Kahanikacarvan

हमनवां – 9

मोहित कहता रहा कि पार्टी में मुझे नही जाना फिर भी वे तीनों कहाँ उसकी बात सुनने वाले थे उसकी बहुत नानुकुर के बाद भी उसे सबके साथ जाना पड़ा| पार्टी भावना ने अपने थ्री बीएचके फ्लैट में ही रखी थी जिसे उसने अपने कलात्मक हाथों से सजाया था| जो उस घर में आता उस घर की साज सज्जा की तारीफ किए बिना नहीं रहता| कहीं टेराकोटा के कलात्मक बड़े बड़े पॉट रखे थे तो हाथों की पेंटिंग से सुस्सजित गोल आकार के कुशन सोफे पर मुख्य कमरे की शोभा बढ़ा रहे थे| भावना और पवन ने अपने बहुत ही खास खास मित्रों को बुलाया था| बमुश्किल दस बारह लोग मौजूद थे| आज का खाना भी भावना ने खुद अपने हाथों से बनाया था| पहले सभी हलकी कोल्डड्रिंक का आनंद उठा रहे थे|

जय और मानसी दोनों साथ में किसी किनारे एक ही प्लेट से नाश्ता कर रहे थे| जय उससे शिकायत कर रहा था “आज कल कहाँ रहती हो? जानती हो न तुम्हेँ दिन में एक बार देखे बिना मेरा दिन नहीं ढलता और न सुनहरी सुबह की कोई आस ही बनती है|”

मानसी उसकी एक बांह थाम लेती है अब दोनों एक दूसरे की आँखों में आसानी से झांक पा रहे थे जहाँ नेह का समंदर उमड़ उमड़ आ रहा था| इरशाद भी कोना पकड़े अपने मोबाईल संग सारी हलचल से विरक्त बैठा था| उसके पास की मेज़ पर रखी कोल्डड्रिंक बहुत देर से वही रखी रही थी| समर के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उसकी नज़रो के सामने अचानक से दिव्या आ जाती है| इस अचानक की भेंट की असीम ख़ुशी दिव्या के चेहरे पर नज़र आ रही थी| तब समर को पता चला कि दिव्या का नया फ्लैट अब भावना के बिल्कुल बगल में है|

फिर देर तक हॉस्पिटल की, बीते कॉलेज के समय की वे बात करते रहे| मोहित बुरी तरह से बोर हो रहा था| उसे लग रहा था सभी ने अपना अपना ठिकाना ढूँढ लिया बस वही उनके बीच बेवकूफ बना रह गया| उसकी नज़र अब अपने चारोंओर थी| भावना ने वहां हलका हलका संगीत चला रहा था| पवन और भावना बारी बारी से सभी के पास आकर सबको नाश्ता सर्व कर रहे थे|

अब पवन मोहित के पास आते अपने हाथ में पकड़ा गिलास उसकी तरफ बढ़ाता है जिसे बोरियत समय काटने के उद्देश्य से मोहित ले लेता है| कुछ पल बात कर अब वह भावना के साथ कमरे के अनदेखे हिस्से में कुछ परेशान सा खड़ा था| भावना अपने भावुक मन से उमड़ आए आंसुओ को सबसे छुपाकर पोंछ रही थी| “

बहुत ही जिद्दी है वह किसी से भी नहीं मिलना चाहती|” धीरे से वह बस इतना ही कह पायी| पवन उसके कंधे पर हाथ रख उसे ढान्ढस बंधाते हुए उसे अब खाना गर्म करने के लिए कहता है| भावना रसोई की तरफ चली जाती है| मोहित उस गिलास को भी खत्म कर फिर इधर उधर देखता है पर कुछ समझ न आने पर वह खुली हवा खाने फ्लैट से बाहर निकलकर टैरिस की ओर निकल जाता है|

