
हमनवां – 1@Forever Friends
चार दोस्त जय पुलिसवाला, इरशाद पत्रकार, समर डॉक्टर और मोहित स्पोटर्स टीचर है जो दिल्ली शहर के एक ही घर जहाँ वे साथ में रहते है, साथ साथ जिंदगी का हर लम्हा जीते है, फिर आती है उनकी जिंदगी में चार हसीन लड़कियां जिन्हें देखते वे अपना दिल हार बैठते है, क्या आने वाले वक़्त में उन दोस्तों की जिंदगी इसी तरह सामान्य रहने वाली है ? या उन लड़कियों के आने से उनकी दिल दोस्ती में पड़ेगा कोई असर !! क्या पा सकेगे वे अपने अपने हिस्से का सच्चा प्यार !! जानने के लिए पढ़े हमनवां कहानी दोस्ती और प्यार की अनोखी दास्ताँ…मेरे यानी अर्चना ठाकुर के साथ….
दिल्ली वसंत कुंज का एक मंजिला मकान
जय ने उंघते हुए करवट बदली, लगा नींद पूरी हो गई फिर भी जय दूसरी करवट बदल कर लेट जाता है| नींद पूरी हो जाने पर भी वह बिस्तर नहीं छोड़ता, आँखों को बंद किए हुए भी उसके कान सजग थे और अपने आस पास की हर छोटी बड़ी आवाज़ का चित्र दिमाग में बनाते जा रहे थे|
धीमे धीमे रेडियो की आवाज़ आ रही थी, ये सुनकर उसके दिमाग ने शेविंग करते इरशाद की तस्वीर बना ली, आखिर ये इरशाद की रोजाना की आदत थी जब तक वह गुसलखाने में रहता उसका रेडियो बजता रहता| यदि भूल से किसी ने रेडियो बंद कर दिया तो उसकी जुबान का रेडियो रोकना नामुमकिन सा हो जाता|
बिस्तर के बगल की बाहर को खुलने वाली खिड़की के पार हौले हौले महिला आवाज़ से उसके दिमाग में अगला चित्र ऋतु का, कुछ वर्षा का या बुआ जी का बनता है| उसी आवाज़ में घुली मिली एक चीर्र की आवाज़ से मोहित की कार की आवाज़ से उसके दिमाग में गाड़ी साफ़ करते मोहित का चित्र उभरता है|
सब अपने अपने काम में लगे थे और हर इतवार की सुबह की तरह जय अपना पसंदीदा काम कर रहा था| देर तक बिस्तर में पड़ा रहना| मक्कारी….. ये आवाज़ समर की थी| अब तेज़ कदमो की आहट से इरशाद का चेहरा स्पष्ट होता है|
अगले ही पल फुर्ती से दो काम होते है बिस्तर पर पानी भरे मग से पानी डालने का उपक्रम जिसपर जय का बिजली की फुर्ती से अपनी एक लात मग पर मारना और दूसरा बेड से एक झटके से जय का उतरना| पानी अब मग से औंधे मुंह जमीन पर गिरा था|
आवाज़ सुन समर आता है लेकिन अनदेखा फर्श का पानी उसे एक झटके से जमीन में ला पटकता है| इसी के साथ जय के ठहाके सुन समर अपने एक हाथ में पकड़ा टमाटर उसके सिर पर निशाना मार कर फेकता है| हँसी के फुहार से बेखबर जय के सिर पर टमाटर आकर अपना सर फोड़ लेता है और इसी के साथ उस कमरे में एक महाभारत सी मच जाती है|
जय फुर्ती से चिल्लाता हुआ कमरे से बाहर भागता है तो इरशाद आधा मग भरे उसके पीछे दौड़ता है| दोनों झटपट सीढियाँ उतर जाते है| उनके पीछे पीछे समर भी हाथ में वही गिरा टमाटर पकड़े उनके पीछे पीछे सीढियाँ उतर जाता है| मोहित का ध्यान जब तक उनकी तरफ जाता है तब तक उसके हाथों से पानी का पाइप छीन लिया जाता है अब चारों उस पाइप पर अपनी अपनी जोर अज़माइश कर रहे थे|
