
हमनवां – 64
मोहित के कहने पर मानव टैक्सी बुलाता उसी के साथ चल देता है| मानव देखता है कि मोहित पवन की बिल्डिंग के नीचे उतरकर उसे घर जाने को बोल अन्दर की ओर बढ़ गया|
मानव घर पहुंचकर मानसी को मोहित के पवन के घर जाने की बात जिस सहजता से कहता है उसे सुन मानसी एक पल भी सहज नही रह पाती और घबरा कर जय को फोन कर तुरंत उसके घर के लिए किसी अनजानी अनहोनी की आशंका से चल देती है|
वह भावना के फ्लैट के बाहर खड़ा कॉल बेल बजा कर दरवाजा खुलने का इंतजार कर रहा था| दरवाजा खुलते सामने भावना को देख वह मुस्कराया पर इसके विपरीत बेहद रूखे भाव से वह मोहित को देखती रह जाती है|
“अरे भावना इतनी नाराज़ हो कि अन्दर नही बुलाओगी क्या ?”
मोहित हंसकर भावना से कह रहा था और वह हतप्रभता से दरवाज़े के एक किनारे खड़ी हो जाती है, जिससे रास्ता पाते हुए मोहित अंदर आते आते कह रहा था|
“पता है कि तुम क्यों नाराज़ हो और होना भी चाहिए – मैंने किया ही ऐसा काम है – वक़्त रहते रोक लेता शैफाली को तो वो हमसे इतनी दूर नही जाती |”
भावना हैरान मोहित की ओर देखती रही जो अपने आप में खोया कहता ही जा रहा था – “पर अब देखना मैं उसे लिवा लाऊंगा देखो मैंने लन्दन की टिकट भी बुक की है – कल सुबह ही निकल रहा हूँ लन्दन और देखना लेकर ही आऊंगा उसे |” कहकर मोहित अपनी पॉकेट से आज़ाद किए एक लिफाफे को उसे दिखाते हुए धीरे से हंस पड़ा तिस पर भावना एक दम से बेकाबू होती एक दम से मोहित की बांह थामती हुई उसे लगभग अपने साथ घसीटते हुए ले जाती हुई कहने लगी – “कहाँ जा रहे हो शैफाली को ढूंढने लेकिन वो तो यही है – चलो आओ मैं तुम्हें उससे मिलवाती हूँ – चलो |”
मोहित हैरान सा उसके साथ साथ खिंचा चला जाता है|
अब वे उस कमरे में थे जो कभी शैफाली का था पर उस कमरे में नज़र दौड़ते उसे कही शैफाली नहीं दिखती हाँ पर उसकी मौजूदगी का हर निशान वहां मौजूद था, अभी भी उसके द्वारा आखिरी बार पहनी गई साड़ी बिस्तर के पैताने पड़ी थी, तो टेबल पर बेतरतीबी से एक स्कार्फ बड़ी ख़ामोशी से पड़ा था, फर्श पर उसकी छूटी हुई सैंडल एक के ऊपर एक किए मानों अभी अभी पहनकर उतार दी गई हो, मोहित उनकी तली में लगी गाँव की मिटटी देख उसे पहचान जाता है| वह हैरान सा खड़ा उस कमरे में मौजूद शेफालिका की खुशबू से महकता एक सरसरी निगाह से पूरे कमरे को देखता कि अचानक उसकी नजर सामने की दीवार पर शैफाली की हंसती मुस्कराती तस्वीर पर जाती है तो उस पल जैसे उसके पैर ही फर्श से उखड़ जाते है वह अपनी जगह से खड़ा खड़ा डगमगा जाता है| उसकी तस्वीर पर हार देख उसकी आँखों को उस पल सब धुंधला धुंधला दिखाई देने लगता है| उस एक पल उसे लगा कि वक़्त थम गया या साँसे सीने में दुबक गई, ऑंखें टकटकी बांधें किरकिरा उठी, गले तक सांसे रुंध गई| भावना गुस्से में अब उसके सामने अखबार को लहराती पटकती हुई कह रही थी – “जाओ लेकर आओ न शैफाली को – ये देखो – जिस दिन उसे तुम सिर्फ तुम उसे रोक सकते थे पर तुमने नहीं रोका और वो चली गई – पूरे अतृप्त मन से – न उसे परिवार मिला न प्यार – उसी दिन हवा में ही उसकी जिंदगी खत्म हो गई – चली गई शैफाली हमसे बहुत दूर – उस बेचारी को न खुद की जमी ही मिली और न आसमान – तो अब बताओ कहाँ से और कैसे लाओगे उसे – बोलो – गाँव से लौटते के बाद मैंने उसे पहली बार इतनी बुरी तरह से टूटते हुए देखा था – उसके टूटे मन की गुहार सिर्फ मैं देख पाई पर उसके लिए कुछ नही कर पाई – इतने दिन उसके साथ रहते उसकी आँखों से तुम कैसे अनजान बने रहे – उसकी आँखों में तुमने खुद का अक्स नहीं देखा कभी – कितने निष्ठुर बने रहे तुम उसके प्रति |”
