
बेइंतहा सफ़र इश्क का – 131
तीन दिन से जो शख्स एक आम व्यक्ति की तरह उनके बीच था वो ही उनका मालिक है ये बात पता चलते सारे मजदूरो के जैसे होश ही उड़ गए और जिसे वे अरुण का पिता समझ रहे थे वह उनका पीए है !! उन्हें इस बात पर विश्वास ही नहीं आया| वे ये सोचकर दंग थे कि उनके अन्नदाता ने उनके हाथो का रहा सहा भोजन लिया और उनके बीच साधारण व्यक्ति की तरह मौजूद रहा|
सारे मजदूर हैरानगी से एकदूसरे की ओर तो कभी अरुण की ओर देखते है जो अभी भी सारे बच्चो और महिलाओं मे प्रसाद बाँट रहा था और उसका ध्यान उनकी ओर बिलकुल नहीं था|
ये देखते सारे एक साथ आगे बढ़ते अरुण की ओर आते उसके आगे झुकाते हुए कह उठते है –
“हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई – अपने माई बाप को ही हम न पहचान पाए – हमे माफ़ कर दीजिए मालिक |”
“अरर – ये सब क्या है – गलती तो अब कर रहे है आप सब – झुकते सिर्फ ईश्वर के आगे है – मैं तो आपकी ही तरह एक आम इंसान हूँ |”
सभी हैरानगी से उसे देखने लगे जबकि उसके पीछे खड़े ब्रिज हलके हलके से मुस्करा रहे थे|
“वैसे भी मेरे कोई सींग नहीं थे जो आप मुझे पहचान लेते –|” कहते हुए वह हलके से हँस पड़ता है|
“आपने हमे अपने बारे मे बताया क्यों नही ?”
“अगर बता देता तो इतना करीबी अहसास कैसे मिलता जो किसी को अपने परिवार मे आकर मिलता है|”
“परिवार !!” मजदूर भौचक बने रहे|
“आखिर एक संस्था एक परिवार ही होता है – जिसे हम साथ मिलकर चलाते है – यहाँ सबकी अपनी अपनी अहमियत होती है कोई छोटा या बड़ा नही होता – दिमाग कितना भी सोच ले पर बिना अपने सहयोगी हाथो के वह कुछ नहीं कर सकता – आप सब वही सहयोगी हाथ है |”
“आपने हमारे बारे मे इतना सोचा और इतना किया – हम सब तो धन्य ही हो गए |” वे सभी कृतज्ञता से हाथ जोड़े उसके आगे खड़े रहे|
अरुण आगे बढ़कर एक मजदूर के कंधो पर दोनों हाथ जमाते हुए कहता है – “ये कोई खैरात नही आप सबका अधिकार था – वैसे मुझे अभी बहुत कुछ करना है |” कहता हुआ अरुण लोकल मेनेजर को इशारे से बुलाता है|
“जी सर !”
“एक महीने मे जब तक उस प्लाट मे जीएस कॉलोनी नहीं बन जाती तब तक इन सबकी यहाँ रहने और खाने की व्यवस्था अच्छे से होनी चाहिए |”
“जी सर हो जाएगा |”
अरुण अब मजदूरो की ओर देखता हुआ कहता है – “अब से आप सबको कोई भी समस्या हो तो मैं एक हेल्पलाइन नंबर जारी करूँगा जो फैक्ट्री मे जगह जगह लिखा मिल जाएगा – आप सीधे उस नंबर से अपनी समस्या मुझतक पहुंचा सकते है |”
ये सुनते सारे मजदूर ख़ुशी से एकदूसरे का चेहरा देखने लगे|
“और जल्दी ही आप सबको अपना आशियाना मिल जाएगा – अब मुझे जाने की इजाज़त दे |” वह हाथ जोड़कर उनके बीच से निकलने लगता है और सभी मजदूर उसके लिए रास्ता देते हाथ जोड़े यूँ खड़े रहे मानो उनका राजा उनके बीच से जा रहा हो | अरुण के पीछे पीछे ब्रिज भी बाहर की ओर चल देते है|
बाहर आते ब्रिज अरुण से कहते है – “मेरी ओर से सारी व्यवस्था हो गई है – चाहे तो अभी सूरत के लिए निकले या थोड़ी देर बाद |”
ब्रिज अपनी बात कह रहे थे जबकि अरुण का ध्यान कुछ दूर खड़े लोगो की भीड़ की ओर चला गया| वे सभी मंडली के लोग थे जो कथा मे आए थे|
“वो सब इस तरह से भीड़ क्यों लगाए है -?”