हालात यूँ हो गए कि चारों ही अब पूरी तरह से भीग चुके थे| आवाज़ सुनकर दो तीन चेहरे झट से वहाँ आ जाते है| मोहित और जय को पाइप के लिये खींचातानी करते वहीँ इरशाद पर अपने हाथ का टमाटर फेंकते समर को देखते वह चेहरा खिलखिला कर हँस पड़ता है|
हँसी की आवाज़ सुनकर वे ऑंखें आपस में मिलती है तो समर देखता है कि ऋतु सबसे नज़रे बचाकर उसके हुलिया को देखती अपने होंठ भींचे हँस रही थी| अब समर उसकी आँखों से अपने हुलिए को देखता अचकचाते हुए अपने गले में पड़ा एप्रन उतारने लगता है|
ऋतु के पीछे खड़ी उसकी छोटी बहन वर्षा तो ठहाका मार कर हँस रही थी वही बुआ जी अपने हाथ में पकड़े गीले कपड़े तार पर डालती डालती धीरे धीरे बडबडाने लगी –‘राम जाने कौन इनको नौकरी दिए है – कोई कहेगा ये नौकरी करत है …|’ बाकी के शब्द उनके मन में ही गडमड हो जा रहे थे| पर सबसे बेखबर दिल्ली की उमसभरी गर्मी में समर और ऋतु की निगाह चुपचाप एक दूसरे से मिलकर नेह की बारिश से भीग कर सराबोर हो उठी थी|
ये घर चार हमनवां का था, ये उनकी अपनी खूबसूरत दुनिया थी, जिनके राजा और रंक वही थे|
***
मानसी जल्दी जल्दी सीढियाँ चढ़ती हुई ऊपर आती है| उसके कदमो के साथ साथ उसकी आवाज़ भी सीढियाँ चढ़ती हुई ऊपर आती है|
“इरशाद -|” वह लगभग चीखती हुई कमरे में प्रवेश करती है, एक झटके में वहाँ का नज़ारा देख उसका चेहरा गुस्से से और लाल हो उठा|
“यू – बदतमीज़ -|” इधर उधर देखती एक कुशन उठाकर सोफे पर जड़े इरशाद और जय की ओर फेंकती है|
इससे दोनों का टी वी से ध्यान हटकर उसकी तरफ जाता है|
“मानसी !!” इरशाद अपने दांतों तले जीभ दबाता हुआ तुरंत सोफे से उचककर उसके सामने खड़ा हो जाता है – “मैं बस निकलने ही वाला था|” झट से अपनी अधखुली शर्ट के बटन लगाता अपना बैग ढूंढने का उपक्रम करने लगता है|
तब तक दूसरा कुशन भी हवा में तैरता हुआ उसकी तरफ आ जाता है जिसे जय बढ़कर अपने हाथों के बीच दबोच लेता है|
“अरे डार्लिंग ये बस निकलने ही वाला था|” यही वक़्त था जब जय और इरशाद की नज़रे आपस में मिलते दोनों खिसिया जाते है|
“माय फुट – तुम दोनों ही किसी काम के नहीं हो – मैं दो घंटे से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ और इरशाद साहब यहाँ पैर पसारे सन्डे का मज़ा लेते टी वी देख रहे है|” गुस्से में पैर पटकती मानसी अब जय की तरफ देखती है – “तुम तो अपना मुंह बंद ही रखो – तुम तो न |”
एक दम से मानसी दौड़ती हुई जय की तरफ अपने दोनों हाथों का फंदा बनाए उसकी गर्दन की तरफ बढ़ती है| मानसी की हथेलियाँ पंजो के रूप में जय की गर्दन के इर्दगिर्द थी वहीँ जय अपने चेहरे पर मादक मुस्कान बिखेरता हुआ अपनी बांहे उसकी कमर के घेरे में लपेट लेता है ऐसा करते मानसी उसकी देह से सट जाती है| उसकी हथेलियों की पकड़ ढीली हो जाती है वहीँ जय की पकड़ उसे और अपने पाश में घेर लेती है|
