Kahanikacarvan

हमनवां – 8

घर आते इरशाद को घर पर एक नया सदस्य दिखा| सबने मिल कर पूरी कहानी बता दी ये सुन इरशाद को भी उसका यहाँ रुकना कुछ भला नही लगा पर खला भी नही| अब रात में सोने की बारी आई तो जय अपने कमरे की तरफ गया तो उसकी तेज़ आवाज सुन सब उस ओर धमक पड़े|

सबकी निगाहे जय की तरफ गई जो खड़ा अपने बिस्तर की ओर घूर रहा था| वहीँ बिस्तर पर चैन से सोता वह बच्चा सबसे बेखबर था|

“इसे मेरा ही कमरा मिला |” जय दांत पीसते हुए बोला|

इस घर में सबके हिस्से एक अदद अपना अपना कमरा था और सब कमरों के बीच में एक बड़ा हॉलनुमा कमरा जो एक तरफ बालकनी तो दूसरी तरफ से रसोई की तरफ अपनी आंख खोलता था| सभी खाली वक़्त इसी कमरे में मिल कर बैठते बाकी सबके पास अपना कमरा तो निजता के लिए था ही|

सब धीरे धीरे खिसक लेते है, जय निरुत्तर अभी भी वहीँ खड़ा था, उस मासूम को उसकी नींद से जगाने की हिम्मत तो उसे भी न हुई और जागता भी तो उसे भेजता कहाँ, यूँ तो बेड इतना बड़ा तो था ही कि एक बड़ा एक छोटे बच्चे के साथ सहज ही सो सकता था|

जय उस बच्चे के पास आता है, उसका तकिया से ढुलका सर ठीक कर उसको धीरे से किनारे खिसकाने की कोशिश करता है| उनींदी सा वह जय के लेटते उसकी तरफ मुड़कर अपनी बाँहे उसके शरीर के विस्तार पर फैला लेता है| उसका चेहरा अब जय के कंधो से लगा था जिसे देर तक वह नज़र भर कर देखता रहा, साथ ही मन मथता रहा कि आखिर क्यों उसे देख उसके जेहन में तूफानों का शोर बढ़ जाता, किसी से मिलता था वह चेहरा, ये इतफ़ाक भी तो हो सकता है| मन का उबाल जेहन में ढ़ेरों तस्वीरों के साथ उसके मन मस्तिष्क में उभर आया| जिस चेहरे के साथ निष्ठा, समर्पण और विद्रोह एक साथ आ रहे थे| वह सोचते सोचते उसके खुले माथे पर अपनी हथेली से सहलाता है| वह अपनी आंख खोल लेता है| ये देख जय संभलते हुए उससे थोड़ा हट लेता है|

“सॉरी मैं यहाँ सो गया|” वह जल्दी से उठ बैठता है – “आप यहाँ आराम से लेट जाइए|” वह बड़ो सा तन कर किनारे खड़ा हो जाता है|

जय लेटा लेटा ही उसकी तरफ देख रहा था, मानों उसका बचपन कहीं से लौट आया और उसके सामने खड़ा उसे चुनौती दे रहा हो|

“तो तुम कहाँ सोओगे फिर?” जय मंद मंद मुस्कराता है|

“मैं..मैं…!!” वह सकपका कर अपने अगल बगल झांकने लगता है|

“अगर तुमको कोई परेशानी न हो तो तुम मेरे साथ बेड शेयर कर सकते हो|” उसके चेहरे पर अभी भी हलकी मुस्कान तैर रही थी|

वह बच्चा भी मुस्करा उठा – “आपको परेशानी तो नहीं होगी?”