दस मंजिला फ्लैट की बिल्डिगं में टैरिस पर जाने की लिफ्ट होने पर भी मोहित जबरन सीढियाँ चढ़ता है| वह धीरे धीरे सीढियाँ चढ़ता मन ही मन कुछ गुनता हुआ चढ़ा जा रहा था| वह अगली सीढ़ी पार कर बस टैरिस पहुँचने ही वाला था कि सीढ़ी पर किसी की छाया देख वह उस ओर ध्यान से देखता है| सीढ़ी के एक अँधेरे हिस्से में कोई छाया मौजूद थी जिसे धुएँ के गुबार ने घेर रखा था, उसके पैर वही ठिठक पड़ते है वह अपनी पॉकेट से मोबाईल निकालकर उसकी रौशनी उस अँधेरे हिस्से की ओर डालता है कि एक लचकती लडखडाती आवाज़ उसतक पहुँचती है – “हुस दिस रास्कल…..!!” मोहित अब आसानी से उस परछाई के शरीर को देख पा रहा था| वह कोई सुनहरे बालों वाली दूध सी रंगत वाली थी| उसके तन पर बस दो हिस्सों में बंटे कपड़े थे या तन ढंकने की जबरन कोई नियमावली, उसने अपने बालों को सर के ठीक बीच में किसी फीते से कसकर बांध रखा था, जिससे उसके लम्बे घुंघराले बाल आधे तितर बितर थे| उसके पैरो के पास शराब की खाली बोतले थी तो उसकी उँगलियों में अधजली सिगरेट|

उस रौशनी के टुकड़े में उसके आस पास का भी सब कुछ ठीक से नज़र आ रहा था| शायद कई शराब की बोतल और कई सिगरेट के टुकड़े उसके देर से वहां मौजूद होने की गवाही दे रहे थे| वह देर तक रौशनी अपने ऊपर पड़ते देख फिर उसपर चिल्लाई जिससे मोहित झट से मोबाईल की रौशनी बंद करता हुआ उसके बगल से होता हुआ टैरिस की ओर निकल जाता है|

***

शैली केबिन में अकेली बैठी जल्दी जल्दी कुछ टाइप कर रही थी| मानसी आकर उसके पास वाली चेअर पर बैठ जाती है तब उसका ध्यान अपने बगल की तरफ जाता है| वह मुस्करा कर उसकी तरफ देखती है – “कैसी हो दो दिन से कहाँ थी?”

“कुछ काम था|” मानसी ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहती थी क्योंकि शैली के साथ काम करना अभी उसने सबसे छुपा जो रखा था|

शैली टाइपिंग बंद कर फाइल सेव करती हुई अपनी मूविंग चेअर मानसी की तरफ घुमाती हुई कहती है –‘तुम्हेँ बहुत जरुरी बात बतानी थी|’

‘मानसी मैं जिस रिपोर्ट पर अभी काम कर रही हूँ न ये जब बाहर निकल कर आएगी तब देखना धमाका ही हो जाएगा|’ उसने हवा में हाथ घुमाते हुए कहा –‘एक राजनीतिक चेहरे का पर्दाफाश है पर …|’ वह अपने पैर हवा में हलके से उठाकर चेअर को दायें बाएँ घुमाने लगती है –‘लेकिन तुम्हारी हेल्प के बिना ये संभव ही नहीं|’

‘मेरी !!!’ मानसी के चेहरे पर आश्चर्य तैर जाता है|

‘हाँ तुम्हारी |’ शैली झट से अपनी चेअर मानसी के और पास खींचकर उसके बंधे हाथ थामती हुई धीरे से कहती है –‘मेरी खबर के अनुसार पुलिस जिसके पीछे सर खपा रही है बस उसका नाम नही ढूंढ पा रही – मेरे पास नाम है बस सबूत जुटाने है और ये सिर्फ तुम कर सकती हो|’

‘वो कैसे ?’

‘तुमसे बेहतर कौन है इस समय पुलिस की सीक्रेट निकालने में आफ्टर आल तुम्हारे डैड और तुम्हारा बॉयफ्रेंड दोनों पुलिस में है|’ शैली के चेहरे पर हलकी मुस्कान छा जाती है|

‘क्या ऐसे काम करना होता है – शैली मैं ऐसा बिल्कुल नही कर सकती|’ मानसी अपना हाथ उससे छुड़ा लेती है|

‘अरे डिअर तुम समझ नहीं रही – अच्छा ये बताओ क्या पुलिस अपने मुखबिर नही लगाती और फिर सिर्फ कुछ चीज़े पता करनी है – तुम समझ नहीं रही ये किसी के जीने मरने का प्रश्न जैसा है|’

‘किसका?’

