
हमनवां – 70
इरशाद फोन पर लगा हुआ था और बीच बीच में कसकर मुस्करा लेता था| वह टेरिस के झूले में बैठा अपनी ही दुनिया में गुम था और जाहिर सी बात थी उस बार नाज़ थी जिसकी मेसेज को पढ़ते पढ़ते वह गुदगुदा जाता|
“एक और मुलाकात तो बनती है |”
“हरगिज नहीं – अम्मी ने मना किया है |” नाज़ नजाकत से कहती है|
“कल से सारी रस्मे शुरू हो जाएंगी – बस आज |”
“कैसे !! अम्मी ने हमे निकलने तक से मना कर रखा है |”
“हम्म – तो हम ही आ जाते है |”
“तौबा – आप सबके सामने हमे शर्मिंदा करवाएँगे – वैसे भी अम्मी नजमा अप्पी के संग न लौटने पर खफ़ा हुई बैठी है – उस पर आपका ये इश्क ए जूनून – हम हरगिज नही चाहेंगे आप यहाँ आए |”
“ये सारी पाबन्दी तुम्हारी अम्मी ही लगाती है – वो जेलर थी क्या !! – यहाँ ऋतु समर और जय मानसी की भी तो शादी अभी नही हुई और वे सब रोजाना मिलते है फिर हम क्यों नहीं |”
“क्योंकि सब्र का फल मीठा होता है |”
“हमे तो लगता है इस मीठे फल के चक्कर में हमारे हिस्से का फल खट्टा न हो जाए |”
बच्चो सी रूठी आवाज में इरशाद कहता है तो नाज़ कसकर हँस पड़ती है|
“इरशाद – आप इधर है क्या ?”
नज़मा आपा की आवाज सुनते नाज़ तुरंत कह उठी – “ये तो अप्पी आपको बुला रही है – जाए न |”
“नहीं – पहले मिलने का वादा करो |” इरशाद अड़ा हुआ बोलता है|
“उफ़ – नही न – बस दो दिन की बात है – फिर हम होंगे न आमने सामने |” नाज़ शर्माती हुई कहती है|
“दो दिन नही दो हज़ार आठ सौ अस्सी मिनट है जो हमसे नहीं कटेंगे….|”
इरशाद अपनी बात कह रहा था वही नज़मा अप्पी उसके पास आती हुई कह रही थी – “कब से आपको पूरी कोठी में खोजते फिर रहे है और आप है कि यहाँ बैठे है – इरशाद |”
“अच्छा अब रखे फोन |”
“नहीं …|”
“मैं रख दूंगी !”
“अगर तुमने फोन काटा तो मैं मिलने आऊंगा तुमसे – याद रखना |”
“तौबा…|”
“किससे बात कर रहे है इरशाद ?” नज़मा अप्पी अब इरशाद के पास आती हुई पूछती है तो उधर से नाज़ तुरंत कॉल काट देती है और इरशाद मुंह बनाते हुए मोबाईल का स्क्रीन देखता रहता है|
“ये सब रखे और जरा देर ख़ामोशी से हमारे पास बैठे |” कहती हुई वे झूले में ही उसके पास बैठती हुई उसकी दाहिनी बाजू अपनी तरफ करती हुई उसमे इमाम जामिन बांधती हुई बुदबुदाती हुई दुआ पढ़ने लगती है –
‘अल्लाह जो बहुत मेहरबान रहमवाला है.. अल्लाह मैं आपके बेइंतिहा इल्म के जरिए बेहतरी मांगती हूं और मैं आपसे आपकी कुदरत के जरिए आपका असीम फज़्लो करम माँगती हूं…|’ कहती हुई वे इरशाद के दोनों कंधो के पीछे की ओर फूंकती है|
“अप्पी ये…|” अपनी दाहिनी बाजू में बांधे जामिन को देखते हुए कहता है – “मुझे आज ऑफिस जाना है – कल बाँध देती |”
“बस आप खामोश रहे – एक बार आप हमारी मर्जी से सारे रस्मो रिवाज कर ले फिर आपकी जो रजा में हो वो करे – समझे न |”
अप्पी को नाराज़ होते देख इरशाद अप्पी के कंधो पर बाजू रखता हुआ कहता है – “ओके डियर अप्पी आपकी सारी हिदायते मेरे सर आँखों पर |”
