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हमनवां – 74

हमनवां – 74

दो दोस्तों की शादी हो चुकी थी और अब दो दोस्त रह गए थे| अब सबका ध्यान समर की शादी पर था| समर और ऋतु की शादी की सारी रस्मे घर पर हो रही थी बस शादी आश्रम में होनी थी|

एक बार फिर खुशियों की महफ़िल सजने लगी| सारे दोस्त और रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे थे| सारा अरेंजमेंट बुआ जी ने अपने घर के पीछे वाले आंगन में किया था जहाँ ऋतु की डांस क्लास चलती थी| समर के पिता समर की शादी उनके रिवाजो से करने को सहज ही राजी थे इससे अब कोई अड़चन का सवाल ही नहीं उठता|

समर के पिता की आँखों में कुछ विशेष ही चमक थी| आज उनका बेटा अपने नवजीवन में आगे बढ़ने वाला था और उससे भी बड़े हर्ष की बात ये थी उसका जीवन साथी उसके जैसा था| प्रेम के साथ जीवन की हर कठिन राह आसान हो जाती है इससे समर को लेकर अब उनकी हर चिंता को विराम लग चुका था|

सुबह हल्दी और शाम मेहँदी और संगीत का प्रोग्राम था| जिसमे सभी शरीक होने आ रहे थे| शैफाली और नूर के हाथो पर तो अभी भी मेहँदी थी और मानसी ने बस शगुन किया था क्योंकि अगली बारी तो उसी की थी| सभी एकदूसरे को छेड़ने में लगी थी|

शैफाली को सिकनेस की वजह से आराम कुर्सी पर बैठा दिया गया| अब बाकि तीनो उसे कहाँ अकेला छोड़ने वाली थी अब सभी उसके आस पास जमा होकर हँसी फुहार में लग गए| उनके साथ भावना भी आ बैठी थी|

नजमा आपा ने आकर ढोलक संभाल ली थी और उनका साथ देने परजाई और ताई जी आ जमी थी| महफ़िल में कुछ अलग ही फुहार का मजा आ रहा था| नज़मा अप्पी अपने स्वभाव से कुछ इस तरह घुल जाती थी कि बुआ जी उनका अलग धर्म का होना भूल ही जाती वही नूर की अम्मी ने बहाना बना लिया क्योंकि वे इरशाद के अलावा उन तीनो का अलग धर्म का होने से उन्हें पसंद ही नहीं करती थी|

पर सारी दुनिया से परे दोस्त अपनी ही महफ़िल सजाए बैठे थे| तभी किसी ख़ास की आमद हुई जिससे सभी की नज़रे दरवाजे पर टिक गई| पहले कुछ वर्दीधारी दरवाजे फिर ऊपर से नीचे काले लिबास में सिक्योरटी वाले और उनके बीच से सबने अश्विन कुमार को आते हुए देखा| उनके अंदर आते गौतम दरवाजे पर खड़ा होकर सभी सिक्योरटी वालो को थोड़ा पीछे कर देता है|

वे आते बुआ जी के पैर छूते है| बुआ जी तो बुरी तरह से संकुचा जाती है, अब इतना बड़ा नेता उनके घर आकर उनके पैर छुए ये तो उनकी कल्पना में ही नही था| वहां आते ही अश्विन कुमार अपनी सादगी से पल में ऐसा माहौल कर देते है कि सभी पल भर को भूल जाते है कि वे भावी सीएम के उम्मीदवार है|

अब चारो को एक साथ गले लगा लेते है, यही हर बार उन चारो से मिलने का उनका अंदाज था| अब वे भरपूर मुस्कान से उन्हें देखते हुए कहते है –

“तुम चारो को साथ देखकर जो उर्जा मिलती है उसे मैं शब्दों से नहीं बता सकता – मुझे तो प्रेम, विश्वास, दोस्ती और निष्ठा का चतुर्थ स्तंभ नज़र आते हो तुम चारों – जो साथ है तो कोई तुम्हारी नींव नहीं हिला सकता|”