‘क्यों अगर सबूत के अभाव में पुलिस एनकाउंटर का कोई निर्दोष शिकार हो गया तो – तुम क्या हलुआ समझकर क्राइम रिपोटिंग में आई थी|’ कहते कहते वह खड़ी हो जाती है –‘मैडम ये आग का दरिया है किनारों से भी निकलते लोग झुलस जाते है|’

मानसी उसकी तरफ देखती रही|

‘बस थोड़ी सी जानकारी बाकी नाम तुम्हारा..|’ आखिरी पत्ता तुरुप का डाल वह मुस्कराई|

***

ऑफिस से निकल कर सीधे जय के घर के लिए मानसी निकलती है| उसके दिमाग में इस समय बेहद कशमकश सी मची थी| कभी लगता कुछ गलत तो नहीं कर रही कभी खुद को ही समझाने पर उतर आती कि उसका काम सही होना चाहिए रास्ता चाहे जो भी हो| कभी कभी गलत तरीको से सही रास्ते मिल जाते है| खुद से ही बातें करती करती कब जय के घर तक पहुँच गई पता ही न चला|

जय की बुलेट खड़ी देख तुरंत सीढियों की ओर कदम बढ़ा देती है|

मोहित बीती रात की बात बता रहा था और जय और इरशाद दोनों मजाक के मूड में थे| बार बार शैफाली के नाम पर उसे छेड़ने का प्रयास कर रहे थे वहीँ समर अंश के लिए कुछ खास बना रहा था| अंश वही खड़ा कुछ न कुछ उसे सुना रहा था|

चार कँवारों की जिंदगी में एक बच्चे की मौजूदगी से बहुत कुछ बदल गया था| वह घर पर अकेला न रहे इसका वे हमेशा ख्याल रखते और कोई न कोई घर पर जरुर मौजूद रहता था अब उसके साथ| कभी कुछ भी बाहर से मंगा कर खा लेने वाले अब घर पर ही कुछ न कुछ बना लेते| प्रेम के अदृश्य बंधन ने कब उनको बांध दिया वे जान भी न पाए| समर एक साथ कई प्लेट हाथ में लिए निकलता है तो जल्दी से अंश प्लेट पकड़ लेता है| उसकी मदद पर समर मुस्करा पड़ता है|

मानसी दरवाज़े की देहरी पर खड़ी अलग ही नज़ारा देख रही थी| उन चारों के बीच कोई अन्जान चेहरा भी था| जोर के ठहाके के बीच जय की निगाहें मानसी पर जाती है|

‘मानसी !!’

अब सभी उसकी तरफ देखते है| मानसी अंश की तरफ प्रश्नात्मक रूप से देखती हुई अन्दर आती है|

‘ये कौन है?’

इससे पहले की जय कुछ बोलता इरशाद उछलते हुए जोर से बोलता है –‘कहा था न शादी करलो नहीं तो हाथ से निकल जाएगा लड़का – आज तो सबूत सामने है|’ इरशाद के द्विअर्थी मजाक पर मोहित और समर धीरे से फुसफुसा कर हँस पड़ते है|

मानसी के चेहरे के बदलते तेवर देख जय जल्दी से बोलता है  –‘अबे शादी से पहले डाइवोर्स करवाएगा क्या?’

