Kahanikacarvan

हमनवां – 7

एक नजर भाई को मिल कर ही संतुष्ट होना पड़ा उसे लगा किसी बहस या मन मुटाव की विदाई से अच्छा है इरशाद को सहर्ष जाने देना| इरशाद के निकलते उसके पीछे से अपने नौकर के हाथ बड़ा सा टिफिन तैयार कर उसके घर भिजवाती है|

इरशाद के घर वापसी का इंतजार सभी को था पता था आपा का प्यार टिफिन के रूप में जरुर आएगा| यूँ तो अकसर ही आपा टिफिन भिजवाती रहती थी| यहाँ इरशाद आया भी नहीं कि उसके पहुँचने की खबर के साथ दो बड़े बड़े टिफिन उसके घर पहुँच गए| तीनों घर पर मौजूद थे, घर में दावत की महफ़िल सज गई| बुआ जी के सत्संग और वर्षा के स्कूल जाते जय ऋतु को बुला लाया, उनके पीछे से इरशाद संग मानसी भी आ गई और अगले ही पल सब दोस्तों की खुशनुमा महफ़िल में रौनक आ गई|

कोई दही बड़े पर हाथ साफ करता तो कोई लबाबदार पनीर चटकारे लेकर खाता, ऋतु किनारे बैठी सिवइयों का मज़ा ले रही थी| बीच बीच में समर पर उसकी पलके उठती और नज़रे चार हो जाती|

“तूने दो दही बड़ा खाया है न ये मुझे दे..|”

“अरे ये मेरी प्लेट है..|”

“वाह आज तो सपने भी लज़ीज़ आएँगे..|”

“रोज़ रोज़ थोड़े ही ऐसा खाना मिलता है – हमारे नसीब में तो ये मूछों वाली कुक है न|” समर की ओर इशारा करते जय कहता है – “शादी ही कर ले यार – फिर रोज़ रोज़ अच्छा खाना मिलेगा|” एक आंख दबाते ऋतु की ओर देखता हुआ कहता है|

“तो तू ही कर ले न शादी – |”

समर के कहते अबकि मानसी आंख उठाकर जय की ओर देखती है|

“अरे क्यों अपना काम बढ़ा रहा है – तब पांच का खाना तुझे बनाना पड़ेगा..|” गहरा उच्छवास छोड़ते जय तिरछी नज़र से मानसी की ओर देखता है|

“अच्छा तो मैं खाना नही बना पाती..|” मानसी के गुलाबी कपोल सुर्ख हो उठते है|

“नहीं नहीं – आप बना तो लेंगी हम खा नहीं पाएँगे|” जल्दी से इरशाद कहता हुआ जय के हवा में उठे हाथ से हाईफाई करता हुआ हँस पड़ता है|

“अच्छा ऐसा है तो सच में अब कुछ नहीं बनाउंगी..और जो कभी कभी आते हो न घर आना तब देखना….|’

मानसी की प्यार भरी ठसक पर मोहित उछलते हुए बोलता है – “सही है – घर में दोनों को घुसने मत देना |”

“आप तो रहने दे जनाब मैं तो जला भुना कैसे भी खा लूँगा आपका क्या होगा – जवानी हेड मैडम का टिफिन शेयर करते ही कट जाएगी|”

“अरे याद मत दिलाओ – अपना तो डिपार्टमेंट की इन मैडमों ने जीना दूभर कर रखा है – जबरदस्ती टिफिन लाकर सामने रख देती है|”

“मोस्ट एलिज्बल कंवारे हो न..|”

“हम कंवारे ही भले है….|” इरशाद की ओर देखता हुआ कहता है|

“हाँ किसी की तरह किचेन की खिड़की और प्रेस के बाहर चक्कर लगाते नहीं काटनी जिंदगी – हम आज़ाद परिंदे भले…|”  अबकि अपनी जगह से उठकर मोहित और इरशाद हाईफाई करते है|

