Kahanikacarvan

हमनवां – 79

कुछ तो बुरा हुआ था जिसकी धमक सबने सुनी और उसका डर दिलो में उतरता चला गया| जय और मानसी अभी भी उसी हालत में थमे रह गए जैसे किसी ने उन्हें स्टैचू बोल दिला हो| तभी कमरे का दरवाजा खुला और हडबडाहट में अंदर आता हुआ मोहित कहने को हुआ पर उन्हें एक दूसरे के ऊपर देखता जैसे पल में भूल गया कि वह क्या कहने आया था और कुछ और ही पूछ उठा –

“जय तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”

मोहित की आवाज और अवस्था से दोनों भी अपनी तन्द्रा में वापस आते तुरंत ही बिस्तर से उतर जाते है| जय समझ गया कि मोहित जरुर कुछ जरुरी बात कहने आया था इससे वह उसे टोकते हुए कहता है –

“मैं यहाँ क्यों हूँ ये छोड़ो पहले वो बताओ जो तुम कहने आए थे ?”

ये सुनते मोहित के हाव भाव में फिर से गहरी दहशत नज़र आने लगी| वह उसी हडबडाहट में कहने लगा –

“जय नीचे लॉबी में ब्लास्ट हुआ है – सब तरफ अचानक से अफरा तफरी मच गई है – जो जहाँ है वही बना रह गया – मैं तो मानसी को लेने आया था|”

“ओह शिट |” जय उतेजना में अपने बालो पर हाथ फिराते हुए बोला – “जो डर था कही वो यही तो नहीं हो गया ?”

“कैसा डर जय ?” मानसी भी उसी हडबडाहट में पूछती है|

जय अब बिना समय गंवाए तुरंत मानसी और मोहित को देखता हुआ कहता है –

“ऐसा करो तुम मोहित के साथ जाओ -|”

“और तुम ?” मानसी जय की ओर चिंतित होती देखती है |

“तुम भूल रही हो कि मैं पुलिसवाला हूँ – |”

उस पल मानसी उसे बेहद प्यार भरी नजर से देखती है मानों उस पुलिस के जिस्म के अंदर के अपने प्यार को टटोल रही हो|

“बाकी सब कहाँ है मोहित ?” अब वे तीनो उस रूम से बाहर आ गए और इधर उधर नजर दौड़ते हुए आगे देखने लगे तब जय पूछता है |

“इस तीसरी मंजिल के हॉल में सभी गेस्ट हल्दी के लिए इक्कठे हुए थे तभी ये धमाका हुआ – अब सभी वही है –|”

“ठीक है – तुम सबको अंदर सुरक्षित करते गेट को अच्छे से लॉक कर लेना|” उनके विपरीत बढ़ते बढ़ते जय ने उनकी ओर बिना देखे कहा और झट से पॉकेट से मोबाईल निकालकर कॉल लगाने लगा|

मोहित मानसी को लिए उस हॉल में आ गया जहाँ उनके सभी गेस्ट मौजूद थे और उस पल की दहशत उन सबके चेहरे पर साफ साफ़ दिखाई पड़ रही थी| सभी तैयार चेहरे डर से मलिन नज़र आ रहे थे| मानसी वहां आते एक सरसरी निगाह से सबको देखती है| उसे देखते सभी उसे अपने पास लाते उसे ऊपर से नीचे यूँ देखने लगते है जैसे उसका ठीक होना खुद को बता रहे हो|

“ये सब क्या हुआ पुत्तर जी ?”ताई जी चिंतित स्वर में पूछने लगी|

मोहित आगे आता उन्हें संभालता हुआ कहता है –

“आप दार जी का ध्यान रखिए – और यहाँ भी जल्दी सब ठीक हो जाएगा |”

नूर की अम्मी नजमा की बांह थामे हुए सहमे स्वर में पूछने लगी –

“मुझे कुछ भी ठीक नही लग रहा – क्या हुआ होगा ?”

