Kahanikacarvan

हमनवां – 67

शादी की मस्ती सभी दोस्तों पर चढ़ी थी, मानसी ने भावना को याद दिलाया कि जूता चुराई भी तो करनी है, भावना जो तब से मनभर बस उन दोनों को देखे जा रही थी उसी पल चौंकती मुस्करा उठी|

“मैं क्या चुराऊँ – मोहित ने खुद मेरी सबसे कीमती चीज चुरा ली |”

ये सुन सारा माहौल हँसी से गुलजार हो उठा|

“वैसे भी बड़ी हूँ तो इन दोनों को मैं सरप्राइज दूंगी जिसे ले कर अभी पवन आने वाले है – |”

“लो नाम लिया और हाज़िर |” सबने देहरी पर खड़े पवन की ओर सबका ध्यान खींचा तो भावना लगभग दौड़ती उसके पास जा पहुंची| अब सभी की निगाह को भी उस सरप्राइज का इंतज़ार था| पवन के साथ कोई सूट बूट में हाथ में एक बिजनेस सूटकेस लिए खड़ा था जिनकी निगाह को किसी की तलाश सी थी|

भावना झट से उनके पास पहुँचती पैर छूती है तो वे भावुक आँखों से उसे देखते रह जाते है| भावना से मिलकर अब उनकी आँखों का जिसका इंतजार था भावना अब उन्हें उस ओर लेकर आती है|

“मोहित चैटर्जी अंकल है – यही सरप्राइज है तुम दोनों के लिए – शादी की सुनते तुरंत चले आए मिलने |”

दुल्हे के भेष में सजा मोहित शैफाली का हाथ थामे उनकी ओर बढ़ता हुआ उनके पैर छूता है तो वे एक दम से उसे कंधे से पकड़ते अपने सीने से लगा लेते है ऐसा करते वे दूसरी बार फिर उसे खींचकर अपने सीने से लगा लेते है ये उस पल मोहित को अटपटा लगा| जिसे वह उसकी आँखों में पढ़ते हुए कह रहे थे – “सच कहता हूँ तुमसे मिलने भागा चला आया – आखिर तुमने मेरे यार का सपना जो पूरा कर दिया और ये दूसरी बार गले अपने यार श्रीधर की ओर से लगा क्योंकि अपना यार तो आज भी अपने दिल में बसता है |” कहते हुए उनका अपनी आँखों से झरती भावनाओं पर नियत्रण न रहा, वे नयन भर शैफाली को देखते रह गए, लाल सुर्ख जोड़े में ये शैफाली थी !! वह उसकी ओर बढ़ते उसे कुछ पल निहारते रह जाते है, उसकी कलाई को दोनों हाथों में थामे अपनी बहती आँखों से लगा लेते है| उस पल जैसे सारे शब्द चुक गए बस स्नेह गंगा की तरह आँखों से बह निकला|

“ये सपना तो नही है न – ईश्वर ने ढेर ख़ुशी डाल दी झोली में – खुश रहो सदा|” वे शैफाली की चुडे भरी कलाई को पकडे उसे नजदीक से निहारते रहे – “और ये मेरी ओर से तुम्हारे लिए – तुम्हारे हिस्से की अपने पिता की मिलियन डालर की सारी सम्पति |” कहते हुए वे अपने साथ लाए सूटकेस को अब उसकी ओर बढ़ाते हुए कह रहे थे – “ये तो तुम्हारा ही था सदा और श्रीधर जो चाहता था वो उसे मिल गया आज मेरे यार की आत्मा को शांति मिल गई – अब संभालो इसे और परेशान मत होना मैंने तुम्हारे खत्म हो रहे वीजा से पहले ही सारे कागजी काम कर लिए – तुम्हें अब लन्दन भी आने की कोई जरुरत नही |”

“और आपको भी |”

शैफाली की बात सुन चैटर्जी के साथ सभी चौंककर उसकी ओर देखने लगे थे|

“लन्दन में जैसे आपने पापा का सब संभाला अब आपको यहाँ मेरा साथ देना होगा – यहाँ ट्रस्ट बनाकर मैं आपके सहयोग से लड़कियों की एजुकेशन के लिए कुछ करना चाहती हूँ जो आपके साथ के बिना कैसे होगा अंकल |”