“अल्ला आप पर अपनी रहमते बनाए रखे |” वे प्यार से उसके सर पर हाथ फेरती हुई कहती है – “अच्छा आज ऑफिस जाने की क्या जरुरत है – दो दिन में आपका निकाह है और आपको अभी भी ऑफिस की सूझ रही है –|”
“अप्पी आज की एक इम्पोर्टेंट रिपोर्ट है बस आधे घंटे का काम है फिर हफ्ते भर तक नही जाऊंगा |”
“हाँ हाँ जैसे हफ्ते भर आप हमारी नज़रो के सामने बने रहेंगे न |”
नज़मा आपा जिस मुस्कान से अपनी बात कहती है उससे शर्माता हुआ इरशाद अपने बाजू उनके कंधो से हटाते हुए अपने सर पर हाथ फेरता है|
“अच्छा – अब शादी तक आप यही रुकेंगे क्योंकि सारी रस्मे यही कोठी में मुकम्मल होगी और अभी हम नाज़ के यहाँ जा रहे है |”
“क्यों ??” इरशाद तुरंत पूछ उठा|
“इसलिए कि ये दूसरा जामिन हमे नाज़ की बाजू में भी बांधकर दुआ पढनी है ताकि आप दोनों की शादी बिना किसी रुकावट के हो और आप दोनों हर बदनजर से बचे रहे|”
इरशाद देखता है कि एक बैग जो वे अपने कंधे पर लिए थी उसे दिखाती हुई वे कह रही थी तो इरशाद अप्पी का हाथ पकड़ते हुए कहता है –
“अभी कुछ देर रुकिए तो आप तो नाज़ के आते मुझे भूल ही गई |” वह स्नेह से अप्पी के कंधे पर सर रखता हाउ कहता है|
“अच्छा – हमे तो लगता है कि कही नाज़ के आते आप ही न अपनी अप्पी की गली भूल जाए |”
“कैसी बात करती है आप अप्पी – ये गली ये रास्ते बस आपके लिए तो हम पार करे आते है|”
“आमीन |” वे दुआ में हाथ उठाकर अपने चेहरे पर फेरती हुई इरशाद की ओर देखती हुई कहती है – “अब हमे जाने दीजिए वरना नाज़ की अम्मी कहेंगी कि हम तो कोई रिवाजों का पालन करते ही नहीं |”
“ठीक है |”
अप्पी को जाते देखते इरशाद के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खेल रही थी| वह मुस्कराते हुए अपनी पॉकेट को धीरे से चेक करता है जिसमे उसने चुपचाप से कुछ रख लिया था|
***
अप्पी अपने ड्राईवर के साथ नाज़ के घर पहुँच जाती है| साथ ही ढेरो लिबास और उपहार वे उसके लिविंग रूम में पहाड़ की तरह सजा देती है| जिसे देखती नाज़ की अम्मी हैरानगी से देखती हुई कह उठी –
“नज़मा – इतना सब करने की क्या जरुरत थी – अब नाज़ तुम्हारी की अमानत है|”
“ये कुछ उपहार कपड़े आप सब रहमती पर जरूरतमंदो में बटवा दीजिएगा और रही बात नाज़ के लिए तो हमारा बस चलता तो हम उनके पैरो के नीचे के कालीन तक सोने से जड़वा देते |”
“अल्लाह तुम्हे ऐसे ही अलीम बक्शे |” वे हाथ उठाकर दुआ पढ़ती है|
“वैसे कहाँ है हमारी नाज़ – हम उनके लिए जामिन लाए थे|” कहती हुई वे अपने साथ लाए बैग में उसे खंगालने लगती है|
तभी नाज़ की अम्मी उसे लिए लिविंग रूम तक लाती है और नाज़ को नज़मा के बगल में बैठाती हुई कहती है – “ये लीजिए आपकी अमानत |”
नाज़ को एक नज़र प्यार से देखकर वे हैरान होती अपना हैण्ड बैग खंगालती रही|
“क्या हुआ नज़मा – कुछ रह गया क्या ?” नाज़ की अम्मी नज़मा को परेशान देखकर पूछने लगी|
“पता नहीं – हमने तो रखा था फिर…|” नज़मा परेशान होती एक नज़र नाज़ की और देखती है तो दूसरी नज़र उकसी अम्मी की ओर|
“क्या रह गया नज़मा ?”
