
हमनवां – 65
चेहरे पर तनाव की खिंची लकीरों को किसी तरह से जब्त किए हुए मोहित दार जी से मिलने घर की ओर अपने बोझिल क़दमों के साथ बढ़ रहा था कि बच्चों का स्कूल से लौटता हुजूम देख कुछ पल वही ठिठक कर उस ओर देखने लगता है जहाँ से बच्चे दौड़ते हुए बाहर की ओर निकल रहे थे| उस पल उसकी आश्चर्य की सीमा नही रही जब उसने निरकुंज भवन में स्कूल के साथ साथ डॉक्टर का भी बोर्ड लगा देखा, ये देख उसके कदम खुद ब खुद उस भवन की ओर मुड़ गए, वह उस स्कूल को अपनी आँखों से देखने व्यग्र हो उठा|
मुख्य गेट से अन्दर आते खुले आँगन से अब आखिरी बच्चा भी दौड़ता बाहर की ओर निकल गया तो मोहित अन्दर बढ़ते हुए एक एक चीज को निहारता हुआ विचारों की नदी में गोता लगाता आंगन के बीचों बीच मौजूद पारिजात के पेड़ को देखता हुआ वहां शैफाली की मौजूदगी को महसूस करता हुआ नम आँखों से अन्दर आता अब मुख्य कमरे में खड़ा सामने की दीवार की ओर दृष्टि उठाकर देख रहा था जिसे पूजा स्थल की तरह सुसज्जित किया गया था, वहां उसके माता पिता की तस्वीर थी, जिसे देख उस पल खुद के मनोभावों पर नियंत्रण रखना उसके लिए मुश्किल हो गया| जाते हुए लोग क्यों सिर्फ तस्वीर होकर रह जाते है, धुंधली होती नज़रे अब दो अन्य तस्वीरों को देख हैरान रह गई, वे चेहरे किसी की याद दिलाते विचारों को उसके मस्तिष्क को मथे दे रहे थे| वह उस तस्वीर को समझने गौर से देखता खो सा रहा कि आँखों के धुंधलके के बीच शैफाली का साया उसकी आँखों के सामने लहराया तो दिल का दर्द पलकों पर आकर जम गया|
“कैसी हालत कर दी है तुम्हारे अहसास ने मेरी – अब या तो मैं खुद की जान ले लूँ या तुम्हीं समा लो मुझे अपनी पनाह में..|” कहता हुआ वह कसकर अपनी पलकें बंद कर लेता है|
साया उसके अब काफी करीब आकर थमता है|
“तो समा जाओ न मुझमे – कब रोका मैंने..!”
आवाज की सरगोशी से वह पलक खोलता सामने शैफाली का चेहरा देख उतावला होता देखता रह गया| वक़्त भी ख़ामोशी से सांसों के दरमियाँ धड़कनों के क्रम में धड़कता रहा|
“शैफाली…|” वह धीरे से धड़कते दिल से उसे पुकारता है – “तुम सच में मेरे सामने हो या फिर मेरा खुद पर से काबू खो रहा है…!!”
“सामने तो हूँ तुम्हारे इंतजार में |” वह पलके झपकाती धीरे से मुस्कराई – “तुम्हीं ने तो कहा था कि शेफालिका अपनी जड़ों से दूर खिलती है |”
ये देख मोहित जैसे होश में आता मुस्करा उठा – “तुम सच में मेरे सामने हो – उफ्फ – इस पल पर यकीन कैसे करूँ कि तुम मुझे छोड़कर कहीं नही गई…|” उसका चेहरा अपनी हथेलियों में लेता हुआ उन नीली आँखों को उस पल निहारता रहा|
“जाना तो चाहती थी – उस पल बस जाने ही वाली थी पर पता नही कौनसी अदृश्य शक्ति ने मेरे कदमों में बेड़ियाँ बांध दी और तुम्हारा अहसास अपने अन्दर समेटे मैं खुद को यहाँ आने से नही रोक पाई |” “श….शैफाली..|” उसके होंठो पर वह नाम कंपकंपी छोड़ गया|
“तुम मेरा यहाँ इंतजार कर रही थी !!”