उस पल दोस्तों की तकरार और तेज़ ठहाकों से कमरा गूंज उठता है|

***

पुलिस स्टेशन में जय अपनी जगह से बार बार उठता और बैठ जाता, उलझन उसके चेहरे पर तारी थी| फाइलों का ढेर सा लगा था उसके सामने, वह कुछ ढूंढ रहा था| फिर एक फाइल को पढ़ते हुए अपनी कुर्सी पर धंसते हुए विचार मुद्रा में खो जाता है| सामने बैठा उसका साथी पुलिसकर्मी भी तब से किसी फाइल में आंख गड़ाए था अब वह सामने जय की तरफ देखता है| जो अब सामने मेज पर खुली फाइल पर पेंसिल से लाइन खींच रहा था, उसके दूसरे हाथ की उँगलियों के बीच अधजली सिगरेट थी जिसका धुंआ चारोंओर फ़ैल रहा था|

“सर |”

“सर….|” वह दुबारा पुकारता है|

जय पुकार पर फाइल से सर हटाकर सामने देखता हुआ अपनी लगभग जल चुकी सिगरेट को राख में दबाता है|

“तबसे सब खोज डाला पर इनका एक साथ का कोई कनेक्शन नही मिला|” जय के जवाब के इंतजार में वह उसके चेहरे की ओर ताकता रहता है|

“मुझे लगता है बेवजह हम इसमें अपना सर खपा रहे है – आखिर इनकी मौत से पुलिस महकमे को क्या फर्क पड़ता है जबकि किसी ने कोई कम्प्लेन दर्ज नही करायी..|”

जय फाइल बंद कर अपनी सीट से उठता हुआ टेबल के कोने से टिक कर खड़ा होता अब दूसरी सिगरेट जला लेता है|

“चारों का कुछ तो कनेक्शन है – अभी नहीं मिला तो मिल जाएगा और रही बात हमारे महकमे की दिलचस्पी की बात तो ये किसी तूफ़ान का आगाज भी हो सकता है – हम सिर्फ सामने की खबर नोट करने वाले नहीं है – हमे वज़ह भी तलाशनी होती है और वारदात हुई है तो गुनाहगार भी..|”

“पर अब तो हो चुका जो होना था..|”  

एक लम्बा कश खीँच कर वह छल्लो के रूप में छोड़ता हुआ कहता है – “ये चार यहाँ आए नहीं इनको बुलाया गया है – इनका पिछले दस साल से इस शहर में कोई अपराधिक मामला नहीं रहा – जबकि सालों पहले ये एक साथ सारे गैरकानूनी चाहे ड्रग, ह्यूमन ट्राफिकिंग हो साथ में संलिप्त रहे फिर ये अलग अलग गुट में बंट गए|”

“तो यहाँ क्यों आए..?”

“यही तो पता करना है साथ ही इनके साथ के जो लोग थे अब हमे उस सूत्र तक पहुंचना है|’

“फिर..!!” उसके माथे पर बल पड़ जाते है|

“फिर क्या – कुछ को आड़े हाथ लेना होगा और क्या..|” कहते हुए जय अपनी सीट पर बैठते हुए उसकी तरफ तिरछी मुस्कान से देखता हुआ अपनी अधजली सिगरेट राख में दबाता हुआ बाहर निकलने के लिए कैप पहन लेता है|

***

एक बड़ी सी टेबल के आमने सामने इरशाद और प्रकाशक बैठे थे| कुछ पल अपनी टेबल के एक कोने को घेरे मॉनिटर पर आंख गड़ाने के बाद प्रकाशन कुर्सी की पुश्त से पीठ सटा कर इरशाद की ओर देखता है| “मैं अपनी ओर से जो कर सकता था मैंने किया अब इरशाद साहब मैं आपको सिर्फ ये ईमल एड्रेस दे सकता हूँ उन मौतरमा का|”

“अरे कुछ तो जुगाड़ होगा – आपने ही तो उनकी पहली किताब छापी है – कोई फोन नम्बर वगैरह|”

“यकीन मानिए मैंने भी उनसे बात करनी चाही पर वे बस ईमल से ही जवाब देतीं है|” इरशाद के उतरे चेहरे को देखते हुए – “आप फेस बुक में है..?”

“देखिए एक रास्ता है – वो मौतरमा फेसबुक में बहुत एक्टिव है और वहीँ मैंने उनकी कविताएँ पढ़ी थी  – ढाई हज़ार लोग फ़ॉलो करते है – एक कविता डालती है तो पांच मिनट में ही बीस कमेन्ट आ जाते है|”

“आप भी फॉलोवर है क्या…?”

