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हमनवां – 68

मोहित की शादी हो जाने से अब बाकी के तीनो की शादी की तैयारियां पुरजोर से शुरू हो गई थी| नजमा आपा की खुशियों का तो पार ही नही था| वे हर रोज ही बाज़ार घूम आती और आते वक़्त लगता जैसे सारा का सारा बाजार खरीद के अपने साथ ले आई हो| आखिर इरशाद के निकाह से उनकी दिली ख्वाहिश जो पूरी हो रही थी| वही नाज़ के परिवार में एक अलग ही कशमकश थी| वे नाज़ के निकाह से जहाँ खुश थी तो वही शादी बाद उसके उस घर पर जाने से उन्हें एतराज़ था| मन दुविधा में था कि अलग अलग धर्म के चार लोग अब एक साथ एक ही छत के नीचे आखिर कैसे रह पाएँगे ?वे इस कोशिश में थे कि किसी तरह से शादी को जाए फिर इरशाद को मनाकर अलग रहने का दवाब बना ही लेंगे|

मानसी और जय को शादी से ज्यादा रोजाना मिलने और एकदूसरे में डूबने से कहाँ फुर्सत थी| अश्विन कुमार कुछ समय के लिए आगामी चुनाव भूल कर बस उन दोनों की शादी की तैयारी में लगे थे| जिसके लिए रोजाना ही उनकी भेंट कमिश्नर साहब से होती| हर दिल अपनी ही उमंग में सराबोर था|

समर के पिता की स्वैक्षा से ऋतू की बुआ जी उनकी हिन्दू रीतिरिवाज से शादी करने की तैयारियों में लगी थी| समर को भी कोई एतराज नही था| देखा जाए तो अपने पिता के द्वारा उन दोनों को अंगूठी पहनाने के समय से ही उसे अपनी ये शादी मुकम्मल नज़र आने लगी थी| अब जिसको जो चाहे रिवाज पूरे करने हो उसे उससे कोई खास फर्क नही पड़ने वाला| ये सारे घरवाले उन सबकी गाँव से वापसी की प्रतीक्षा में लगे थे| नजमा आपा से लेकर भावना, पवन पहले ही वापस आ गए| अब उन आठो का एक साथ वापस आने का इंतजार था|

एक मकान जिसे चारों दोस्तों ने मिलकर एक घर बनाया था आज उन अर्थों से वह और भी पूर्ण होने जा रहा था|

गाँव की सोंधी खुशबू से भावभीनी विदाई के बाद वे दो कार से चारों एकसाथ लौट रहे थे| एक कार जिसे समर चला रहा था तो बगल की सीट में ऋतु बैठी थी और उनके पीछे जय और मानसी बैठे थे| तो दूसरी कार की ड्राइविंग सीट पर मोहित और बगल में शैफाली थी तो पीछे इरशाद और नाज़ बैठे थे|

आगे बैठे जोड़े बमुश्किल एक दूसरे को नज़र उठाकर देख पाते तो वही पीछे बैठे जोड़े एकदूसरे का हाथ थामते तो कभी एकदूसरे में समाने लगते| ये उनके प्रेम का सबसे खुशनुमा पल था|

“ये बार बार तू ब्रेक क्यों लगा रहा है ?” मोहित जो बहुत देर से कार ड्राइव कर रहा था जबकि वह कुछ पल शैफाली के साथ उन चलते रास्तो को निहारना चाहता था| लेकिन पीछे बैठे इरशाद और नूर तो अपनी ही दुनिया में डूबे थे| व्यू मिरर से कई बार मोहित अपनी घूरती आँखे इरशाद को चुभोना चाहता पर इसका असर तब होता जब वह उसे देखता उसकी तो पल भर को भी निगाह नूर पर से नहीं हटी थी| इससे जलता भुनता मोहित बात बार बिना स्पीड कम किए गेयर बदल लेता और कार झटका खा जाती जिससे भुनभुनाया इरशाद आखिर उसपर बरस पड़ा था|

