
हमनवां – 62
डीआईजी ऑफिस में डीआईजी साहब के सामने तने सीने के साथ जय खड़ा हुआ कहता जा रहा –
“सर मेरी अब तक की पूरी रिपोर्ट है ये – वे चारों यहाँ आए नही बल्कि बुलाए गए थे और लोकल शूटर से उनकी हत्या करवाई गई – सारे सबूत मैंने अपनी इन्वेस्टीगेशन से हासिल किए है क्योंकि कई बार कोशिश की गई कि पुलिस को भ्रमित करने के लिए सारे सबूत इस तरह प्रस्तुत करे जैसे उनके बीच नंबर वन होने का कोई संघर्ष चल रहा हो जबकि इसके पीछे पूरी तरह से राजनीतिक कुचक्र का हाथ है – जिसमें कुछ बड़े नाम मेरे हाथ लगे है |”
वे फाइल को तल्लीनता से देख कर अब जय की ओर देखते हुए कह रहे थे –
“वेलडन – तुमने बखूबी केस सोल्व किया लेकिन अब इन बड़े नामों पर बड़ी सावधानी से हाथ डालना क्योंकि मैंने अपने नीचे उन्हीं को सर्वाधिकार दिया है जो बिना कुर्सी से प्रभावित हुए वर्दी का सम्मान करते है |”
“एस सर ऐसा ही होगा |” उनका कम कहा ज्यादा समझते जय सैलूट कर वहां से निकल गया|
***
ख़बरों की सनसनी अभी खत्म कहाँ हुई थी, अगली सनसनी टी वी चैनल पर प्रसारित हो रही थी, जिसे सुनने मानसी अपने पिता के साथ बैठी थी|
‘चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ अब जब हर पार्टी में टिकट बाँटने की रस्म हो रही है, उसी में सबसे बड़ी पार्टी के अन्दर हलचल मची हुई है, हमारे सूत्रों के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष के सामने कुछ ऐसे खुलासे हुए है जिससे टिकट का स्थान्तरण कभी भी हो सकता है, कल तक जिन अश्विन कुमार के पार्टी में इस्तीफे पर चर्चा गर्म थी आज उनकी वापसी पर चर्चा हो रही है, ऐसा कहा जा रहा है कि एक पत्रकार जिसने कुछ लोगों के प्रभाव में आकर पीत पत्रकारिता की जिससे अश्विन कुमार का नाम बदनाम हुआ यहाँ तक कि उन्हें पार्टी से निकाले जाने की नौबत आ गई, वह अपना माफीनामा अब सार्वजानिक करने वाली है जो अपने आप में एक बड़ी खबर है कि कितने ही पत्रकार ऐसा करते है पर गलती कौन मानता है, आइये अब इसमें हम चर्चा करने वाले है कि कहाँ तक ऐसा करना पत्रकारिता के जगत के लिए नुकसानदायक हो सकता है, हमे इसका बहिष्कार करना चाहिए या हम सबको उस पत्रकार के समर्थन के लिए खड़ा होना चाहिए…|’
जैसे जैसे खबरे सुनाई दे रही थी, कमिश्नर साहब के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे, बगल में उनके कंधो पर सर टिकाए मानसी शून्य भाव से सामने देख रही थी|
“पापा मैंने ठीक किया न !”
वे मानसी की हथेली अपने हाथों के बीच रखते हुए कहते है –
“गलती करना गलत नही गलती को दुबारा करना गलत है – मुझे ख़ुशी है कि तुममे अपनी गलती को मानने का हौसला है इसलिए बेटा अब मत घबराओ – जो होगा अच्छा ही होगा – सच की राह में मुश्किल तो आती है पर सच ही है जो अडिग रहता है |”
वे विश्वास से उसकी ओर देखते है तो मानसी झट से उनके गले लग जाती है|
“पापा अब तो आप मुझसे नाराज़ नही है न ?”
“मैं कब तुमसे नाराज़ था पर तुम बात बात पर नाराज़ होना छोड़ दो समझी ..|” कहते हुए उसकी नाक पकड़कर हिला देते है, जिससे मानसी को हंसी आ जाती है|
तभी एकाएक टी वी में नई पार्टी के एक बड़े नाम गिरधारी दुबे की गिरफ़्तारी की खबर स्क्रीन में दिखाई जाने लगी साथ में जय की भी, ये देख दोनों सजग मुद्रा में सामने की ओर देखने लगे|
“बड़ा हौसला है जय में वरना वर्दी को सत्ता से प्रभावित होने में समय नही लगता|”
ये सुनती मानसी धीरे से मुस्करा दी|
“मुझे भी ख़ुशी है कि अश्विन कुमार जी के सिर से कलंक का बोझा उतर गया – |” कहते हुए वे फिर सामने की ओर अपनी नजरे जमा देते है|
***
मोहित के आस पास बैठे जय, मानसी, इरशाद, नूर, समर और ऋतु की प्रश्नात्मक नज़रे अब उसी पर जमी थी, किसी को कुछ समझ नही आ रहा था कि उसने उन सबको एक साथ क्यों बुलाया ??
