
हमनवां – 69
कोठी में अभी से सजावट का काम शुरू हो गया था| नजमा आपा की तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं था, वे पूरा दिन जाने किन किन तैयारियों में उलझी रहती और जब उनके पैर बुरी तरह से दुखते तब जाकर वे कुछ देर बैठती, उस पर भी वह बैठे बैठे उन कामो की लिस्ट बनाने लगती कि आगे क्या करना है|
अहमद मियां उनकी इस तरह की दीवानगी देखते उन्हें सँभालते हुए कहते – “बेगम हमे तो लगता है आप कही बीमार न पड़ जाए – अरे बस भी करिए खुद पर इतना लोड लेना – सब नौकर है न – आप बस बैठे बैठे हुक्म करती जाए काम मुकम्मल होते जाएँगे |”
“क्या कहते है आप – अल्ला न करे – इस समय क़यामत भी हो गई न तो वहां से भी लौट आउंगी और अपने भाई के निकाह की तैयारी करुँगी |”
“तौबा करे – हम आपको बीमार नही देख सकते और आप कयामत की बात कर रही है |” अबकी अहमद मियां अपनी बात जिस तरह से कहते है उससे नजमा सच में शरमा जाती है|
“आप भी न |”
“अच्छा ये तो बताए कि हम जिनके निकाह की इतनी तैयारियों में लगे है वो साहबजादे है कहाँ?”
“बस आज ही आने वाले है इरशाद – वो भी व्यस्त है – क्या करे उनके निकाह के बाद समर और फिर जय की भी शादियाँ है – वो सब तैयारी भी तो उन्हें देखनी है|”
अभी वे दोनों बातों में मशगूल थे कि नौकर आकर उन्हें नूर के अम्मी और अब्बू के आने की सूचना देता है जिसे सुनते नज़मा आपा अपना पैर का दर्द भूले तुरंत उठती हुई उनका हाथों हाथ स्वागत करती है|
“सबीहा खाला – बड़ा अच्छा किया आपने जो आप खुद मिलने आ गई – मैं तो खुद चाह रही थी कि किसी तरह से आपसे मुलाकात हो और नूर का वलीमा का लहंगा आपसे पसंद करा सकूँ |” नज़मा ख़ुशी में दोहरी होती हुई कहती है|
“नज़मा हमने कब तुम्हारी पसंद से इंकार किया – नूर तो कब से तुम्हारी पसंद की मुरीद है तो जो भी लोगी वो खुश ही होगी |”
इस पर चारों एकसाथ मुस्करा लेते है| तभी नौकर आकर मेज से कपड़ो का कुछ सामान वगैरह हटाकर उसमे नाश्ता सजाने लगता है|
कुछ देर नाश्ता चुगते सबीहा खाला अपने शौहर की ओर यूँ देख लेती जैसे कोई ख़ास बात कहने का अवसर खोज रही हो| नज़मा तो कभी ये नाश्ता उठाकर उनके सामने करती कभी दूसरा| वे तो इतनी खुश थी कि खातिर से उनका मन ही नहीं भर रहा था|
सबीहा खाला इधर उधर नज़रे करती हुई कहती है – “वैसे बड़ी खूब सजावट की तैयारी कर रही हो नजमा |”
इस पर नजमा उत्साहित होती कुछ कहने को हुई उससे पहले ही अहमद मियां बोल उठे – “इनकी तैयारियों की तो पूछिए मत – अब तक सौ दफा सजावटे बदलवा चुकी है पर हर बार इन्हें लगता है जैसे सब कमतर ही है |”
“क्यों न हो आखिर हवेली के असल वारिस की शादी जो है |” ये सुनते नूर के अब्बू तुरंत कह उठे|
वे इस ख्याली में अपनी बात कह गए इससे अहमद मियां हिचकिचाते हुए नज़मा की ओर देखते है और उस पल एक अनकहा दर्द उनके भीतर से गुजर जाता है| ये बात वे सब अच्छे से जानते थे कि ये सारी विरासत इरशाद की थी पर इरशाद के इन सब को तवज्जो न देने से अहमद मियां ही सब सँभालते थे और ऊपर से उनका निसंतान होना भी किसी से छिपा न था| यही वजह थी कि ये बात अंतरस उन्हें चुभ गई फिर भी वे किसी तरह खुद पर काबू करते मुस्करा देते है|