इसपर वाकई चारो मुस्कराकर एकदूसरे को देखते है| वे उन्हें बैठने का आग्रह करते है इसपर वे अपनी असमर्थता जताते हुए कहते है –

“अब क्या बताऊँ – मन तो कर रहा है तुम सबके बीच मैं भी महफ़िल सजाकर बैठ जाऊं – आखिर ये अवसर बार बार थोड़े मिलेगा लेकिन तुम सबको पता ही है कि इलेक्शन नजदीक है तो दम भरने तक की फुर्सत नही – इसलिए कितनी कोशिश की पर इरशाद की शादी में नहीं आ पाया पर आज आने का तो ठान ही लिया था |”

“फिर भी कुछ देर तो रुकते आप ?”

वे चारो समवेत स्वर में कहते तो है पर उनकी मज़बूरी भी समझ रहे थे| आखिर उनके साथ पूरा तामझाम चलता था जो उनकी जरुरत कम मज़बूरी ज्यादा था| उनके आने से ऐसा लगता जैसे आस पास कर्फ्यू सा लग गया हो, इस वक़्त शादी के माहौल में परिवार के अलावा आए लोग थोडा सहम गए थे, यही सबसे बड़ी मुश्किल थी उनके आने की| और इस वक़्त भी बड़ी मुश्किल से उन सब सिक्योर्टी टीम को गौतम ने बाहर रोका हुआ था|

“कोई बात नही भईया आप आ गए यही बहुत है|”

उनके सहयोगी शब्दों से उनका मन कुछ हल्का हुआ तो वह आगे कहने लगे –

“और हाँ अभी मैं खाली हाथ आया हूँ क्योंकि मैं तुम आठो को साथ में गिफ्ट दूंगा – अब अगली बारी जय की है न – क्यों जय तैयार हो न !”

वे जय के कंधे पर अपना बाजु फैलाते हुए हँसी में कहते है वही दोस्त जय को देखते हुए कहते है –

“हाँ क्यों नही भईया – ये कुछ ज्यादा ही तैयार है बस इसकी शादी वाले दिन सुनामी न आए  |”

तीनो की हँसी पर जय उन्हें घूरने लगा वही अश्विन कुमार भी हँसी में उनका साथ देते हुए कहने लगे –

“मैं अबकी सारी सुनामी रोक दूंगा |”

सभी को याद था कि सबकी मंगनी हो गई थी बस जय की मंगनी में ही आफत आ गई, बस इसी बात को लेकर वे उसकी खिचाई कर रहे थे|

अब वे बाकियों से मिलने लगे| तभी गौतम की आवाज के साथ कोई महीन आवाज भी उनके बीच आई तो सभी के चेहरे खिल उठे| वो अंश था जो गौतम की पकड़ से छूटकर सीधे मानसी और जय के बीच आता उनकी एक साथ उंगली थाम लेता है|

“लो तुम चाहते थे तो मैंने हॉस्टल से जल्दी बुलवा लिया –|”

अश्विन कुमार की बात को पूरा करती हुई मानसी जल्दी से बोलती है –

“अच्छा किया न – आखिर हम सब इसे कितना मिस कर रहे थे – अब आएगा मजा – और आपको अंश की ओर से कोई फ़िक्र करने की जरुरत नही है – अब से ये मेरे जिम्मेदारी में है और शादी तक ये कही नहीं जाएगा |” कहती हुई वह अपने से कुछ दूर खड़े मानव को देखती हुई कहती है – “ये तब तक मानव के साथ रहेगा|”

ये सुनते मानव अपनी जगह से मिल गया| पर कुछ बोल न सका आखिर मानसी को तो बस उसपर हुकुम चलाना आता था इससे वह बस मुंह बनाए रह गया|

“आ जाओ चैम्प – हम मस्ती करेंगे |”