मानसी का हाथ पकड़ अपने पास बैठाता हुआ जल्दी से कहता है –‘अरे ये अंश है अचानक हमारे पास आ गया और कुछ नहीं|’

मानसी के गुस्से से वाकिफ जय जल्दी से अपनी तरफ की सफाई पेश करता है जिस पर बाकी के तीनों के ठहाके गूंज उठते है|

कुछ देर की बातचीत के बाद अंश ने मानसी का मन भी मोह लिया|

***

गुरु जी को सामने देख ऋतु की ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा अब उसे यकीन था कि उसकी आज की डांस की परफोर्मेंस जरुर बहुत अच्छी रहेगी| झट से गुरु वंदना कर वह सीधी खड़ी होती अपना उत्साह अपने शब्दों से व्यक्त करती है तो गुरु जी भी मुस्कराए बिना नहीं रहते|

‘कहा था न मन नहीं लगा तो आ जाऊंगा और तुम्हारे सपने को सच होते देखने भी नहीं आता क्या मैं!!’ वह आर्शीर्वाद देते ऋतु का ध्यान अपने साथ खड़े शख्स की ओर दिलाते है – ‘अभ्युदय को भी साथ ले आया|’

उनके कहने के बाद उसका ध्यान गुरु जी के थोड़ा पीछे खड़े उनके बेटे की तरफ जाता है| शालीन चेहरे पर हलकी मुस्कान थी|

‘ये तो बहुत ही अच्छी बात है|’ दोनों मुस्काने मिल कर एक दूसरे का अभिवादन करती है|

अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस के कार्यक्रम के एक दिवस में ऋतु की भी भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति थी| ऋतु का उत्साह अपने गुरु को समक्ष देख और चरम पर था| उसके देखे कुछ चुनिन्दा सपनो में उसका नृत्य उसकी आत्मा की चाह था, बल्कि अपनी माँ की आँखों के दिवास्वप्न का मूर्त रूप था जिन्होंने अपने समय में नृत्य की चाह को सामाजिक दवाब की वजह से दबाए रखा पर अपनी बेटियों को देख उनका सपना जैसे कुलाचे मार उठा और मात्र ढाई वर्ष की कोमलता में ऋतु सदा के लिए नृत्य को समर्पित हो गई लेकिन एक आकस्मिक रोड दुर्घटना में अपने माता पिता को खो कर भी उसने अपनी माँ का सपना मरने नही दिया और नाट्यकला अकादमी से जुड़ कर नृत्य को सिर्फ व्यावसायिक ही नहीं बल्कि विस्तार को महत्व दिया| इसलिए प्रत्येक रविवार की सुबह अपने घर में आस पास के बच्चों को वह नृत्य सिखाती और अपना सपना ढ़ेरों आँखों को बाँटती जाती|

मंच में प्रथम गुरु वंदना कर आगंतुकों का अभिनन्दन कर उसकी प्रस्तुति शुरू होती है| मंच पर स्वर, वाद्य, लय और घुंघरुओं की थापों से ढेरो मुद्राओं और भंगिमाओं से वातावरण में एक जादू का प्रसर जाता है, सभी एक टक उस कला का पान अपनी आँखों से कर रहे थे| उसी भीड़ में मौजूद समर जिसे नृत्य का ककहरा भी नही पता था लेकिन ऋतु के चेहरे की उमंग मन की तृप्ति बन उसके मन को सुकून दे रही थी|

प्रस्तुति के लम्बे दौर में मिलते कुछ अंतराल में बुआ जी अब असहज हो जा रही थी| डायबिटीज की मरीज बुआ जी के लिए वहां बहुत देर बैठना मुश्किल हो रहा था| वह अब घर जाना चाहती थी| साथ की सीट में बैठी वर्षा स्थिति समझती है लेकिन वह पूरा प्रोग्राम देखना चाहती थी| अब उसे ही सोचना था कि वापस कैसे जाए?

आते वक़्त तो समर समय से कार के साथ तैयार था आखिर ऋतु को समय से पहले पहुंचना था| ऐसा मौका वह आखिर कैसे हाथ से जाने देता लेकिन हमेशा की तरह कबाब की हड्डी बनती बुआ जी जल्दी से आकर उसके साथ वाली सीट पर जम जाती है ये देख दोस्तों का हँसते हँसते पेट में दर्द हो गया| सब अपनी हँसी होठो पर छुपाए देखते है ऋतु और वर्षा पीछे बैठती है| बाकी सब मोहित की कार से आते है| जय मानसी का इंतजार करता बाद में आता हूँ कह कर रुका था|