शैफाली के मुंह से अंकल सुन उनका अंतर्मन मानों बिन शब्दों के आँखों के रास्ते बह निकला वे उसके सर पर हाथ फेरते आँखों से आश्वासन देते है| और शैफाली बढ़कर उनके गले लगती हुई कह रही थी –

“समय बीता हुआ तो नहीं वापिस कर सकता पर जो है उसे जरुर सुरक्षित रखने का मौका देता है – अब आपको मेरे पापा की कमी पूरी करनी होगी जिसके लिए आपको मेरे साथ यही रहना होगा अपने देश में |”

अपनी उमड़ती भावनाओं से कुछ नही कह पाए बस भरी आँखों से हाँ में सर हिलाते है| सभी इस भावुक पल को अपनी अपनी नम आँखों से बस निहारते रहे|

ये खुशियों का उन्मुक्त जहाँ था जहाँ सभी एकदूसरे का साथ पाते ख़ुशी से झूम रहे थे| भांगड़ा बजते अब किसी के पैर का रुकना जैसे नामुमकिन ही था, सारे यार दोस्त अपने अपने हमनवां का हाथ थामे बस झूम ही उठे, इस पल चैटर्जी अंकल भी उनके बीच आते नाच उठे तो सारा माहौल खुशियों की तरगों से भर उठा|

खिलखिलाहट के बीच अब ढलते दिन से सारे दोस्त मिलकर मोहित और शैफाली को लिए कमरे में लाते है| दोनों नज़र उठाकर कमरे को देखते रह गए, यारों ने मिलकर जैसे सारे जहाँ के फूलों से कमरा नही दिल का दरबार सजा दिया था|

भौं उचकाकर वे पूछते है और मोहित खुश होता मुस्करा देता है, वह अब मुस्करा कर शैफाली की ओर देखता है जो पलंग पर मानसी, ऋतु और नूर के साथ फूलों की लड़ियों के बीच बैठी थी| अचानक मोहित के चेहरे के भाव बदल गए, उसे लगा दोस्त अब चले जाएँगे पर सभी वहां महफ़िल सजाए बिस्तर पर जड़ें बैठने लगे जिससे मोहित खड़ा खड़ा बस उन्हें घूरता देखता रहा लेकिन उन सबने में से किसी ने जैसे उसकी ओर देखा भी नही और अपनी अपनी मस्ती भरी किस्सों की पोटली खोले बैठ गए|

समर जोक सुनाने लगा – “जब उस लंगड़ाते आदमी को देखते दो डॉक्टरों ने पूछा कि तुम्हारे कौन से पैर की हड्डी टूटी है बताओ क्योंकि वे डॉक्टर आपस में शर्त लगा चुके थे तो वह आदमी बोला हड्डी नही डॉक्टर साहब मेरी तो चप्पल टूटी है|”

ये सुनते सभी कसकर हँस पड़े पर इसके विपरीत मोहित का गुस्से में मुंह बनता गया, वह हज़ार बार समर के मुंह से ये चुटकला सुन चुका था फिर भी सारे दोस्त ऐसे हँस रहे थे मानों पहली बार सुन रहे हो| अब जय कुछ अपने किस्से सुनाने लगा कि कैसे एक बार रात वह किसी नए थाने गए और उस जगह फंस गए तब सारी रात पुलिस वाले भटकते रहे और जब सुबह हुई तो पता चला वो किसी थाना चौकी के पीछे ही थे तब सबकी जो किरकरी हुई पूछो मत समझ नही आया कि अपनी हालत पर हँसे या रोए |ये सुन नूर को भी अपने हॉस्टल का कोई भुतिया किस्सा याद आ गया| उसका किस्सा सुनकर ऋतु समर के पास सरक आई तो सबका हँसते हँसते पेट दर्द हो गया| अब इरशाद और मानसी अपने अपने किस्सा पहले सुनाने आपस में लड़ पड़े |तब से उन सबका नाटक देखते मोहित का चेहरा गुस्से में लाल हो रहा था पर दोस्तों पर इसका लेशमात्र भी फर्क नही पड़ते देख मोहित गुस्से में बाहर निकल गया|

वह बाहर निकला ही था कि उसके चिल्लाने की आवाज गूंजी तो सब एकसाथ दौड़ते हुए बाहर आए जहाँ मोहित को फर्श पर अपने एक पैर पर झुका देख घेर कर सब खड़े हो गए|

“क्या हुआ मोहित ?”