मोहित भी उसी चिढ़े हुए भाव से कह उठा – “थक गया हूँ – अब तू चला और मैं पीछे बैठूँगा |”

इरशाद भी उसे व्यू मिरर से घूरता हुआ जवाब देता है – “वैसे तो जनाब आठ आठ घंटे बिना रुके ड्राइव कर लेते है – आज क्या हुआ – क्यों भुने बैगन की तरह मुझे घूर रहा है |”

“क्योंकि तुझे ये समझ नहीं आ रहा कि मैं भी थक गया हूँ |” दांत पीसते हुए मोहित बोल रहा था जबकि उन दोनों की हालत पर नूर और शैफाली होंठ भींचे हँस रही थी|

“अच्छा इतनी सी ड्राइविंग से थक गया – और जो तूने मुझसे भारी भारी बैग रखवाए थे गाड़ी में उसका क्या – मेरे तो अभी तक हाथ थके है |” इरशाद बच्चो का मुंह बनाते हुए कह रहा था|

“हाँ हाँ वो तो दिख ही रहा है तेरा हाथ दर्द |” व्यू मिरर से इरशाद के उस हाथ को घूरता है जो जाने कब से नूर की बांहों के बीच था|

“ठीक है तू ड्राइव नहीं करेगा तो मैं भी ऐसे ही चलाऊंगा |”

जहाँ मोहित और इरशाद बच्चों सा लड़ रहे थे वही समर का भी मन अब ऋतु संग समय बिताने का हो रहा था जबकि उसके पीछे आराम से पैर फैलाए बैठा जय मानसी की गोद में सर रखे था| ये देख देख समर भुनभुनाते हुए कार की स्पीड धीमी तेज करने लगा|

“क्या कर रहा है समर ठीक से चला न – मैं सीट से गिर गया तो |” जय अपनी चिढ़ाती हुई आवाज में बोलता है|

“हाँ जय बहुत ध्यान से चलाता हूँ ताकि तू गिरते गिरते बचे – न |”

इससे चिढ़ता हुआ समर तुरंत कार को ब्रेक लगा देता है जिसे सच में जय आगे की ओर गिरता गिरता बचता है ये देख मानसी खिलखिला कर हँस पड़ी तो ऋतु परेशान होती जय को पूछने लगी|

ये बस इश्क वाली बात थी जिसमे दिल बेताबी से भरा था और मन अपने अपने हमनवां संग दूर तलक उड़ जाना चाहता था| समर और जय की तू तू मैं मैं पर ऋतु और मानसी की हँसी छूट जाती है|

अब तक वे आधा रास्ता पार कर आए थे और उसी ढाबे पर रुके थे जहाँ रुके बिना वे कभी आगे नहीं गए| उन चार जोड़ो को देखते तो ढाबे वाला भांगड़ा ही कर बैठा|

“ओ बशाओ आओ आओ – तैनू साथ देख बडा दिल खुस हो गया अज मैन्यु – ओए सपेशल वाला नास्ता लगाने है |” आवाज लगाता हुआ वह यूँ चमक उठा मानों अभी झूम उठेगा|

वे चारो अपने अपने हमनवां के हाथ को थामे बैठे थे| आठों के बीच चार थाली आई थी और ए एकदूसरे को खिला रहे थे ये देखते हर आने जाने वाले उनका प्रेम देख गुदगुदा जा रहे थे| मोहित शैफाली की आँखों में देखते तीखी मिर्च निगल गया और दिल ने उफ़ तक नही की| नूर इरशाद के खिलाने पर उसकी उंगली में हलके से काट लेटी है और इरशाद यूँ झूम उठता है मानों इश्क का चुम्मन मिल गया हो|

आखिर खाना खत्म करते वे सभी थोड़ा इधर उधर घूमते थोड़ा रिलैक्स कर रहे थे| इरशाद और जय रास्ते के लिए चिप्स खरीदने लगे तो मोहित कार शीशा पुछवाने लगा था| समर तो पहले से ही पीछे जाकर बैठ गया ताकि अब कार जय ही चलाए|