जय,मानसी,अंश,मोहित और इरशाद एक साथ बैठे थे| वर्षा परेशान सी वहां आती है| वर्षा जैसे ही बुआ जी के जाने की बात करती है मोहित झट से उन्हें घर छोड़ने के लिए राज़ी हो जाता है| बुआ जी वहां आती है और समर को वहां न देखकर पता चलता है कि अचानक हॉस्पिटल से जरुरी फोन आया कहकर जय की बुलेट लेकर समर चला गया ताकि दो कारों से सभी वापस जा सके| अभी कार्यक्रम खत्म नहीं हुआ था इसलिए वर्षा सबके साथ वापिस आने को कहती है| बुआ जी को बस समर से ही समस्या थी| समर के वहां न होने के सुकून से वह वर्षा को ऋतु के संग ही वापस आने की ताकीद कर अकेली वापस लौटने को राज़ी हो जाती है| 

कार्यक्रम खत्म होते ऋतु की नज़रे किसी को तलाशती अब मंच के किनारे खड़ी थी| वर्षा दौड़कर उसके गले लग जाती है| मानसी भी आगे बढ़कर गले लगकर बधाई देती है| सभी की शुभकामनाओं और बधाई के बीच भी कुछ अधूरापन था जिसको तलाशती उसकी आँखों को पकड़ते जय कहता है –‘डॉक्टर साहब का हॉस्पिटल से जरुरी फोन आ गया – मजबूर होकर जाना पड़ा|’

लरजती आंखे अब खामोश हो गई|| ऋतु को अभी कुछ देर और रुकना था| मोहित वापस आ गया था, ऋतु वर्षा को गुरु जी के संग अपने वापस आने का आश्वासन देकर सबको भेज देती है| उसे कुछ देर और रूककर कुछ लोगों से मिलना जो था| आज ऋतु के लिए सबसे बड़ा दिन था| उसका नृत्य एक बड़े पटल पर सराहा गया था| जिसकी ख़ुशी उसके चेहरे पर दिख रही थी|

सभी वापस चले जाते है| ऋतु काफी देर रुकने के बाद गुरु जी के साथ लौटने के लिए अकादमी से बाहर निकलती है|

आज अपनी शिष्या की सफलता की तृप्ति उनके चेहरे पर भी दिख रही थी| अब वे सब साथ में बाहर की ओर निकल रहे थे| अभ्युदय की तारीफ पर उसके चेहरे पर मुस्कान भरा शुक्रिया था| ऋतु हतप्रभ थी कि अमेरिका में इतने साल रहने पर भी कला को लेकर उसकी समझ अभी भी बहुत अच्छी थी| वे दोनों कला संगीत पर चर्चा कर रहे थे| गुरूजी थोड़ा पीछे चलते हुए उन दोनों को बात करते देख उनके पीछे पीछे चल रहे थे| 

वह सब बाहर निकल कर बस कार में बैठने ही वाले थी कि किसी की आमद ने सब कुछ उलट पलट कर रख दिया| समर बुलेट से अभी वापस आया था| वह दूर खड़ा ऋतु को देख रहा था| दोनों की नज़रे मिली और ऋतु ने अपने गुरूजी को समर के साथ जाने के लिए मना लिया| वे बहुत रात होने की दलील देते पर उल्टा ऋतु ने समझा दिया कि उनको उसे छोड़ने के लिए उल्टा रास्ता जाना पड़ेगा जबकि हम तो पड़ोस में ही रहते है| उन्हें बात करते देख समर भी वही आ जाता है| गुरूजी को हाथ जोड़ प्रणाम कर वह अभ्युदय से हाथ मिलाता है| तब दो डॉक्टर एक दूसरे को देख मुस्करा पड़ते है|

अभ्युदय आराम से उन्हें विदा कर कार में बैठ जाता है लेकिन गुरूजी के चेहरे से लग रहा था कि ये बात उन्हें कुछ खास पसंद नहीं आई थी पर ऋतु के इसरार के आगे कर भी क्या सकते थे|

क्रमशः………………………………….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!