“क्या दर्द है ?”

“पैर में कुछ चोट लग गई क्या ?”

सबके चेहरों पर एकसाथ ढेर परेशानी उतर आई| शैफाली भी परेशान सी मोहित के पास आई तो मोहित उसका हाथ पकडे उसे अपने पीछे की ओर कर देता है और सभी आगे उसके सामने झुके थे| उसी पल सब देखते रह गए जब सबका ध्यान उसके पैर की ओर था और मोहित तेजी से खड़ा होता शैफाली का हाथ पकडे कमरे के अन्दर जाता झट से अन्दर से दरवाजा बंद कर लेता है| सारे दोस्त अवाक् खड़े देखते रह गए| अन्दर आते शैफाली अब सारा माजरा समझती पैर पर पैर चढ़ाए बैठी हलकी मुस्कान से उसकी ओर देखने लगी इधर मोहित की चालाकी पर दोस्त दरवाजे के बाहर हंगामा मचाए थे| मोहित के होंठ के किनारे मुस्करा उठे तो दोस्त भी हँसते हुए अपने अपने हमनवां का हाथ थामे जा चुके थे क्योंकि उनकी बदमाशी पकड़ी जो जा चुकी थी|    

शैफाली भौं उचकाती मानों पूछ रही थी – “कुछ कहना है ?”

“हूँ – सॉरी कहना था |” उसकी ओर बढ़ता कहता है|

“हूँ !!!” शैफाली भौं जोड़े आश्चर्य से देखती है|

“इतनी देर जो लगा दी दिल की बात कहने में |”

“लेकिन मुझे तो थैंक्स कहना था |”

“हूँ !!!” अब मोहित भौं जोड़े आश्चर्य से देखता है|

“उन सब खूबसूरत रिश्तों के लिए जिनसे मैं बिलकुल अनजान थी |”

अबकी मोहित हलके से मुस्कराता उसकी ओर कदम बढ़ाते हुए कह रहा था – “तब तो मुझे भी थैंक्स कहना है |”

“हूँ !!!”

अब मोहित शैफाली के बहुत पास आता उसका चेहरा अपनी हथेली में भरे उसकी मांग चूमते हुए कह रहा था – “इस खूबसूरत अहसास के लिए तो थैंक्स भी अदना शब्द है |” उसके हाथ सरकते उसके उदर को किसी नन्हे बच्चे सा सहलाते कह रहे थे जिससे मचलती शैफाली उसकी बाँहों में समां जाती है अब मोहित उसे अपने पाश में घेरे प्रेम के अनंत झील में गुम हो जाना चाहता था जहाँ शब्दों के अंतहीन अहसास उन्हें सदा के लिए एकदूसरे में समाए लिए जा रहे थे….

***

ये प्यार की पनाहगाह थी इससे छूटने की न दिल को इज़ाज़त थी और न आरजू..| मोहित को शैफाली क्या मिली उसे लगा जैसे तमाम जिंदगी उसे मिल गई| अब इसके सिवा दिल को चाहिए भी तो क्या !! गाँव में मेहमान शादी के तीन दिन के बाद तक भी बने हुए थे इससे दिन के समय तो मोहित शैफाली भूले से भी नही मिल पाते पर तिगड़मी दिल कहाँ बाज आने वाला था| मोहित किसी बहाने से शैफाली को लिए खेत तक आ पहुंचा था| ठण्ड की सुनहरी धूप भरी सुबह बहुत ही भली लग रही थी| जहाँ आम के पेड़ के नीचे की छावं के घास की मखमली कालीन पर वे साथ में एक दूसरे का हाथ थामे आसमान की ओर देखते हुए पड़े थे| शैफाली के चुडे से भरी कलाई पर उंगलियाँ फिराते मोहित बहक रहा था| उनके बीच का मौन भी मानो झंकृत हो उठा था जिससे मोहित कुछ गुनगुना उठा तो शैफाली उसकी ओर मुड़ती प्यारभरी निगाह से देख रही थी|

‘अपनी थकी आँखों को मेरी पनाह में आज सो जाने दो..

न उठाओ इन्हें आज यही खो जाने दो..

मुद्दतो से प्यासे सूखे लबो को इश्क कह लेने दो..

