो सपाट भाव से अपनी बात कहता जा रहा था – “जय आज भी अपने भाई को बहुत याद करता है पर अपनी हंसी में किसी को जताता नहीं यही कारण है वह अपने दुःख पर कभी किसी से बात नहीं करता लेकिन कोई तो बहुत बड़ी बात रही थी जिसने उसके जीवन में अपने भाई के प्रति इतनी नफरत पैदा कर दी – अब बस कभी कोई वक़्त ऐसा आए जब उनके बीच सब ठीक हो सके हम बस यही दुआ कर सकते है|”

कहते कहते इरशाद किसी उम्मीद में दूर क्षितिज में देखने लगता है|

***

इरशाद ज्योंही वापस घर आता है, नज़मा आपा को वहां से निकलते देख फूला नही समाता लेकिन साथ में अहमद जीजा भाई को देख वही सकपका जाता है| फिर जल्दी से उन्हें सलाम कर खुद को संभाल लेता है|

“इरशाद जिस दिन थोड़ा समय हो तो आइयेगा अपने घर |”

“जी |” वह चाहकर भी अपने चेहरे से हैरानगी का भाव नही हटा पाया|

“मोहित को देखने आई थी बस दुआ है जल्दी से वे ठीक हो जाए – देखिए मैं तीनों वक़्त का खाना भिजवा देती हूँ आप अब अपने दोस्त और काम पर ध्यान दीजिए बस|”

“अप्पी इसकी क्या जरुरत है |”

“मैं पूछ नही रही – बता रही हूँ आपको – फिर जब आप सबकी शादियाँ हो जाएगी तब ऐसी खातिर हमसे न मिलेगी बल्कि हम आएँगे आपके यहाँ खाने पर |” कहती हुई आपा हंस देती है, इसपर अहमद मियां भी मुस्कराए बिना नही रह पाते|

“अच्छा हुआ आप खुद मिल ली – मैं आपको एक खबर देने वाला था|”

“क्या !!”

“मेरा नाम राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार के लिए मेरे प्रेस से रिकमेंड किया गया है – मुझे आज ही संपादक जी से पता चला |”

“वाह – आप खूब तरक्की करे|” आपा का चेहरा ख़ुशी से भर उठा|

“अभी तो रिकमेंड किया है – जब वक़्त आएगा – आप मेरे साथ चलिएगा |”

“आप इसके काबिल भी है – ऐसे वक़्त का हमे इंतजार रहेगा|” अहमद मियां भी कहते हुए मुस्करा दिए|

***

आज छुट्टी का दिन था सब साथ भी थे पर उनके होंठों की खुशियाँ जैसे कही नदारत हो चुकी थी| सब मोहित के आस पास बैठे साथ में चुपचाप नाश्ता कर रहे थे, उनके बीच गहरी ख़ामोशी काबिज थी कि उनकी मौजूदगी में भी नामौजूदगी का अहसास था| मोहित उनके चेहरे देखता आखिर ख़ामोशी का तार तोड़ता हुआ पूछता है –

“आगे क्या सोचा है ?”

अचानक वे तीनों रूककर मोहित की ओर देखने लगते है|

“मेरा मतलब है शादी वादी नही करनी क्या तुम लोगों को ?” मोहित जिस मुस्कान से उनकी ओर देख रहा था उनका चेहरा उतना ही उदासीन बना हुआ था|

“देखो जो बुरा वक़्त था चला गया और मेरा इंतजार मत करो – अभी इस टांग में और बीस दिन लग जाएँगे तब जाकर कहीं मैं खड़ा हो पाउँगा – आखिर चल पाउँगा तभी तो जा पाउँगा न शैफाली के पास |” कहते कहते मोहित का चेहरा दर्द में भी खिल उठा पर ख़ामोशी से अपनी अपनी प्लेट में झुके उन तीनों के सर अपनी अपनी नम आँखों को उससे छुपा ले रहे थे, उनके पास अब कहने को कुछ नहीं था, वे उफनते मन से दर्द की लहरों को खुद पर से चुपचाप गुज़र जाने दे रहे थे|

“बुआ जी भी आई थी – वो भी कितना उदास थी – अब देखो मैंने सोच लिया है इस साल का काम इसी साल खत्म करना है और नए साल के जश्न के साथ तुम तीनों को भी मैं इंगेज होते हुए देखना चाहता हूँ और इसमें कोई आनाकानी नही चलेगी – |”मोहित खुद में ही खुश होता कहता जा रहा था – “और देखो मेरी चिंता मत करो अभी मैं सब काम संभाल लूँगा और जब मेरा नंबर आएगा तब तुम तीनों फ्री होगे न – तब मैं तो सिर्फ शैफाली का हाथ थामे बैठा रहूँगा |” कहते हुए मोहित हंस पड़ा और वे तीनों प्लेटों चम्मचों की खटपट में अपने अपने शब्दों को दबा ले गए|