भरी आँखों से भावना का गला भी भर गया और मोहित ऑंखें बंद किए जैसे अनंत शून्य में समाता चला गया|
“काश जो तुमने आज कहा उस दिन कहा होता तो वो खफा होकर न जाती – काश तुम्हारा उदाहरण देकर हर उस खामोश प्रेमी को मैं सन्देश दे पाती जो प्रेम का समंदर अपने सीने में छुपाए अपने प्रेम की दुनिया में अकेले जीते है तब उन्हें बताती कि खुलकर न कहने की कभी कभी कितनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है…….|”
मोहत का दिल चीत्कार उठा, रूह जैसे देह का साथ छोड़ने लगी, वह बोझिल थके क़दमों से बाहर की ओर चल दिया, पीछे से भावना के चुभते शब्द अभी भी उसके मन को छलनी कर दे रहे थे|
“जाओ मोहित जाओ और ले आओ मेरी शैफाली को – यही तो कहने आए थे न तुम तो अब तभी इस घर में आना जब शैफाली तुम्हारे साथ हो वरना कभी अपना मुंह मुझे मत दिखाना – जाओ |” वह कहते कहते चिल्ला पड़ी|
दरवाजे से वह किसी अंतिम राह की ओर अपने कदम बढ़ा रहा था तभी सामने से आते जय और मानसी साथ में उस ओर आते है| जय मोहित को एक दम से थाम लेता है, वह लाश सा उसके कंधो पर ढह जाता है| मानसी भावना की चीत्कार सुन उसकी ओर दौड़ जाती है| वह फर्श पर घुटनों के बल बैठी बिलख बिलख कर रो रही थी|
***
उस एक पल में सारा सच सामने आते उन तीनों की लिए मोहित को संभालना और मुश्किल हो गया| शाम होते होते लगा जैसे रात का सारा अँधियारा उसकी जिंदगी में समा गया, तीनों उसे घेरे बैठे कुछ समझाना चाहते थे पर बोल किसी के मुंह से नही फूट रहा था|
मोहित अपने में खोया धीरे धीरे बुदबुदा रहा था|
“मैं उसे ढूंढने जाऊंगा – भावना सही कहती है मुझे ही उसे ढूंढना चाहिए –– मैं जाऊंगा उसे ढूंढने – वो ऐसे नही जा सकती – उस दिन भी सारे बिल चुकता कर क्या सोचती है कि उसके मेरे बीच का सारा हिसाब चुकता हो गया – नही बहुत बकाया है उसपर मेरा और मेरा उस पर – कैसे सब अधूरा छोड़कर जा सकती है – मैं जाऊंगा उसे ढूंढने वो बस खो गई है |”
“मोहित |” वे उसे झंझोड़ने जैसे होश में लाते है|
“छोड़ों मुझे तुम लोग दोस्त नही दुश्मन हो –|” रुंधे गले से वह कह उठा|
“होश में आओ मोहित अब सच को स्वीकार लो – नही है शैफाली हमारे बीच |” बड़ी मुश्किल से समर अपना आखिरी शब्द कह पाया|
“नही……..|” एक चीख सी ह्रदय को चीरती मानों चारोंओर कानफोडू स्वर बनती फ़ैल गई|
“झूठ है ये सब – जिस कार ने मुझे कभी खरोच भी कभी नही पहुँचने दी तब मैं इतने बड़े एक्सीडेंट से बच गया जिन्दा तो उसे भी कुछ नही हुआ होगा अगर मोहित है तो शैफाली भी है – यही सच है |” कहता हुआ वह अपना बैकपैक झुककर तैयार करने लगा|
“यार चली गई है न तो भूल जा उसे |” जय जबरन अपने भावों में नफरत लाता हुआ बड़ी कठोरता से बोला|
ये सुन हतप्रभ मोहित का चेहरा उसकी ओर मुड़ता है|
“क्यों – अब क्यों भूल जाऊं – वो तुम्हीं थे न जय जो हमेशा मुझे उसकी ओर धकेलते थे तो अब क्या हुआ – बोलो – अब क्यों !!” उसने तेज किस्म की सरगोशी की – “लेकिन अब मेरा लौटना मुश्किल है – जीना साथ तो मरना भी साथ|”
ये सुन दोनों का मन कांप गया….अब उनके बीच हौसले की दिवार दरकने लगी थी किसी को समझ नही आ रहा था कि कौन किसे कैसे संभाले ??
