Kahanikacarvan

हमनवां – 63

पुराने आवरण को बदलते नए कलेवर में नये साल के स्वागत के साथ आखिर वो दिन भी आ गया जिसका हर दिल को इंतजार था लेकिन वो दिन आया भी तो इतने घावों के साथ कि हर होंठ पर खुलकर हंसी भी नही ठहर पा रही थी| गेस्टहाउस के उस सजावटी हॉल के स्टेज पर वे तीनों जोड़े एक साथ मौजूद थे पर सबके दिलों में शैफाली की नामौजूदगी का असर साफ़ नज़र आ रहा था| वही उन्हें तबियत से निहारते हुए मोहित अभी भी अपने प्लास्टर के साथ आरामदायक स्थिति में बैठा था, उसका हाथ थामे समर के पिता उसके पास ही बैठे थे लेकिन उस पल उनके पास भी दिलासे के कोई शब्द नही थे, बस वक़्त पर भरोसा और ढेर दुआ थी दिल में|

जो मोहित और शैफाली के बारे में नहीं जानते थे उनके लिए ये बेरौनक लम्हा गले नही उतर रहा था, कहीं कोई हंसी ठिठोली नही बल्कि हँसते मुस्कराते दोस्तों के बीच खामोशी देख वे हैरान से थे| इसी बीच धीरे धीरे सभी की आमद हो रही थी, बुआ जी ने बड़े हौसले से गुरूजी को भी निमंत्रण दिया जबकि उन्हें उनके आने पर अविश्वास था पर अचानक उन्हें आता देख ऋतु संग बुआ जी की ख़ुशी का पार नहीं रहा, वे आगे बढ़कर उनका स्वागत करती है| वे भी उतने ही आत्मीयता से उनका स्वागत ग्रहण कर ऋतु के सर पर हाथ फिराते हुए आशीष देते है| इसी के साथ वे उस पल में ये अहसास भर देते है कि प्रेम तो ईश्वरीय देन है जिसे आत्मसात करना होता है किसी पर थोपना नही| ये उस लम्हे का विश्वास बन उन सबकी निगाहों में दीप्त की भांति दमक उठा|

नज़मा आपा के चेहरे की ख़ुशी तो मानों आज श्रावण का मेघ हो चली थी, वे नूर और इरशाद पर से अपनी निगाह ही नहीं हटा पा रही थी| मानों मुद्दतो बाद उनकी कोई मुराद पूरी हुई हो|

उस पल उँगलियों में गिनती के मेहमानों के बीच बस मंगनी शुरू होने ही वाली थी तभी बेहद सादगी से दिव्या समर और ऋतु के सामने खड़ी उन्हें बुके देती हुई अपनी गहरी मुस्कान का साथ उन्हें बधाई देती हुई कह रही थी – “ये दिन और आने वाला हर दिन मुबारक हो आप दोनों को |”

“तुमने बहुत देर कर दी दिव्या..|” समर और ऋतु साथ में बुके लेते समर पूछ बैठा|

“हाँ देर तो कर दी….|” कहते हुए उसके होंठों के किनारे हलके से फ़ैल गए – “मुझे माफ़ करना पर इस दिन की गवाह नही बन पाऊँगी मैं – मुझे आज ही बेंगलूरु जाना है|”

ये सुनते दोनों के चेहरों पर क्यों प्रश्न तैर गया|

“डॉक्टर नवीन ने शादी कर बेंगलूरु में अपना हॉस्पिटल खोला है तब से साथ में ज्वाइन करने का निमंत्रण दे रहे है – मैंने वो ज्वाइन कर लिया है समर – अब तुम्हारे सर्जन बनते तुमने भी हॉस्पिटल बदल लिया तो अब दिल्ली में मेरा दिल भी नही लगेगा |”

ऋतु आगे बढ़कर उसके गले लग गई, दिव्या भी पूरे मन से उसके अंक में समाती मानों किसी के  अहसास की अंतिम अनुभूति चुपचाप अपने अन्दर समेटती कह उठी – “कभी समय मिले तो बेंगलूरु आना…|” असल में उसका मन कहना चाहता था कि फिर तुमसे कभी मिलना न हो तो ही अच्छा होगा….दिव्या नहीं रुक पाई और बेहद ख़ामोशी से वहां से चली गई|