बसे रहो निगाहों में कि बाकि सब भुला लेने दो….’

‘चलो दिल्ली कि अब हमे भी शादी कर लेने दो…|’

अचानक आखिरी लाइन पर मोहित एकदम से सर उठाकर देखता है तो जय आम के पेड़ के दूसरी और पीठ टिकाए उसकी कविता के आगे की लाइन बोलता हुआ आराम से पैर पर पैर चढ़ाए बैठा था|

“जय..!” मोहित उठकर बैठता हुआ उसे पुकारता है|

“अरे मोहित तुम यहाँ !! पता ही नहीं चला |”

जय की बनावटी बात पर मोहित सख्त नजर से उसे घूरता हुआ बोलता है – “तू हमे ढूंढता हुआ यहाँ आया है न !”

“न जी हमारे पास और भी काम है बस घर में सभी ढूंढ रहे है तुम दोनों को |” उनके बीच मानसी आती हुई कहती है|

“तो बता दे न हम यहाँ है – पूरा गाँव इकट्ठा कर ले |” चिढ़े स्वर में बोलता हुआ मोहित उठते हुए अपने कपड़े झाड़ने लगता है| अब शैफाली मुस्कराती हुई उठकर बैठती हुई कभी मोहित को देखती तो कभी जय मानसी को|

जय और मानसी एकदूसरे का हाथ थामे मोहित की हालत पर कसकर हँस रहे थे जिससे चिढ़ता हुआ मोहित कहने लगा –

“जब से शादी की है चैन से दो पल हमे साथ में नहीं मिला – लगता है जैसे सारा गाँव हमारे ही आस पास डोल रहा है और जो आज बड़ी मुश्किल से यहाँ आए भी  तो तुम चले आए – |”

“पुलिस वालो की निगाह से बचना मुश्किल ही नही नामुमकिन भी है |” कहता हुआ जय मोहित की हालत पर फिर ठहाका मारकर हँस पड़ा|

अब मोहित कुछ नही कहता बस उसे सख्त नजर से घूरता हुआ शैफाली का हाथ थामे उनसे दूर जाने लगता है| खेत से कुछ कदम के फासले पर अन्यत्र पेड़ के नीचे बनी पक्की चौपाल पर सूखे पत्तो का बिछोना सा बना था| अब वे दोनों वही बैठ जाते है| मोहित जानकर जय की ओर से पीठ किए था| अभी मोहित बैठा ही था कि पत्तो से सनसनाता हुआ एक बड़ा फल सरर से उनके बीच आकर गिरता है जिससे एकदम से डरकर शैफाली पीछे हट जाती है| मोहित उस फल को उठाए अभी ऊपर देखता ही है कि पेड़ से कूदकर नीचे आता इरशाद उसके हाथ से वह फल लेता हुआ कहता है – “चकोतरा – मैं तब से तोड़ने की कोशिश कर रहा था नही टूटा इसलिए ऊपर चढ़ गया – नाज के लिए है |”

मोहित अवाक् देखता रहा कि फल उसके हाथ से लेता हुआ इरशाद वही आ रही नाज़ के हाथ में सौंपते हुए बड़ी दिलनशीनी से उसे देख रहा था|

मोहित समझ गया कि उसके सारे दोस्त वही मौजूद थे इससे हवा में आवाज लगाता हुआ कहता है – “समर अब तुम भी निकल आओ सामने |”

“तुमने मुझे बुलाया !” मोहित ये देखकर हैरान रह गया कि समर को आवाज लगाते वह बस उसके बगल में ऋतु संग तुरंत आ खड़ा हुआ|

मोहित जहाँ सबको खा जाने वाली निगाह से घूर रहा था वही बाकि सभी दोस्त उसके आस पास खड़े अपनी भरपूर निगाह से उन्हें देख रहे थे|

“हमारा पीछा करने के अलावा कोई और काम है तुम लोगो के पास !”

मोहित की बात पर जय जल्दी से कहता है – “बिलकुल आपका काम खत्म तो सारी दुनिया का काम खत्म हो गया – पता है आज कौन सी तारिख है ?”