***
पूरी रात जैसे आँखों आँखों में कट गई….सुबह की फ्लाईट के लिए मोहित खुली आँखों से सुबह का इंतजार कर रहा था तो अन्य कमरे में समर, जय और इरशाद चिंताजनक अवस्था में इस स्थिति से कैसे लड़े सोच रहे थे|
“अगर उसे अभी नही रोका तो उसका लौटना मुश्किल हो जाएगा |” समर टहलते हुए चिंतित स्वर में कह उठा|
“कुछ तो करना ही होगा |” जय हथेलियाँ मसलते हुए समाधान के लिए जैसे अपने अगल बगल देखता है|
तब बहुत देर से खामोश इरशाद कह उठा – “अब एक ही तरीका है |”
आवाज सुन दोनों अब इरशाद की ओर देखने लगे|
“उसे किसी तरह से गाँव ले जाना होगा – अब भाई जी ही स्थिति संभाल सकते है – वह उनकी बात नही टाल पाएगा |”
इरशाद की बात सुन आँखों से दोनों उसकी बात का समर्थन करते है|
***
झूठ जब भलाई केलिए हो तो वह झूठ नही रह जाता…तब समस्या का समाधान होता है बस….यही सोच इरशाद ही आगे बढ़कर मोहित के सामने हडबडाहट से आता कह रहा था – “मोहित अभी गाँव से खबर आई है – दार जी की तबियत बहुत खराब है – हमे तुरंत अभी वहां के लिए निकलना चाहिए |”
अपने में ही खोया मोहित आवाज सुन चौंककर इरशाद और उसके पीछे पीछे अवाक् चेहरे में जय और समर को देखता रहा|
“क्या सोच रहा है – जल्दी चलो – हमे अभी निकलना चाहिए |”
“तुम दार जी से मिलकर फिर जा सकते हो न लन्दन |”
“अभी बस चलो |”
अब ज्यादा कुछ न सोचते मोहित उनकी हडबडाहट देखता उनके साथ गाँव के लिए चल देता है|
वे एक कार में पूर्ण ख़ामोशी से एक साथ थे| उनके बीच नीरवता में मानों उफनती सांसों की आवाज भी साफ साफ़ सुनाई दे रही थी| वे नही जानते थे कि वहां पहुंचकर मोहित के सामने सच कैसे स्वीकारेंगे ?? बस आने वाले वक़्त पर भरोसा कर आगे आगे बढ़े जा रहे थे|
***
सर्दियों का ओस मिश्रित धुंधलका मानों एक आँख से लाल अंगारा आकाश से धरती की ओर धीरे धीरे छोड़ रहा था जिससे चारोंओर चीत्कार करते पक्षी हलक भर चीखते इधर उधर भाग रहे थे| मोहित की नज़रे बगल की खिड़की के बाहर के दृश्य पर टिक सी गई थी| गुजरती हर रहगुज़र में हर जगह उसे शैफाली नज़र आ रही थी, रास्ते पर स्टेरिंग पर हाथ घुमाकर खिलखिलाती हुई, कही रास्तों पर किनारे खड़ी हाथ लहराती हुई…..सब जगह वही एक चेहरा जैसे समा गया था….कहीं कोई अन्यत्र चेहरा उसे नज़र ही नही आ रहा था….उसपल उसे ऐसा लगा मानों उसकी आँखों में वही एक चेहरा चस्पा हो गया जिससे अब किसी और मंजर के लिए उसकी आँखों में कोई जगह शेष नही रही….कब रास्तों में शैफाली संग चलते चलते मोहित गाँव की पगडण्डी तक आ गया ये भाई जी की आवाज सुनकर उसे होश आया|
भाई जी औचक चारों को एकसाथ सामने देख हैरान से उन्हें देखते रहे| इरशाद जल्दी से आगे बढ़कर उन्हें स्थिति समझा देना चाहता था पर उससे पहले ही मोहित अपने तेज क़दमों से भाई जी के सामने आता दार जी का हाल पूछ बैठा|
“ओ हाल सब चंगा जी – पर यूँ हवाइयां उड़े तुसी क्यों – के होएया !!!”
मोहित झटसे पलटकर उन तीनों का चेहरा देखता है तो तीनों उससे ऑंखें चुराते अन्यत्र देखने लगते है, गुस्से में उन्हें घूरता वह आगे बढ़ता हुआ कहता है – “ठीक है दार जी से मिलके मैं अभी निकल जाऊंगा |”
वे मोहित को रोक न सके, वह अपने तेज कदमों से आगे बढ़ गया और भाई जी उन तीनों के चेहरे पर के पिटे भाव देखते रह गए|
क्रमशः……..