मानसी उसे अपने साथ ले लेती है इससे वे सुकून से उसे देखते रहे|

अब अश्विन कुमार सबसे क्षमा माँगते हुए बाहर निकलने लगे| जय उन्हें बाहर तक छोड़ने गया| वे दो भाई साथ चलते हुए बाहर आ रहे थे इससे सिक्योरटी उनसे कुछ दूरी बनाकर चल रही थी|

चलते चलते जय कहता है –

“भईया – शादी का प्रोग्राम आप दो दिन में समेट दीजिए क्योंकि इलेक्शन की वजह से दिल्ली हाई एलर्ट पर है फिर मुझे भी छुट्टी की प्रोब्लम होगी |”

“नहीं जय तुम्हारे लिए मैं इलेक्शन से कंप्रोमाइज कर सकता हूँ पर शादी से नहीं|”

“शादी से कहाँ कंप्रोमाइज होगा – बस चार दिन व्यस्त रखने से सभी को प्रोब्लम होगी – आप से लेकर कमिश्नर सर भी इन्वोल्व रहेंगे जो ऐसे समय काफी मुश्किल है इसलिए मैं ये बात कह रहा हूँ – |”

वे भी ये बात समझते थे पर अपने भाई की शादी में वे कोई कसर भी नही छोड़ना चाहते थे| बल्कि हाईकमान तो उन्हें इस वक़्त शादी की डेट आगे बढ़ाने पर जोर दे रहे थे जिसपर वे राजी ही नही हुए|

“ठीक है जय – मैं ग्रैंड होटल को दो दिन के बुक कर रहा हूँ – वही सारा कुछ अरेंजमेंट हो जाएगा – तुम नहीं जानते कि मुझे इस दिन का कितनी बेसब्री से इंतजार है |”

जय सहमती में सर हिलाता है| अब वे उससे विदा लेकर चले गए और उनके जाते वो सारा तामझाम भी चला गया|

अब जय अंदर आ गया| अब सब कुछ बदल गया था| महिलाऐं गा गाकर थक कर कोई पानी पीने तो कोई सुस्ताने लगी थी| मेहंदी लग चुकी थी इससे मानसी, ऋतु, भावना, नूर, शैफाली और परजाई जी गोला बनाए बैठी अपनी गपशप में लगी थी| अंश को अपना हमसाथी हैपी मिल गया था|

जहाँ लड़कियों का झुण्ड बन गया था तो वही लड़के भी एकसाथ गुट बनाए किस्से उड़ा रहे थे क्योकि अपनी गपशप में डूबी लड़कियों का ध्यान उन सबकी ओर जरा भी नहीं था इससे वे सभी चिढ़े बैठे थे| समर, मोहित, इरशाद के साथ पवन भी आ बैठा था| उन्हे देखते हुए जय भी वही उनके साथ आ बैठा|

उसे देखते हुए पवन कहने लगा –

“जय देख – मोहित, इरशाद नही माने और अब समर भी वेदी में चढ़ने को उतारू है – बस तुम ही बचे हो – अभी भी समय है – बड़ी प्यारी चीज दांव में लगाने जा रहे हो – आजादी|”

पवन की हँसी पर मोहित कहता है –

“ये वो लड्डू है जो खाए पछताए और जो न खाए वो भी पछताए |”

इस पर जय जल्दी से कहता है –

“ओके मैं भी खा कर पछताऊंगा –|”

“मान जा बेटा अभी भी समय है |” पवन फिर चुटकी लेता है|

“देखो जिंदगी बर्बाद करने के ढेरो रास्ते थे – हम उनमे से कोई चुन सकते थे फिर हमने शादी चुना …|” जय ने कुछ इस चुटीले अंदाज में कहा कि बाकी भी ताली मारते हुए हँस पड़े|

वे कुछ पल तक साथ में ठहाका मार ही रहे थे कि चूड़ी ताली की आवाज पर उन सबका ध्यान अपने बगल में गया जहाँ मानसी खड़ी थी| उसके हाथो के बीच में ट्रे में ढेरो शरबत के गिलास थे| संभव था कि वो उन्हें देने आई थी पर गलत समय पर आ गई और उनका मजाक सुनते अब उसके तेवर चढ़ गए|