“आप भी बन जाइये हो सकता है आपकी शक्ल सूरत पर उनको तरस आ जाए|” दांत निपोरते हुए उसने आँखों को गोल गोल करते हुए कहा जिससे इरशाद का मुंह बन गया|

वह झट से खड़ा होता हुआ बोला – “ओके वेट एंड वॉच कि किस तरह से मैं उन मौतरमा की कुंडली तक निकाल लूँगा|” कहता हुआ वह झट से बाहर निकल गया|

प्रकाशक मुंह खोले दरवाजे की ओर देखता रहा जिससे अभी अभी इरशाद निकल कर बाहर गया था|

****

मानसी ऑफिस के स्टैंड से स्कूटी निकाल रही थी कि उसकी नज़र क्राइम रिपोर्टर शैली पर पड़ी जो स्टैंड के एक किनारे अपने मोबाईल में कुछ देखती खड़ी थी उसके दूसरे हाथ में अधजली सिगरेट थी| फिर कुछ सोच अधजली सिगरेट जमीं में फेक कर मसलती आगे बढ़ती है तो सामने मानसी खड़ी दिखती है|

दोनों औपचारिक बात करती एक दूसरे का हाल लेती है, मानसी की घुमावदार बातों से शैली को लगा कि वह उससे कुछ और कहना चाहती है|

“बोलो मानसी कुछ और कहना है क्या..?”

“हाँ …बोलो..|”

“शैली मुझे भी क्राइम रिपोटिंग करना है|”

“क्या…!!!” दो पल तक दोनों एक दूसरे का चेहरा देखती रही|

“हाँ मुझे लगता है कि मैं जो कर रही हूँ उसमे मुझे बिल्कुल मज़ा नहीं आ रहा – मुझे कुछ एक्साइटिंग करना है – मुझे भी क्राइम रिपोटिंग करना है|”

“तुम्हे क्या लगता है – इसमें कुछ भी एक्साइटिंग नहीं है मानसी बल्कि डेनजरस है और तुम्हारे पापा को पता चला तो..?”

“अब सारे काम पापा को बता कर ही करुँगी क्या..|” मानसी मंद मंद मुस्कराती तिरछी मुस्कान से मुस्कराई|

“चलो तुम्हारी इच्छा पूरी कर देते है – तो अभी चलोगी मेरे साथ |”

मानसी एक क्षण कलाई की घड़ी देखती है जहाँ दोनों सुईयां छह पर आपस में मिल रही थी, फिर दोनों साथ में अपनी अपनी स्कूटी की ओर बढ़ जाती है|

 ***

जय अपनी बुलेट खड़ी कर सीढ़ियों की तरफ बढ़ता है| उसके कदम दरवाजे के सामने आकर एकदम से रुक जाते है| वह हैरान सा दरवाजे की तरफ देख रहा था जहाँ एक छह सात साल का लड़का अपने घुटनों में सर दाबे बैठा था|

“कौन हो – यहाँ क्यों बैठे हो..?”

आवाज़ सुन वह जय की तरफ देखता है|

“कौन हो और यहाँ क्यों बैठे हो?” जय उसके सामने थोड़ा झुककर देखता हुआ फिर पूछता है|

“आप पुलिस है ?” बच्चे की बात सुन जय का ध्यान अपनी वर्दी की ओर जाता है वह हाँ में सर हिलाता है तो बच्चा आगे कहता है – “तो मुझे आप बचा सकते है न ?”

“हाँ क्यों नही लेकिन पहले ये तो मालूम पड़े कि तुम हो कौन|” जय उसका कन्धा पकड़ते हुए कहता है –“तुम्हारे माँ बाप कहाँ है, तुम यहाँ क्यों बैठे हो?”

जय उसकी सूरत देखता रहा कि उसके बहुत सारे सवालों से जैसे वह परेशान हो उठा था|

***

समर उस बच्चे को खाने को देकर बालकनी में खड़े जय के पास आता है| जय वही से कमरे के उस टुकड़े को लगातार देख रहा था जहाँ वह बच्चा बैठा हुआ था, उलझन थी कुछ न समझ पाने की| अभी अभी पुलिस स्टेशन फोन कर के वह सामने बैठे मोहित की तरफ देखता है|

“कुछ पता चला – किसी ने बच्चे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई..?” समर वहां आते ही पूछता है|