वही मानसी वाशरूम से लौटी तो तीनो को कुछ दूर एकसाथ खड़े देखा| असल में ढाबे के पास ही कोई औरत चुन्नी और चूड़ियों की स्टाल लगाए थी जिसपर नूर का दिल आ गया| चूड़िया उसकी कमजोरी थी वह ऋतु और शैफाली का हाथ पकड़े उन रंग बिरंगी चूड़ियों को देखने लगी थी| मानसी की इन सब में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वह वही खाट में बैठी उन्हें देखने लगी|

जब जय और इरशाद वापस आए तो उनकी पहली नज़र उन तीनो लड़कियों पर गई और इरशाद अपने मजाकिया अंदाज में जय से बोल उठा –

“ये लेडीज शोपिंग भी कमाल है – कही भी शुरू हो जाती है इनकी –|”

उसी तर्ज पर जय भी बोल पड़ता है – “तभी तो सब्जी मार्किट में भी लेडीज का सामान बिकता है – और एक हमारा जरुरी सामान – जो बहुत खोजने पर भी बड़ी मुश्किल से मिलता है |”

इरशाद कहता है – “देखना एक घंटे से पहले ये वापस नही आने वाली -|”

जय कहने लगा – “एक घंटा !! अभी देखना यही कहेंगी कि आधे घन्टे से कह रही हूँ पांच मिनट रुको तब भी हर घंटे पूछ लेते है |”

इस बात पर दोनों दोस्त खुलकर हँसते हुए हाई फाई करते है पर कुछ ऐसा हो जाता है उस वक़्त जिसका उन्हें अंदाजा भी नहीं था|

उन तीनो को देखते हुए उन्हें लगा था वे चारो लड़कियां वहां पर है और उनकी नज़र मानसी पर गई ही नहीं थी जो उनका इस तरह से मजाक उड़ाने पर बुरी तरह से घूरती हुई अब उनके सामने खड़ी थी|

“अरे मानसी तुमने कुछ ख़रीदा की नहीं |” जय मानसी के हाव भाव से समझ गया कि जाने अनजाने उसने परमाणु का ढक्कन खोल दिया था|

मानसी अपने हाथ कमर पर रखे उन दोनों को घूर रही थी जो मुश्किल से अपने चेहरे पर बेचारगी वाला हाव लाने लगे थे|

“हाँ तो आप दोनों को क्यों इतनी ज्यादा हँसी आ रही है – लड़को वाला सामान न मिलने पर या लड़कियों वाला सामान हर जगह मिलने पर |”

जय जल्दी से मानसी की ओर प्यार से देखता हुआ बात सँभालने की कोशिश करता हुआ कहता है – “नहीं मैं इरशाद को समझा रहा था कि इसी बहाने थोडा रेस्ट टाइम मिल जाएगा – जाओ तुम भी कुछ खरीदो न |”

“हाँ अब तो जरुर खरीदूंगी – वो भी चार घंटे तक |” मानसी जय को घूरती हुई कह रही थी|

जय अपने बचाव में मिमियाता उसे मिन्नत से देखता कह रहा था – “वो मैं तो यूँही मजाक कर लिया – ये इरशाद ही है जो मुझे उकसाता है |”

इरशाद मामला समझ गया कि अब जय और मानसी की वॉर होने वाली है और यही सही समय है कल्टी मारने का |

उसे इस तरह चुपचाप जाते देख मानसी बोल रही थी –

“देखो तुम्हारा लंगोटिया यार तो मैदान छोड़कर भाग रहा है |”

जय अब तेवर में आता कह उठा – “वो भाग नहीं रहा है – बस तुम्हे हर बात पर गुस्सा करना आता है |”

“ओह मुझे गुस्सा करना आता है तो आज बताती हूँ कि मुझे शोपिंग करनी भी आती है |”