अरुण के पूछते लोकल मेनेजर जो उसके पास ही आ रहा था जल्दी से कह उठा – “वो सब मंडली वाले लोग है – असल मे उनका टैम्पो नही आया जिससे वे जाने वाले थे |”
तभी महंत जी भी वहां से निकलकर उसी ओर आ रहे थे उन्हें देखते अरुण हाथ जोड़कर उनका सम्मान करता है| वे भी उसे देखते अपना आशीष मे हाथ उठाते उसे आँखों के संकेत से अपनी ओर बुलाते है| अरुण के पास आते वे उसका चेहरा ध्यान से देखते हुए अपने कमंडल से एक पुष्प निकालकर उसका जल उसपर छिड़कते हुए कहते है –
“ईश्वर तुम्हे परम साहस प्रदान करे |”
उसकी बात पर हलके से हँसते हुए अरुण पूछता है – “साहस ही क्यों ? सौभाग्य और समृद्धि क्यों नही ?”
“क्योंकि इसकी अभी तुम्हे अति आवश्कता है बाकी तो स्वयं है तुम्हारे पास |” वे अरुण को देखते हुए यूँ कह रहे थे मानो उसका मस्तक पढ़ते हुए कुछ सुना रहे हो – “आने वाला समय बहुत सी चुनौतियों से भरा होगा बस अपना विश्वास मत डगमगाने देना क्योंकि जितना तुम्हारे भाग्य मे संघर्ष है उतना ही प्रेम भी है – जय सिया राम |” कहते हुए वे आगे बढ़ने लगे तो अरुण भी अपनी कार तक आ गया| अरुण कुछ क्षण तक अवाक् उन्हें देखता रहा|
राजवीर कार का दरवाजा खोले अरुण का इंतजार कर ही रहा था| अरुण कार कि तरफ आ रहा था कि अचानक वापस मुड़कर फिर उस भीड़ की तरफ देखता है| शायद उस मंडली को लेने वाहन अभी तक आया नही था जिससे वह ब्रिज जी को देखता हुआ कहता है –
“मेरे ख्याल से हमे इनकी मदद करनी चाहिए – आप इन्हें इनके डेस्टिनेशन तक छोड़वा दीजिए |”
“ठीक है |” हामी भरते वे बाकी की कार के ड्राईवर को उन सबको ले जाने का इंतजाम करते है|
अरुण कुछ पल तक कार मे बैठे बैठे सब देखता रहा| महंत जी खुद पहले न बैठकर अपने साथ आई मंडली के जाने की पहले व्यवस्था कर रहे थे| साथ मे आई दो तीन कारो मे वे अपने साजो सामान के साथ बैठ गए| अब बस महंत जी रह गए थे| उन्हें खड़ा देख अरुण राजवीर को भेजकर उन्हें अपनी कार मे बुलावा लेता है|
अब अरुण उन सबको उनके मंदिर तक छोड़कर ही वापस जाने का तय करता है| अगले कुछ पल मे सब कारे मंदिर तक पहुँच जाती है| अरुण महंत जी को सआदर उतारने खुद भी कार से बाहर खड़ा उन्हें हाथ जोड़कर कहता है –
“आज आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा – बहुत कुछ खोया है पर पता नहीं क्यों आज कुछ पाने का अहसास हो रहा है |”
कहते हुए वह ज्योंही वापस जाने लगता है वे उस टोकते हुए कहते है – “बेटा ईश्वर के द्वार से बिना दर्शन किए लौट जाओगे क्या ?”
वे सजह भाव से उसे देख रहे है तो अरुण वापस पीछे लौटकर उनकी तरफ आता है| वे कह रहे थे –
“इस मंदिर मे जो आया है वो कभी खाली हाथ नहीं गया – एक बार दर्शन कर आओ बेटा |”
अरुण हामी मे सर हिलाते मंदिर की ओर चल देता है पर उसे क्या पता था कि अचानक से वक़्त की मुट्ठी खुल जाएगी और एक खोया पल उसके सामने आकर खड़ा हो जाएगा| वह हतप्रभता से उस पल को देखता रह गया जैसे खुद को यकीन दिला रहा हो कि क्या ये सच है ??