वे औचक उसकी ओर देख रहे थे और वह मुस्कराता हुआ एक नज़र उन सबका चेहरा देखते हुए अब उनकी तरफ कुछ बढ़ा रहा था|
वे हतप्रभता से उसके द्वारा दिया कार्ड बारी बारी से देख रहे थे|
“ये क्या है ??” एक साथ सब प्रश्न करते है|
“31 दिसम्बर जब पुराना साल नए आवरण में नवीनता की ओर अपना कदम बढ़ा रहा होगा तब तुम भी अपने अपने प्यार का हाथ थामे अपने नए जीवन की ओर पहला कदम रखोगे – तुम तीनों की एक साथ मंगनी का कार्ड है और कसम से इंकार किया न तो देखना अपनी दूसरी टांग भी तुडवा लूँगा मैं |” कहता हुआ मोहित आवाज कर कसकर हंस दिया|
“इसकी इतनी भी क्या जल्दी थी |” वे परेशान से उसकी ओर देखते है|
“जल्दी ही है मुझे – मेरा आखिरी फरमान समझ कर मान लो यारों |”
मोहित की बार सुन वे सब एकदम से उखड़ते हुए बोले – “पागल है क्या – कुछ नही कहते तो इसका मतलब जो जी में आएगा कहता रहेगा !”
इस पर एक तेज हंसी से मोहित हंस पड़ा|
“चलो कार्ड पसंद है न तो आज से बाँटने का काम शुरू कर दो – बहुत सारे लोगों को बुलाएँगे – एक ग्रैंड पार्टी होगी|”
मोहित पूर्ण उल्लास में कहता जा रहा था पर बीच में ही मानसी टोकती हुई कहती है –
“कम से कम एक रिक्वेस्ट तो मान लो हमारी कि हम चाहते है ये इवेंट बहुत सादगी से हो – सिर्फ परिवारों के बीच |”
मानसी की बात सुन अब सब एक दूसरे की ओर पूर्ण सहमति से देखने लगे थे क्योंकि इस वक़्त मोहित की बात मानने की सिवा उनके पास कोई चारा नही था|
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सभी घरों में फिर से मंगनी की तैयारी शुरू हो गई| मोहित भी जागता तो फोन से ही सारी व्यवस्था करने में लग जाता| सारी रात कार्ड में नाम लिखने में लगा रहा तो सुबह होते उसकी आंख लग गई| समर और जय के जाने के बाद अब इरशाद उसके पास रुका था| वह उसके पास आता हुआ देखता है कि सीने में कार्ड और कलम रखे रखे ही मोहित सो गया था| वह धीरे से उससे कार्ड और कलम हटाता उसे सहूलियत से लेटाता हुआ कार्ड टेबल में रखता हुआ जाने लगता है तो सहसा उसकी नज़र उस कार्ड पर जमी रह जाती है|
वह कार्ड के नाम की जगह पेन से बनाई गई आँखों को देखता रह गया…उन एक जोड़ी नीली आँखों की रेखाएं इतनी गहन और स्पष्ट थी मानों अभी पलक झपका देगी….किसी प्रेमी दिल की दीवानगी थी वहां…उनकी कोरों में टिकी बूंद में मानों समस्त संसार समाया लग रहा था….वे ऑंखें कोई सवाल थी या वक्त से गुहार ये सोचकर इरशाद मोहित की ओर आद्र मन से देखता रह गया…..कि तभी चौंककर मोहित जाग जाता है….इरशाद तुरंत उसके पास आता उसे संभालता है…वह लेटा लेटा ही यूँ गहरी गहरी सांसे ले रहा था मानों मीलों दूर से भाग कर आया हो…..
“क्या हुआ मोहित !!!” वह उसकी बेचैन नज़रों को देखता रहा जो कुछ तलाशती अब इधर उधर भटक रही थी|
“क्या ढूंढ रहे हो ?”
इरशाद को उसकी बेचैनी देख समझते देर नहीं लगी कि उसकी तलाश के दायरे में बस वही नीली ऑंखें थी, इरशाद वह कार्ड उसकी तरफ धीरे से बढ़ा देता है, ऐसा करते वह देखता रह जाता है कि मोहित कितने करीने से उसे संभालकर फिर अपने सीने में रख लेता है|
“मोहित !!”