अभी नाज़ की अम्मी पूछ ही रही थी की किस जानी पहचानी आवाज पर सबका ध्यान मुख्य दरवाजे की ओर चला गया जहाँ इरशाद खड़ा था और बेहद मासूम सा चेहरा बनाते हुए कह रहा था –
“अप्पी ये तो आप घर पर ही भूल गई |”
इरशाद के हाथो के बीच जामिन था जिसे लिए हुए वह नज़मा के बेहद पास आता हुआ कह रहा था –
“आपकी वजह से मुझे ऑफिस से उल्टा लौटकर इसे लाना पड़ा |”
“वल्लाह – इतनी बडी भूल कैसे हो गई हमसे |” उसे हाथ में लेकर अपने आँखों माथे से लगाती हुई कहती है|
जबकि इरशाद और नाज़ की छुपी नज़रे सब कुछ समझ रही थी| नाज़ को समझते देर न लगी कि ये हरकत जरुर जानकर इरशाद ने की होगी और इरशाद भी चुपचाप अपनी एक आँख दबाते हुए नाज़ को बडी आशिकी से देख रहा था|
नाज़ की अम्मी जो इरशाद की पीठ की ओर खड़ी थी तुरंत कह उठी – “वाह इरशाद आप को बड़ा ख्याल रखते है सबका -|”
इरशाद भी भोला सा मुंह बनाते हुए कहता है – “जी – बस हाथ में चाय का कप ललेकर उसे यूँही छोड़कर अप्पी के लिए भागा चला आया – कितना मन था चाय पीने का |”
“अरे तो यहाँ पी लीजिए – |”
“नहीं नहीं – आप बेवजह हलकान होगी और फिर अप्पी नाराज़ होगी कि शादी से पहले मैं यहाँ कैसे आ गया |” अबकी शिकायत भरी नजर से वह अप्पी की ओर देखता हुआ कहता है|
इस पर अप्पी भी तिरछी मुस्कान से कहती है – “कोई बात नही इरशाद – सबाब के काम में कैसी हिचक और ये तो मेरी गलती से हुआ न – आपको इमाम जामिन पहनाने के बाद हम ही भूल से दूसरा आपके पास छोड़ गए और आप अपना इतना जरुरी काम छोड़ छाड़ कर बस इसे देने यहाँ चले आए – बाकी हम नहीं जानते कि आपका मन कितना पाकीजा है |”
इरशाद समझ गया कि अप्पी ने उसकी चोरी पकड़ ली है जिससे वह चुपचाप से हलके से मुस्कारते हुए अन्यत्र देखने लगा|
“बस आप दो मिनट रुकिए हम खुद चाय बनाकर लाते है|” कहती हुई नाज़ की अम्मी रसोई की ओर चल दी|
उनके जाते नज़मा अप्पी अपनी छुपी नज़रो से उन दो जोड़ी नज़रो की आँख मिचौली देख रही थी फिर उठती हुई कहने लगी – “नाज़ हम जरा आपकी अम्मी से माझा के बारे में पूछ ले नहीं तो हमारे दिमाग से जरुर निकल जाएगा |”
कहती हुई वे अपनी हँसी अपने होंठो के बीच दबाती हुई रसोई की ओर चली गई अब कमरे में नाज़ और इरशाद बैठे थे| नजमा अप्पी के जाते जहाँ इरशाद अपने कंधे उचकाता हुआ नाज़ को देख रहा था वही नाज़ झूठ मूठ की नाराज़गी दिखाती हुई उसे नजरो से घूरने लगती है|
***
दो दिन तो बस मस्ती के थे| मानसी तो अपना सारा सामान लेकर दो दिन पहले ही कोठी में आ गई| और सारी रस्मो में बढ़ चढ़कर शिरकत करने लगी| कोठी जिसे दुल्हन की तरह सजाया गया था और पूरी कोठी के हर कमरे को किसी होटल की तरह मेहमानों के रहने के लायक बना दिया गया था|
शादी से दो दिन पहले की मांझा की रस्म जिसमे पीले वस्त्र पहनाकर इरशाद को हल्दी और चन्दन का लेप लगाया जा रहा था| वही सारे दोस्त भी इस रस्म में शामिल होने आ पहुंचे| मनसो में ऋतु की बुआ को भी उसे लाने के लिए मना लिया| वैसे भी वे अच्छे से जानती थी उन चारो दोस्ती की उपस्थिति के बाद ही उनके बीच रौनक होगी|
हल्दी की छेड़छाड़ के बाद उसी दिन शाम तक मेहँदी की रस्म भी हो गई और अगले दिन संचक की रस्म की तैयारियां शुरू की जानी लगी जिसमे दुल्हे के परिवार के पुरुष सदस्य दुल्हन के परिवार को मिठाई, उपहार और आभूषण के साथ पोशाकें उपहार में देने जाते है| जिसके लिए समर, मोहित और जय अहमद मियां संग उन उपहारों को तैयार करवा रहे थे| इरशाद बीच बीच में आकर देखता तो जय चिढाते हुए धीरे से कह देता –
“अबे तेरा मन न लग रहा हो तो – बोल दे तेरा मन भी पैक करके साथ में ले जाए|”
इसपर वह गुस्से में उसे घूरने लगता|