“अभी तो चेक किया हम दोनों में से कोई मोटा नहीं है|”

वह नवविकसित पुष्प सा खिलखिला उठा|

वह अभी सो कर उठा था और अब उसकी आँखों में नींद की जरा भी खुमारी नहीं थी, वह बार बार करवटे बदल रहा था| जय को आभास हुआ कि शाम से सोया बच्चा शायद भूख के कारण नही सो पा रहा| वह उसका चेहरा अपनी तरफ करता हुआ पूछता है – “भूख लगी है क्या !!” वह धीरे से सर हाँ में हिलाता है|

“चलो फिर |” उसे अपनी गोद में जैसे उठा कर खड़ा करता है| दोनों जल्दी से रसोई की तरफ जाते है, जहाँ इधर उधर पड़े बर्तनों को टटोलने और दो चार डिब्बो को खोलने के बाद वह रसोई के किनारे खड़े फ्रिज की तरफ बढ़ता है – “लगता है हमारे काम की चीज़ इस फ्रिज में छुपी है – चलो आज इस बर्तनों के घने जंगल में शायद हमे कोई शिकार मिल जाए|” जय किसी शिकारी सा धीरे धीरे चलता फ्रिज की तरफ बढ़ता है| बच्चा रोमांच से भरा जय को देख रहा था|

“ये देखो आज हमारे हाथ बड़ा शिकार लगा है|” अपने हाथ में पकड़े ब्रेड का एक पैकेट दिखाते हुए अब वह फ्रीज़र में कुछ और खोजने लगता है – “वाह आज तो हमारा दिन बहुत अच्छा है – अब इस शिकार को हम इसके साथ आग में भून कर खाएंगे|” आदमखोर सा मुंह फैलाते वह दूसरे हाथ में मक्खन का पैकेट लिए अब गैस की तरफ बढ़ता है और उसे वही स्लैप पर उचकाकर बैठा देता है|

“तो बच्चे – अरे तुम्हारा तो कोई नाम रखना पड़ेगा|”

जय एक दम से कहते कहते रुक गया जिसपर झट से वह बोल पड़ा – “अंश नाम है मेरा|”

जय के हाथ एक पल रुक कर निगाहें उसकी तरफ मुड़ जाती है| वह बच्चा थोड़ा सकपकाते हुए कहता है – “मुझे अपना नाम बस याद आया|” उसके चेहरे पर डर मिश्रित घबराहट तैर जाती है|

“तो अंश इसका मतलब तुम्हेँ जल्दी ही सब कुछ याद आ जाएगा – तुम्हेँ अब किसी से डरने की जरुरत नहीं|”

तसल्ली होते उसके होठों के किनारे हलके से फैल जाते है|

“तुम आराम से यहाँ रहो और जब भी भूख लगे न तो हमारे शैफ है न उनको कहना तुम्हेँ बढ़िया बढ़िया बना कर खिलाएंगे|” जय समर का चेहर याद कर बिन आवाज़ के जोर से हँस पड़ा और अंश उसका चेहरा देख धीरे से मुस्करा दिया|

***

मोहित के एक हाथ में चिट्ठी तो दूसरे हाथ में चाय का कप लिए सबको आवाज़ लगाता हॉल में आकर बैठ जाता है| एक बार फिर चिट्ठी खोल कर पढ़ते उसकी आखों में सुबह का उजास खिल उठता है| इरशाद अंगड़ाई लेता हुआ वहां आता है|

“किसी लड़की की चिट्ठी है क्या जो सुबह सुबह चेहरे पर बहार खिल आई|” एक झटके से खुद का शरीर जैसे सोफे पर छोड़ इरशाद सामने की टेबल पर अपना पैर पसार लेता है| मोहित कुछ कहता उससे पहले दोनों का ध्यान अपने सामने से आते जय पर जाती है जो उस बच्चे को लाड़ से अपनी गोद में उठाए लिए आता उन्हें दिखता है|

इरशाद एक दम से उछल पड़ता है – “लगता है दोस्ती हो गई दोनों मे|”