मंगनी की रस्म का अब सभी को इंतजार था, लगभग बुलाए गए मेहमान आ चुके थे पर कमिश्नर साहब रूककर एक बार दरवाज़े की ओर देख लेते| तभी जय की इंतजार करती निगाह एक दम से सजग हो उठी और अश्विन कुमार की आमद से वहां मौजूद सभी की निगाह जैसे उन्ही तक आती ठहर गई| वे संकुचाते मेहमान की तरह अन्दर आ रहे थे पर जय आगे बढ़कर उनके पैर छू कर उनके साथ अपने रिश्ते को सार्वजनिक कर उनके गले लग जाता है|

उस भावुक पल में वे कैसे खुद पर नियंत्रण रख पाए ये उनका दिल ही जानता था, उनके साथ आया अंश झट से सारे जोड़ों के बीच में आता अपनी जगह बना कर उन सबको मुस्कराने पर मजबूर कर देता है|

सभी की उपस्थिति में उँगलियों से बंधन होता उन सबकी आँखों से होता हुआ मन के पोर पोर में समा गया| वे हाथ एक दूसरें से सदा के लिए बंधकर खिल उठे| मंगनी के बाद खाने पीने के दौर में सभी अपने अपने में व्यस्त थे वहीँ वर्षा मानव को किसी किनारे अकेला खड़ा देख उसके पास आने से खुद को नही रोक पाई और अपने लहंगे को लहराती लगभग थिरकती हुई ठीक बगल में धमकती हुई उसे बुद्धू पुकारती है, जिससे वह उसे घूरते हुए लगभग गुर्राते हुए कह उठा – “मुझे बुद्दू क्यों बोलती हो तुम –??”

“मैं तुम्हारे सामने खड़ी हूँ और तुमने बताया नही कि मैं कैसी लग रही हूँ तभी तो कहती हूँ – बुद्धू हो तुम |” वह दोनों हाथों से लहंगा लहराती मटकती हुई कहती है|

इसके विपरीत उसका चेहरा गुस्से में और तन जाता है|

“मैं बुद्दू नही हूँ समझी – उस दिन मोहित भईया ने दस ड्राईवेशन दिए थे मेरे सारे दस के दस सही थे और तुम्हारे सिर्फ आठ तो कौन हुआ बुद्दू ???”

वह भौं उचका कर पूछता है तो वह अपने चंचल नयन थोडा तिरछा करती हुई बोली – “तुम |”

वह हैरान उसका चेहरा देखता हुआ मन में गुणाभाग करता रह गया और वह उसके सामने खड़ी खिलखिला पड़ी|

“मैं तुम्हारी शिकायत करूँगा |”

“कर दो – मैं तो किसी से नही डरती |”

वह मन ही मन सोचता रह गया कि वाकई वह किससे और क्या शिकायत करेगा, वह हैरान अपलक उसकी ओर देखता रहा और वह खिलखिलाती हुई चुपके से सबकी नज़रो से छुपकर उसे हौले से धक्का देती दूसरी ओर भाग गई और वह उस पल के उदोलन के पश्चात् भी बुत बना वही खड़ा रह गया|

***

सगाई में मेहमानों के बीच जब भावना और पवन मोहित को नहीं दिखे तो वह कमरे में मौजूद इरशाद को पुकारता हुआ पूछ बैठा – “इरशाद भावना और पवन क्यों नही आए – तुमने उन्हें कार्ड दिया तो था न !!”

मोहित का प्रश्न सुन इरशाद उस पल सकपका गया जिससे उसके शब्द लड़खड़ा गए – “आं – हाँ – हाँ दिया तो था |”

“तो आए क्यों नही – माना मुझसे नाराजगी है पर तुम लोगों के लिए तो आते |” मोहित संशय भरी नज़र से इरशाद की ओर देखता रहा और इरशाद उससे नज़र चुराता इधर उधर देखते हुए कहता है – “पता नही शायद कुछ और कमिटमेंट रहा होगा – अच्छा एक मिनट मैं आता हूँ|” उसके और सवालों से बचता इरशाद जाने लगा तो मोहित उसे संदेह भरी नज़र से देखता रह गया|

यही सवाल उसने मानसी के आने पर भी किया पर किसी से समुचित जवाब न मिलने पर उसमें एक खीज सी भर गई जिससे वह कह उठा – “कहीं कुछ ऐसा है क्या जो तुम लोग मुझसे छुपा रहे हो !!”