कुछ न कहते हुए जय सिर्फ न में सर हिला देता है|

“बड़ी अजीब बात है एक बच्चा हमारे पास ही आखिर क्यों आता है..?” समर भी अब बालकनी से पीठ जोड़े अपनी नज़रों से कमरे के उस कोने को ताकने लगता है|

“यही बात तो मुझे भी हैरान कर रही है – एक अनजान बच्चा – जो कहता है कि अब उसे कुछ भी याद नहीं न नाम न घर का पता न अपने माँ बाप कुछ भी नहीं|”

“हो सकता है ये सच भी हो – आखिर कितना पूछा हमने उससे पर हर बार यही कहता है कि मुझे दो लोगों ने बस में बैठाया फिर कोई इंजेक्शन दिया जब होश आया तो वे उसे किसी गाड़ी में ले जाने वाले थे जहाँ से वह भाग आया और जाने किस किस तरह से वह यहाँ आया और अब उसे कुछ याद नहीं|” मोहित सोच में पड़े जय के चेहरे की ओर ध्यान से देखता हुआ कहता है – “जय मुझे लगता है हम बेवज़ह शक कर रहे है – देखने में किसी अच्छे घर का लगता है हो सकता है सच में वह किसी मुश्किल में हो – फिर वो हमसे झूठ क्यों बोलेगा?”

“चलो मान लिया पर अब आगे करना क्या है – रिपोर्ट लिखा दूँ ताकि उसके घर का कुछ पता चले|” कहते हुए जय के चेहरे पर गहन विचार की नदी उमड़ आई थी|

“कहीं इसकी जान खतरे में हुई तो..?” मोहित अपनी बात अधूरी छोड़ उनकी तरफ देखता है|

“तुम तो पुलिस में हो बिना रिपोर्ट लिखे भी तो तुम इसके बारे में पता कर सकते हो|”

“फिर तब तक इसका क्या करना है?”

“क्या करना है – मतलब यही रहेगा|” मोहित झट से बोला|

“क्यों रहेगा यहाँ?” जय एक दम से थोड़ा जोर से बोल पड़ा जिसकी आहट उस बच्चे तक भी शायद जा पहुंची| अब सब उसकी तरफ देखते है| बच्चे के चेहरे पर की मुस्कान से उनकी मुस्काने मिल जाती है|

“धीरे बोल न|” मोहित अपनी दबी आवाज़ में कहता है – “छोटा बच्चा है कहाँ जाएगा – थोड़े दिन देख लेते है फिर सोचते है क्या करना है इसका|”

“हाँ यही ठीक रहेगा|”

समर की बात सुन जय दोनों का चेहरा बारी बारी से देखता है फिर एक दम से पर दबे स्वर में कहता है – “तुम दोनों इसे घर में रखो चाहे अपने कमरे में पर मैं तो इसे अपने पास फटकने भी नहीं दूंगा|”

कहता हुआ जय अपने कमरे की तरफ बढ़ जाता है| दोनों वही खड़े एक दूसरे का मुंह देखते रह जाते है|

***

इरशाद की आदत थी कि जब तक किसी चीज़ की तह तक नहीं पहुँच जाता तब तक उसका पीछा नहीं छोड़ता, ऐसे ही नाज़ का छुपा होना उसे उसकी ओर उतना ज्यादा ही आकर्षित कर रहा था| दिन पर दिन उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी| नाज़ द्वारा ईमेल से अपने काम भर का इंटरव्यू मिल जाने के बाद भी वह लगातार उसे फेसबुक में फ़ॉलो कर रहा था, जबरन उसकी कविता में उछल उछल कर वाह वाह करता ताकि उसका ध्यान उसकी तरफ जाए| आखिर उसकी फ्रेंड रिक्वेस्ट स्वीकार ली जाती है अब वह उसे सन्देश भेजता सोचता है कभी तो जवाब देगी ये सोच वह अभी ऑफिस से बाहर ही निकला था कि मोबाईल की मेसेज टोन से उसका ध्यान नये सन्देश की तरफ जाता है| वह हैरान सा मोबाईल की स्क्रीन में नज़र जमाए था| बार बार चेक करने लगा कि क्या वाकई ये नाज़ का प्रतिउत्तर है !!! वह वही दरवाज़े पर टिका झट से अपना उत्तर टाइप करने लगता है| उधर से एक प्यारी सी स्माइली आती है| अब तो इरशाद के जैसे पंख निकल आते है, मानों बादलों में पैर और सातवें आसमान तक सर पहुँच गया हो| दोनों हाथों से वह दो स्माइली भेजता तो ढेरों प्रश्न एक साथ टाइप कर फिर मिटा देता| वह उसका चेहरा देखना चाहता, उम्र जानना चाहता इसके लिए अपने शब्दों को बार बार तोड़ मरोड़ छुपा कर उसे सन्देश लिखता पर जवाब मे एक स्माइली के बाद देर की खमोशी में वह एकटक स्क्रीन में नज़रे टिकाए हुए था कि पीछे से किसी ने उसकी पीठ पर एक धौल सी जमाई, उसने पलट कर देखा और मानसी को देख फिर स्क्रीन में अपनी नज़रे जमा दी|