मोहित भी चुटकी लेने से बाज नहीं आता –
“हम तो भाभी….जान…. के हाथ से मिठाई खा कर आएँगे – आखिर हम उनके बेहद मासूम देवर… जान…. जो है |” वह जान शब्द जरा जोर देता हुआ कहता है तो इरशाद का मुंह और बनने लगता है|
समर अब सख्ती से उनके बीच आता हुआ कहता है – “ये अच्छी बात नही है जो तुम दोनों मिलकर उसे चिढ़ा रहे हो|”
समर का इस तरह पक्ष लेने से इरशाद के मन को कुछ हौसला होता है और वह मासूमियत से उसकी ओर देखने लगता है|
समर अभी भी कह रहा था – “तुम लोग इस तरह ये सब बता बता कर मत चिढाओ – अब कहोगे कि वहां से खाना भी खा कर आओगे – और नाज़ ने खुद बताया है कि तुम्हारे पसंद के दही बड़े बने है – गलत बात है |”
“है !!!” इरशाद अब बेचारगी स समर की ओर देखने लगता है क्योंकि वे सब अच्छे से जानते थे कि दही बड़े इरशाद की कितनी बडी कमजोरी थे|
“चलो भाई लोग आज दिल पर पत्थर रखकर हम एक्स्ट्रा दही बड़े खाएँगे |” तीनो एक दूसरे के कंधे पर अपने अपने बाजू रखे इरशाद की खराब हो रही हालात का मजा लेते हुए कहते है|
इससे इरशाद चिढ़ता हुआ बोलता है – “कर लो मनमानी – देखना मैं भी तुम तीनो को छोड़ने वाला नही हूँ |”
इरशाद को गुस्से में जाते देख तीनो साथ में कसकर ठहाका मारकर हँस देते है|
***
इधर सारी तैयारियों के बीच एक अनजानी की तल्खी नज़मा अप्पी में नजर आ रही थी जिसे वे मेहमानों के बीच जाकर जानबूझकर छिपा लेती पर एक जगह मानसी उन्हें रोकती हुई कह उठी –
“अप्पी – क्या बात है ?”
“कहाँ क्या बात है – कोई तो बात नहीं – बस यूँही थोड़ी थकन हो सकती है|”
वे जिस तरह हडबडाहट में कह गई उसपर मानसी उनके दोनों बाजू पकड़ती हुई बोलती है –
“आपको बचपन से देखती आ रही हूँ और जैसे आप इरशाद और मेरी नस नस से वाकिफ है उसी तरह आपकी अनकही भी हमे समझ में आती है|”
इस पर वे ध्यान से मानसी ककी ओर देखती है|
“कहिए न अप्पी कोई बात जरुर है जो आपको परेशान किए है – अब मुझे ननि कहना तो मैं इरशाद को बोलती हूँ |”
“अरे न – मानसी यही तो परेशानी है कि इरशाद को कह नहीं सकती |”
“तो मुझसे कहिए |”
“हाँ शायद इसका हल तुम्हारे पास ही होगा |”
“तो कहिए न अप्पी|”
“मानसी तुम तो सारे हालातो से अच्छे से वाकिफ हो – अब नाज़ की अम्मी चाहती है कि शादी के बाद वह इरशाद के साथ यही कोठी में रहे पर हम अच्छे से जानती है इरशाद अपने घर यानि दोस्तों के साथ ही रहेंगे – ये बात अलग है अभी वे हमारे खातिर शादी की रस्मो के लिए यहाँ रुके है पर शादी के बाद कैसे रोक सकेंगे – कही ये बात और खटास में न पड़ जाए – अब मुश्किल ये है कि हम न नाज़ से कुछ कह सकते है न इरशाद से और न नाज़ की अम्मी की बात से इनकार कर सकते है |”
“तो आप चाहती क्या है ?”
“बस किसी तरह अगर इरशाद कुछ दिन नाज़ के साथ यही रुक जाए तो उन दिनों में नाज़ का मन भी हम समझ लेंगे और उसकी अम्मी का दिल भी हम रख लेंगे पर ये बात इरशाद से कैसे कहे – वे तो कभी कभी हर बात का उल्टा ही मतलब समझ लेते है|”
“बस इतनी सी बात – तो अप्पी ये आप मुझपर छोड़ दीजिए – जीनियस मानसी जानती है कि इरशाद से ये कैसे करवाना है – इरशाद अब कुछ दिन नाज़ के साथ यहाँ रुक भी जाएगा और आपको किसी को कुछ कहना भी नहीं पड़ेगा |”
“क्या सच में मानसी !!!”
मानसी हां में सर हिलाती है तो अप्पी प्यार से उसे गले लगा लेती है|
तो अब क्या धमाल होगा इरशाद की शादी में…बस अगले पार्ट में….
क्रमशः……
Maza a gya pd kr mujhe y kahani bhut achi lgti h
What a lovely part…..
Very very nice👏😊😊👏👏👍👏👏👍👍👍
Esi dosti bs kahaniyao me hi milti h real m nhi kaaaas hmare pas bhi ese hi dost hote ♥️