डर तो सबके चेहरों पर बाबस्ता था बस कोई मन के भीतर छिपाए था तो कोई छिपा न पाया| ऋतु हैपी और अंश को अपनी गोद में सर रखाए शांत किए थी| शैफाली के पास उसका हाथ थामे भावना बैठी थी| कुल मिलाकर जश्न की जगह डर काबिज हो गया था|

सभी वहां खुद को उस हॉल में बंद किए थे और चिंता सबके चेहरों पर तारी थी| इरशाद मानसी को बता रहा था –

“अभी बस उस धमाके के बाद आगे कुछ आवाज नही मिली पर लगता है कुछ तो हुआ है – अभी जय का मेसेज आया है बोल रहा है कि हमसे से कोई बिलकुल बाहर न निकले – |”

“क्यों बाहर न निकले – हुआ क्या है ? ठीक से बताओ न ?”

मानसी के जिद्द करने पर इरशाद धीरे से उसकी ओर झुकते हुए कहता है – “ये आतंकी हमला लगता है – सभी पुलिस हाई एलर्ट पर हो गई है |”

ये सुनते मानसी होंठ भींचे धीरे से पूछती है –

“जय ने और क्या कहा ?”

इरशाद आगे कहता है –

“इतने बड़े होटल में सर्च अभियान चलाना भी मुश्किल है इसलिए जो जहाँ है उसे वही रहने को कहा है – ऐसा करो मानसी मैं बाहर निकल रहा हूँ तुम लॉक कर लो |”

“अकेले ?”

“अरे बाहर कोई पार्टी थोड़े ही है |”

“हाँ तो तभी तो कह रही हूँ कि यूँ हाथ पर हाथ धरे हम नहीं बैठे रह सकते –|”

इरशाद मानसी को रोकना चाहता था पर उसने कभी सुनी किसी की जो अब मान जाती| आखिर तय होता है कि इरशाद और मानसी कुछ तो हेल्प करेंगे| फिर वे तय करते है कि होटल का कंट्रोल रुम तक वे जाएंगे जिससे वे वहां के कैमरे से होटल की स्थिति पर नज़र रख पाएँगे और पुलिस को भी इससे सहायता मिलेगी| होटल बड़ा था और इसके मैप को समझना इतना भी आसान नही था|

अब एक ओर मुश्किल थी वे इस रूम तक कैसे पहुंचेंगे तब मानसी इधर उधर नजर घुमाती खोजने की कोशिश करती है कि क्या वहां कोई होटल स्टाफ का कोई है| आखिर एक लेडी पर नज़र जाती है|

“आप बता सकती हो कहा हो सकता है कंट्रोल रूम ?”

“बहुत अच्छे से – मैं इवेंट मेनेजर हूँ और इस तरह से होटल के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ |”

ये उनके लिए खुशकिस्मती की बात थी कि वे जल्दी से उससे कंट्रोल रूम का रास्ता पूछने लगते है|

“ऐसे बताना मुश्किल है क्योंकि होटल के हर फ्लोर का इंटीरियर एक सा है – मुझे आपके साथ बाहर चलना होगा|

“पर बाहर खतरा हो सकता है ?”

“जो हमारे लिए इस वक़्त बाहर है – खतरे में तो वो भी है – और ऐसे में जब आप काम आ सकते है तो मैं क्यों नही ?”

वे तीनो निकलने लगे तो मानसी की मौसी मानसी को देखती रुआंसी होती कहने लगी –

“मेरी बच्ची बेचारी भूखी होगी – मैंने पूजा के चक्कर में खाने को भी मना कर दिया था|”

मौसी का रुदन सुनती मानसी बेख्याली में बोल उठी –

“मैंने मोमोज और आइसक्रीम खा लिया था|”

ये सुनते सुबकती मौसी थोड़े सख्त नज़र से उसे देखने लगी| और ये देखते मानसी झट से इरशाद के साथ और तेज कदमो से बाहर निकलती कहने लगी –

“चलो जल्दी – मौसी के मुंह की बमबारी से बाहर की बमबारी बेहतर होगी|”