इस पर मोहित चौंकता हुआ कह उठा – “सात तारिख है – ओह शिट कैसे भूल गया |” याद करते हुए मोहित अपने सर पर टीप मारते हुए कहता है|

जय भी उसी अंदाज में आगे कहता है – “जी – बारह तारिख को इरशाद का निकाह है और उसके चार दिन बाद समर की शादी और उसके चार दिन बाद मेरी – तो अगर आपकी आज्ञा हो तो हम भी शादी कर ले |”

“हाँ हाँ कर लो शादी – अब हम दोनों मिलकर तुम तीनो की शादी कराते है – आखिर तुमसे सीनियर जो हो गया |” मोहित हँसते हुए कहता है|

“हाँ भाई बड़ी मुश्किल से मानसी राजी हुई है वरना बेचारे जय का क्या होता |” चुटकी लेता हुआ समर उन्हें छेड़ता है|

“सही कहा |”

मानसी भी उसी लय में हामी भरती खिलखिला उठी इसपर मुंह बनाते हुए जय बोल उठा –

“अच्छा तो जाओ नही करता शादी |” अपने सीने पर हाथ बांधते हुए जय अकड़ता हुआ बोला तो सारे इस दृश्य का मजा लेते मुस्करा पड़े|

“अरे कल लो न शादी – वरना खरीदा मेरा लहंगा बेकार हो जाएगा |” मानसी और चुटकी लेती हुई जय को हौले से धक्का देती हुई कहती है|

इस पर जय जबरन गुस्से वाला मुंह बनाते हुए उससे दूर होता हुआ कहता है – “अच्छा ये बात है तो जाओ अब तो और नही मानने वाला |” जय की अकड पर मानसी उसे छेड़ती हुई उसे हौले हौले धक्का देती रही|

“मान जाओ – मुझे परेशान किया तो न !” जय मानसी को टोकता है|

“तो क्या करोगे |” मानसी होंठो के किनारे मोडती हुई कहती है|

“तो…मैं तुम्हे बहुत परेशान करने वाला हूँ |” अबकी जय की तिरछी मुस्कान पर मानसी धीरे धीरे पीछे हटने लगी, ये देख जय उसे पकड़ने उसकी ओर लपका तो मानसी उसे अंगूठा दिखाती खिलखिलाती हुई मैदान की ओर भाग लेती है तो जय भी भरपूर मुस्कान से उसे पकड़ने उसके पीछे दौड़ लगा देता है| ये नज़ारा देख सबकी हँसी छूट जाती है|

“ऐसा करते है हम देखकर आते है ये कहाँ गए |” कहता हुआ इरशाद नाज़ की कलाई थामे दूसरी ओर दौड़ जाता है |

उन सबको खिसकते देख मोहित और शैफाली भी एकदूसरे का हाथ थामे तालाब की ओर चल दिए थे|

अपने अपने हमनवां का हाथ थामे सभी इश्क में डूबे थे| सबके जाते वहां खड़े समर और ऋतु अब एकदूसरे के कंधो पर ढलके आसमान के जादू में खो चुके थे| ये उनकी खूबसूरत दुनिया थी जिसका कब से उन्हें इंतजार था जब आठो एकसाथ मौजूद होते अपनी दुनिया को मुकमल होता हुआ देखते| जहाँ प्यार का विशाल आसमान पिघलता हुआ उनके मन में उतरता फिजाओं में नशा सा घोले दे रहा था| अब उन दिलो को कहाँ इस नशे से निकलने की चाह थी|

शाम होते जैसे पक्षी अपने घरोंदे ओ लौट आते है वे चार जोड़े भी चुपचाप डेरा लौट रहे थे| वे सभी देखते है कि आंगन में कुछ अलग ही हलचल मची थी| वहां आते वे समझ गए कि ये हलचल मेहमानों की वहां से लौटने की थी| अब उन बाकी के जोड़ो की शादी की बरी थी तो अप्पी नाज़ को लिए लौटने वाली थी जबकि मोहित दो दिन बाद आ रहा था और बाकी के दोस्त भी उसी के संग लौट रहे थे| इरशाद मानसी को मक्खन लगा रहा था कि वे किसी तरह से अप्पी माना ले कि दो दिन बाद भी हम सबके साथ लौट जाएगी|

“अच्छा चल तेरे काम के बदले क्या देगा – |” मानसी भौं उचकाती हुई पूछती है|

इस पर इरशाद गिडगिडाते हुए कहता है – “कुछ भी काम करा लेना – दो दिन का गुलाम बन जाऊंगा तुम्हारा – बस |”

“बस दो दिन !”