उन सबके निरुत्तरता से उसमे अब खुद को उसी स्थिति में रखे रहना भारी गुजने लगा| अब एक कमरे तक सीमित दायरा उसके मन को सालने लगा इसलिए जिद्द करके उसने तीस दिन के अन्दर ही प्लास्टर कटवाने की जिद्द लगा दी, इस वादे को मानने के साथ कि वह अभी ज्यादा नही चलेगा पर इसके विपरीत मोहित सबकी अनुपस्थिति में छड़ी की सहायता से चलने की भरसक कोशिश करने लगा|

उसकी नीरवता में अब बस खुद को फिर से चलने लायक बनाने के अलावा वर्षा और मानव को पढ़ाना ही शामिल था| ऐसे ही किसी पल टहलते टहलते मोहित उन्हें लिखने को कुछ दे कर उनकी नज़रों से ओझल होते वर्षा अपनी अतिरेक चंचलता में मानव के गाल को एक क्षण भर को होठों से छू लेती है जिससे मानव अपने स्थान से उछल ही पड़ा….

तभी मोहित छड़ी की सहायता से वहां आता जिसे देख मानव घबरा कर कह उठा – “मैंने कुछ नही किया !!”

“क्यों नही किया –|” उसके हवाइयां उड़े चेहरे को देखता मोहित उनके सामने बैठता हुआ उसकी कॉपी देखता हुआ कहता है – “लाओ दिखाओ – किया तो है |”

अब हैरान सा मानव का उड़ा उड़ा चेहरा तो धीरे धीरे हंसती हुई वर्षा की ओर देखता हुआ पूछता है – “बात क्या है – वर्षा तुमने किया !!!”

ये सुन वर्षा सर न में हिलाती मानव की ओर देख अपने ऊपर से नियंत्रण खोती कसकर खिलखिला कर हंस पड़ी कि मोहित उसकी ओर हैरानगी से देखता रह गया|

***

दोस्तों की अनुपस्थिति में मोहित खुद में हौसला भरता हर पल खुद को चलने लायक बनाने का भसक प्रयास करता हर कमरे से अन्दर बाहर करता रहता, ऐसे ही किसी वक़्त इरशाद के कमरे में उसके हाथ मंगनी का वो कार्ड हाथ लग जाता है जिसके ऊपर उसके ही हाथ द्वारा भावना और पवन का नाम लिखा था, वह कार्ड वहां क्यों है ???वह कार्ड दिया क्यों नही गया ???क्या कारण हो सकता है??? क्या सच में कुछ ऐसा है जो उससे छुपाया जा रहा है??? 

ऐसे ढेरों प्रश्न उसके दिमाग को मथते रहे, जिससे बेचैन होता उस पल वह परेशान हो उठा| उसे पता था कि इस पर अब कुछ उनसे पूछने का कोई फायदा नही, अब सच का पता उसे खुद ही लगाना होगा, ये सोचते सोचते वह अपनी कशमकश से दो चार होता हताश बैठा था, सामने मानव और वर्षा अपना अपना काम कर रहे थे|

“लाओ दिखाओ क्या किया तुम लोगों ने |”

कहता हुआ दोनों की कॉपी लेता वह क्षण भर देखने के बाद कहता है – “ये क्या मानव सब गलत – तुम्हें हुआ क्या है और वर्षा तुम तबसे बैठी कर क्या रही हो – कुछ लिखा क्यों नही ??” वह अब उन दोनों का चेहरा देखते जैसे पढ़ने लगा उनका मन | वे दोनों ऑंखें चुराते अपनी ऑंखें जमीन में धंसा दे रहे थे| कुछ पल उन्हें निहारते रहने के बाद वह कहता है – “इधर देखो – मेरी तरफ |”