नज़मा इन स्थिति को संभालती हुई जल्दी से कहती है –
“क्यों नही – सब कुछ इरशाद और नूर का ही है |”
“पर फायदा क्या नज़मा – वे तो यहाँ आएँगे ही नहीं |” सबीहा खाला फिर उसी तल्खी से अपनी बात कहती रही – “तुम चाहे जितनी तैयारी कर लो पर इरशाद तो अपने दोस्तों संग ही रहना चाहते है – मुझे तो बस नूर की फ़िक्र है कि वे कैसे इन सबके बीच एडजस्ट करेगी – वो भी एक अलग धर्म होता तो ठीक था – उनके चार दोस्त तो अलग अलग चार धर्म के है |”
सबिहा खाला की इस तरह की बात पर सभी उन्हें अजीब तरह से देखने लगे| नूर के अब्बू भी आगे कह उठे –
“आपको क्या बताए – जब से ये बात हमारे चचा वालिद के कानो तक पहुंची है तभी से सभी बड़े खफा खफा से है – आप कैसे ये सब मंजूर कर लेते है – और दोस्त संग रहना मुक्तलिफ़ बात है – लेकिन अब तो उनके साथ नूर भी होगी – फिर सब कैसे होगा ? क्या आपने इस बारे में सोचा है ?”
नूर के अम्मी और अब्बू की इस तल्खी से नज़मा और अहमद मियां दोनों हैरान रह गए| उन्हें इस बात की उनसे कतई उम्मीद नहीं थी| ये बात अलग थी कि पहले पहल वे खुद इरशाद का इस तरह घर छोड़ने पर उससे नाराज़ थे पर तब भी उसका गैर धर्मी दोस्तों संग रहने पर उन्हें कतई एतराज़ नहीं था|
वे दोनों उन दोस्तों और उनकी दोस्ती को अच्छे से समझते थे और साथ ही बदलते माहौल को भी नज़रन्दाज नही कर सकते थे|
नज़मा उनके चेहरे गौर से देखती हुई कहती है – “हमने तो कभी इस तरह से सोचा ही नहीं क्योंकि जरुरत ही नहीं पड़ी – खैर आपकी बातो पर मैं हैरान भी नहीं हूँ – आखिर आप समर, जय और मोहित को जानते ही कितना है ? आपकी बात एकदम सही है वे सब दोस्त है कोई भाई तो नही और यही वजह है कि उन्हें एकदूसरे पर खुद पर से ज्यादा यकीन है – आज के ज़माने में जब भाई भाई का गला काट रहा है तब वे दोस्त एकदूसरे के लिए कंधे से कन्धा मिला कर खड़े रहते है – एकदूसरे पर जान छिड़कते है – अब इस यकीन को मैं किन शब्दों में कहूँ – ये तो आने वाला वक़्त आपको खुद ब खुद समझा देगा|”
“देखो नज़मा – हो सकता है तुम सही हो पर नूर !! उसके बारे में क्या सोचा है – क्या वो शादी के बाद वही रहेगी ?”
“सबीहा खाला वो तो उन दोनों की मर्जी है – वे जहाँ चाहे वहां रहे – उनकी खुशियाँ हमारे लिए सबसे जरुरी है – और रही बात इस कोठी के अधिकार की तो आप उसकी ओर से बेफिक्र रहे – हम मेहर में ये कोठी लिखवा देंगे |”
कसे भाव में कहती हुई नज़मा अहमद मियां की ओर देखती है जो आँखों आँखों में उसकी बात का समर्थन करते दिखते है|
“अ अरे – तुमने तो दिल पर ले ली बात नज़मा |” नूर की अम्मी अपने हाव भाव समेटती हुई बोलती है – “बात को समझो नज़मा – हम नूर के वालिद है तो हमारी चिंता भी लाज़मी है |”
“तो मैंने भी इरशाद को अपनी औलाद की तरह माना है – आप चाहे जो मन में मलाल पाले पर जायजाद की ओर से तो पूरी तरह से बेफिक्र रहे – जो इरशाद का है वो नूर का भी रहेगा |”
“अब क्या कहूँ नज़मा – मैं तो बस नूर की ओर से कुछ ज्यादा की फिक्रमंद हो गई हूँ |”
“अब नूर भी हमारे खानदान का हिस्सा है तो आप अकेली उसपर हलकान होना छोड़ सकती है – क्या इस बात पर भी आपको एतबार नहीं ?”