“जाने क्यों दिल को विश्वास था कि तुम जरुर आओगे….पर तैनू कि तू तो साडी केयर न करदा !!” कहती हुई वह रूठती हुई दूसरी ओर मुंह फेर लेती है ऐसा करते मोहित के हाथ उसके चेहरे से फिसल जाते है|
ये देख मोहित की हंसी छूट जाती है, उस पल उसके नखरे पर उसे कितना प्यार आया ये उसपर टिकी उसकी ऑंखें बयाँ कर रही थी| वह उस पल एक हाथ सीने पर रखे दूसरे हाथ से उसका हाथ थामता घुटनों के बल बैठता हुआ अपनी नज़रे उसके रूठे हुए चेहरे पर जमाता हुआ जल्दी से कह उठा – “ए तू मेरे नाल व्याह करेगी !!!”
उसपर ठहरी मोहित की नज़रे उसकी ओर से मुड़ी गर्दन अभी भी देख रही थी, जिससे ऊपर वारी जाती उसकी मुस्कराती नज़रे फिर कह उठी – “जान रहम करो – अब इस टूटी टांग के साथ बहुत देर ऐसे नही बैठ पाउँगा |”
“देखो तुम्हारे सच्चे दिल को तोड़ा तो सजा के तौर पर भगवान में मेरी टांग ही तोड़ दी |” कहता हुआ वह हंस पड़ा|
ये सुन शैफाली चुहुंक कर अपने दोनों हाथों से उसका बढ़ा हाथ थाम तड़पकर उसका चेहरा देखती रह जाती है, उस पल ऑंखें बीते दिनों की सारी बेचैनी, इंतजार, कुछ भी उस क्षण अपने में छुपाए न रह सकी| फिर उन बेचैन दिलों को मिलने से कौन रोक सका, वे छुप जाना चाहते थे एक दूसरे की पनाह में…..दोनों के हाथों का बंधन एकदूसरे की पीठ पर कसता गया और उसी क्रम में आंसुओं से चेहरा भीगता चला गया|
“क्यों चली गई थी मुझे तड़पता हुआ छोड़कर…!!”
“तुमने रोका भी तो नही…!!!”
उस एक पल में जैसे जन्मों की प्यास समा गई| आसमानी बर्फ रुई के फाहे सी आकाश से उतरती मन की तलहटी में नदी सी बह चली|
“ए मेरे शिरी फरहाद ऐ कि करदे हो..?” परजाई जी आवाज देती चली आ रही थी पर एक दूसरे में सिमटे खोए उनतक कहाँ किसी की आवाज जा रही थी| परजाई जी सच में आगे बढ़कर दोनों को अलग करती है|
“तुसी दोनो अकेले नई हो जो कुछ भी कार लिए – कोई और भी त्वाडे नाल उसकी फिक्र तो कारि |” परजाई जी अपनी गहरी मुस्कान से शैफाली के उदर की ओर दृष्टि डालती है, जिससे शैफाली के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कान तैर जाती है|
“बड़े छुपे रुस्तम निकले लाला जी – हमारे सामने तो कुड़ी की उंगली भी न थामी और मैनू इन्नी जल्दी ताई बना दिया !!”
मोहित का अवाक् चेहरा अब दोनों के चेहरे पर आई उस गहरी मुस्कान को समझा तो जैसे खुद पर काबू ही नही रख पाया – “क्या सच शैफाली !!”
वह भी हाँ में सर हिलाती मुस्करा दी तो उस क्षण परजाई जी रोकती रह गई और मोहित उसे गोद में उठाए झूम गया|
“ए दोनों भाई नू एसे ही ख़ुशी मनांदे है कि !!” उस पल वातावरण में खिलखिलाहट तैर गई|
“ए बाई हम भी कम खुश नई है !”