जय आगे बढ़कर गिलास लेने लगा जिसे पीछे करती मानसी बोल उठी –

“कोई बात नही तुम अपनी जिंदगी बचा सकते हो |”

मानसी का ताना सुनते और जय की हालत खस्ता होने लगी| अब मानसी उन सबको बिना शरबत दिए चली गई जिसपर जय उसे मनाने उसके पीछे भागा और ये नजारा देखते उन सबकी हँसी छूट गई|

“अरे मानसी ये सब मिलकर मुझे हमेशा फसा देते है |”

“कोई बात नही – अब तुम बंधन मुक्त रहो – मिस्टर जय त्रिपाठी |”

ट्रे रखकर मानसी कमर पर हाथ रखे उसे घूरने लगी|

“यार शादी होने वाली है हमारी – बात बात पर रूठ जाती हो |”

“ओह रियली – कौन कर रहा है तुमसे शादी ?”

मानसी भौं उचकाती हुई अब उसे मुंह बनाती हुई देखती चली जाती है| उसे जाता देख जय धीरे से बुदबुदा उठता है –

‘बात तो मानती नहीं बुरा जल्दी मान जाती हो|”

जय भी आज पीछे कहाँ हटने वाला था| झट से गया और ढोल वाले जो लंच कर रहे थे उनसे ढोल लेकर वहां आ गया|

अब ढोल सुनते सब फिर से इकट्ठे हो गए| अब महफ़िल दो गुट में बदल गई थी लडको और  लडकियों की|

साथ में संगीत और ढोल का धमाल मच उठा| जय लड़कियों के सामने खड़ा था| उसे इस तरह ढोल बजाते देख सभी हैरान कम उत्साहित ज्यादा होने लगे| आखिर पुलिसवाला आज पूरे अलग ही अंदाज में था|

जय गाते हुए ढोल बजा रहा था और बाकी भी उसका साथ देने लगे –

“चल प्यार करेगी….

हाँ जी हाँ जी…

मेरे साथ चलेगी….

ना जी ना जी….

अरे तू हाँ कर या न कर…

तेरी मर्जी सोनिये…..

हम तुझको उठा कर ले जायेंगे…

डोली में बिठा कर ले जायेंगे…

मानसी भी कहाँ चुप रहने वाली थी और अब तो उसका साथ देने ऋतु, नूर और भावना भी थी…

“हम घर में कहीं छुप जायेंगे….

संग तेरे नहीं हम जायेंगे….

जय अब उसके आस पास घूमता हुआ गाता रहा –

“ओ गोरे गोरे मुखड़े वाली…

ओ काले काले नैनों वाली…

मान मेरा एहसान कि मैंने हाँ कर दी….

तू वरना कुँवारी रह जाती….

ये शादी हमारी रह जाती….

चल प्यार करेगी….

ये सुनते मानसी भी झूमती हुई जवाब देती है –

“जा मैं नहीं करती शादी वादी…

मुझको प्यारी है ये आज़ादी…

बस तुझसे मुझे ये कहना है…

पिंजरे में मुझे नहीं रहना है…

जय अब ढोल उतारकर मानसी को पकड़ते हुए गाता है –

“हम आये हैं दूर से यूँ वापस न जायेंगे…

हम अपनी सजनिया ले जायेंगे….

चल प्यार करेगी हाँ जी हाँ जी…

मेरे साथ चलेगी हाँ जी हाँ जी…

अब जय उसे अपनी प्यार से मन चुका था जिससे दोनों साथ में झूम रहे थे| अब उन्हें घेरे में लेकर बाकी भी झूमने लगे|

पल में महफ़िल जोश और रोमांच से भर उठी…

क्रमशः….

4 thoughts on “हमनवां – 74

  1. Bahut hi badhiya part hai maam ❤️
    Ashwin Kumar ji ki baat bahut hi sundar thi” प्रेम, विश्वास, दोस्ती और निष्ठा के चार स्तंभ “

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