वे कोमल मन डरकर अब मोहित की नज़रों में बड़ी मुश्किल से देख पाते है|

“इधर आओ – बच्चों मेरे पास आओ |” वह दोनों को अपने पास बुलाता है|

वे हिचकिचाते हुए बमुश्किल उसके अगल बगल आकर बैठ जाते है, ये देख मोहित उनके कन्धों पर अपने हाथ का विस्तार करते हुए कहता है – “सब कुछ शब्द ही नही बोलते – ऑंखें भी बहुत कुछ बयाँ कर देती है – मैं कई दिनों से तुम दोनों की आँखों में जो पढ़ रहा हूँ – उसे मैं सशब्द कहते तुम्हें आज अपने निजी अनुभवों से कुछ समझाना चाहूँगा|”

वे हैरान अब मोहित की ओर मुड़कर देखने लगे थे मानों उनके अव्यक्त प्रश्न का उत्तर उन्हें मिल रहा हो|

“प्यार बहुत खुबसूरत चीज है इसे जिंदगी में होना भी चाहिए क्योंकि प्यार आपको अंदर से बहुत अच्छा बना देता है मानों एकदम से जिंदगी के प्रति नजरिया ही बदल कर रख देता है – ये हमे जिंदगी जीने का मकसद देता है इसलिए इसे अपनी नज़रों में गर्व बनाओ शर्म नही – वर्षा क्या कभी तुम चाहोगी कि मानव फेल हो जाए ?”

ये कहते वर्षा हुलसकर एक दम से न में सर हिला देती है|

“और मानव क्या तुम वर्षा को फेल होते देख सकते हो ?”

“नही |” धीरे से कहकर वह चुप हो जाता है|

इस पर मोहित मुस्कराते हुए कहता रहा – “तो प्यार को गर्व बनाओ, अपनी नज़रों का मान बनाओ – खुद भी उठो और हाथ बढाकर अपने प्यार को भी उठाओ – यही सच्चे प्यार की पहचान है – तीन महीने बाद तुम लोग किसी अच्छे से अच्छे कॉलेज में जाओगे तो अभी बस उसी तरफ अपना सारा ध्यान लगाओ क्योंकि गुरु दक्षिणा में हेनडरेड परसेंट मुझे तुम लोगों से चाहिए – समझे |”

“हेनडरेड !!” औचक वर्षा के मुंह से स्वर निकल पड़ा|

“नहीं तुम्हारा नाइंटी फाइव भी चलेगा |”

मोहित की बात सुन वर्षा रूठती हुई एक दम से बोल पड़ी – “क्यों – मुझसे ही क्यों ??”

“क्योंकि तुम्हारा दिमाग कुछ ज्यादा ही चलता है |” कहते हुए मोहित उसके सर पर हलकी चपत मारता है जिससे अपनी जीभ दांतों तले दबाकर वह हंस पड़ती है|

“तो अब इस दो महीने सब कुछ भूलकर डटकर पढ़ो – समझे |”

इसपर अब खुलकर दोनों मुस्करा कर अपनी अपनी आँखों से मोहित को आश्वस्त कर एक दूसरे को देखते है तो मोहित दोनों के सर पर हाथ फिराते हुए कहता है – “तो चलो बिना समय गवाए पढ़ना शुरू करो और मानव तुम अभी मेरा एक काम करो|”

ये सुन चेतन होता मानव झट से मोहित का काम करने को व्यग्र हो उठता है|

“एक टैक्सी बुला दो – मुझे कहीं जाना है |”

“पर इस हालत में !!” दोनों प्रश्नात्मक मुद्रा में उसकी ओर देखने लगे|

“कौन सी हालत – अरे अब मैं बिलकुल ठीक हूँ – कहो तो छड़ी के बिना भी चल कर दिखा सकता हूँ |” कहता हुआ सच में मोहित उन्हें छड़ी के बिना भी खड़ा होकर दिखा देता है| जिससे दोनों की मुस्कान उनके होठों पर फ़ैल जाती है|

क्रमशः……..

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