भाई जी की आवाज सुन मोहित को ज्योंही अपनी बेखुदी का अहसास होता है वह धीरे से शैफाली को नीचे उतारकर संकुचाता खड़ा रह जाता है| भाई जी के साथ साथ वे तीनों तेजी से उसकी तरफ बढ़ते जैसे उसे घेर लेते है| जय तो उसके पेट पर घूसा जमाता उसके कानों के पास फुसफुसाया – ‘अबे साले हमे बस मंगनी से बहलाकर यहाँ तूने हमसे पोतड़े धुलवाले तक का काम कर दिया |’ वे सब साथ में खिलखिला पड़े और बिना मोहित की टांग की परवाह किए उसके गले लगने तीनों जैसे उसके कन्धों पर लद से गए|
“तो मुंडों तैयार हो जाओ अब पहली शादी इस घार में होगी तो बुला लो सब कुड़ियों नू – फिर एक बार हो जाए पंजाबी मस्ती |” कहकर भाई जी खुद में ही खुश होते एक टांग हवा में उठाए होंठों को मोड़कर आवाज निकालते भांगड़ा करने लगे, ये देख सब साथ में झूम उठे|
शैफाली उस पल की ख़ुशी जैसे पलकों पर बहुत देर समेटे न रह पाई और उस दीवार पर अपने माता पिता की तस्वीर देख आद्र मन से दिल ही दिल शुक्रिया कह अपने जीवन का आखिरी दर्द आँखों से आज बह जाने दिया| अब मुस्कराती आँखों से उस भांगड़े में हैपी और गुरमीत को भी नाचते देख वह भी वर्षावन में बारिश सी खिलखिला पड़ी……|
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एक बार को आँखों में सपने भी समा जाए पर अताह प्यार का समंदर आँखों में समेट पाना कहाँ संभव होता है !! शैफाली की आँखों के लिए इन प्यार भरे रिश्तों को संभालना मुश्किल हो रहा था| एक ओर से परजाई जी उसे थामे तो दूसरी ओर गुड्डी उसे अपनी ओर खींचे बस गले से ही लगा लेती है|
मोहित के लिए तो शैफाली का मिलना किसी ईश्वरीय सौगात से कम नही था, वह उसे नयन भर देखना चाहता था, जी भर के अपने में समेटे महसूस करना चाहता था पर सबकी लगातार की मौजूदगी में वह बस टुकड़ा भर ही उसे देख पाया| वे आँखों से गलबांही मिल लिए|
शैफाली के मिलने से धडाधड दिल्ली फोन हो गए, समर, जय और इरशाद ने ऋतु, मानसी और नूर को फटाफट ये खबर दी जिसे सुनते उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा, मोहित भी तुरंत भावना को फोन लगाता है, पर उसका फोन पूरी रिंग हो जाने के बाद भी नही उठता तो वह पवन को लगाता है|
पवन घर पर ही था इसलिए तुरंत भावना के पास पहुँचता उसे मोहित से बात करने को कहता है, पर तबसे उदासी में लिपटी भावना भरे नयन से मोबाईल की ओर देखती मानों कह उठी कि अब क्या कहना है !! पवन मोहित से तुरंत वीडियो में फोन कनेक्ट करने को कहता उसका स्क्रीन भावना की आँखों के सामने कर देता है| जिसमे मोहित के चेहरे पर भरपूर मुस्कान थी, भावना हैरान नाराजगी भरी आँखों से उसे देखती रही, उस पल बेहद नफरत के भाव से वह उस स्क्रीन से अपनी नज़रे फेर लेना चाहती थी कि उसकी आँखों के परीदृश्य में जो बदलाव हुआ उससे उसकी ऑंखें की नदी फूट पड़ी, वह तुरंत स्क्रीन को अपनी हथेली के बीच लिए बार बार ऑंखें झपकाकर देखने की कोशिश करने लगी, मोहित के हटते अब स्क्रीन पर शैफाली दिख रही थी जिस पर उसके दिल का यकीन लगभग रो ही पड़ा|
वे उसे बता रहे थे कि वे सब गाँव में है और उसका इंतजार कर रहे है, परजाई जी वीडियो मे अपनी झोली फैलाती शैफाली को मांगती दिखी तो शैफाली को थामे गुड्डी खड़ी थी, अचानक इतनी ख़ुशी भावना की भावनाए नही संभाल पाई और वह बिलख उठी पवन दौड़कर उसे अपने अंक में समेटता सँभालते हुए “हम सभी भी आते है|” कहकर फोन काट देता है|
सबके दिलों को जो यकीन करना मुश्किल था वो उनके लिए बस ऊपर वाले का आकस्मिक उपहार था जिसे दोनों हाथों में समेटने को सभी तैयार हो उठे|
क्रमशः……….
Excellent💯💯👍👍👍👍👍👍👍👍👍👍💯💯💯💯💯💯. Aap bahut acchi writer hai😃😃😃😃😄😄🥰🥰