“अच्छा तीन दिन – अब बस इससे ज्यादा नही – पता है एक मासूम का फायदा उठा रही हो – अच्छी बात नही है |” इरशाद बच्चो सा मुंह बनाते हुए कहता है|

“भई हर काम की कीमत तो देनी ही होती है – अब डील पक्की कर तो करूँ तेरा काम |” मानसी मौके का पूरा फायदा उठाती हुई कहती है|

“ठीक है |” इरशाद की मरमरी आवाज पर मानसी हंसती हुई इरशाद के सर पर टीप मारती हुई आगे चल दी|

मानसी अप्पी को आखिर मना ही लेती है| इससे तय होता है कि अगले दो दिन बाद आठो एकसाथ दिल्ली लौटेंगे| सबको अहसास था कि ये भी काया मंजर होगा जब वे एकसाथ सफ़र करेंगे और जो सफ़र फुल मस्ती भरा होने वाला था|

वकील अंकल के जाने की बात सुन शैफाली और मोहित उनसे मिलने उनके सामने बैठे थे|

“आपने तो कहा था आप सारा काम खत्म कर आए है – फिर क्यों लौटना है आपको ?” शैफाली पूछती है|

इसपर वे हलके से मुस्कराते हुए कहते है – “अभी कुछ रह गया तभी तो लौट रहा हूँ |”

उनकी बात पर आश्चर्य से वे दोनों वकील अंकल को देखने लगते है|

“कभी मेरे दोस्त की तम्मना पूरी होगी ये सोचा ही नही था पर शायद वक़्त को सब पता होता है तभी तुम्हारे पिता और मेरे दोस्त की अंतेष्टि मैंने संभाल कर रखी थी – सोचा था कभी मरूँगा तो यार के साथ ही दफन हो जाऊंगा पर अब अपने दोस्त को और इंतजार नही कराऊँगा – तुम्हारे हाथो उसे गंगा में प्रवाहित करके उसे मुक्ति दे दूंगा – क्या पता किस रूप में मेरा दोस्त वापस आ जाए |” शैफाली के हाथ पर अपना विश्वस्त हाथ रखते वे आद्र नज़र से उसे देखते है|

“ठीक है – जैसा आप चाहे |”

शैफाली की बात पर वकील अंकल आगे जल्दी से कहते है – “वैसे मुझे वहां और भी काम है तो थोड़ा समय लग जाएगा आखिर सारा कुछ समेटना जो है |”

“हाँ मैं भी यही चाहती हूँ कि आप भी अपने देश वापस लौट आए|” शैफाली भी मुस्कराती हुई कहती है|

“क्यों न तुम दोनों भी कुछ समय के लिए वहां आओ – आखिर मोहित ने दिल्ली तुम्हे घुमाया तो तुम उसे यूके घुमाओ |” अपनी बात पर दोनों के उड़े उड़े भाव देख वे आगे कहते है – “मुझे सब पता है – भावना से लगातार बात होती थी – वो तुम्हारी बहुत फ़िक्र करती रही|”

“पर अभी दोस्तों की शादी है |” मोहित बोलता है|

“कोई बात नही पंद्रह बीस दिन में जब सबकी शादी हो जाए तब आ जाना बल्कि मैं तो कहता हूँ सारे दोस्त मिलकर वहां आना तो कुछ और ही समां होगा उसका |”

“वाओ – थैट्स गुड आइडिया  – यही ठीक रहेगा – डन अंकल |”

शैफाली और मोहित की रजामंदी से वे अब वापसी की तैयारी करने लगते है|

बदल रह था उनका संसार…या यूँ कहे उनकी दुनिया का दायरा बढ़ रहा था जिसकी अपार खुशियाँ उनका अपनी खुली बाहों से स्वागत कर रही थी पर क्या सब कुछ ऐसा ही होगा…क्या सोचा हुआ सब वैसा ही होता है या आगे चलकर उनकी जिंदगी बदलने वाली है…जानने के लिए जुड़े रहे हमनवां से…

क्रमशः………..

3 thoughts on “हमनवां – 67

  1. Bhut achi kahani thi mene kuch samay pahle hi lipi pr padi thi…. Ab aage ke part badi besabri se intzar rahega…..

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