“अरे इरशाद तुम लोग तो ये मूवी पूरी देखने वाले थे न|” हाथ में प्लेट पकड़े पकड़े मोहित वहाँ आता है|
मानसी अगले ही पल आवाज़ की तरफ ध्यान देती उससे छिटक कर अलग हो जाती है|
“क्या…!! मुझे पता था तुम दोनों न एक ही थाली के चट्टे बट्टे हो – |” जय का हाथ झटकती मानसी पास में पड़ा कुशन उसकी तरफ मारती सोफे पर रुआंसी होती हुई धम से बैठ जाती है|
“ओह मुझे बताया ही नहीं कि मानसी को ये नहीं बताना था|” अपने चेहरे पर जबरन भोलापन लाते मोहित टूथपिक से सलाद का एक टुकड़ा अपने मुँह के हवाले करता धीरे से चिढ़ाने वाली मुस्कान से मुस्करा देता है|
इरशाद जल्दी से बैग उठाए मानसी को आवाज़ लगाता है – “चलो हम लेट हो रहे है – इंटरव्यू लेना है न|”
“भाड़ में गया इन्टरव्यू -|” पैर पटकती मानसी अब कमरे से झटके से बाहर निकल जाती है उसके पीछे पीछे इरशाद कमरे से निकलते हुए धीरे से जय को ऑंख मारते हुए कहता है – “डोंट वरी मैं संभाल लूँगा|” दोनों झट से कमरे से बाहर निकल जाते है| उनको जाते देख जय एक गहरी साँस छोड़ता हुआ टी वी की ओर देखता है|
अब मोहित टी वी का रिमोट लिए कोई स्पॉट्स चैनल लगा रहा था|
“अबे आज मेरी बारी थी – तूने कल भी यही देखा था|” ये कहते दोनों एक दूसरे से सोफे पर घमासान करने लग जाते है| लड़ते लड़ते उनका ध्यान अब टी वी की आवाज़ की ओर जाता है अब टी वी के सामने बैठे समर के हाथ में रिमोट था| दोनों अब उसकी तरफ लपक कर आते है जो उनसे बचते हुए दरवाजे की तरफ जाता है कि किसी से टकराकर अब वो ऑंखें चार होती है|
दरवाजे पर ऋतु खड़ी थी जो समर के एकाएक धक्का लगने से बस गिरने ही वाली थी जिसे समर के हाथो ने थाम लिया था| अब दोनों एक दूसरे की आँखों में झांक रहे थे| दोनों बेखुदी में एक दूसरे का हाथ थामे रह जाते है, ऋतु का एक हाथ समर के हाथ में था तो उसके दूसरे हाथ में डोंगा था|
“वाओ – क्या है?” जय तेजी से दोनों की तरफ बढ़ता है इससे दोनों की बेखुदी का आलम भंग होता है|
‘”ओह्ह – आज पूरनमासी है न तो बुआ जी ने खीर बनाई थी|” ऋतु किसी तरह खुद को समेटती हुई बोली|
ये सुनते जय लपक पर डोंगा उसके हाथों से ले लेता है – “अरे तो लाओ न|”
ऋतु कनखियों से समर को देखती जबरन गुस्सा चेहरे पर लाती हुई अब जय की तरफ देखती है – “ये क्या तुम लोग हमेशा बच्चों की तरह लड़ते रहते हो – बुआ जी तुम लोग को ऐसे देखती है, ये अच्छा नही लगता|”
ऋतु जानती और समझती थी कि इस बोझिल जमाने में वे चार दोस्त अपनी दुनिया को किस तरह से जीवंत बनाए थे फिर जाती हुई अपनी छुपी नज़रों से समर को देखती वह सीढियाँ उतर जाती है जहाँ दूर तक समर की ऑंखें उसे छोड़ने जाती है|