वे जान रहे थे कि खामोश रहने वाला मोहित आजकल कुछ ज्यादा ही वाचाल हो गया था, मानों शांत ताल में ढेरों लहरे उमड़ आई हो|

वह बिस्तर के सिरहाने सर टिकाए मानों अनंत आकाश निहारता बस कहे जा रहा था – “बहुत देर से सीखा मैंने अपनी गलतियों से – जब वक़्त था तब कुछ न कर पाया इसलिए चाहता हूँ तुम लोग वक़्त का इंतजार मत करो अपने अपने हमनवां का हाथ थाम लो इससे पहले ये वक़्त फिर पलट जाए – बड़ा धोखेबाज़ होता है ये वक़्त भी – जाने कैसे चुपचाप हमारे हाथों से सरक जाता है और अफ़सोस के तट पर तनहा छोड़ जाता है बिलखने…..|”

वे तीनों अब खामोशी से अपनी अपनी खाली प्लेटों पर चम्मच घुमाते मानों उस लम्हें से शब्दों की गुहार लगा रहे थे, पर वक़्त उतनी ही ख़ामोशी से निकलता जा रहा था|

***

अपनी बात कहकर मोहित खामोश नहीं रहा वह सच में उनकी सगाई की फिर से तैयारीयों का बैठे बैठे ही प्रबंध करने लगा….कभी बुआ जी को फोन लगाता…..कभी नज़मा आपा को…वह सभी को दिलासा दे रहा था कि उन तीनों को वह मना ही लेगा और जल्द से जल्द सगाई का इंतजाम भी कर लेगा…

मोहित बिस्तर पर अधलेटा जय को वर्दी पहनते देख उसको मानसी से बात करने को कह रहा था|

“हाँ तो मैं थोड़े ही नाराज़ हूँ – सही वक़्त आएगा तो बात भी होगी और मुलाकात भी अभी तो फिलहाल तुम मेरी बात सुनो मैं कहता हूँ तुम्हारे पास अभी समय है तो मानव को बुला लो – उसकी पढाई भी हो जाएगी और तुम्हारा समय भी कट जाएगा|”

जय की बात सुन मोहित सहमति में हाँ में हाँ मिलाता अब वही उपस्थित टिफिन समेटती हुई वर्षा की ओर देखता हुआ कहता है – “और वर्षा तुम भी सुन लो – साथ में तुम भी पढ़ना – सब्जेक्ट सेम है न तुम्हारे – और मुझे कोई बहाना मत सुनाना |”

उनकी बात सुन वर्षा हाँ ही बोलने को थी पर मोहित की बात से बस हाँ में सर हिला कर अपनी शरारती आँखों में आती कोई चमक को छुपाती चुपचाप वहां से चली जाती है| 

जय वर्दी पहन अब वहीँ बैठा झुककर अपने जूते के तस्मे बांध रहा था तो मोहित मोबाईल की स्क्रीन में नज़रे जमाए था| तभी तेज आहट के साथ वहां मानसी आती है|

दोनों जब तक कुछ समझते वहीं अपनी तेज आवाज में जय के ठीक सामने खड़ी बोल रही थी –

“समझते क्या हो तुम खुद को – मैं यहाँ पूरा दिन फ्री बैठी हूँ क्या जो बैठे बैठे पूरा दिन तुम्हारे भेजे ब्लैंक मेसेज देखती रहूँ – मेरे पास कोई काम नही तुम्हें सोचते रहने के अलावा |”

जय देखता रह गया, मानसी उसके ठीक सामने खड़ी गुस्से से उसी को घूरती जाने क्या कह रही थी वह समझ नही पा रहा था, बस उसे अपने सामने बहुत करीब दिख रही थी वह|

“ये क्या नाटक लगा रखा है  – पूरा दिन थोड़ी थोड़ी देर में मोबाईल से मुझे ब्लैंक मेसेज भेजते रहते हो – क्यों भेजते हो मुझे – आखिर क्या होता है उसमें – |” वह गुस्से में भरी आँखों से जय को घूरती रही|

अब जय को मामला समझ आया वह एक बार पीछे पलटकर मोहित की ओर देखता है, जिसके हाथ में उसी का मोबाईल था, वह धीरे से मुस्कराता हुआ मानसी की ओर देखता झट से उसके गुस्से में तने होंठों को चूम लेता है|

“ये था उन ब्लैंक मेसेज में |” हँसता हुआ कहता अपनी कैप पहनता तेजी से वहां से निकल जाता है|

मानसी उस पल अवाक् रह गई, उसके होठ खुले के खुले रह गए, फिर बुलेट की आवाज सुनते उसकी तन्द्रा भंग होते वह होश में आती अब मोहित की ओर देखती है जो जानकर अपना सर ऊपर उठाए छत की ओर देख रहा था, ये देख वह गुस्से में पैर पटकती वहां से निकल जाती है|

क्रमशः……….

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