जय उसे गोदी में लिए हुए ही सोफे पर बैठते उसकी उनींदी में गुदगुदी करता है जिससे नन्हे फूल सा वह खिलखिला पड़ता है|  उनींदी में खड़ा होते जल्दी से एक विशेष उंगली का इशारा कर वह बाथरूम की तरफ भागता है जिसे देख तीनों की हँसी छूट जाती है| पीछे से जय की आवाज़ गूंजती रह जाती है “ध्यान से अंश नींद से कहीं गिर मत पड़ना |” प्रश्न को सबके चेहरे पर पढ़ते हुए कहता है – ‘”रात में बताया अपना नाम अंश देखो अभी नाम याद आया शायद सब याद आ जाए धीरे धीरे..|”

“किस बात में हँसी आ रही है|” समर भी आकर सोफे पर बैठते उन सबका चेहरा देखता है|

“अरे पहले ये चिट्ठी बताओ|” जल्दी से याद दिलाते इरशाद बोलता है|

“हाँ गाँव से ताया जी की चिट्ठी आई है गुड्डी की शादी तय हो गई है|”

“अच्छा !!” सबके चेहरे एक साथ खिल उठे|

‘हाँ और लिखा है कि सबसे कहना दो महीने पहले बता रहे है ताकि सब छुट्टी लेकर आ सके|’

“यार मज़ा आ जाएगा – गाँव में इस बार तो खूब धमाल करेंगे|” जय खुश होते हुए कहता है|

“चलो अपन तैयार होने चलते है आज तो ग्राउंड भी जाना है शाम को देर हो जाएगी आने में|”

“आज रात की पार्टी तो याद है न !!” इरशाद जल्दी से याद दिलाता है|

“नही मैं नहीं आ रहा|” उबते हुए मोहित कहता है|

“क्यों !!” बाकी सब एक साथ बोल उठे|

“जानते हो यार मुझे ये पार्टी वार्टी में कोई इंटरेस्ट नही|” मोहित सबकी तरफ देखता हुआ कहता है|

“चल न यार पवन ने सबके लिए बोला है|” इरशाद मनुहार पर उतर आया|

जय बीच में उछलते हुए बोला – “देख ले कहीं उसकी विदेशन साली से तेरी सेटिंग हो जाए|”

“कभी नही – ऐसा है मुझे ये रोग नही लगाना मैं अपनी जिंदगी से बहुत खुश हूँ|”

तभी अंश उनके बीच आकर बैठ जाता है|

“और फिर इसका क्या होगा – बड़ों की पार्टी में इसका क्या काम – ऐसा करना तुम लोग जाओ मैं इसके साथ रहूँगा|” अंश की तरफ देखते हुए मोहित को जैसे एक और बहाना मिल गया – “हम दोनों साथ में मस्ती करेंगें|”

“चल न मोहित – मैं फिर अकेला पड़ जाऊंगा|” समर को भी पार्टी कोई ख़ास पसंद नही थी मोहित के साथ बस वहां का उसका वक़्त कट जाता| “अंश का ध्यान ऋतु रख लेगी|” तभी ऋतु से नज़र मिली जो अभी अभी वहां आई थी| समर का मन कह उठा दिल से पुकारा और तुम चले आए…| सभी की नज़र भी ऋतु पर गई|

ऋतु के हाथो में कोई कागज का लिफाफा था| सब की प्रश्नात्मक मुद्रा पर वह जल्दी से कहती है – “कल रात का तुम सब के लिए निमंत्रण है – कला अकादमी में मेरा डांस का परफोर्मेंस है|” वह ख़ुशी से जैसे झूम रही थी|

“‘सब के लिए टिकट है इसमें|” कहते हुए उसकी नज़र समर से टकराई|  

“फ्री है न !!!” जय शरारत भरे लहजे में बोला|

“हाँ बिल्कुल|”

“तब ठीक है – हम कुछ भी देख लेंगे|” अबकी इरशाद को शरारत सूझी|

समर आगे बढ़कर उसके हाथो का लिफाफा लेते मुस्करा पड़ता है – “हम जरुर आएँगे|”

“क्यों अब बोर नहीं होंगे डॉक्टर साहब !!” तेज़ ठहाके वहाँ गूंज उठे| ये देख ऋतु के चेहरे पर नाटकीय नाराज़गी तैर गई|