अरुण मंदिर कि सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ अब ठीक प्रतिमा के सामने खड़ा था और उसकी नज़र प्रतिमा के ठीक सामने बैठे शख्स पर थी| सफ़ेद दाढ़ी पर तेजस मुख और आँखों मे ढेरों नमी लिए वे भी उसे ही देख रहे थे| फिर तो जैसे शव्दों का कोई स्थान ही नहीं रहा अरुण अपने दादा जी से बच्चों की तरह लिपट गया| वे भी मौन आँसू बहाते बस उसके सर पर हाथ फिराते रहे| सच मे इस मंदिर से वह वाकई खाली हाथ नहीं लौटा|
***
नाश्ते की टेबल मे अभी भी दीवान साहब और क्षितिज बैठे थे और भूमि उनके गिलास मे जूस भर रही थी| दीवान साहब नाशता खत्म करके अख़बार का एक टुकड़ा हाथो मे लिए कुछ पढ़ रहे थे| सबको बिजी देख क्षितिज चुपके से अपनी प्लेट की सब्जी नीचे सरकाने लगता है तो ये देखते भूमि तुरंत उसे टोकती है –
“मुझे सब दिख रहा है – चलो फिनिश करो सब |”
इसपर क्षितिज भोला सा मुंह बनाकर भूमि को देखता है तो भूमि झट से एक चम्मच लेकर उसके मुंह मे डाल देती है| ये देखते दीवान साहब धीरे से मुस्करा देते है लेकिन जब अगली बार वह मुंह नही खोलता तो दीवान साहब उसे कहते है –
“क्षितिज अगर अपनी प्लेट फिनिश कर लोगे तो मैं एक जादू दिखाऊंगा तुम्हे |”
“सच्ची दादू |” क्षितिज एकदम से उत्साहित हो जाता है और झट से मुंह खोले भूमि के सामने आ जाता है| ये देख भूमि मुस्करा पड़ती है|
नन्हा क्षितिज सच मे प्लेट का सारा खत्म करके अपने दादू से कहने लगा – “ मैंने फिनिश कर दिया – अब दिखाईए न दादू |”
दीवान साहब अख़बार रखते हुए कहते है – “ठीक है अब दादू दिखाएँगे जादू |”
इस बात पर तीनो एकसाथ हँस पड़ते है|
दीवान साहब भी कुछ देर के लिए क्षितिज संग बच्चे बने खिलखिलाने लगते है|
काका भी ये सारा दृश्य देखते मन ही मन मुस्कराते हुए उजला के कमरे की ओर चले जा रहे थे| कमरे मे आते वे देखने है कि उजला अभी तक लेटी थी| वे उसके माथे को ज्योंही छूते है वह चौंककर आँख खोल देती है|
“अरे क्या हुआ बिटिया – तबियत तो ठीक है न ?”
वे उसका चेहरा गौर से देख रहे थे और वह घबराई सी अपनी स्थिति देखने लगती है| कल जाने कितनी देर रात वह बाहर बैठी रही और जाने कब कमरे मे आकर लेट गई और तब से लेकर अब उसकी आंख खुली|
“हुआ क्या बिटिया इतनी परेशान क्यों दिख रही हो ?”
उसी क्षण उजला को सब याद आता है, विवेक और मेनका का साथ और उसका ये तय करना कि वह अरुण को सारा सच कह देगी| पर अब सुबह हो गई थी| अरुण का अब तक अता पता नही था और पता नहीं अब तक विवेक ने क्या किया होगा ? उसे लेकर उसका डर कई गुना बढ़ गया| वह उसी क्षण तय करती है कि अरुण का इंतज़ार करना बेकार है कही तब तक देर न हो जाए| वह मेनका को ही सारा सच कह देगी| हाँ ये भी संभव है कि उस पर कोई विश्वास न करे और विवेक के अनुसार ही लांछन लगाए लेकिन अब चाहे जो हो उसका रुके रहना असंभव है| काका हैरानगी से उजला को देखते रहे और वह मन ही मन तय करती तुरन्त उठकर बाहर निकल जाती है|
***
मेनका की आंख झटके से खुलती है और शीशे से बाहर का दृश्य देखते उसके होश ही उड़ जाते है| विवेक ने कार दीवान मेंशन मे जाकर रोकी थी और मेनका की कार होने के कारण उसे अंदर आने से किसी ने रोका भी नही था| पर उसके बदले रूप को देखते दरबान अपनी जगह स्तब्ध रह गया|
“विवेक – तुम – यहाँ क्यों ले आए ?”
मेनका घबराकर विवेक को झंझोडती है जबकि वह आराम से उसका कन्धा थपथपाते हुए कहता है – “डोंट वरी – जब तुम मेरे साथ हो तो तुम्हे किसी से घबराने की जरुरत नही है – चलो |” विवेक अपनी तरफ से उतरकर कर मेनका को दूसरी तरफ से उतारता है|
अब दोनों शादी के कपड़ो मे गले मे माला डाले ठीक मेंशन के सामने खड़े थे और वहां मौजूद नौकर अपनी अपनी जगह खड़े बर्फ हो गए थे|
……….क्या सोचकर विवेक मेनका को मेंशन लाया है ? क्या कोई बड़ा हादसा होगा ? उजला क्या अब अपना सच सबको बता पाएगी ?