“हाँ हाँ तो करो न किसने मना किया |”

“हाँ तो तुम्हारी परमिशन नहीं मांग रही – अब तो देखना चार घन्टे से पहले नहीं लौटूंगी |” मानसी गुस्से में पैर पटकती हुई बोलती है|

“हाँ तो जाओ न – ऐसा करो रात तक खरीदो फिर इन्ही चूडियो का सूप बना कर पिएंगे सब |”

“नहीं तुम्हारी शर्ट का डोसा बना कर खाएँगे |”

दोनों बुरी बच्चो की तरह लड़ पड़े थे| उनके असमय युद्द का आगाज देख बाकियों के भी कान खड़े हो गए कि ये लो ये दोनों फिर से शुरू हो गए| जहाँ नूर, शैफाली, ऋतु मानसी को पकड़ने भागी आई तो वही समर, इरशाद और मोहित जय की तरफ खड़े हो गए|

अगले ही पल वे तीनो लड़के जय को पकड़े थे तो तीनो लड़कियां मानसी को पकड़े थी और दोनों वाक् युद्ध में तुले पड़े थे|

“बड़े आए लड़के वाले |”

“हाँ हाँ जाओ – |”

“अच्छा तो देखना – अब नाक भी रगडोगे तो भी नही आने वाली |”

“तो नाक कौन रगड़ रहा है – जाओ जाओ |”

“अच्छा अब देखना जा कर बताती हूँ कि लड़कियाँ और क्या कर सकती है |”

बाकी तो उन दोनों को देखते रह गए| उस वक़्त उनको देखकर कहना मुश्किल था कि दोनों कॉलेज गोइंग लड़के लड़की नहीं बल्कि अपनी अपनी जिम्मेदार पोस्ट पर है| लेकिन ये जय और मानसी के प्यार का अंदाज था जिसमे लड़े बिना उनका इश्क नहीं पनपता था|

मानसी आगे बढकर गुस्से में मोहित के हाथ से कार की चाभी लेती कार की ओर बढ़ जाती है और उसके पीछे पीछे उसका साथ देने वे तीनो लड़कियां भी| जब तक वे दोस्त बात समझते मानसी कार स्टार्ट कर चुकी थी और बाकि तीनो को लिए कार को स्पीड दे देती है|

चारो मुंह खोले उन्हें जाता हुआ देखते रहे| वे अपनी अपनी ओर का शीशा बंद किए तेज म्यूजिक चला कर सड़क पर कार दौड़ा लेती है|

अब बाकी तीनो अपनी घूरती हुई आँखों से जय को यूँ देखने लगे जैसे आँखों से ही जलाकर भस्म कर देंगे|

जय कंधे उचकाते हुए कहता है – “क्या !!! वो ही मुझसे लड़ रही थी|”

जय की वजह से उन तीनो के रोमांटिक सफ़र की ऐसी तैसी हो चुकी थी जिससे वे जय को खींचते हुए कहते है –

“इसे डिक्की में डालो – यही हमारे प्यार का दुश्मन है |”

ये सारा तमाशा होता जो वहां देख रहा था उनकी तो हँसी ही नहीं रुक रही थी| ये अजब गजब दोस्ती थी उन यारो की जो एक दूसरे पर जान छिडकते थे|

जहाँ वे चारो दिल्ली आने को निकल गए थे वही नूर की अम्मी इरशाद की अप्पी की कोठी की ओर अपनी पूरी तैयारी से आ गई थी| तैयारी सामानों की नही बल्कि इस बात की थी कि कैसे वे नूर और इरशाद को बाकी दोस्तों के संग न रहने और उस कोठी में रहने के लिए मना सके|

आगे देखते है कि क्या रंग लाएगी उन चारो की दोस्ती ? क्या नूर की अम्मी कोई बखेड़ा खड़ा करेंगी ? आखिर कैसे होगा इरशाद का वलीमा !!

क्रमशः……..

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