***

पिछली रात की बारिश से शहर खुद ही नहा धो कर तैयार हो गया था| अब नामालूम हलकी फुहारों के बीच शहर अलसुबह से ही धीरे धीरे खिसक रहा था| वीआईपी रोड की मूवमेंट भी बढ़ गई थी| किसी  खास आन्तरिक अंदेशे के कारण जय मुख्य चेकिंग पोस्ट पर तैनात बड़ी चौकसी से आती जाती गाड़ी को चेक करवा रहा था|

एमएलए आश्विन कुमार हडबडाते हुए अपने खास आदमी गौतम के साथ निकल रहे थे| उनके चेहरे की हवाइयां उडी हुई थी, उसे कहीं पहुँचने की जल्दी थी इसलिए वीआईपी चेकिंग पोस्ट से जल्दी से निकल जाना चाहता था पर गाड़ियों की लम्बी कतार उसमें खिन्नता भर रही थी|

जय सिगरेट सुलगाते हुए थोड़ी दूर से ही गाड़ियों की चेकिंग करते पुलिसकर्मियों को रुकने या जाने का इशारा दे रहा था| अश्विन कुमार की नज़र जय पर टिक गई थी लेकिन जय अभी भी उस ओर से बेखबर गाड़ियों की चेकिंग से संतुष्ट हो जाने के बाद ही उन्हें जाने दे रहा था| अश्विन कुमार को जल्दी थी और ड्राईवर अपने मालिक का इशारा अच्छे से समझता था फिर भी वह दो गाड़ियों के पीछे रुका अपनी बारी का इंतजार कर रहा था लेकिन चेक हो रही आगे की गाड़ी के पेपर में कुछ ज्यादा ही देर तक उलझे पुलिसकर्मी पर वह झुंझला उठा और झट से पीछे सीट पर बैठे अपने मालिक के इशारा भर पाने के इंतजार से उनके रसूख का इस्तेमाल करने के लिए उनकी तरफ देखता है पर अश्विन कुमार जल्दी में होने पर भी उसे रुकने का इशारा कर देते है पर गौतम कार से नीचे उतर आता है और ऐसी जगह खड़ा हो जाता है जहाँ से जय उसे आसानी से देख सके और वाकई किसी पेपर पर से नज़र हटाते समय उसकी नज़र गौतम से टकराती है और बहुत सारे ख्याल उसके दिमाग में एक साथ उमड़ आते है| गौतम है तो वे जरूर होंगे इस बात से ही एक हडबडाहट उसके चेहरे पर उतर आती है और अपने हाथ में सुलगती सिगरेट का ख्याल आते उसे धीरे से अपने जूतों तले छुपाता वह जानबूझ कर अब उस ओर से नज़र हटाता आगे की गाड़ी के ड्राईवर से पुलिसकर्मी की हो रही बहस पर दखल देता उस गाड़ी को किनारे करवा कर पिछली गाड़ी का मार्ग साफ़ करता है| पेपर दिखा कर वह गाड़ी झट से आगे निकल जाती है| अब अश्विन की गाड़ी को पुलिसकर्मी चेक कर रहा था|

जय अपनी जगह से खड़ा खड़ा तेज़ आवाज़ में बोलता है – “कोई भी हो पेपर ठीक हो तभी जाने देना|”

इस बात पर ड्राईवर अश्विन के चेहरे पर दबी मुस्कान देख अनबूझा सा रह जाता है| ड्राईवर कार से बाहर निकलकर सारे पेपर दिखाता है जिसे पुलिसकर्मी उलटता पलटता है और पूरी तस्सली होते ही जय की तरफ इशारा करने पेपर हवा में लहराते हुई कहता है – “ठीक है सर|’’

जय जानबूझ कर उस ओर बिना देख कहता है – “जाने दो|”

ये सुन गौतम के कार में बैठते ड्राईवर चन्द क्षणों में वहाँ से निकल जाता है| अब जय नज़र उठाकर कार के पीछे छूटते रास्तों की ओर दो पल तक देखता रहता है|

क्रमशः……

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