इरशाद कुछ और कहना चाहता था पर शब्द जैसे हलक तक आते चुक जाते और वह बस उसकी ओर देखता रह जाता इसके विपरीत उन आँखों को अपनी पनाह में कर वह सुकून से अब कह रहा था –
“मैंने कार्ड में सारे नाम लिख दिए है – तुम लोगों के कहेअनुसार सीमित लोग ही बुलाए है – सोचता हूँ गाँव से अभी नही बुलाता – आएँगे तो मेरी हालत देख सब परेशान हो उठेंगे फिर ताई जी, दार जी खुद को यहाँ आने से नही रोक पाएँगे – यार ठीक कर रहा हूँ न मैं – अभी सर्दी बहुत है – मैं उन सबको परेशान नही करना चाहता |” शैफाली के बिना परजाई से क्या कहूँगा नही जा सकूँगा
“जैसा तुम चाहो |” वह सहमति में मोहित का हाथ थाम लेता है |
“बस बाँटने का काम तुम लोगों का है – इरशाद |”
कहते कहते वह इरशाद की ओर कुछ ख़ास कहने की तरह देखता हुआ कहता है – “एक कार्ड पवन तक भी पहुंचा देना – भावना जरुर मुझसे खफा होगी पर मैं उससे मिलकर उसे बताऊंगा कि जो गलती हो गई मुझसे उसे सुधारने का मौका दे दे बस लेकिन क्या वो भरोसा करेगी मुझपर |”
बेख्याली में वाचाल होते मोहित के शब्दों के पीछे की बेचैनी को महसूसते इरशाद के पास कोई शब्द नही बचे, वह सपाट भाव से बस उसकी ओर देखता रह गया|
***
आज मोहित के कॉलेज के स्टाफ से कुछ लोग आए थे, साथ में कुसुमलता तो जैसे सारा श्रृंगार ही ओढ़कर आई थी और छुईमुई सी बैठी मोहित की ओर प्यारभरी नज़रों से देख रही थी पर उसकी ओर बिना ध्यान दिए हुए मोहित कह रहा था –
“मदन – मुझे एक लम्बी छुट्टी चाहिए |”
“हाँ हाँ सर वो तो आपका मेडिकल तो ऑफिस में आ गया |” वह जल्दी से अपनी बात कहता है|
“दरअसल मुझे उसके बाद भी छुट्टी चाहिए – मुझे लन्दन जाना है और पता नहीं कितना समय लग जाए आने में|”
मोहित के ये कहते उसी कमरे में उससे कुछ दूर बैठे इरशाद की नज़र एकदम से उसकी तरफ मुड़ गई|
“बहुत जरुरी है समझो मेरे जीवन मरण का प्रश्न है|” दिलशाद नज़रों से अपनी बात कहता जा रहा था|
“क्या कहते है सर – ऐसा भी क्या है ?”
“अपनी दुल्हन को लिवाने जाना है – रूठ गई है मुझसे|” जिस ह्या से मोहित ने अपनी बात कही सब पर वह बात अलग अलग गुजरी|
“सर जी हमे तो आप बताए नही |”
मोहित धीरे से मुस्कराता हुआ अपनी तकिया के नीचे से तस्वीर निकालकर उसे अब उनके बीच में रख देता है| अब सबकी नज़रे उस तस्वीर पर जम गई थी|
मदन तुरंत चिहुँकते हुए बोला – “अच्छा सर जी ये तो वही है न – हम तो पहले से ही ताड़ लिए थे कि कुछ तो है पर सर जी आप भी छुपे रुस्तम निकले पर अब चिंता मत करिए आप आराम से जाइए और भाभी जी को मना कर लाईए – यहाँ हम प्रिंसपल साहब को सब समझा देंगे |”
वह खींसे निपोरे अभी भी उस तस्वीर को देख रहा था वही कुसुमलता के चेहरे के भाव बदल चुके थे| उसकी नज़रे भी जैसे वही तस्वीर पर जमी रह गई| वह देखती रह गई उस तस्वीर को ताज के सामने एक दूसरे के विपरीत बैठे मोहित और शैफाली की एक दूसरे की ओर टिकी नज़रो को, उस पल मानों कायनात थम गई होगी…उनकी एक दूसरे की आँखों में समाए प्रेम का ताज इतना विस्तार होता दिख रहा था मानों पीछे का ताज उससे फीका हो गया….ये दृश्य और बहुत देर कुसुमलता की ऑंखें नही देख पाई और उसके मुंह का स्वाद बिगड़ने जैसा उसका चेहरा भी बिगड़ गया जिससे परेशान होती हुई वह कह उठी –
“ऐसा है मोहित सर – मुझे न बहुत जरुरी वाला काम याद आ गया – अब मैं चलती हूँ|” झट से अपनी बात कहती वह तुरंत वहां से निकल गई जबकि मोहित की याद फिर ताज के गलियारे में कही खो सी गई थी|
क्रमशः……….