“अरे क्या हो गया तुम्हेँ?” झट से झुककर उसके हाथ में खुले मोबाईल के स्क्रीन पर वह भी अपनी नज़रे गड़ा देती है|

“तो अब ये नया रोग लगा बैठे है फेसबुक का|”

“छोड़ न|” कहता हुआ उदास ही अपना मोबाईल बंद कर जेब के हवाले कर आगे बढ़ जाता है|

“रुको तो क्या हुआ ?” मानसी उसके आगे बढ़ते कदमो को टोकती हुई उसके पीछे पीछे दौड़ जाती है –“क्या देवदास बने फिर रहे हो – बताओ तो कौन है?”

हल्के से कोहनी मारती उसको टोकती है|

“कोई नही है – मैं घर जा रहा हूँ|”  कहते हुए उसका चेहरा जैसे लटक ही आया था कि उसके मोबाईल की मेसेज टोन फिर बज उठी, ये सुन वह झट से मोबाईल अपनी पॉकेट से निकाल लेता है और अगले ही क्षण उसकी बुझी बुझी आँखों में एक चमक सी लहलरहा उठती है| मानसी पास ही खड़ी उसके चेहरे के बदलते तेवर देखती है तो दूसरे ही पल स्क्रीन पर नाज़ का नाम पढ़ती हुई कहती है – “तो तुम अभी तक इसी नाज़ मैडम पर अटके हो|’’

मेसेज पढ़ने की धुन में उसे ख्याल ही नहीं रहा कि मानसी अभी भी उसके बगल में खड़ी थी, ये देखकर वह किसी नई नवेली सा शरमा उठा|

“हे भगवान इश्क विश्क तो नहीं हो गया – एक कंवारा प्यार का मारा हाय|” कहकर मानसी कस कर हँस पड़ी फिर अपने आस पास लोगों को ऑफिस से निकलते देख दोनों स्टैंड तक साथ ही चलने लगते है| उनकी नज़र कार पार्किंग में खड़े अपनी कार की ओर झुके पवन पर जाती है, उनकी नज़रे मिलते वह दूर से हाथ हिलाते हुए कहता है – “जा रहा हूँ – आज शैफाली आ रही है|” मानसी शैफाली सुन कुछ पल तक समझ नहीं पाती पर जबरन याददास्त पर कोई जोर दिये बिना वह मुस्करा कर उसे भी हवा में हाथ हिलाकर बॉय कर फिर अपना ध्यान इरशाद की तरफ लाती है जो अभी भी मोबाईल की स्क्रीन पर नज़ते टिकाए एक ही मेसेज को बार बार ज़ूम कर कर के देखता अपने में ही मुस्करा रहा था|

“लिखा है टॉक टू लेटर|”

“और इसी में तुम ख़ुशी में नाचे जा रहे हो|” इरशाद की ओर बिना देखे वह अपने पर्स से चाभी निकालने लगती है – “भई वाह कमाल हो – देखो इन राइटर वाईटर के चक्कर में मत पड़ो ये फेसबुक है और अभी तो पता भी नहीं कहीं मैडम की जगह सर निकले तो|”

“क्या फालतू बात है|” इरशाद एकदम से उखड़ उठा|

“अच्छा ठीक है सर नहीं तो अभी तुम्हेँ उसकी उम्र का भी तो नहीं पता – किसलिए अपना जीना दूभर कर रहे हो – चलो घर चलो|”

उसकी बात पर इरशाद बच्चों सा मुंह बनाते हुए अपनी अपनी सवारियों पर बैठ अपने अपने रास्ते निकल पड़ते है|

क्रमशः………….

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