“अरे नहीं नज़मा – तुमपर नाज़ और एतबार दोनों है हमे |” अति मुस्कान के साथ कहती हुई सबीहा खाला अब अपने शौहर की ओर देखती हुई कहती है – “देखिए पांच मिनट मिलेगे ये सोचकर आए थे और देखे आधा घंटा कब गुफ्तगू करते बीच गया जान भी न पाए – चलिए – अभी हमे कितने सारे काम निपटाने है |”
“हाँ हाँ – सही कहा |” हिचकिचाहट के साथ कहते नूर के अब्बू भी उठकर खड़े हो जाते है| न नज़मा उनसे और ज्यादा रुकने का इसरार करती है और न वे दोनों ही रुकते है| लेकिन उनके जाते नज़मा और अहमद मियां के हाव भाव थोड़े जरुर बदल गए थे|
“ये कैसी बात करके गए है – क्या इन्हें लगता है हमने इरशाद को उनके किसी हक़ से महरूम किया है ?” नज़मा थोडा रुआंसी होती हुई कहती है|
इस पर अहमद मियां उनके कंधे पर हाथ रखते उन्हें सांत्वना देते हुए कहते है – “आप उनकी बात को ज्यादा दिल पर न ले – अरे वालिद है तो ऐसा सोचने का हक़ बनता है उनका – |”
“मुझे तो इस बात की ज्यादा फ़िक्र है कि अगर इरशाद को उनकी इस मानसिकता का पता लगा तो कही उनके और इरशाद के रिश्ते न खट्टे पड़ जाए फिर हमे इसका भी कहाँ इल्म है कि नूर इस बारे में क्या सोचती है – अल्ला खैर करे – हमे तो अब डर लगने लगा है |”
“बेगम – अगर आप ही ऐसे हौसला छोटा करेगी तो कैसे चलेगा – क्या आपको भी उनकी दोस्ती पर भरोसा नही ?”
“तौबा – मैं खुद पर से भरोसा कम कर सकती हूँ पर उनकी दोस्ती पर नहीं |”
“फिर ये सब फिजूल का सोचना बंद करे और तैयारी करे – आज ही इरशाद वापस आ रहे है न ! फिर तो आपको कितनी सारी तैयारी करनी होगी |”
“हाँ सही कहते है आप |”इपर दोनों समवेत भाव से मुस्करा लेते है|
***
दिल्ली की सरहद को छूते उन आठो का गुस्सा कब का छू हो गया| अब उनके जुदा होने का समय था| कई दिन की मस्ती के बाद वे सभी अपने अपने घर जाने को मजबूर थे| नूर को उसके घर छोड़ने के बाद, मानसी भी अपने घर वापस चली गई|
अब दूसरी कार जय चला रहा था| दोनों कार बसंतकुंज के अपने घर आकर रूकती है| अब ऋतु के जाने की बारी थी| ये बस उन दिलो की बेचैनी को ही खबर थी कि वे किस तरह से आपस में विदा ले रहे थे| ये बात अलग थी कि अब उन सबकी शादियाँ भी नजदीक थी पर दिलो की बेताबी भी उतनी ही बेकल थी|
बस उन सबमे मोहित शैफाली के साथ था जिससे वह बाकियों तीनो को तिरछी मुस्कान से देख रहा था| और तीनो भी उसे घूरते हुए आगे बढ़ गए|
इरशाद के संग जय तो उसके पीछे समर था और उन सबके पीछे मोहित शैफाली का हाथ पकड़े हुए आ रहा था| तभी इरशाद एकदम से बोल पड़ा –
“ये दरवाजा कैसे खुला है – अब क्या एक पुलिस वाले के घर में भी चोरी होने लगी |”
अब सभी इरशाद की नज़र से सामने की ओर देखते है और सच में मुख्य दरवाजा पूरी तरह से खुला था| ये देखते समर जल्दी से आगे आता हुआ कहता है –
“लास्ट में जय तुम निकले थे – तुमने दरवाजा बंद भी किया था या नहीं !”