पूरे हफ्ते के व्यस्त भागमभाग भरे दिन में ये एक छुट्टी का दिन होता था जब चारों एक दूसरे के साथ अपना समय बिताते थे|
***
इरशाद और मानसी जनर्लिस्ट थे| दोनों साथ में स्कूल – कॉलेज से लेकर अब एक साथ शहर के प्रतिष्ठित अख़बार में काम भी करते थे| दोनों जितने अच्छे और गहरे मित्र थे वहीँ झगड़ते भी किसी बच्चे की तरह थे|
मानसी अपने काम को लेकर जितना गंभीर होती वहीँ इरशाद कभी कभार लचर हो जाता जिसपर दोनों अक्सर झगड़ पड़ते| फीचर विभाग में एक रिपोर्ट पर सिर जोड़े मानसी इरशाद और विभाग के सीनियर पवन मौजूद थे|
“मैंने पहले ही कहा था – तुम लोगों ने देर कर दी|” पवन अपना चश्मा उतारते दूसरे हाथ से केस से कपड़ा निकालकर उसके लेन्स पोछते हुए कहते है – “अब इस रिपोर्ट में कुछ नहीं रखा|”
मानसी इरशाद को घूरती हुई उसे देखती है जिससे इरशाद होठों के कोने सिकोड़ते हुए आँखों से शर्मिन्दा हो उठता है, जिसे मानसी देख उसे और अपनी आँखों से कस कर घूरने लगती है|
“कुछ नया सोचो – अब तो दूसरे अख़बार के पास भी ये इंटरव्यू पहुँच गया है – हमारा इसपर अब और काम करने का कोई मतलब नहीं रह जाता|”
दो पल कमरे में शांति छाई रहती है तीनों अपने में व्यस्त जैसे अगले के बोलने का इंतजार कर रहे थे तभी इरशाद तपाक से बोलता है – “हम जानकार लेखको के ही इंटरव्यू क्यों निकाले – लोग कुछ नया जानना चाहते है – क्यों न एक नये कॉलम के अंतर्गत हर हफ्ते एक छुपे लेखक का उसके निजी अनुभव के साथ का एक इंटरव्यू निकाले – लोग शर्तिया पढ़ेंगे|” इरशाद एक साँस में ही बोल गया|
दोनों अब उसकी तरफ ऑंखें फाड़े देख रहे थे|
“सच कहता हूँ – मैं ऐसे ऐसे इंटरव्यू लाऊंगा कि लोग पढ़कर हैरान रह जाएँगे|” इरशाद पूरे जोश में था –“और फिर दो महीने बाद हिंदी दिवस है तब एक धमाकेदार इंटरव्यू छाप देंगे|’ पूरे आत्मविश्वास से बोलते हुए इरशाद झटके से कुर्सी की पुश्त से सट जाता है|
“हम्म – अच्छा आईडिया है पर ये होगा तुमसे !!” मानसी एक दम से बोल पड़ी|
इरशाद झटके से गर्दन को जुम्बिश देता उसकी तरफ देखता हुआ कुछ कहने ही वाला था कि पवन बीच में बोल पड़ा – “हाँ आईडिया तो मस्त है पर इरशाद साहब होगा आपसे – आधा काम करके गायब तो नहीं हो जाओगे|” कहता हुआ पवन हौले से मुस्करा देता है|
पवन उन्हीं के कॉलेज में उनका सीनियर था और दोनों को कॉलेज के ज़माने से ही जानता था| एक तरह से प्रिंट मिडिया का सपना तीनों ने एक ही वक़्त में देखना शुरू किया था जब उस कॉलेज पत्रिका के संपादन से वे तीनों जुड़े| पवन सीनियर था फिर भी दोनों संग उसका बहुत दोस्ताना व्यवहार था|
“मानसी है तो कम से कम काम समय पर हो जाएगा इतना यकीन है|” अबकि पवन कस कर हँस देता है जिसपर अपनी भौं उठाकर मानसी इरशाद की ओर अपनी तिरछी मुस्कान से देखती है जिससे इरशाद उसकी तरफ देख अपना मुँह बना लेता है|
क्रमशः……………..
मिलते रहे दोस्तों से….
Awesome 👍
💞