अब उस प्रश्न का उत्तर जो कुछ पाठक जानना चाहते थे……रामायण रामचरितमानस दोनों अलग है इस परिपेक्ष्य मे कि रामायण वाल्मीकि जी ने लिखी और रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास ने| जो भी हम पाठ सुनते हैं वो रामचरितमानस ही होता है| रामचरितमानस अवधि और सरल भाषा में तुलसीदास ने लिखा जबकि रामायण पूर्णता संस्कृत भाषा में लिखी गई| अब बात आती है उत्तर रामायण !! उत्तर रामायण इन दोनों में से किसी का भाग नहीं है इसे इनके बाद में जोड़ा गया है इसके बहुत सारे साक्ष्य उपलब्ध है रामायण युद्ध के बाद सीता और राम की वापसी और उनके राज्य अभिषेक के साथ समाप्त हो जाती है बाल्मीकि भी यही कहते हैं और रामचरितमानस में भी यही लिखा गया इसलिए यह बात मानी जाती है कि उत्तर रामायण को बाद में जोड़ा गया है किसने जोड़ा कैसे जोड़ा सही साक्ष्य उपलब्ध नही है पर सच ये है कि 128 सर्ग से वाल्मीकि अपनी कथा यही समाप्त कर देते है तो दुबारा क्यों वे लिखेंगे…….सीता परित्याग जैसे बहुत से प्रसंग आदि के बहुत सारे साक्ष्यों को नहीं जान पाते हैं लेकिन अगर हम किसी व्यक्ति को जानना चाहते है तो उसके व्यक्तित्व से जानते हैं उसी के जरिए ही हम उस व्यक्ति को जान पाते हैं कि वह कैसा व्यवहार करेगा ? राम जिस तरह के व्यक्तित्व बालपन से लेकर युवा और विवाह से युद्ध तक दिखते हैं अचानक वे अपने व्यवहार में कोई बदलाव नहीं ले आएंगे अचानक से सीता के प्रति कैसे कठोर हो सकते हैं जो अहिल्या शबरी का मान रखते है….मुझे बहुत अच्छा लगा कि रामायण के बारे में सबमे जानने की जिज्ञासा है मेरे मन में भी बहुत सारी जिज्ञासा रही फिर मैंने उनको खंगाला, ढूंढा और हमेशा कोशिश की कि उन सारे उत्तरों को मैं लोगों तक पहुंचाऊ और इसके लिए कहानी के शब्द सबसे बढ़िया जरिया रहे..
क्रमशः…………………..
Bahut sundar bhavnatmak part
Ab toh bahut kuch hoga sab ki life mein Arun ko dadaji bhi mil gye
Vi
Wao kitna bhabhuk pal rha hoga vo chlo fainli Arun apne dadaji se mil liya par mem muje jald hi us pal ka intjar rhega jab dadaji ar ujla ka aamna samna hoga tab ky hoga bhut badiya parts rha aaj ka sach m
Mind blowing part….
Bhut acha part h…. Finally dadaji mil hi gye… Ab kiran ka sach samne aakar hi rhega…….
Shabdo ka prbhav👌
Aakhir dadaji mil hi gye….ab vivek kya karega or menka ka kya hoga
बहुत ही सुन्दर भाग
Very very nice😊👏👍👏😊😊😊😊👏👏👍👍👏 very very🤔🤔🤔
Bohot badiya part.. Arun ko dada ji mil gye.. par ab mension me bhukamp aane wala hai.. next part ki wait nhi hogi…
Mere question ka answer Dene ke liye thanks.. bilkul sahi kaha aapne koi ek dam se nhi badal sakta .. to Ram ji to bhagwan hai.. 🙏🙏
Nice 👍👍👍
अरुण को दादा जी मिल गए,अब किरण को भी सच्चाई बता देनी चाहिए
Oh my God ye Menka ne sahi nhi Kiya aur Ujala ne apni sachai Arun ki hi batani chahiye.
👏👏👏👏👏👏bahut badiya part
दादा जी मिल गए ये बहुत अच्छा हुआ महंत जी सच कह रहे सकंट के बादल तो दीवान मेंशन पर है ही
अति सुन्दर प्रस्तुति,💞💞💞
Bahut Badhiya Part.
Kya baat hai Arun ko dada ji toh mil gaye par abhi bahut sangharsh hai…dekhte hain kya hota hai aage…
Amazing part ❤️