ये सुनते जय इरशाद को देखता हुआ कहता है – “ताला बंद करने की हमेशा जिम्मेदारी इरशाद पर होती है – इसी ने घर खुला छोड़ा होगा |”
“अच्छा ! और समर तुम याद करो तुम लास्ट में आए थे अपना जैकेट लेने |”
“हाँ याद आया – मैं तो कार साफ़ कर रहा था और ये मोहित गया था पानी लाने |”
“अब मेरे पीछे क्यों पड़ गए ?” मोहित मुंह बनाते हुए कहता है|
चारो एकदूसरे को इल्जाम लगा रहे थे तो शैफाली थकी सी साँस छोड़ती हुई बीच में बोल पड़ी – “आई थिंक हमे घर के अंदर चलकर नहीं देख लेना चाहिए !”
शैफाली की बात पर चारो दांत दिखाते अब दरवाजे की ओर बढ़ने लगे| अभी वे दरवाजे से अंदर एक कदम ही आए थे कि सामने का नज़ारा देखते उनकी ऑंखें जैसे बाहर ही निकल आई| जहाँ तक उनकी नज़र जा रही थी कमरा पूरी तरह से व्यवस्थित और सजा हुआ नज़र आ रहा था| कमरे के कोने में लटकते जाले की जगह झालर लटक रही थी| हमेशा बीच की मेज जो झूठे बर्तनों से भरी रहती थी उसमे बीच बीच खूबसूरत पॉट रखा था इसमें सुंगंधित फूल तैर रहे थे| सोफे पर कवर था और उनमे कुशन सलीके से रखे थे| ये सब देखते देखते उन पांच जोड़ी निगाह तो बस वही टिकी रह गई|
“यार लगता है – हम गलत घर में आ गए |” वे आपस में बुदबुदा उठे|
“गलत घर में नहीं बल्कि गलत वक़्त में आ गए – थोड़ा सा और टाइम चाहिए था इस घर को घर बनाने के लिए |”
अब उन सबकी निगाह सामने की ओर गई जहाँ भावना कमर में हाथ रखे खड़ी थी| उसके पीछे पीछे पवन भी खड़ा था जो इस वक़्त टीशर्ट और शॉट में था जिसमे अभी अभी धूल चिपकी हुई नज़र आ रही थी| इससे साफ़ हो गया कि उन दोनों ने ही उस घर की कितनी मरम्मत की थी|
“ये सब तुम दोनों ने किया ?” इरशाद पूछ उठा|
पवन आगे आता हुआ कहता है – “करना पड़ा – वैसे इसे घर की जगह कबाड़ खाना क्यों नही घोषित कर देते – मतलब कोई इतना भी लापरवाह कैसे हो सकता है – खाली डब्बे, कैन, बोतल सब रखे हुए थे – इन सब कबाड़ को निकालते निकालते कान से धुँआ निकल गया –|”
ये सुनते जहाँ भावना और शैफाली की हँसी छूट गई वही जय, इरशाद, मोहित और समर अपना सर खुजाते रह गए|
पवन आगे कह रहा था – “पता है इस कबाड़ को बेचकर पूरे चार सौ अस्सी रूपए मिले |”
ये सुनते जय आगे आता हुआ कहता है – “तो चलो निकालो चार सौ अस्सी रूपए |”
“वो तो मैं मानसी को दूंगा ताकि वही तुम्हारी अच्छे से खबर ले |”
पवन की बात अपर जहाँ जय की आंखे हवा में टंगी रह गई वही बाकी कसकर हँस पड़े|
“अच्छा अच्छा चलो हमने अपनी ओर से शैफाली और मोहित के ग्रैड स्वागत की तैयारी कर ली अब तुम दोनों का इस घर में स्वागत है |” पवन के आगे आती हुई भावना कहती है|
“वाओ – घर तो वाकई चमका दिया|” समर चारो और निगाह करता देखने लगा तो भावना आगे आगे चलकर उन सबका मार्ग दिखाने लगी|
अब सभी मोहित के कमरे के बाहर खड़े थे| और उस कमरे की सजावट देखते हुए फिर से उनकी आंखे बाहर को निकल आई| एक ऐसा कमरा जहाँ सिगल बैड और किताब, एक्सरसाइज के सामान के अलावा कभी कुछ नही रहा वो कमरा अब पूरी तरह से बदल चुका था|