और जल्दी से वे बाहर आ जाते है|

जहाँ मानसी इरशाद और इवेंट मेनेजर बाहर निकल गए वही मोहित और समर उनके साथ मोबाईल में कनेक्ट हुए बाहर की स्थिति समझते अंदर सबको सँभालने लगे|

***
जय तुरंत पिछली सीढ़ी से उस रूम उतर रहा था कि उसे पुलिसवाला दिखा और अगले ही पल वह एक ऐसे रूम में था जिसे इस जरुरत के वक़्त पुलिस ने वॉर रूम बना लिया था| वही कमिश्नर साहब के साथ कुछ बड़े पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे| एक मिनिस्टर के भाई और एक बड़े पुलिस अधिकारी की बेटी की शादी हो तो बड़े बड़े ओहदे वालो का एकत्रित होना लाज़मी था| और यही उनके गले की हड्डी बन गया|

एक तरफ इस स्थिति से निकलना भी था तो बाकियों को सुरक्षित भी रखना था| जय को देखते कमिश्नर जल्दी से पूछते है –

“तुम कहाँ थे ?”

जय क्या बोलता कि कहाँ था और क्यों उनका कॉल उसने रिसीव नही किया| बस फसी ही हालत में चुपचाप खड़ा रहा|

वे फिर आगे कहने लगे –

“जय जो थ्रेड हम संसद के लिए समझ रहे थे वो यहाँ के लिए था – एक्चुली हमे समझने में गलती हो गई – हमे लगा ज्यादा संख्या में वह नेता होगे पर भूले गए कि यहाँ शादी में भी बड़े बड़े नेता शामिल होंगे ही न – अब जो होना था हो गया – नेक्स्ट सिचुवेशन ये है कि जितने भी है पर अभी निचली लॉबी में है और हमे सबसे पहले उन्हें ऊपर आने से रोकना होगा – ऊपर ज्यादा खतरा है – |”

“मेरे भाई कहाँ है सर ?”

“वे तुम्हारे रूम यानी यही फर्स्ट फ्लोर में गए थे और उनसे कॉल पर बात हुई है कि वे वही सुरक्षित है – मैंने बैकअप मंगा लिया है लेकिन मुख्य गेट बंद है इससे बाहर से अब न कोई अंदर आ सकता है और न बाहर जा सकता है इसलिए जो कुछ भी करना है वो यहाँ मौजूद है उन्हें ही करना होगा|”

“डोंट वरी सर – अब बिन बुलाए मेहमान आए है तो बैंड बजा कर तो भेजेंगे ही|”

“बिलकुल |”

अब वे आगे सारे पुलिसकर्मियों को एड्रेस करते हुए कहते है –

“इस वक़्त होटल में तक़रीबन एक हज़ार के लगभग लोग मौजूद है और हमारी पहली कोशिश होगी कि हम कैजुलटी से रोके – मैंने सबको एक दूसरे से मोबाईल से कनेक्ट रहने और जहाँ है वही रहने को मेसेज पहले ही दे दिया – अब हमे किसी भी तरह से निचली मंजिल तक जाकर सिचुएशन का पता करना होगा क्योंकि जब तक कितने आतंकी है और कहाँ है ठीक ठीक नही पता चल जाता – हमे आगे के एक्शन के लिए पहले ये पता करना है क्योंकि इस धमाके के बाद से कोई दूसरा एक्शन नही हुआ है|”

“और सर हम आगे होने भी नहीं देंगे|” सभी एक साथ बोल उठे|

इसके बाद वे सभी अपनी अपनी पोजीशन समझते बाहर निकलने लगे| इस लगभग पुलिस वाले सादी वर्दी में थे इससे उनका छिपकर स्थिति को समझाना आसान था| वक़्त नाजुक भी था और जोशीला भी| पर सबकी कर्मठता वाकई सबको जोश से भर गई|

क्रमशः……………………

3 thoughts on “हमनवां – 79

  1. Sab surakshit rahe… Kahi Khushi ka mahol kharab na ho jaye..
    Par sab dost mil kar sab sambhal lenge yahi lag rha hai..

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