मोहित भी हैरानगी से अपने कमरे को भरपूर नज़र से देख रहा था| कमरे के बीचो बीच एक खूबसूरत डबल बैड था जिसे एक रेशमी चादर बिछी थी जिसमें अभी अभी के ताजे गुलाब की पंखुडियां से दिल बना था| वही बेड के दोनों और टेबल रखी थी जिनमे से एक में फोटो फ्रेम रखा था| उसमे लगी तस्वीर तो बस महफ़िल का दिल लूट ले गई उसमे मोहित की शादी वाली वही फोटो लगी थी जिसमे वे आठो एक साथ मौजूद मस्ती करते हुए पोज़ में थे| कमरे से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी|
“अरे अरे बस ऐसे ही कमरा निहारते रहोगे या अंदर भी आओगे |” भावना होंठ का किनारा दबाती हुई कहती है|
ये सुनते मोहित और शैफाली एकदूसरे को एक भरपूर नजर से देखते है|
इससे पहले कि वे दोनों आगे कदम बढ़ाते जय उन सबके आगे आता हुआ उनकी तरफ देखता हुआ कहता है –
“रुको रुको ऐसे नहीं – अरे हमारी प्यारी भाभी यूँ चलकर थोड़े जाएगी |”
“तो क्या उड़ कर जाएगी |” उसे आगे बढ़ने से रोकने पर मोहित थोड़ी नाराजगी से कहता है|
“उड़ कर नही बल्कि तुम गोद में लेकर अंदर जाओगे |”
जय के कहते भावना तुरन्त बोल उठी –
“अभी कैसे – मोहित के पैर में तो चोट लगी थी|”
“अच्छा चोट लगी थी तो उस दिन तो गोद में लिए नाच रहे थे तब क्या !”
“फिर भी अब तो ध्यान देना पड़ेगा न |”
“सही कहा – फेक्चर के बाद थोड़ा केयर तो करना पड़ेगा |”
मोहित हतप्रभ सबको उनके बारे में बात करता देखता रहा| सभी वही दरवाजे पर खड़े अपनी अपनी राय दे रहे थे कि तभी कुछ ऐसा हुआ कि बाकियों के मुंह हवा में खुले रह गए| मोहित शैफाली को गोद में उठाए उनकी नज़रो के सामने से होता कमरे में चला भी गया और अपने जाते अंदर से दरवाजा भी बंद कर लिया|
बाहर जय, इरशाद, समर, भावना और पवन कौतुहल से देखते रहे|
“हेलो भईया – हेलो भावना दीदी |”
अब सबका ध्यान उस आवाज की ओर जाती है जो उनके ठीक पीछे से आती है|
सबकी नज़रे वर्षा को बोलते हुए देख रही थी – “बुआ जी ने आप सबको खाने पर बुलाया है – आप लोग जल्दी से आ जाइएगा – आज पता है कस्टड मैंने अपने हाथों से बनाया है – मोहित भईया और शैफाली दीदी कहाँ है – वे वापस नही आए क्या ?”
वर्षा अचम्भे से उन सबको देख रही थी तो जय दांत भीचे हुए बंद दरवाजे को घूरता हुआ बुदबुदा उठा – ‘उसे कहाँ भूख लगेगी – वो तो दो चार दिन भी नहीं खाएगा तब भी चलेगा |’
“क्या भईया ?”
वर्षा को यूँ पूछते देख समर आगे आता हुआ उसके कंधे पर हाथ रखते उसे बाहर ले जाते हुए कहता है – “इसका मतलब है कि उन्हें तैयार होने में समय लगेगा तो तब तक हम लोग चलते है खाना खाने |”
“हाँ भाई – खाना सुनकर तो अब रुका भी नहीं जा रहा – बहुत जोर से भूख लगी है – मैं बाद में नहा लूँगा|” अपने कपड़े झाड़ता झाड़ता पवन वर्षा के पीछे पीछे चल देता है तो बाकि भी उन सबके पीछे हो लेते है|
आगे क्या होगा हमनवां की दुनिया में ?? जानने के लिए पढ़ते रहे….
क्रमशः…..
Wah maza aa gya iss part me…..
Wow maza a gya
Very very👍👍🤔🤔🤔😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊
Mazedaar part 🫶